यूरोपीय संसद की मानवाधिकार पर उप समिति ने आनंद तेलतुंबडे और गौतम नवलखा जैसे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर रोष जताते हुए गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखा है। पत्र में दिल्ली पुलिस द्वारा कई छात्र नेताओं की गिरफ्तारी का मुद्दा भी उठाया गया है। यूरोपीय संसद की मानवाधिकार समिति दुनिया भर में बुनियादी अधिकारों की रक्षा के लिए काम करती है और जहां भी इसका उल्लंघन होता है उसका संज्ञान लेती है।
भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चिंता जताते हुए संसदीय समिति की अध्यक्ष मैरी अरेना ने लिखा है कि आनंद तेलतुंबडे और गौतम नवलखा जैसे कार्यकर्ताओँ की नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी – एनआईए द्वारा गिरफ्तारी गंभीर मामला है। पत्र में कहा गया है कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का शोषण किया जा रहा है और उन्हें धमकाया जा रहा है जिस कारण वे हाशिए के तबके की आवाज नहीं उठा पा रहे हैं। पत्र में कहा गया है कि, “इन कार्यकर्ताओं को खामोश कराने के लिए उन पर आतंकवाद के आरोप लगाए जा रहे हैं और यूएपीए जैसे कानूनों का इस्तेमाल किया जा रहा है।”
यूरोपीय संसद में 2014 से सदस्य बेल्जियम की मैरी अरेना ने पत्र में कहा है कि यूरोरीय संसद ने इस बात को महसूस किय है कि नागरकिता संशोधन कानून जैसे मोदी सरकार के कानूनों, नीतियों और सरकारी कार्यवाहियों के खिलाफ होने वाले शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में हिस्से लेने पर लोगों के साथ आतंकी जैसा बरताव हो रहा है, और उनकी गिरफ्तारियां की जा रही हैं। अमित शाह को लिखे पत्र में अरेना ने कहा है कि, “सफूरा जरगर, गुलशिफा फातिमा, खालिद सैफी, मीरान हैदर, शिफाउर्रहमान, डॉ कफील खान, आसिफ इकबाल और शरजील इमाम जैसे कई लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है।” पत्र में लिखा गया है कि इससे लगता है कि कुछ कानून से सरकार को मनमाने अधिकार मिल गए हैं जिनका दुरुपयोग सरकारी एजेंसियां कर रही हैं। यूएपीए के दुरुपयोग की तरफ इशारा करते हुए अरेना ने कहा है कि यूएपीए की भ्रमित करने वाली व्याख्या के कारण सरकारी एजेंसियों को असीमित अधिकार मिल गए हैं जिनका मनमाना इस्तेमाल किया जा रहा है।
पत्र में अरेना ने गृहमंत्री अमित शाह से इस बारे में कदम उठाने का आग्रह करते हुए कहा है कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के काम का अपराधीकरण करने का काम बंद होना चाहिए और उनके स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान होना चाहिए। सरकारी नीतियों पर उंगली उठाते हुए अरेना ने कहा है कि, “भारत को सिविल सोसायटी के काम की कद्र करनी चाहिए और ऐसे कानून बनाने चाहिए जिससे इन लोगों को काम करने में आसानी हो और उन्हें सुरक्षा मिल सके।”
अरेना ने कोरोना संकटकाल में लोगों को हो रही मुसीबतों की तरफ इशारा करते हुए कहा है कि अमित शाह को याद दिलाय है कि इस महामारी को रोकने के लिए किए जा रहे प्रयासों के तहत संयुक्त राष्ट्र ने भी बंदियों को रिहा करने की बात की है। पत्र में अरेना ने लिखा है, “हमारा कर्तव्य और दायित्व है कि हम बिना किसी भेदभाव के भारत में मानवाधिकारों की रक्षा करें और सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए बंदियों को रिहा करें।”
