मोदी सरकार चाहती है 2019 चुनाव तक टल जाए एनपीए वाला मामला और वही हो रहा है

Written by Girish Malviya | Published on: September 17, 2018
यह देखना वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऊपर से नीचे तक सब बढ़ते हुए NPA को छुपाने के खेल में शामिल हैं मोदी सरकार यह चाहतीं है कि किसी भी तरह से 2019 के इलेक्शन तक यह बैंको के एनपीए वाला मामला टल जाए , ओर वही हो रहा है.



बस आखिरी उम्मीद रिजर्व बैंक के 12 फरवरी वाले सर्कुलर से बची थी आरबीआई ने 12 फरवरी के अपने सर्कुलर में बैंकों से कहा था कि वे 2,000 करोड़ रुपए से ऊपर के किसी परियोजना में एक दिन का डिफॉल्ट होने की स्थिति में भी उसे दबाव वाली संपत्ति घोषित करें और निपटान प्रक्रिया को 180 दिन में पूरा करें समय सीमा गत 27 अगस्त को समाप्त हुई थी उसके बाद के 15 दिनों में रिजर्व बैंक के सर्कुलर के अनुसार लाखों करोड़ का एनपीए दिखाने वाली कम्पनियों को दीवालिया कानून के तहत एनसीएलटी में भेजा जाना था, इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी पॉवर कंपनियों अंतरिम राहत देने से मना कर दिया था.

लेकिन ठीक पंद्रहवे दिन सुप्रीम कोर्ट बीच मे कूद पड़ता हैं ओर 11 सितम्ब को आरबीआई के 12 फरवरी के सर्कुलर पर रोक लगा देता हैं. कोर्ट इन सारी डिफॉल्टर कम्पनियों को बड़ी राहत देते हुए इन्सॉल्वेसी मामले में यथास्थिति कायम रखने का आदेश दे देता है.

अब सुप्रीम कोर्ट ने एनपीए मामले में सारी कम्पनियों के अलग-अलग हाईकोर्ट में चल रहे मामलों को अपने पास मंगाया है , अब एनसीएलटी सहित किसी और कोर्ट में नया मामला नहीं जाएगा यह पावर, शिपिंग और शुगर सेक्टर से जुड़े NPA के मामले एक बार फिर लटक गए है. आरबीआई की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई नवम्बर में होगी ओर यह पक्का मानिए कि यह मामला टलते टलते अगले साल मई तक चला जायेगा.

अगर इन्सॉलवेंसी कानून बनाया गया है और एनसीएलटी की व्यवस्था की गयी है तो क्यों की गयी है ? यदि सारे फैसले सुप्रीम कोर्ट ने ही लेने है तो फिर इन दीवालिया कानूनों ओर स्पेशल ट्रिब्यूनल की जरूरत क्या थी ? साफ दिख रहा है कि मोदी सरकार खुद नही चाहती कि ये NPA से जुड़े मामले एनसीएलटी में जाए क्योंकि यदि ऐसा होता है तो अडानी अम्बानी जैसे उद्योगपतियो की हकीकत जनता के सामने आ जाएगी.

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