जब नागरिकों के अधिकारों का हनन हो रहा हो तो अदालतें मूकदर्शक नहीं रह सकतीं- सुप्रीम कोर्ट

Written by Sabrangindia Staff | Published on: June 3, 2021
नई दिल्ली। कोविड 19 के प्रबंधन से जुड़े मुद्दे पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा हो, तो ऐसे में अदालत मूकदर्शक नहीं रह सकतीं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट केंद्र की उस टिप्पणी का जवाब दे रही थी जिसमें नीतियों को लागू करने से कोर्ट को दूर रहना चाहिए।



कोर्ट ने कहा, हमारा संविधान ये नहीं कहता है कि जब नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो तो अदालतें मूकदर्शन बनी रहें। कोर्ट ने कहा, शक्तियों का बंटवारा, संविधान के मुख ढांचे का हिस्सा है। पॉलिसी बनाना एग्जिक्यूटिव का काम है, न्यायपालिका का नहीं। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि कोर्ट न्यायिक समीक्षा नहीं कर सकता।

पीठ ने 31 मई को दिये अपने आदेश में कहा, ‘‘हमारे संविधान में यह परिकल्पित नहीं है कि जब कार्यपालिका की नीतियां नागरिकों के अधिकारों का अतिक्रमण करती हैं तो अदालतें मूक दर्शक बनी रहें। न्यायिक समीक्षा और कार्यपालिका द्वारा तैयार की गई नीतियों के लिए संवैधानिक औचित्य को परखना एक आवश्यक कार्य है, और यह काम न्यायालयों को सौंपा गया है।’’ इस आदेश को बुधवार को उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किया गया।

कोर्ट ने कहा कि फिलहाल वो विभिन्न हितधारकों को महामारी के प्रबंधन के संबंध में संवैधानिक शिकायतों को उठाने के लिए एक मंच प्रदान कर रहा है। वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि कोविड-19 टीकाकरण नीति से जुड़ी अपनी सोच को दर्शाने वाले सभी प्रासंगिक दस्तावेज और फाइल पर की गई टिप्पणियां रिकॉर्ड पर रखे और कोवैक्सीन, कोविशील्ड एवं स्पुतनिक वी समेत सभी टीकों की आज तक की खरीद का ब्योरा पेश करें।

शीर्ष अदालत ने म्यूकरमायकोसिस (ब्लैक फंगस) की दवा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में भी बताने को कहा है। इसके अलावा निशुल्क टीकाकरण के संबंध में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से दो सप्ताह के भीतर अपना रुख बताने को कहा गया है।

बाकी ख़बरें