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 13 अप्रैल को एक आदेश में कहा था कि ऐसे सभी बंदियों को रिहा कर दिया जाए जो तीन साल से जेल में हैं। कोर्ट ने साथ ही बंदियों को रिहा करने के लिए एक लाख रुपए की जमानत राशि को घटाकर पांच हजार भी कर दिया था।
भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चिंता जताते हुए संसदीय समिति की अध्यक्ष मैरी अरेना ने लिखा है कि आनंद तेलतुंबडे और गौतम नवलखा जैसे कार्यकर्ताओँ की नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी – एनआईए द्वारा गिरफ्तारी गंभीर मामला है। पत्र में कहा गया है कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का शोषण किया जा रहा है और उन्हें धमकाया जा रहा है जिस कारण वे हाशिए के तबके की आवाज नहीं उठा पा रहे हैं। पत्र में कहा गया है कि, “इन कार्यकर्ताओं को खामोश कराने के लिए उन पर आतंकवाद के आरोप लगाए जा रहे हैं और यूएपीए जैसे कानूनों का इस्तेमाल किया जा रहा है।”
यूरोपीय संसद में 2014 से सदस्य बेल्जियम की मैरी अरेना ने पत्र में कहा है कि यूरोरीय संसद ने इस बात को महसूस किय है कि नागरकिता संशोधन कानून जैसे मोदी सरकार के कानूनों, नीतियों और सरकारी कार्यवाहियों के खिलाफ होने वाले शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में हिस्से लेने पर लोगों के साथ आतंकी जैसा बरताव हो रहा है, और उनकी गिरफ्तारियां की जा रही हैं। अमित शाह को लिखे पत्र में अरेना ने कहा है कि, “सफूरा जरगर, गुलशिफा फातिमा, खालिद सैफी, मीरान हैदर, शिफाउर्रहमान, डॉ कफील खान, आसिफ इकबाल और शरजील इमाम जैसे कई लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है।” पत्र में लिखा गया है कि इससे लगता है कि कुछ कानून से सरकार को मनमाने अधिकार मिल गए हैं जिनका दुरुपयोग सरकारी एजेंसियां कर रही हैं। यूएपीए के दुरुपयोग की तरफ इशारा करते हुए अरेना ने कहा है कि यूएपीए की भ्रमित करने वाली व्याख्या के कारण सरकारी एजेंसियों को असीमित अधिकार मिल गए हैं जिनका मनमाना इस्तेमाल किया जा रहा है।
पत्र में अरेना ने गृहमंत्री अमित शाह से इस बारे में कदम उठाने का आग्रह करते हुए कहा है कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के काम का अपराधीकरण करने का काम बंद होना चाहिए और उनके स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान होना चाहिए। सरकारी नीतियों पर उंगली उठाते हुए अरेना ने कहा है कि, “भारत को सिविल सोसायटी के काम की कद्र करनी चाहिए और ऐसे कानून बनाने चाहिए जिससे इन लोगों को काम करने में आसानी हो और उन्हें सुरक्षा मिल सके।”
अरेना ने कोरोना संकटकाल में लोगों को हो रही मुसीबतों की तरफ इशारा करते हुए कहा है कि अमित शाह को याद दिलाय है कि इस महामारी को रोकने के लिए किए जा रहे प्रयासों के तहत संयुक्त राष्ट्र ने भी बंदियों को रिहा करने की बात की है। पत्र में अरेना ने लिखा है, “हमारा कर्तव्य और दायित्व है कि हम बिना किसी भेदभाव के भारत में मानवाधिकारों की रक्षा करें और सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए बंदियों को रिहा करें।”
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 13 अप्रैल को एक आदेश में कहा था कि ऐसे सभी बंदियों को रिहा कर दिया जाए जो तीन साल से जेल में हैं। कोर्ट ने साथ ही बंदियों को रिहा करने के लिए एक लाख रुपए की जमानत राशि को घटाकर पांच हजार भी कर दिया था।