केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने साबित कर दिया है कि उन्हें अपने मंत्रालय के कामकाज की तो जानकारी कम है ही, साथ ही उन तथ्यों का भी पता नहीं है जिनके बारे में उनकी पार्टी अक्सर दुष्प्रचार करती रहती है।
अभी पिछले दिनों आपातकाल की बरसी पर प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि सीबीएसई की किताबों में आपातकाल के बारे में जानकारी शामिल की जाएगी ताकि बच्चों को पता लग सके कि आपातकाल को दूसरा स्वतंत्रता संग्राम क्यों कहा जाता है। उन्होंने कहा था कि कोर्स में बदलाव करके आपातकाल की सत्यता बच्चों को बताएंगे ताकि इतिहास की सही व्याख्या हो सके।
जावड़ेकर ने ये कहकर अपनी पार्टी के राजनीतिक एजेंडे को तो पूरा कर लिया, लेकिन इसके बाद स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष और एनसीईआरटी की पाठ्यक्रम निर्माण सामग्री तैयार करने वाली समिति के मुख्य सलाहकार रहे योगेंद्र यादव ने प्रकाश जावड़ेकर की अनभिज्ञता की पोल खोल दी।
द वायर ने इस बारे में विस्तार से लेख छापा है। योगेंद्र यादव ने ट्वीट करके जावड़ेकर को बताया कि एनसीईआरटी की बारहवीं की राजनीति शास्त्र की किताब में आपातकाल की पूरी और सच्ची कहानी पहले से ही बताई जा रही है। उन्होंने इस बात पर हैरानी जताई कि मानव संसाधन विकास मंत्री पाठ्यक्रम बदलने की बात तो करते हैं, लेकिन उन्हें पाठ्यक्रम की जानकारी नहीं है, और न ही उनके अधिकारियों ने उन्हें ये जानकारी दी है।
योगेंद्र यादव ने कहा, “पुस्तक में स्वतंत्र भारत की लगभग बड़ी घटनाओं का जिक्र है। इसे किसी को सहज या असहज करने के लिए नहीं लिखा गया। इसमें आपातकाल, 1984 के दंगों, बाबरी ध्वंस और गोधरा कांड का तथ्यों के साथ विवरण है। कुछ भी मनगढ़ंत नहीं लिखा हुआ है।’
अब बात करते हैं एनसीईआरटी की उस किताब की जिसका जिक्र योगेंद्र यादव ने किया है। ये बात सही है कि एनसीईआरटी की उस किताब में आपातकाल की अच्छी जानकारी दी गई है।
प्रकाश जावड़ेकर को ये जानकर वास्तव में हैरानी होगी कि उसमें गोधरा कांड का भी तथ्यों के साथ विवरण दिया हुआ है। उसमें यह बात भी बताई गई है कि गुजरात के नरसंहार के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘राजधर्म’ का पालन नहीं किया था।
एनसीईआरटी की बारहवीं की राजनीति शास्त्र की किताब के छठे अध्याय में आपातकाल की चर्चा कुछ इस तरह से हैं: ‘देश के अंदरूनी मामलों की देख-रेख का जिम्मा गृह मंत्रालय का होता है। गृह मंत्रालय ने भी कानून व्यवस्था की बाबत कोई चिंता नहीं जताई थी। अगर कुछ आंदोलन अपनी हद से बाहर जा रहे थे, तो सरकार के पास अपनी रोजमर्रा की अमल में आने वाली इतनी शक्तियां थीं कि वह ऐसे आंदोलनों को हद में ला सकती थी।’
‘लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को ठप्प करके आपातकाल लागू करने जैसे अतिचारी कदम उठाने की जरूरत कतई न थी। दरअसल खतरा देश की एकता और अखंडता को नहीं, बल्कि शासक दल और स्वयं प्रधानमंत्री को था।’
इसी किताब में 1984 में हुए सिख नरसंहार में उस समय की सरकार की नाकामी की भी विस्तार से चर्चा है, लेकिन मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और उनके सलाहकारों को इसकी कोई जानकारी है ही नहीं।
नरेंद्र मोदी और भाजपा की सरकार पर कलंक माने जाने वाले गुजरात नरसंहार का भी इस किताब में उल्लेख है और साथ ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की वार्षिक रिपोर्ट का अंश भी इसमें दियागया है। उस समय अखबारों में छपी खबरों की कटिंग भी पुस्तक में शामिल हैं। किताब में लिखा है: ‘गुजरात की घटनाओं से देश मर्माहत है। इन घटनाओं की शुरुआत गोधरा-कांड से हुई और फिर लगातार दो महीने से भी ज्यादा हिंसा का तांडव मचा, जिससे पूरा राज्य दहल उठा। इसमें कोई शक नहीं है कि आयोग की राय में राज्य सरकार लोगों के जीवन, स्वतंत्रता, समता और गरिमा के हनन को रोकने में बुरी तरह नाकाम रही।’
