आईआईटी-कानपुर सीनेट ने दलित शिक्षक के पीएचडी शोध प्रबंध को रद्द करने की सिफारिश की है। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो वहीं शिक्षक हैं जिन्होंने प्लेगेरिज्म के आरोपों पर पिछले साल चार सहयोगियों द्वारा उत्पीड़न और भेदभाव की शिकायत की थी। हालांकि संस्थान के अकेडमिक एथिक्स सेल को ऐसा कोई भी कारण नहीं मिला था जिससे थीसिस निरस्त हो पाते।
जनसत्ता डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक, दलित शिक्षक सुब्रह्मण्यम सदरेला के खिलाफ प्लेगेरिज्म के आरोप 15 अक्टूबर, 2018 को कुछ गुमनाम ईमेल के द्वारा लगाए गए थे। ये ईमेल कई फैकल्टीज को भेजे गए थे। इस मामले में जांच के दो महीने बाद एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा चार शिक्षकों को IIT-K के आचरण नियमों का उल्लंघन करने का और साथ ही अत्याचार निवारण अधिनियम की एससी / एसटी रोकथाम का दोषी पाया गया था।
सीनेट की सिफारिश को संस्थान के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (BoG) के समक्ष जल्द ही रखे जाने की उम्मीद है। बता दें कि सीनेट शैक्षणिक मामलों पर आईआईटी-कानपुर का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है और इसमें सभी संकाय सदस्य शामिल हैं। इसकी अध्यक्षता संस्थान निदेशक कर रहे हैं। गौरतलब है कि यदि BoG ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, तो सदरेला की पीएचडी वापस ले ली जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें IIT-Kanpur में नौकरी गंवानी पड़ सकती है। बता दें कि सदरेला ने हैदराबाद के जवाहरलाल नेहरू प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से संबद्ध एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग संस्थान से बीटेक किया और आईआईटी-कानपुर से एमटेक और पीएचडी की है।
1 जनवरी, 2018 को आईआईटी-कानपुर में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग में शामिल होने वाले सदरेला ने 12 जनवरी, 2018 को अपने चार सहयोगियों पर भेदभाव और उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। बाद में गठित एक तीन सदस्यीय तथ्य-खोज समिति, IIT-K के निदेशक ने 8 मार्च 2018 को अपनी रिपोर्ट में उत्पीड़न के चार दोषियों को पाया था। BoG के कहने पर एक सेवानिवृत्त इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा बाद की जांच में, 17 अगस्त 2018 को प्रस्तुत रिपोर्ट में आरोपी शिक्षकों को भी दोषपूर्ण पाया गया। 6 सितंबर को एक BoG बैठक में निष्कर्षों पर चर्चा की गई।
2018 में बोर्ड ने फैसला किया कि आरोपी शिक्षकों ने आचरण नियमों का उल्लंघन किया है, लेकिन एससी / एसटी अधिनियम का नहीं।वहीं 18 नवंबर 2018 को सदरेला ने शिक्षकों के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की थी, जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रोक दिया था।
जनसत्ता डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक, दलित शिक्षक सुब्रह्मण्यम सदरेला के खिलाफ प्लेगेरिज्म के आरोप 15 अक्टूबर, 2018 को कुछ गुमनाम ईमेल के द्वारा लगाए गए थे। ये ईमेल कई फैकल्टीज को भेजे गए थे। इस मामले में जांच के दो महीने बाद एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा चार शिक्षकों को IIT-K के आचरण नियमों का उल्लंघन करने का और साथ ही अत्याचार निवारण अधिनियम की एससी / एसटी रोकथाम का दोषी पाया गया था।
सीनेट की सिफारिश को संस्थान के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (BoG) के समक्ष जल्द ही रखे जाने की उम्मीद है। बता दें कि सीनेट शैक्षणिक मामलों पर आईआईटी-कानपुर का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है और इसमें सभी संकाय सदस्य शामिल हैं। इसकी अध्यक्षता संस्थान निदेशक कर रहे हैं। गौरतलब है कि यदि BoG ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, तो सदरेला की पीएचडी वापस ले ली जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें IIT-Kanpur में नौकरी गंवानी पड़ सकती है। बता दें कि सदरेला ने हैदराबाद के जवाहरलाल नेहरू प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से संबद्ध एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग संस्थान से बीटेक किया और आईआईटी-कानपुर से एमटेक और पीएचडी की है।
1 जनवरी, 2018 को आईआईटी-कानपुर में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग में शामिल होने वाले सदरेला ने 12 जनवरी, 2018 को अपने चार सहयोगियों पर भेदभाव और उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। बाद में गठित एक तीन सदस्यीय तथ्य-खोज समिति, IIT-K के निदेशक ने 8 मार्च 2018 को अपनी रिपोर्ट में उत्पीड़न के चार दोषियों को पाया था। BoG के कहने पर एक सेवानिवृत्त इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा बाद की जांच में, 17 अगस्त 2018 को प्रस्तुत रिपोर्ट में आरोपी शिक्षकों को भी दोषपूर्ण पाया गया। 6 सितंबर को एक BoG बैठक में निष्कर्षों पर चर्चा की गई।
2018 में बोर्ड ने फैसला किया कि आरोपी शिक्षकों ने आचरण नियमों का उल्लंघन किया है, लेकिन एससी / एसटी अधिनियम का नहीं।वहीं 18 नवंबर 2018 को सदरेला ने शिक्षकों के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की थी, जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रोक दिया था।