क्या जीडी अग्रवाल ( स्वामी सानन्द ) की हत्या की गयी है ? पहली नजर में देखा जाए तो आप सभी इस सवाल को खारिज कर देंगे क्योकि इतनी अधिक उम्र वाले व्यक्ति का इतना लंबा अनशन करने बाद जीना सम्भव नही होता.
लेकिन यदि इस घटना की आप गहराई में उतरेंगे तो आप के सामने ऐसे ऐसे तथ्य आएंगे जिससे सुन कर आप भी एक बार चौक जाएंगे.
स्वामी सानन्द के गुरु कहे जाने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने उनकी मृत्यु के तुरंत बाद हत्या की आशंका जताते हुए जो कहा है वह समझने योग्य है उन्होंने कहा कि 'यह कैसे हो सकता है कि जो व्यक्ति आज सुबह तक स्वस्थ अवस्था में रहे और अपने हाथ से ही प्रेस विज्ञप्ति लिखकर जारी करे, 111 दिनों तपस्या करते हुए आश्रम में तो स्वस्थ रहे पर अस्पताल में पहुंच कर एक रात बिताते ही उनकी उस समय मृत्यु हो जाए ?
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद आगे कहते हैं कि स्वामी सानन्द ने आमरण अनशन जरूर किया था लेकिन उन्होंने अस्पताल में उनके स्वयं के शरीर में आई पोटेशियम की कमी को दूर करने के लिए मुँह से और इन्जेक्शन के माध्यम से पोटेशियम लेना स्वीकार कर लिया था, ऐसे में उनकी मृत्यु सन्देह के दायरे में है.
अब ओर सुनिए कि ऐसी आशंका सिर्फ स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ही नही जता रहे हैं ठीक ऐसी ही बात मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती भी कह रहे हैं ( स्वामी सानन्द भी इसी संस्था से जुड़े हुए थे) डॉक्टरों द्वारा कहे जा रहे हार्ट अटैक को मौत का कारण मानने से इनकार कर रहे शिवानंद सरस्वती कहते हैं कि हमारा यह प्रश्न है कि हर्टअटैक आए व्यक्ति को अस्पताल के आईसीयू में शिफ्ट किया जाता है अथवा एम्बुलेंस में लादकर कहीं और ले जाया जाता हैं ?
ओर स्वामी जी यह आशंका अकारण नही जता रहे हैं दरअसल आज से ठीक 7 साल पहले मातृ सदन से जुड़े स्वामी निगमानंद जो गंगा को बचाने के लिए अनशन कर रहे थे उनकी मृत्यु भी बिल्कुल ऐसी ही परिस्थितियों में हुई थी और बाद में अदालत ने माना कि स्वामी निगमानंद को जहर दिया गया है.
ठीक इसी तरह 19 फरवरी 2011 को मातृ संस्थान के स्वामी निगमानंद ने हरिद्वार के कुंभ क्षेत्र में हो रहे खनन को पूरी तरह से रोकने की मांग को लेकर एक बार फिर से भूख हड़ताल शुरू की थी जब उनका स्वास्थ्य ज्यादा बिगड़ने लगा तो 27 अप्रैल को प्रशासन ने उन्हें हरिद्वार के जिला अस्पताल में भर्ती करवा दिया था स्वामी निगमानंद की मांगें पूरी होने से सीधा नुकसान हरिद्वार के खनन माफियाओं और स्टोन क्रशर मालिकों को होना था. इसलिए वे किसी भी तरह स्वामी निगमानंद को रोकना चाहते थे. मातृ सदन के अनुसार खनन माफियाओं द्वारा कई बार उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी जा चुकी थी.