सवाल यह उठता है कि जब मानव संसाधन विकास मंत्री को यह पता ही नहीं है कि पाठ्यक्रम में क्या शामिल है और क्या नहीं, तो वो कौन-सा बदलाव करने की बात कर रहे हैं।
अभी पिछले दिनों आपातकाल की बरसी पर प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि सीबीएसई की किताबों में आपातकाल के बारे में जानकारी शामिल की जाएगी ताकि बच्चों को पता लग सके कि आपातकाल को दूसरा स्वतंत्रता संग्राम क्यों कहा जाता है। उन्होंने कहा था कि कोर्स में बदलाव करके आपातकाल की सत्यता बच्चों को बताएंगे ताकि इतिहास की सही व्याख्या हो सके।
जावड़ेकर ने ये कहकर अपनी पार्टी के राजनीतिक एजेंडे को तो पूरा कर लिया, लेकिन इसके बाद स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष और एनसीईआरटी की पाठ्यक्रम निर्माण सामग्री तैयार करने वाली समिति के मुख्य सलाहकार रहे योगेंद्र यादव ने प्रकाश जावड़ेकर की अनभिज्ञता की पोल खोल दी।
द वायर ने इस बारे में विस्तार से लेख छापा है। योगेंद्र यादव ने ट्वीट करके जावड़ेकर को बताया कि एनसीईआरटी की बारहवीं की राजनीति शास्त्र की किताब में आपातकाल की पूरी और सच्ची कहानी पहले से ही बताई जा रही है। उन्होंने इस बात पर हैरानी जताई कि मानव संसाधन विकास मंत्री पाठ्यक्रम बदलने की बात तो करते हैं, लेकिन उन्हें पाठ्यक्रम की जानकारी नहीं है, और न ही उनके अधिकारियों ने उन्हें ये जानकारी दी है।
योगेंद्र यादव ने कहा, “पुस्तक में स्वतंत्र भारत की लगभग बड़ी घटनाओं का जिक्र है। इसे किसी को सहज या असहज करने के लिए नहीं लिखा गया। इसमें आपातकाल, 1984 के दंगों, बाबरी ध्वंस और गोधरा कांड का तथ्यों के साथ विवरण है। कुछ भी मनगढ़ंत नहीं लिखा हुआ है।’
अब बात करते हैं एनसीईआरटी की उस किताब की जिसका जिक्र योगेंद्र यादव ने किया है। ये बात सही है कि एनसीईआरटी की उस किताब में आपातकाल की अच्छी जानकारी दी गई है।
प्रकाश जावड़ेकर को ये जानकर वास्तव में हैरानी होगी कि उसमें गोधरा कांड का भी तथ्यों के साथ विवरण दिया हुआ है। उसमें यह बात भी बताई गई है कि गुजरात के नरसंहार के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘राजधर्म’ का पालन नहीं किया था।
एनसीईआरटी की बारहवीं की राजनीति शास्त्र की किताब के छठे अध्याय में आपातकाल की चर्चा कुछ इस तरह से हैं: ‘देश के अंदरूनी मामलों की देख-रेख का जिम्मा गृह मंत्रालय का होता है। गृह मंत्रालय ने भी कानून व्यवस्था की बाबत कोई चिंता नहीं जताई थी। अगर कुछ आंदोलन अपनी हद से बाहर जा रहे थे, तो सरकार के पास अपनी रोजमर्रा की अमल में आने वाली इतनी शक्तियां थीं कि वह ऐसे आंदोलनों को हद में ला सकती थी।’
‘लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को ठप्प करके आपातकाल लागू करने जैसे अतिचारी कदम उठाने की जरूरत कतई न थी। दरअसल खतरा देश की एकता और अखंडता को नहीं, बल्कि शासक दल और स्वयं प्रधानमंत्री को था।’
इसी किताब में 1984 में हुए सिख नरसंहार में उस समय की सरकार की नाकामी की भी विस्तार से चर्चा है, लेकिन मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और उनके सलाहकारों को इसकी कोई जानकारी है ही नहीं।
नरेंद्र मोदी और भाजपा की सरकार पर कलंक माने जाने वाले गुजरात नरसंहार का भी इस किताब में उल्लेख है और साथ ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की वार्षिक रिपोर्ट का अंश भी इसमें दियागया है। उस समय अखबारों में छपी खबरों की कटिंग भी पुस्तक में शामिल हैं। किताब में लिखा है: ‘गुजरात की घटनाओं से देश मर्माहत है। इन घटनाओं की शुरुआत गोधरा-कांड से हुई और फिर लगातार दो महीने से भी ज्यादा हिंसा का तांडव मचा, जिससे पूरा राज्य दहल उठा। इसमें कोई शक नहीं है कि आयोग की राय में राज्य सरकार लोगों के जीवन, स्वतंत्रता, समता और गरिमा के हनन को रोकने में बुरी तरह नाकाम रही।’
सवाल यह उठता है कि जब मानव संसाधन विकास मंत्री को यह पता ही नहीं है कि पाठ्यक्रम में क्या शामिल है और क्या नहीं, तो वो कौन-सा बदलाव करने की बात कर रहे हैं।