कर्नाटक के लिंगायत मठ के प्रमुख संत शिवमूर्ति मुरुगा को यौन शोषण के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है। शिवमूर्ति चित्रदुर्ग के प्रसिद्ध मुरुगा मठ के खास पुजारी हैं। शिवमूर्ति को नाबालिगों के यौन उत्पीड़न के मामले में गिरफ़्तार किया गया है।
Representational Image. Image Courtesy: iStock
मठ के पुजारी की गिरफ्तारी के बाद मठ विवाद में घिर गया है। शिवमूर्ति को गावेरी ज़िले से गिरफ्तार किया गया है। उनपर मठ में चलाए जा रहे संस्थान में नाबालिग छात्राओं के यौन शोषण का आरोप है।
इसका खुलासा तब हुआ जब मठ की दो छात्राओं ने पुलिस में यौन शोषण की शिकायत की। जिसके बाद मैसूर पुलिस ने शिवमूर्ति मुरगा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की।
शिवमूर्ति पर यौन अपराधों ले बच्चों का संरक्षण यानी पॉस्को एक्ट की धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है।
पीड़ित छात्राओं ने मैसूर के एक एनजीओ ओडानाडी सेवा संस्थान से संपर्क किया और अपने साथ हुए यौन शोषण की बात बताई।
ये एनजीओ तस्करी और यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं,बच्चों के पुनर्वास और सशक्तिकरण के लिए काम करती है। एनजीओ के बाद ये मामला ज़िला बाल कल्याण समिति के संज्ञान में आया।
पुलिस में दर्ज शिकायत के मुताबिक, मुरुगा मठ के हॉस्टल में रहने वाली 15 और 16 साल की छात्राओं का साढ़े तीन साल से ज़्यादा वक्त से यौन शोषण हो रहा था।
एफआईआर में उस महिला वार्डन को भी शामिल किया है, जो कथित तौर पर लड़कियों को भेजा करती थी। इस मामले में लड़कियों के यौन शोषण को बढ़ावा देने वाले मठ के एक जूनियर स्वामी और दो अन्य कर्मचारी भी शामिल हैं।
एनजीओ प्रमुख का दावा है कि यौन उत्पीड़न सिर्फ़ दो छात्राओं का नहीं हुआ है बल्कि इस संस्थान में पढ़ने वाली कई छात्राओं का यौन शोषण किया जा रहा है। और ये शोषण कई सालों से जारी है। उन्होंने कहाकि हम किसी भी दवाब या धमकी से नहीं डरेंगे ना ही किसी के आगे झुकेंगे।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, शहर में पीड़ितों के लिए न्याय की मांग करते हुए दो अलग-अलग विरोध प्रदर्शन हुए। जबकि कुछ संतों और राजनेताओं के एक समूह ने आरोपी की गिरफ्तारी का विरोध किया और दावा किया कि उनके खिलाफ आरोप झूठे और निराधार थे, प्रदर्शनकारियों के दूसरे समूह ने बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रदर्शन किया और निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की मांग की। बाद के समूह से संबंधित कुछ प्रदर्शनकारियों ने स्थानीय पुलिस में विश्वास की कमी का हवाला देते हुए मामले की न्यायिक जांच की मांग की।
संतों के विरुद्ध अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के लागू होने की संभावना है क्योंकि पीड़ितों में से एक अनुसूचित जाति से है।
इस बीच, द हिंदू के अनुसार, मुरुघा शरणारू ने आरोपों का जवाब देते हुए दावा किया कि उनके खिलाफ एक "बड़ी साजिश" रची गई है।
Representational Image. Image Courtesy: iStock
मठ के पुजारी की गिरफ्तारी के बाद मठ विवाद में घिर गया है। शिवमूर्ति को गावेरी ज़िले से गिरफ्तार किया गया है। उनपर मठ में चलाए जा रहे संस्थान में नाबालिग छात्राओं के यौन शोषण का आरोप है।
इसका खुलासा तब हुआ जब मठ की दो छात्राओं ने पुलिस में यौन शोषण की शिकायत की। जिसके बाद मैसूर पुलिस ने शिवमूर्ति मुरगा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की।
शिवमूर्ति पर यौन अपराधों ले बच्चों का संरक्षण यानी पॉस्को एक्ट की धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है।
पीड़ित छात्राओं ने मैसूर के एक एनजीओ ओडानाडी सेवा संस्थान से संपर्क किया और अपने साथ हुए यौन शोषण की बात बताई।
ये एनजीओ तस्करी और यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं,बच्चों के पुनर्वास और सशक्तिकरण के लिए काम करती है। एनजीओ के बाद ये मामला ज़िला बाल कल्याण समिति के संज्ञान में आया।
पुलिस में दर्ज शिकायत के मुताबिक, मुरुगा मठ के हॉस्टल में रहने वाली 15 और 16 साल की छात्राओं का साढ़े तीन साल से ज़्यादा वक्त से यौन शोषण हो रहा था।
एफआईआर में उस महिला वार्डन को भी शामिल किया है, जो कथित तौर पर लड़कियों को भेजा करती थी। इस मामले में लड़कियों के यौन शोषण को बढ़ावा देने वाले मठ के एक जूनियर स्वामी और दो अन्य कर्मचारी भी शामिल हैं।
एनजीओ प्रमुख का दावा है कि यौन उत्पीड़न सिर्फ़ दो छात्राओं का नहीं हुआ है बल्कि इस संस्थान में पढ़ने वाली कई छात्राओं का यौन शोषण किया जा रहा है। और ये शोषण कई सालों से जारी है। उन्होंने कहाकि हम किसी भी दवाब या धमकी से नहीं डरेंगे ना ही किसी के आगे झुकेंगे।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, शहर में पीड़ितों के लिए न्याय की मांग करते हुए दो अलग-अलग विरोध प्रदर्शन हुए। जबकि कुछ संतों और राजनेताओं के एक समूह ने आरोपी की गिरफ्तारी का विरोध किया और दावा किया कि उनके खिलाफ आरोप झूठे और निराधार थे, प्रदर्शनकारियों के दूसरे समूह ने बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रदर्शन किया और निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की मांग की। बाद के समूह से संबंधित कुछ प्रदर्शनकारियों ने स्थानीय पुलिस में विश्वास की कमी का हवाला देते हुए मामले की न्यायिक जांच की मांग की।
संतों के विरुद्ध अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के लागू होने की संभावना है क्योंकि पीड़ितों में से एक अनुसूचित जाति से है।
इस बीच, द हिंदू के अनुसार, मुरुघा शरणारू ने आरोपों का जवाब देते हुए दावा किया कि उनके खिलाफ एक "बड़ी साजिश" रची गई है।