अंबानी की कंपनी की देनदारियां और मोदी की दोस्ती

Written by Girish Malviya | Published on: August 20, 2020
मोदी सरकार मुकेश अंबानी पर किस कदर मेहरबान है इसका उदाहरण देखिए कि चार साल पहले जियो ने आरकॉम को जो अनिल अंबानी की कंपनी थी उसे खरीद लिया।  वजह ये थी कि उसके पास देश के 17 सर्किल के स्पेक्ट्रम मौजूद था इसका जियो ने इसका इस्तेमाल अपनी 4जी सेवाओं के लिए किया।



अब जब आप कोई कंपनी खरीदते हैं तो उसकी देनदारियों की जिम्मेदारी भी आपकी होती है लेकिन मुकेश अंबानी तो मोदीं जी के परम मित्र ठहरे वे ये जिम्मेदारी क्यो उठाए।

अगर जियो को 2016 ये स्पेक्ट्रम न मिलता तो मुंबई, गुजरात, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, बिहार, ओडिशा, असम और पूर्वोत्तर में जियो की 4जी एलटीई कवरेज की क्वॉलिटी बहुत हद तक प्रभावित हो जाती, दिल्ली, महाराष्ट्र और वेस्ट बंगाल में जियो के सब्सक्राइबर्स को सेवाओं में दिक्कत का सामना करना पड़ता।

पिछले साल टेलीकॉम कंपनियों से एजीआर का बकाया वसूलने का मामला सुप्रीम कोर्ट पुहंचा तो एयरटेल ओर आइडिया वोडाफोन पर कोर्ट ने लगभग 1 लाख करोड़ के AGR वसूली का दबाव बनाया अनिल अंबानी की RCOM पर भी लगभग 25 हजार करोड़ का AGR बकाया बताया गया। कायदे से इस बकाया की सारी देनदारी अब मुकेश अम्बानी की है क्योकि वही उसके स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन कोर्ट जो एयरटेल ओर आइडिया वोडाफोन को बकाया न चुकाने पर उल्टा टाँग दे रही है वही कोर्ट मुकेश अम्बानी से Rcom की बकाया वसूली में बड़ी सॉफ्ट है। वह सरकार से यह पूछ रही है कि उसके मुताबिक जियो को एजीआर का बकाया देना चाहिए या नहीं?

कायदे से यह बकाया वसूली 2016 में कर लेनी चाहिए थी 2017 में यह खबर भी आई थी कि टेलीकॉम डिपार्टमेंट इस डील को हरी झंडी देने के लिए तैयार नही है।

वर्तमान परिस्थितियों में मुकेश अम्बानी तो दुनिया के चौथे पांचवें नम्बर के अमीर हैं। क्या वह 25 हजार जैसी मामूली रकम नहीं चुका सकते लेकिन मोदी जी उनके परम मित्र ठहरे तो सरकार उन्हें 25 हजार करोड़ के भुगतान से बचने का कोई न कोई रास्ता जरूर खोज ही लेगी, इसे कहते है क्रोनी केपिटलिज़्म।
 

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