मातृ सदन ने आरोप लगाया कि 30 अप्रैल की दोपहर एक नर्स ने आकर स्वामी निगमानंद को एक इंजेक्शन लगाया था. इसके बाद से ही उनकी सेहत में गिरावट आनी शुरू हुई. मातृ सदन के अनुसार वह नर्स न तो पहले कभी अस्पताल में दिखी थी और न ही उस दिन के बाद ही कभी देखी गई. साथ ही इंजेक्शन लगाने के बाद उस नर्स ने इंजेक्शन को पास रखे कूड़ेदान में भी नहीं डाला बल्कि अपने साथ ही वापस ले गई.
निगमानंद की मृत्यु के बाद पैथॉलॉजी रिपोर्ट के हवाले से CNN IBN चैनल ने दावा किया था कि गंगा बचाओ अभियान छेड़ने वाले निगमानंद के शरीर में जहरीले तत्व मिले हैं, उस वक्त भी उत्तराखंड में भाजपा ही शासन कर रही थी और मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए थे.
2015 में पेश सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट में इस तथ्य को नकारा गया था लेकिन अदालत में अपने फैसले में जो लिखा है वह ध्यान देने योग्य है उन्होंने कुपोषण को मौत का कारण नही माना था.
न्यायाधीश अनुज कुमार संगल ने अपने फैसले में कहा था कि जब 27 अप्रैल 2011 की सुबह स्वामी निगमानंद को हरिद्वार जिला अस्पताल लाया गया था तो वे सचेत थे. 28 अप्रैल के रिकॉर्ड के मुताबिक भी उनकी सेहत में सुधार हो रहा था. स्वामी निगमानंद भले ही अपनी हड़ताल जारी रखे हुए थे लेकिन अस्पताल में उन्हें नींबू पानी, जूस, दूध और सत्तू जैसी चीज़ें नली से दी जा रही थीं, जिनके चलते भूखे रहने के सभी लक्षण समाप्त होने लगे थे. साथ ही दवाओं और चिकित्सकीय निगरानी में उनका स्वास्थ्य बेहतर हो रहा था. ऐसे में ऐसा कोई कारण मौजूद नहीं था जिसके चलते वे कुपोषण के शिकार होते और उनकी मौत हो जाती.
स्पष्ट है कि स्वामी निगमानंद की ही तरह स्वामी सानन्द की मृत्यु भी संदेह के घेरे में है उनकी मृत्यु की उच्च स्तरीय जांच की जाए.
लेकिन यदि इस घटना की आप गहराई में उतरेंगे तो आप के सामने ऐसे ऐसे तथ्य आएंगे जिससे सुन कर आप भी एक बार चौक जाएंगे.
स्वामी सानन्द के गुरु कहे जाने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने उनकी मृत्यु के तुरंत बाद हत्या की आशंका जताते हुए जो कहा है वह समझने योग्य है उन्होंने कहा कि 'यह कैसे हो सकता है कि जो व्यक्ति आज सुबह तक स्वस्थ अवस्था में रहे और अपने हाथ से ही प्रेस विज्ञप्ति लिखकर जारी करे, 111 दिनों तपस्या करते हुए आश्रम में तो स्वस्थ रहे पर अस्पताल में पहुंच कर एक रात बिताते ही उनकी उस समय मृत्यु हो जाए ?
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद आगे कहते हैं कि स्वामी सानन्द ने आमरण अनशन जरूर किया था लेकिन उन्होंने अस्पताल में उनके स्वयं के शरीर में आई पोटेशियम की कमी को दूर करने के लिए मुँह से और इन्जेक्शन के माध्यम से पोटेशियम लेना स्वीकार कर लिया था, ऐसे में उनकी मृत्यु सन्देह के दायरे में है.
अब ओर सुनिए कि ऐसी आशंका सिर्फ स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ही नही जता रहे हैं ठीक ऐसी ही बात मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती भी कह रहे हैं ( स्वामी सानन्द भी इसी संस्था से जुड़े हुए थे) डॉक्टरों द्वारा कहे जा रहे हार्ट अटैक को मौत का कारण मानने से इनकार कर रहे शिवानंद सरस्वती कहते हैं कि हमारा यह प्रश्न है कि हर्टअटैक आए व्यक्ति को अस्पताल के आईसीयू में शिफ्ट किया जाता है अथवा एम्बुलेंस में लादकर कहीं और ले जाया जाता हैं ?
