दिक्कत ससुर डीएनए में है। शिक्षा की बात करो तो लोगों को गाली जैसा लगता है

Written by Mithun Prajapati | Published on: September 23, 2017
प्रश्न उठा, दुनिया में सबसे पुण्य का काम क्या है !! अंतरात्मा से आवाज़ आई- किसी की भलाई करना, इंसानियत भरा काम करना। पर इस बात को मैंने नहीं माना। क्यों मानूं, यह तो सिर्फ मेरी अंतरात्मा कह रही है। दूसरे क्या कहते हैं, यह भी तो जानना जरूरी है। अब नीतिश कुमार को ही ले लीजिए। दो ढाई साल गठबंधन की सरकार चलाने के बाद एक दिन उनकी अंतरात्मा ने कहा- बेटा, मेरी सुनो, इस्तीफ़ा देकर भाजपा से मिलकर फिर से सरकार बना लो। मौका अच्छा है।

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उनके इन फैसले को बहुतों ने वाह-वाह करके तारीफ़ की जैसे नोटबंदी के दौरान बैंक की लाइन में खड़े बहुत से लोग कह रहे थे- वाह, क्या मास्टर स्ट्रोक खेला है। बहुत से लोग ने निंदा की और कहा- नीतीश धोखेबाज़ है।
 
अब देख लीजिए। मौका देखकर अंतरात्मा ने आवाज़ दी थी। हो सकता है मेरी अंतरात्मा ने भी मौका देखा हो और आवाज लगा दी हो। इसलिए अंतरात्मा की आवाज जबतक जनता के बीच ध्वनिमत से पारित न हो उसे सही नहीं मानता चाहिए। मैं  जनता के बीच गया।
 
मेरे पड़ोसी मिले। मैंने उनसे पूछा- सबसे पुण्य का काम क्या है ?
 
उन्होंने जवाब दिया- दहेज के कारण अटकी पड़ी शादी को करवाने के लिए किसी बाप की मदद करना।
 
मैंने कहा- लेकिन दहेज का लेन- देन तो गैर कानूनी है न !
 
वे बोले- गैर कानूनी तो विधायकों की खरीदी बिक्री भी है।
 
उनके इस जवाब से मुझे हंसी आने वाली थी। मैंने उसे आने नहीं दिया। जब विमर्श गंभीर हो तो व्यंग पर भी हंसना नहीं चाहिए। व्यंग हंसने के लिए नहीं गहराई तक उतरकर सोचने के लिए कहे जाते हैं। वे अपनी 17 साल की बेटी की शादी के लिए तीन साल से पैसे जुटा रहे हैं। वो तो भला हो महंगाई का जो वो अब तक जुटा नहीं पाए फिर इसी दौरान उनकी बेटी 20 साल की होकर बालिग हो गयी और भारत एक और बाल विवाह के कलंक से बच गया। 
 
मैंने कहा- यह तो आप अपने फायदे के लिए कह रहे हैं। आपको पैसे की जरूरत है इसलिए आपकी कोई मदद कर दे तो वह आपको पुण्य लगेगा।
 
वे बोले- नहीं, ऐसा नहीं है। मजबूरी है..... 
 
मैंने बीच में ही बात काटते हुए कहा- एक काम क्यों नहीं करते !! बेटी ग्रैजुएट है, टैलेंटेड है। कोई काम-वाम क्यों नहीं ढूंढते उसके लिए ? खुद कमाएगी तो विवाह भी कर लेगी, और किसी से प्रेम वगैरह हुआ तो दहेज भी नहीं देना पड़ेगा और बेटी खुश भी रहेगी कि अपनी पसंद का विवाह किया उसनें ।
 
वे उदास हो गए और कहने लगे- आप नहीं समझोगे, जात वाला मैटर है। जात वालों को पता चलेगा कि मेरी बेटी ने लव मैरिज किया है वो भी दूसरे जात  के लड़के से तो बहुत बुरा होगा। जात से निकाल दिया गया तो किधर का भी नहीं रहूंगा। 
 
उनकी बातें GST की तरह कुछ-कुछ समझ तो आ रही थीं पर उनका महत्व नज़र नहीं आ रहा था।
 
मैंने कहा- आप जात को लात मारकर बाहर क्यों नहीं आ जाते ? क्या मिलता है जात वालों के साथ रहकर ! 
 
उन्होंने बात को इधर उधर घुमाना चाहा जैसे  रोजगार मांगो तो सरकार गोल-घुमाने लगती है। पर उन्हें मैं फिर मुद्दे पर खींच लाया।
 
मैंने फिर कहा- एक काम कर लीजिए। जात वालों से ही पैसे मांग लीजिए शादी के लिए। 
 
उनका मुंह लटक गया। वे बोले- जात वाले नहीं देंगे।
 
मैंने कहा- जब जात वाले आपकी मुसीबत में पैसे नहीं दे रहे तो आपकी समस्याओं में टांग अड़ाने का क्या मतलब है उनका ? 
 
उनपर मेरी बात का असर हुआ, पर प्रैक्टिकली वे अपने जीवन में उसे नहीं उतारेंगे। परंपरा इतनी जल्दी नहीं टूटती।
 
मैंने अपने दादा जी से पूछा - अच्छा दादा , आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जिसने बहुत बड़ा पुण्य का काम किया हो ?
 
दादा जी बताने लगे, फलाने गांव में चौधरी साहब रहते थे। उन्होंने अपनी वृद्धावस्था में आकर एक बहुत बड़े मंदिर का निर्माण कराया जो दूर-दूर तक प्रसिद्ध है।
 
दादा ने जिस चौधरी के बारे में बताया  वे जिंदगी भर पैसा खाकर बड़ों के हित में फैसले सुनाते रहे। गांव के आधे दलितों की ज़मीन उन्होंने अपनी जवानी में ही हड़प ली थी। कितने लोगों का घर जलाया, कितनी महिलाओं से  छेड़खानी की मरते दम तक उन्हें खुद नहीं पता था। अंतिम समय में मंदिर बनवाकर सारा पाप धो लिया और जमाना आज उन्हें अच्छे व्यक्ति के रूप में जानता है।
 
मैंने दादा से पूछा-  दादा , मंदिर बनवाना पुण्य का काम है ?
 
दादा बोले- बेटा, गांव समाज तो यही कहता है। बाकी एक हमारे मित्र हुआ करते थे जो गरीबी में पैदा हुए और गरीबी में ही मरे। जीवन में जो कमाया उससे इस गांव में पहला स्कूल  खोलने में खर्च कर दिया। स्थिति यह है कि आज उनका नाम कोई नहीं जानता। 
 
मैं दादा जी की तरफ उत्सुकता से देख रहा था।दादा ने सिर पर बचे खुचे बाल को सहलाते हुए फिर कहना शुरू किया- दिक्कत ससुर डीएनए में है। धार्मिक देश है। शिक्षा की बात करो तो लोगों को गाली जैसा लगता है। धर्म की बात करो तो आंखों पर बिठाते हैं। 
 
मैं  उनकी बातें सुने जा रहा था और मेरी आँख के सामने वही मंदिर घूम रहा था जो दलितों की जमीन पर तो बना है पर उन्हें अंदर जाने की मनाही है।
 
पुण्य का काम कौन सा है, यह प्रश्न न जाने कहाँ खो गया।

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