तमिलनाडु में पर्दे के पीछे मोदी सरकार

Written by Shastri Ramachandaran | Published on: December 10, 2016

तमिलनाडु में अम्मा के जाने के बाद यह चिनम्मा शशिकला पर निर्भर है कि वह मोदी सरकार और उसकी परोक्ष रणनीति का कैसे सामना करती हैं।



तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता जयराम नहीं रहीं। उनके बाद यह सवाल तैर रहा है कि उनके बाद दक्षिण के इस अहम राज्य का नेतृत्व कौन करेगा। सवाल उठ रहे हैं कि अम्मा के बाद क्या? अम्मा के बाद कौन। हालांकि इस सवाल का आसान जवाब गुमराह करने वाला होगा। क्योंकि इससे सत्ता के इस खेल में असली ताकतें नहीं दिखेंगी और वे खिलाड़ी भी छिपे रहेंगे, जो इसे खेल रहे हैं।
 
इस वक्त निश्चित तौर पर ओ पन्नीरसेलवम राज्य का नेतृत्व करते दिख रहे हैं। पीएम मोदी की स्क्रिप्ट के मुताबिक ही उन्हें राज्य के सीएम पद की कुर्सी पर बिठाया गया है। दक्षिण में मोदी के दूत एम. वैंकेया नायडू अन्नाद्रमुक के प्रमुख नेताओं और अधिकारियों से यह सुनिश्चित करा चुके हैं, इस मामले में वह नई दिल्ली में तैयार स्क्रिप्ट के मुताबिक ही चलेंगे।
 
पन्नीरसेलवम दो बार अंतरिम सीएम रह चुके हैं। वह राज्य की कमान संभालने वाले एक कमजोर सीएम के तौर पर देखे जा रहे हैं। लेकिन जयललिता के रहते कमजोर दिखने वाले पन्नीरसेलवम क्या आने वाले दिनों भी ऐसे ही रहेंगे। खास कर जब शशिकला नटराजन अन्नाद्रमुक का नेतृत्व कर रही हों। 
 
जयललिता के अंतिम संस्कार के दौरान राजाजी पार्क में उनके शव के पास खड़े होकर रो रहे पन्नीरसेलवम और शशिकला को ढांढस बंधाते पीएम का बार-बार यह कहना कि कोई भी दिक्कत हो, उन्हें तुरंत बताएं। मजबूत बनें। केंद्र हर मदद को तैयार है। यह सारा दृश्य एक चीज साफ कर देता है। मुख्यमंत्री पन्नीरसेलवम तभी तक सुरक्षित हैं जब तक वे मोदी के इशारे पर चलेंगे।
 
पन्नीरसेलवम को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि केंद्र सरकार की सरपरस्ती में मजबूत बने रहें और अन्नाद्रमुक के विधायकों और 50 सांसदों को एकजुट रखने की हरचंद कोशिश करें। बहुत कम लोग यह भांप पाएंगे कि पन्नीरसेलवम को मजबूत बनने की मोदी की सलाह के पीछे क्या है। मोदी के इस संदेश का मतलब यह है कि पन्नीरसेलवम अन्नाद्रमुक के अंदर वर्चस्व बनाए रखने के साथ ही विरोधी द्रमुक को भी काबू में रखें।
 
यह ऐसा ऑपरेशन है जिसकी पूरी स्क्रिप्ट केंद्र ने लिखी है। यह सब राजनीतिक स्थिरता के हित में बताया जा रहा है। उस राज्य में जहां एक साल पहले ही जयललिता भारी बहुमत से सत्ता में आई थीं। इस वक्त न तो बीजेपी, अन्नाद्रमुक और न ही द्रमुक ही चुनाव चाहते हैं। हालांकि मौजूदा समय में अन्नाद्रमुक के अंदर के समीकरणों को साधने की सबसे बेहतर कदम साबित होगा।
 
अन्नाद्रमुक के अंदर समीकरण मोदी और केंद्र के लिए सबसे अधिक परेशान करने वाले हैं क्योंकि राज्य में आरएसएस और जयललिता के बीच कभी दोस्ती नहीं रही। मोदी से दोस्ताना संबंध रहने के बावजूद 2011 से ही वह राज्य में आरएसएस के प्रभाव जमाने के खिलाफ रहीं। राज्य में उन्होंने बीजेपी के नेताओं से दूरी बनाए रखी और पार्टी के स्थानीय नेताओं को नजरअंदाज किया। इसलिए मोदी की पन्नीरसेलवम को अपने दायरे में रखने की कोशिश बीजेपी और अन्नाद्रमुक के रिश्तों की वजह से नहीं है। दोनों के बीच लेनदेन का संबंध है और भाजपा को पार्लियामेंट में अन्नाद्रमुक के समर्थन की जरूरत है। यही वजह है कि अन्नाद्रमुक को खुश रखने के लिए थंबीदुरई को डिप्टी स्पीकर बनाया गया।
 