ओर स्वामी जी यह आशंका अकारण नही जता रहे हैं दरअसल आज से ठीक 7 साल पहले मातृ सदन से जुड़े स्वामी निगमानंद जो गंगा को बचाने के लिए अनशन कर रहे थे उनकी मृत्यु भी बिल्कुल ऐसी ही परिस्थितियों में हुई थी और बाद में अदालत ने माना कि स्वामी निगमानंद को जहर दिया गया है.
ठीक इसी तरह 19 फरवरी 2011 को मातृ संस्थान के स्वामी निगमानंद ने हरिद्वार के कुंभ क्षेत्र में हो रहे खनन को पूरी तरह से रोकने की मांग को लेकर एक बार फिर से भूख हड़ताल शुरू की थी जब उनका स्वास्थ्य ज्यादा बिगड़ने लगा तो 27 अप्रैल को प्रशासन ने उन्हें हरिद्वार के जिला अस्पताल में भर्ती करवा दिया था स्वामी निगमानंद की मांगें पूरी होने से सीधा नुकसान हरिद्वार के खनन माफियाओं और स्टोन क्रशर मालिकों को होना था. इसलिए वे किसी भी तरह स्वामी निगमानंद को रोकना चाहते थे. मातृ सदन के अनुसार खनन माफियाओं द्वारा कई बार उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी जा चुकी थी.
मातृ सदन ने आरोप लगाया कि 30 अप्रैल की दोपहर एक नर्स ने आकर स्वामी निगमानंद को एक इंजेक्शन लगाया था. इसके बाद से ही उनकी सेहत में गिरावट आनी शुरू हुई. मातृ सदन के अनुसार वह नर्स न तो पहले कभी अस्पताल में दिखी थी और न ही उस दिन के बाद ही कभी देखी गई. साथ ही इंजेक्शन लगाने के बाद उस नर्स ने इंजेक्शन को पास रखे कूड़ेदान में भी नहीं डाला बल्कि अपने साथ ही वापस ले गई.
निगमानंद की मृत्यु के बाद पैथॉलॉजी रिपोर्ट के हवाले से CNN IBN चैनल ने दावा किया था कि गंगा बचाओ अभियान छेड़ने वाले निगमानंद के शरीर में जहरीले तत्व मिले हैं, उस वक्त भी उत्तराखंड में भाजपा ही शासन कर रही थी और मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए थे.
2015 में पेश सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट में इस तथ्य को नकारा गया था लेकिन अदालत में अपने फैसले में जो लिखा है वह ध्यान देने योग्य है उन्होंने कुपोषण को मौत का कारण नही माना था.
न्यायाधीश अनुज कुमार संगल ने अपने फैसले में कहा था कि जब 27 अप्रैल 2011 की सुबह स्वामी निगमानंद को हरिद्वार जिला अस्पताल लाया गया था तो वे सचेत थे. 28 अप्रैल के रिकॉर्ड के मुताबिक भी उनकी सेहत में सुधार हो रहा था. स्वामी निगमानंद भले ही अपनी हड़ताल जारी रखे हुए थे लेकिन अस्पताल में उन्हें नींबू पानी, जूस, दूध और सत्तू जैसी चीज़ें नली से दी जा रही थीं, जिनके चलते भूखे रहने के सभी लक्षण समाप्त होने लगे थे. साथ ही दवाओं और चिकित्सकीय निगरानी में उनका स्वास्थ्य बेहतर हो रहा था. ऐसे में ऐसा कोई कारण मौजूद नहीं था जिसके चलते वे कुपोषण के शिकार होते और उनकी मौत हो जाती.
स्पष्ट है कि स्वामी निगमानंद की ही तरह स्वामी सानन्द की मृत्यु भी संदेह के घेरे में है उनकी मृत्यु की उच्च स्तरीय जांच की जाए.