भारत एक कृषि प्रधान देश है पर यहां सबसे ज्यादा पैदावार नफरतियों की होती है। बात यह नहीं है कि हमारे देश के किसानों को खेती का नॉलेज कम है दरअसल नफरत बोने वाले अपना काम बड़ी शिद्दत से कर रहे हैं। और बड़े बुजुर्ग कहकर भी गए हैं कि किसी काम को शिद्दत से करो तो कायनात भी उस काम को सही से होने में आपकी मदद करने लगती है। इस कहावत में संशोधन की जरूरत है। मामला कायनात से बिलकुल जुड़ा नहीं है। बड़े बुजुर्ग ये बताना भूल गए कि बड़ी शिद्दत से कुछ अच्छा करने जाओ तो चार लोग टांग खिंचाई में उतर आते हैं। पर कोई बात नहीं, चार लोगों के डर से अच्छा काम करना थोड़ी छोड़ा जा सकता है।
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मैं एक डॉक्टर को जानता हूँ। वे अक्सर गांव के कुछ गरीबों का मुफ़्त में इलाज कर दवाएं दे देते थे। गांव के धनाढ्य दबंगों को यह बात हजम नहीं हुई। उन्होंने गांव में अफ़वाह फैलाई की डॉक्टर छिछोरा है, क्लीनिक में आने वाली महिलाओं से अभद्र व्यवहार करता है। अफवाह बहुत तेज़ फैली। महिलाओं से संबंधित अफवाह ज्यादा तेज फैलती है। उसमें पेट्रोल की मात्रा ज्यादा होती है। लोग बड़े चटकारे ले-लेकर अफवाहों को एन्जॉय करते हैं। ऐसी अफवाहें बारिश में बॉलकनी में बैठकर चाय के साथ पकौड़े खाने से कहीं ज्यादा मजा देती हैं। डॉक्टर जो नेकी करते थे वे बदनाम हो गए। उन गरीबों ने ज्यादा बदनाम किया जो मुफ़्त की दवा खाते थे।
डॉक्टर समझदार थे। पढ़ा लिखा होना और समझदार होना दोनों अलग-अलग बातें हैं। डबल एम ए किये हुए मेरे एक मित्र हैं। एक दिन बात- बात में उन्होंने कहा- मेरी चले तो हर रोज पाकिस्तान पर दो मिसाइल छोड़ू।
मैंने उनसे पूछा- इससे क्या होगा ?
वे बोले- पाकिस्तान औकात में रहेगा ।
कितनी विडंबना है !! जो इंसान अपने जान की परवाह इतनी करता है कि कुवें से निकला शुद्ध पानी भी उबालकर पीता है और पाले कुत्ते के मर जानें पर दिनभर आंसू बहाता है वह एक मुल्क पर मिसाइल छोड़ वहां की अवाम को खत्म कर उसे औकात में रहना सिखाना चाहता है। खैर कोई बात नहीं। देश की शिक्षा व्यवस्था गलत लेन पर है। वह गलत शिक्षा का शिकार हुए हैं। उन्होंने कच्चा इतिहास पढ़ लिया है। या यह भी हो सकता है कि टीचर ने उन्हें गलत इतिहास पढ़ा दिया हो। वजह कुछ भी हो पर किसी इंसान में जब संवेदना नहीं दिखती तो वह सिर्फ कूड़े का ढेर नज़र आता है। कूड़े का ढेर फिर भी ठीक है। समाज में नफरत तो नहीं फैलाता।
तो बात डॉक्टर की समझदारी की थी। उन्होंने धैर्य से काम लिया। अफवाह उड़ाने वाले दबंगों से जाकर पूछा- भाई क्या दिक्कत है ?
एक दबंग बोला- तुम हमारा इलाज मुफ्त में क्यों नहीं करते ?
डॉक्टर के मन में कई सवाल गूंजे। तुम तो सालों सम्पन्न हो , मुफ़्त की क्यों खाने की सोचते हो ? बाप दादाओं द्वारा दलितों और गरीबों के हड़पे हुए खेतों पर राज कर रहे हो, मजदूरों का शोषण करते हो, काम पूरा कराते हो मजदूरी आधी भी नहीं देते हो। किस चीज की कमी है तुम में जो मुफ्त में इलाज कर दूं ? गांव के दबंग हो, किसी भी दलित का घर फूंक देते हो, उनकी बेटियों, औरतों से छेड़खानी करते हो। धनबल, बाहुबल हर तरह से तो सम्पन्न हो तो क्यों कर दूं तुम्हारा मुफ़्त में इलाज ?
पर इन सवालों का यहां कोई औचित्य नहीं नहीं था।
डॉक्टर बोले- इतनी छोटी सी बात के लिए इतना हंगामा करने की क्या जरूरत थी। मैं तो आपका सेवक हूँ। जाइये आज से आपके घर मे कोई भी बीमार पड़ेगा तो उसे ठीक करने की जिम्मेदारी मेरी होगी।
अगले दिन दबंग ने अपनी पत्नी से पूरे गांव में कहलवाया- मुझे गलतफ़हमी हो गयी थी। डॉक्टर साहब ने मेरा हाथ बीमारी जानने के लिए पकड़ा था लेकिन मैं गलत समझ बैठी। वे तो बड़े नेक इंसान हैं। गरीबों का इलाज मुफ़्त में कर देते हैं।