घरेलू जिम्मेदारी का हवाला देकर महिला वकील, जज की जिम्मेदारी से इनकार कर देती हैं: CJI

Written by Navnish Kumar | Published on: April 17, 2021
शीर्ष अदालतों में महिला जजों की कमी पर भारत के चीफ जस्टिस (CJI) एसए बोबडे का कहना है कि ‘घरेलू जिम्मेदारी व बच्चों की पढ़ाई का हवाला देकर महिला वकील, न्यायाधीश बनने से इनकार कर देती हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि देश में महिला प्रधान न्यायाधीश हो। CJI की यह टिप्पणी महिलाओं की जजों के तौर पर नियुक्ति की मांग वाली अर्जी पर आई है। दरअसल, वुमेन लॉयर्स एसोसिएशन  (Women Lawyers' Association) की वकील स्नेहा कलीता और शोभा गुप्ता ने अर्जी दायर कर दलील दी कि न्यायपालिका में महज 11 फीसदी ही महिलाएं हैं। ऐसे में ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को न्यायपालिका में जगह दी जानी चाहिए। 



सुप्रीम कोर्ट वुमेंस लॉयर्स एसोसिएशन (एससीडब्ल्यूएलए) की ओर से पेश अधिवक्ता स्नेहा कलिता ने कहा कि उच्च न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बेहद ही कम 11.04 प्रतिशत है। कहा 26 जनवरी 1950 को मौजूदा न्यायिक व्यवस्था अस्तित्व में आई थी और अगले नामित प्रधान न्यायाधीश एनवी रमन्ना तक 48 न्यायमूर्ति देश के शीर्ष न्यायिक पद पर आसीन हो चुके हैं लेकिन इनमें से कोई भी महिला नहीं है। 

यही नहीं, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार वरिष्ठ वकीलों में सुप्रीम कोर्ट की सूची में भी मात्र 4 प्रतिशत ही महिलाएं (400 पुरुषों के मुकाबले 16) हैं। महाराष्ट्र में जहां महिला वकीलों की सर्वाधिक संख्या है, वहां भी बंबई हाईकोर्ट में वरिष्ठ महिला वकीलों का अनुपात महज 3.8 प्रतिशत के बराबर ही है। यही नहीं, 25 हाईकोर्ट में से 5 हाईकोर्ट मणिपुर, मेघालय, पटना, त्रिपुरा और उत्तराखंड में एक भी महिला जज फिलहाल नहीं है। महिला वकील स्नेहा कलिता ने बताया कि उच्च न्यायालयों में 661 न्यायाधीशों में से केवल 73 महिलाएं थीं, जो कुल न्यायाधीशों की तुलना में महज 11.04 फीसदी है। जब नामित सीनियर महिला वकीलों का अनुपात इतना कम हो, तो ज्यादा से ज्यादा महिलाओं के जज बनने की संभावना को आसानी से जाना व समझा जा सकता हैं। 

सुप्रीम कोर्ट वुमन लॉयर एसोसिएशन ( SCWLA) ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर विभिन्न हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाली महिला वकीलों पर विचार करने के लिए निर्देश देने की मांग की थी जिस पर सुनवाई के दौरान सीजेआई (CJI) ने कहा कि महिलाओं के हित की बात हमारे ध्यान में है और हम इसे बेहतर तरीके से लागू करने पर काम कर रहे हैं। हमारे रुख में कोई बदलाव नही आया है। केवल एक ही बात है कि हमारे पास योग्य (उपयुक्त) उम्मीदवार होने चाहिए। 

चीफ जस्टिस एसए बोबड़े, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की विशेष पीठ ने कहा कि उच्च न्यायपालिका ही क्यों? हमारा मानना है कि समय आ गया है जब भारत की प्रधान न्यायाधीश महिला होनी चाहिए। लेकिन चीफ जस्टिस ने कहा कि, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों ने हमें बताया कि समस्या यह है कि जब महिला वकीलों को न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति के लिए कहा जाता है तो वे अक्सर घरेलू जिम्मेदारी या बच्चों की पढ़ाई का हवाला देकर इससे इनकार कर देती हैं।

आज जब देश में महिलाएं अपनी योग्यता के दम पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, गवर्नर व पुलिस, प्रशासनिक और सामाजिक सेवाओं आदि में सफलतापूर्वक जिम्मेवारी संभाल चुकी हैं, संभाल रही हैं। ऐसे में महिलाओं के शीर्ष अदालतों में जज न बन पाने के पीछे, घरेलू जिम्मेवारी आड़े आ रहीं हैं?, की अनूठी दलील न सिर्फ समझ से परे हैं बल्कि तथ्यों से इतर अपने आप में कई सवालों को भी जन्म दे रही हैं। मसलन, महिलाएं शीर्ष अदालतों में वकील के तौर पर अपना काम सफलतापूर्वक कर रही हैं तो जज बनने में उनकी हिचक समझ से परे की बात हैं। घरेलू ज़िम्मेवारियों के चलते महिलाएं हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में जज बनने से इनकार कर रहीं हैं, की दलील तो प्रथम दृष्टया सुनने में ही विरोधाभासी लगती हैं। 

बाबा साहेब डॉ बीआर अंबेडकर ने कहा था कि महिलाओं की स्थिति से ही किसी देश और समाज की प्रगति का पता लगाया जा सकता हैं। अब प्रश्न योग्यता का हो या फिर कोई चयन की कोई प्रक्रियात्मक खामी हो, आजादी के 74 साल बाद भी देश की आधी आबादी, घरेलू ज़िम्मेवारियों जैसे कारणों के चलते शीर्ष अदालतों में जज बनने से इनकार कर दे रही हैं तो सवाल महिलाओं पर नहीं, शीर्ष अदालतों पर पर ही उठने हैं, उठेंगे। कारण कुछ हो, इसके लिए स्थितियां अनुकूल बनाने को शीर्ष अदालतों को ही आगे आना होगा।

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