कोविड 19 : सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के कैदियों को दी अस्थायी राहत, अंतरिम जमानत की समयावधि बढ़ाई

Written by sabrang india | Published on: December 31, 2020
सु्प्रीम कोर्ट ने बुधवार को छत्तीसगढ़ राज्य के लगभग 5500 कैदियों को अस्थायी राहत देते हुए उन कैदियों के लिए आत्मसमर्पण करने का समय बढ़ा दिया है, जिन्हें COVID-19 महामारी के दौरान उच्चाधिकार प्राप्त समिति के सिफारिश के अनुसार अंतरिम जमानत या पैरोल पर रिहा किया गया था। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आत्मसमर्पण की समय सीमा को 31 दिसंबर, 2020 से आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया था। इससे परेशान होकर एक कैदी ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी।



लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, बुधवार 30 दिसंबर को जस्टिस इंदिरा बनर्जी और अनिरुद्ध बोस की एक अवकाश पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसके तहत कैदियों के आत्मसमर्पण करने की समयसीमा को 6 जनवरी तक बढ़ा दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, 'विशेष अनुमति याचिका को मंजूरी दी जाती है। जारी किए गए नोटिस, उपयुक्त पीठ के समक्ष 05 जनवरी 2021 को वापस पेश किए जाए। आत्मसमर्पण करने का समय 06 जनवरी 2021 तक या इस न्यायालय के अगले आदेश तक बढ़ा दिया गया है।' 23 मार्च को सुप्रीम कोर्ट द्वारा 'जेलों में COVID-19 वायरस संक्रमण' मामले में दिए गए निर्देशों के बाद हाई पावर्ड कमेटी का गठन किया गया था।

30 सितंबर को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि जिन 5500 कैदियों को एचपीसी की सिफारिशों के अनुसार अंतरिम जमानत/पैरोल दी गई थी, उन्हें 1 दिसंबर तक आत्मसमर्पण करना चाहिए। हालांकि COVID-19 के बढ़ते ग्राफ का हवाला देते हुए कैदियों के एक समूह ने आत्मसमर्पण करने के लिए समय को बढ़ाने की मांग की।

हाईकोर्ट ने 1 दिसंबर को पाया कि अंतरिम जमानत या पैरोल का और विस्तार को बढ़ाने से इनकार कर दिया था, क्योंकि अदालतों ने फिजिकल सुनवाई शुरू कर दी है। इसलिए हाईकोर्ट ने माना कि पक्षकार उचित कार्यवाही के माध्यम से उचित न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं ताकि समर्पण करने के लिए समय बढ़ाया जा सके। हालांकि, अदालत ने कैदियों को संबंधित अदालतों के समक्ष इस तरह के आवेदन दायर करने में सक्षम बनाने के लिए एक महीने का 'समय' प्रदान किया।

कोर्ट ने कहा, 'हमें आज से 'एक महीने' की एक और अवधि तक समय देने के अलावा अंतरिम आदेश के विस्तार को जारी रखना आवश्यक नहीं लगता है, ताकि संबंधित सभी पक्षों को उचित तरीके से उचित न्यायालय / फोरम स्थानांतरित करने की सुविधा मिल सके कार्यवाही।'

इसका मतलब यह था कि 31 दिसंबर तक कैदियों को आत्मसमर्पण करना होगा, जब तक कि उनकी जमानत / पैरोल व्यक्तिगत मामलों में संबंधित अदालतों द्वारा विस्तारित न हो। हालांकि उच्च न्यायालय द्वारा 31 दिसंबर से पहले आत्मसमर्पण करने का समय बढ़ाने से इनकार करने के खिलाफ एक एसएलपी दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने उसकी सुनवाई करने से इनकार कर दिया था और याचिकाकर्ता को हाईकोर्एट से संपर्क करने के लिए कहा था।

याचिकाकर्ता का कहना है कि उसने याचिका को सूचीबद्ध करने के लिए एक तत्काल आवेदन दायर किया। लेकिन 21 दिसंबर को, उचित पीठ के समक्ष आवेदन की तत्काल लिस्टिंग के लिए अनुरोध ठुकरा दिया गया था। ऐसी परिस्थितियों में याचिकाकर्ता ने जे जायसवाल नाम के एक कैदी ने सुप्रीम कोर्ट में एक नयी एसएलपी याचिका दायर की। यह तर्क दिया गया कि छत्तीसगढ़ की जेलों में 150% तक भीड़भाड़ थी और जेलों में बंद लोगों को जागरूक करने का प्रयास किए बिना, हाईकोर्ट ने 31 दिसंबर तक रिहा कैदियों के आत्मसमर्पण का आदेश देते हुए 'गलती' की है।

बाकी ख़बरें