ऐक्ट ऑफ गॉड की दलील से असहमति

Written by Sanjay Kumar Singh | Published on: September 5, 2020
मैं समझ रहा था कि भगवान तंबू में रहकर भी भाजपा की सरकार बनवा देते हैं। बाद में समझ में आया कि भगवान वोट दिलवाते हैं। और सरकार उससे बनती है। इसीलिए भगवान अस्थायी मंदिर में पहुंचा दिए गए हैं वरना अधूरे घर में कौन रहने जाता है या किसे रखा जाता है। पर भगवान को जब राजनीति में घसीट लिया जाए तो क्या होता है जानने के लिए आगे पढ़िए।



कोलकाता में पुल गिरा, प्रधानमंत्री ने ऐक्ट ऑफ गॉड की दलील नहीं मानी कहा ऐक्ट ऑफ फ्रॉड है। (2016)

बनारस में पुल गिरा - वो ना ऐक्ट ऑफ गॉड था ना ऐक्ट ऑफ फ्रॉड। किसी (बड़े) ने कहा नहीं क्योंकि कुछ ही दिन पहले ऐक्ट ऑफ फ्रॉड कहा था। (2018)

देश में महामारी फैली वह भी ऐक्ट ऑफ गॉड नहीं था। चीन का नाम ही नहीं लेते हैं। लपारवाही (या नालायकी) ऑफ चौकीदार कहा नहीं। (2020)
अर्थव्यवस्था तो कई साल से गड्ढे में जा रही थी। ऐक्ट ऑफ बहादुरी की बात भूल गए थे। जिन कारणों से अर्थव्यवस्था का बुरा हाल था उसे हिम्मत बता चुके थे। (2016)

इन सबके बावजूद वित्त मंत्री ने कहा कि अर्थव्यवस्था की बुरी हालत उनके कारण नहीं, ऐक्ट ऑफ गाॉड है।

अब नतीजा यह है कि इसपर पति - पत्नी में मतभेद है। वित्त मंत्री के पति ने ट्वीट किया है - उन्होंने कहा है, ईश्वर की वास्तविक कार्रवाई यह है कि मैक्रो आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार के पास सुसंगत विचारों (आईडिया) की कमी है। कोविड तो बाद में आया है। मैंने जो अक्तूबर 19 में कहा था वह अब साबित हुआ है ... ईश्वर के लिए कम से कम अब कुछ कीजिए।

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