बीजेपी ने न तो जयललिता और न ही उनके किसी मंत्री को परेशान किया। उल्टे जब उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और मुकदमा चला तो मोदी सरकार के कानून और वित्त मंत्री ने आगे बढ़ कर जयललिता का समर्थन किया।
जयललिता के जाने के बाद शशिकला के पास कमान हैं। इस खेल के ज्यादातर दांव उन्हीं के पास हैं। उन्हें उन दांवों के बारे में भी पता है जो उनकी मित्र जयलिलता खेलती थीं। अन्नाद्रमुक के पास विशाल संसाधन हैं और संपत्ति है। यह कितनी बड़ी है इसका अनुमान अभी नहीं लगाया गया है। शशिकला और उनकी निकट सहयोगियों को ही पता होगा कि यह संपत्ति कहां-कहां और कितनी है। यही वजह है अन्नाद्रमुक में अभी शशिकला सर्वोपरि हैं।  
 
जयललिता की सबसे नजदीकी शशिकला को ही उनकी हर चीज के बारे में पता है। अन्नाद्रमुक में थेवर जाति का वर्चस्व देखते हुए शशिकला तमिलनाडु का राजनीति में अहम बनी रहेंगी। पन्नीरसेलवम के पीछे वही खड़ी हैं। और जब तक वह खुद को मजबूत नहीं बना लेते बीजेपी को शशिकला के साथ सावधानी के साथ डील करनी होगी।  

इस वक्त शशिकला अन्नाद्रमुक की महासचिव हैं और पार्टी में पर्दे के पीछे की राजनीति में ही उन्हीं का वर्चस्व है। उन्हें गोंडर जाति को भी साधना है, जिससे थंबीदुरई और राज्य के मंत्री ई के पलनीस्वामी आते हैं। शशिकला को यह तय करना है कि क्या यह समय उन्हें पार्टी के अंदर के थेवर समुदाय को गोंडर गुट के साथ समझौते का है। क्योंकि उन्हें पता है कि थंबीदुरई मोदी के पार्ट बी का हिस्सा हो सकते हैं। शशिकला के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का जो मुकदमा चल रहा है, वह भी शशिकला को आक्रामक रवैया अपनाने से रोकेगा।
 
मोदी चाहेंगे कि फिलहाल अन्नाद्रमुक एकजुट रहे। अगले साल राष्ट्रपति चुनाव होने हैं और उनके लिए अन्नाद्रमुक के वोट बहुमूल्य होंगे। इसलिए केंद्र अऩ्नाद्रमुक के अंदर के वर्चस्व वाले गुटों के बीच संतुलन को तवज्जो देगा।
द्रमुक की वजह से भी अन्नाद्रमुक को एकजुट और मजबूत बने रहना होगा। एमजीआर और जयललिता जैसी ताकतवर शख्सियतों के जाने के बाद द्रमुक के लिए बहुत बड़ा अवसर होगा। द्रविड़ जाति के कैडर बेस्ड पार्टी के तौर पर वह फिर आक्रामक रुख अपनाएगी। अन्नाद्रमुक में मजबूत नेताओं की अनुपस्थिति में द्रमुक को आगे फायदा हो सकता है लेकिन इस वक्त अन्नाद्रमुक को मजबूत और एकजुट बने रहना होगा।
 
बहरहाल, बीजेपी की फौरी जरूरत है कि अन्नाद्रमुक पर नियंत्रण बनाए रखे। आगे थोड़े समय और आगे चल कर मध्यावधि में पार्टी इसी रणनीति पर चलेगी। जब अन्नाद्रमुक और अन्य द्रविड़ दलों, भाजपा और कांग्रेस में राजनीतिक समीकरणों में उथल-पुथल मचेगी तभी अगला दांव चला जाएगा।
 
फरवरी , 2017 में तमिलनाडु से कांग्रेस को बाहर हुए 50 साल हो जाएंगे। 2017 में द्रविड़ पार्टियों का रुख कांग्रेस और बीजेपी के लिए राज्य की राजनीति में अहम मोड़ साबित हो सकता है।
 
फिलहाल तमिलनाडु में अम्मा के जाने के बाद यह ‘चिनम्मा’ शशिकला पर निर्भर है कि वह मोदी सरकार और उसकी परोक्ष रणनीति का कैसे सामना करती हैं।
 
शास्त्री रामचंद्रन वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।
 
साभार – Newsclick.in

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