कश्मीर क्या कोई बच्चा है?

Written by ताबिश सिद्दीकी | Published on: July 14, 2017
कश्मीरियों के साथ हम सबका व्यवहार इस तरह का होता है कि जैसे कश्मीर एक "राज्य" न होकर कोई एक "शरारती" बच्चा हो जिसे हम और आप "झापड़" मार के समझा दें.. लोग गुस्से में इसी तरह पोस्ट लिखते हैं.. मोदी और राजनाथ जी को गाली दे रहे हैं.. दरअसल "बेडरूम" में लेट कर तो हम सब से जितनी चाहे उतनी बकलोली करवा लीजिये.

Kashmir
Image: news18.com
 
मोदी जी के पुराने वीडियो देखिए.. कैसा वो राज्य सरकार और प्रधानमंत्री जी को समझाते मिलेंगे आपको कि राज्य सरकार को ये करना चाहिए, प्रधानमंत्री को ये करना चाहिए, इनका धन बंद कर दें, इनके बैंक सील कर दें, हथियार की सप्लाई वहां से रोक दें, नोट बन्द कर दें.. बस आतंकवाद ख़त्म.. चुटकी की बात है.. मोदी जी ये सब उस समय बोल रहे थे जब सत्ता में आये नहीं थे.. अब कश्मीर में इन्ही का गठबंधन है, लगभग हर जगह इनकी सरकार है.. सब कुछ अब इनके हाथ मे है.. नोट भी बंद कर ली.. सब कर लिया.. मामला बद से बदतर हो गया और बदतर होता जा रहा है.. अब समझ आ रहा है कि कश्मीरियों को उनकी "कश्मीरियत" याद दिलानी पड़ेगी..उनकी तारीफ़ करनी होगी और उन्हें विश्वास में लेना होगा क्यूंकि सारा खेल बिगड़ चुका है.. कश्मीर कोई एक "छोटा" बच्चा नहीं है जिसे डांट से चुप करा देंगे आप.. एक "जगह" है जहां करोड़ों लोग रहते हैं
 
मगर समर्थक तो उसी पुरानी बातों, उन्ही पुराने वादों और उन्ही पुराने दर्शनों पर दिल लगाए बैठे हैं.. कि एक ही भाषण में मोदी जी ने कैसा समझा दिया था कि बस ये करो ये करो और ये करो और बस आतंकवाद ख़त्म.. कितना आसान लगता था सब और इसी लिए वोट दिया कि अईये साहब और बन्द कर दीजिए सब चुटकी में.. मगर ये क्या.. आप कश्मीरियत की बात कर रहे हैं जबकि आपको ये, ये और ये बन्द करना था और उस से न भला हो तो बस एक "नुक्लेअर" गिरा देना था बस.. इतना है आसान सब कुछ
 
आप बैठ के फेसबुक पर गुर्राते हैं ठीक है.. मगर थोड़ी समझ भी रखिये.. इतना आसान होता तो मोदी जी क्या मनमोहन जी भी कर चुके होते, राहुल गांधी भी कर चुके होते क्यूँकि ये सब भी उतने ही भारतीय हैं जितने हम और आप.. कश्मीरियत याद दिलाने का मतलब ये नहीं है कि राजनाथ साहब कश्मीरियों से गिड़गिड़ा रहे हैं.. ये अपील है उद्दंड लोगों के बीच समझदार लोगों से.. और वहां वो बहुत हैं.. वही लोग हैं जिनके वजह से आज तक अमरनाथ यात्रा हो रही थी और आगे भी होगी.. अपील करनी पड़ती है जनता से.. उसे विश्वास में लेना होता है क्यूंकि तीर्थयात्रियों पर आम लोगों ने गोली नहीं चलाई है
 
हो सकता है कि उनमें से कुछ गोली चलाने वालों को आम लोगों ने आने का रास्ता दे दिया हो..मगर ये तो तय है कि वो आते बाहर से ही हैं.. और वो लोग जिन्होंने क्षुब्ध होकर, कुढ़कर, असुरक्षित महसूस कर के "बाहर" के हथियार बन्द लोगों के लिए रास्ता खोल दिया हो उन्हें समझाना ही पड़ेगा.. उनसे अपील ही करनी पड़ेगी.. इसके सिवा कोई रास्ता नहीं है
 
इसे ऐसे समझिये कि कैसे प्रधानमंत्री "अपील" करते हैं गौ-रक्षकों से कि भाई गाय के नाम पर लोगों को न मारो.. अब भीड़ मार रही है और भीड़ कोई "एक व्यक्ति" नहीं होता है जिसका कान उमेठ के आप बैठा दें.. जबकि ये भीड़ अभी बहुत छोटी और संगठनों और संस्थाओं से जुड़ी है जिसे सरकार आसानी से कंट्रोल कर सकती है.. मगर फिर भी अपील की गई.. कि आप अपना धर्म समझो.. सनातन धर्म क्या है उसे समझो.. गांधी का देश है अहिंसा पर चलने वाला उसे समझो.. अहिंसक थे तुम लोग और अहिंसक ही रहो
 
मगर जब कश्मीरियों से "कश्मीरियत" की अपील की राजनाथ जी ने तो आप उन्हें गाली दे रहे हैं.. क्या आप को ये भरोसा है कि जैसे आप "मोदी" जी की अपील नहीं सुनते हैं वैसे ही "कश्मीरी" भी राजनाथ जी को नहीं सुनेंगे और आप यहां लोगों को मारने के लिए उकसाते रहेंगे और वो वहां "आतंकियों" को रास्ता देते रहेंगे?
 
कुछ तो है जिसके बारे में आप निश्चित हैं.. आपको लगता है कि प्रेम और मुहब्बत से कुछ नहीं होता है और सबको अब हिंसा का रास्ता ही अपनाना चाहिए? सही कह रहा हूँ न? ठीक है राजनाथ जी आप उन्हें कश्मीरियत न याद दिलाइये.. आप उन्हें पत्थर चलाने दीजिये न.. वो उधर मारें आप इधर मार लो..  ये भी करके देख लीजिये अब.. आपके समर्थक यही चाहते हैं
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