बस्तर के दमन पर लिखी नंदिनी सुंदर की किताब द बर्निंग फारेस्ट को दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल होना मुश्किल लग रहा है। द बर्निंग फारेस्ट को सिलेबस में शामिल किए जाने का प्रस्ताव है।
नईदुनिया की रिपोर्ट के अनुसार, इस बारे में यूनिवर्सिटी की स्टैंडिंग कमेटी दो बार बैठक कर चुकी है, लेकिन अभी यह फाइनल नहीं हुआ है कि किताब सिलेबस में शामिल की ही जाएगी। इसका कारण ये है कि विश्वविद्यालय के कुछ प्रोफेसर इस किताब को सिलेबस में शामिल करने का विरोध करने लगे हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी में इस साल सिलेबस का रिवीजन किया जाना है।
रिपोर्ट में नंदिनी सुंदर के हवाले से कहा गया है कि अभी यह निर्णय नहीं हुआ है कि किताब को सिलेबस में शामिल किया जाएगा या नहीं, लेकिन कुछ लोग यह दुष्प्रचार करने लगे हैं कि किताब को सिलेबस से हटा दिया गया है।
जानी-मानी मानव विज्ञानी नंदिनी सुंदर दिल्ली विश्वविद्यालय में समाज शास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ में बस्तर के आदिवासियों पर शोध करने के बाद द बर्निंग फॉरेस्ट किताब लिखी है।
नंदिनी की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुड़ूम पर पाबंदी लगाई थी। वे लगातार बस्तर में पुलिस अत्याचार के मामले लगातार उठाती रहीं हैं। द बर्निंग फॉरेस्ट किताब भी इसी मामले पर केंद्रित है।
2016 में नंदिनी अपने अन्य साथियों के साथ बस्तर आईं थीं। उनके जाने के बाद जिस गांव में वे गईं थीं, उसी गांव में नक्सलियों ने एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी, लेकिन इस मामले में बस्तर पुलिस ने नंदिनी सुंदर पर ही हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया था। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद उनकी गिरफ्तारी टल पाई थी।
रिपोर्ट के मुताबिक, द बर्निंग फॉरेस्ट बस्तर में पुलिस-नक्सली लड़ाई के नाम पर आदिवासियों के दमन की कहानी बताई गई है। किताब में बताया गया है कि कैसे उद्योगों को लाभ दिलाने के लिए सरकार आदिवासियों को मार रही है। किताब में फर्जी मुठभेड़ों, आदिवासियों की हत्या आदि का ब्यौरा दिया गया है।
नईदुनिया की रिपोर्ट के अनुसार, इस बारे में यूनिवर्सिटी की स्टैंडिंग कमेटी दो बार बैठक कर चुकी है, लेकिन अभी यह फाइनल नहीं हुआ है कि किताब सिलेबस में शामिल की ही जाएगी। इसका कारण ये है कि विश्वविद्यालय के कुछ प्रोफेसर इस किताब को सिलेबस में शामिल करने का विरोध करने लगे हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी में इस साल सिलेबस का रिवीजन किया जाना है।
रिपोर्ट में नंदिनी सुंदर के हवाले से कहा गया है कि अभी यह निर्णय नहीं हुआ है कि किताब को सिलेबस में शामिल किया जाएगा या नहीं, लेकिन कुछ लोग यह दुष्प्रचार करने लगे हैं कि किताब को सिलेबस से हटा दिया गया है।
जानी-मानी मानव विज्ञानी नंदिनी सुंदर दिल्ली विश्वविद्यालय में समाज शास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ में बस्तर के आदिवासियों पर शोध करने के बाद द बर्निंग फॉरेस्ट किताब लिखी है।
नंदिनी की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुड़ूम पर पाबंदी लगाई थी। वे लगातार बस्तर में पुलिस अत्याचार के मामले लगातार उठाती रहीं हैं। द बर्निंग फॉरेस्ट किताब भी इसी मामले पर केंद्रित है।
2016 में नंदिनी अपने अन्य साथियों के साथ बस्तर आईं थीं। उनके जाने के बाद जिस गांव में वे गईं थीं, उसी गांव में नक्सलियों ने एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी, लेकिन इस मामले में बस्तर पुलिस ने नंदिनी सुंदर पर ही हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया था। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद उनकी गिरफ्तारी टल पाई थी।
रिपोर्ट के मुताबिक, द बर्निंग फॉरेस्ट बस्तर में पुलिस-नक्सली लड़ाई के नाम पर आदिवासियों के दमन की कहानी बताई गई है। किताब में बताया गया है कि कैसे उद्योगों को लाभ दिलाने के लिए सरकार आदिवासियों को मार रही है। किताब में फर्जी मुठभेड़ों, आदिवासियों की हत्या आदि का ब्यौरा दिया गया है।