गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल: नमाज के साथ मानस की चौपाई पढ़ी गई

Written by sabrang india | Published on: October 7, 2024
लाटभैरव मंदिर की फर्श पर जहां एक तरफ मगरिब की नमाज की अजान दी गई, वहीं दूसरी ओर ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के बीच मानस का दोहा "मंगल भवन अमंगल हारी" हवा में गूंज रहा था।


फोटो साभार : अमर उजाला

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा-जमुनी तहजीब की एक मिसाल देखने को मिली। गत शनिवार की शाम को लाटभैरव में रामलीला का आयोजन किया गया। यहां की फर्श पर एक तरफ मगरिब की नमाज की अजान दी गई, वहीं दूसरी ओर ढोलक और मंजीरे के साथ मानस का दोहा गूंज रहा था।

नमाजी जहां नमाज पढ़ने में व्यस्त थे, वहीं रामलीला के पात्र अपनी भूमिका निभाने में तल्लीन थे। अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, इस रामलीला में 481 वर्षों की परंपरा और भारत की विविधता में एकता का संदेश भी मुखर हुआ। तुलसी के दौर से चली आ रही बनारस की गंगा-जमुनी तहजीब की यह मिसाल लाटभैरव मंदिर-मस्जिद के विशाल फर्श पर मंचित हुई। मगरिब की नमाज और जयंत नेत्रभंग की लीला एक साथ हुई।

रिपोर्ट के अनुसार, शाम को 4:45 बजे रामलीला की शुरुआत हुई। चबूतरे के पूर्वी हिस्से में "सीता चरन चोंच हति भागा, मूढ़ मंदमति कारन कागा" का दोहा गूंज रहा था। वहीं, ठीक पांच बजे चबूतरे के पश्चिमी हिस्से में नमाजी अपनी नमाज पढ़ रहे थे। श्री आदि लाट भैरव रामलीला के व्यास दयाशंकर त्रिपाठी जयंत को उसके संवाद बता रहे थे, जबकि हाफिज शाबान अली की इमामत में लोग नमाज पढ़ रहे थे।

नमाज से पहले शुरू हुई रामलीला, नमाज के बाद भी जारी रही। नमाज से पहले और बाद में नमाजी भी लीला के दर्शक के रूप में शामिल हुए। गोस्वामी तुलसी दास और उनके परम मित्र मेघा भगत द्वारा शुरू की गई यह लीला, जयंत नेत्रभंग का प्रसंग, इसी स्थान पर मस्जिद निर्माण के पहले से होती आ रही है।

लाटभैरव की रामलीला में शनिवार को प्रसंग आरंभ में देवराज इंद्र का पुत्र जयंत कौआ बनकर माता सीता के चरण में चोंच मारकर भागा। यह देखकर श्रीराम ने सींक के बाण का संधान किया। स्वयं को बचाने के लिए जयंत सभी देवों के पास गया, लेकिन रामद्रोही होने के कारण किसी ने उसकी रक्षा नहीं की। अंतत: नारद मुनि की सलाह पर वह श्रीराम के चरणों में गिर पड़ा। प्रभु राम ने बाण के प्रभाव को कम किया और जयंत की एक आंख फोड़ दी।

राम के हाथों मारा गया रावण

श्री काशी विश्वनाथ धाम में नवरात्र के तीसरे दिन विविध अनुष्ठान के साथ रावण वध की लीला हुई। रामलीला के पात्रों ने इस दौरान बाबा विश्वनाथ का विधि-विधान के साथ पूजन किया। सुबह में मां विशालाक्षी और मां चंद्रघंटा को बाबा विश्वनाथ की ओर से सोलह श्रृंगार और वस्त्र भेंट किए गए। गाजीपुर के काशी रंगमंच कला परिषद की ओर से शनिवार की शाम को रामलीला के मंचन से पहले श्री राम एवं लंकेश रावण स्वरूप कलाकारों ने भगवान शिव की आराधना की। इसके बाद रामलीला में लक्ष्मण को शक्तिघात, कालनेमी वध, भरत-हनुमान मिलन, संजीवनी बूटी द्वारा लक्ष्मण जी की चिकित्सा, मेघनाद वध और कुंभकर्ण वध के प्रसंगों का मंचन किया गया। रामलीला मंचन के बाद भगवान राम द्वारा मां की शक्ति पूजा की भावप्रवण प्रस्तुति के पश्चात राम-रावण युद्ध में रावण वध का मंचन किया गया।

तिरूपति के लड्डू में मिलावट के बाद बदला प्रसाद

तिरूपति मंदिर में लड्डू में मिलावट की घटना के बाद लाटभैरव की रामलीला में प्रसाद भी बदल दिया गया। पहले श्रद्धालुओं को लड्डू का प्रसाद दिया जाता था, लेकिन शनिवार को लीला कमेटी ने इसे बदलकर रामदाना, चना और तुलसी दल का प्रसाद दिया।

रामनगर में मंचन

हनुमानजी भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त थे। प्रभु का उन्हें आशीर्वाद प्राप्त था। पलक झपकते ही सौ जोजन समुद्र लांघ गए। इस घटनाक्रम ने सुरसा को चकित कर दिया। जिस सोने की लंका पर अहंकारी रावण को गुमान था, उसे उन्होंने जलाकर राख कर दिया। रामलीला के 19वें दिन, शनिवार को हनुमान जी ने सभी से अपने आने की प्रतीक्षा करने के लिए कहकर मैनाक पर्वत पर चढ़े, तो वह पर्वत धंस गया। वह कहते हैं कि प्रभु श्री राम का कार्य किए बिना मैं विश्राम नहीं करूंगा। सुरसा कहती हैं कि देवताओं ने आज मुझे अच्छा आहार दिया है। वह हनुमानजी को खाना चाहती हैं, लेकिन हनुमानजी कहते हैं कि अभी जाने दो, वापस लौटने पर मुझे खा लेना। वह नहीं मानती और अपना आकार बढ़ाने लगती हैं। यह देखकर हनुमानजी भी अपना आकार बढ़ाते हैं। जब उसने अपना मुंह सौ जोजन तक फैलाया, तो हनुमानजी ने अपना छोटा रूप बनाकर उसके मुंह में प्रवेश कर बाहर आ गए। सुरसा उनकी चतुराई देखकर प्रसन्न हो गई। मच्छर का रूप धारण करके लंका में प्रवेश करने पर लंकिनी नाम की राक्षसी को एक घूंसा मारा, जिससे उसने मुंह से खून फेंक दिया।

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