गौ रक्षा के नाम पर एक और हत्या; झारखण्ड में 50 वर्ष के व्यक्ति को मार डाला

Written by Sabrangindia Staff | Published on: April 23, 2019
झारखण्ड  में मॉब लिंचिंग का एक और मामला सामने आया है। रांची में ईसाई धर्म के आदिवासी परिवार के 50 वर्ष प्रकाश लकरा को भीड़ ने बुरी तरह पीटा। 10 अप्रैल को गुमला डुमरी ब्लॉक के जुरमु गाँव में "जय श्री राम, जय बजरंग बलि" का नारा लगाते हुए भीड़ ने गौ हत्या के संदेह में प्रकाश सहित तीन अन्य लोगों को बुरी तरह पीटा। भीड़ का नेतृत्व संदीप साहू, संजय साहू, संतोष साहू व साहू परिवार के अन्य सदस्य कर रहे थे। 



हादसे के बाद झारखण्ड जनाधिकार ने पीड़ितों की गवाही के साथ यूट्यूब पर अपनी एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार पड़ोस के हिन्दू समुदाय द्वारा पीड़ितों को लगभग तीन घंटे तक बेरहमी से पीटा गया जिसके बाद एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई।   

पीड़ित अपने गाँव में नदी के किनारे एक मृत सांड की खाल उतार रहे थे। रिपोर्ट के अनुसार उन्हें ऐसा करने के लिए सांड़ के मालिक ने स्वयं कहा था। मालिक के आज्ञा अनुसार जब वे अपना कार्य कर रहे थे उसी वक्त उनपर 40 लोगों ने हमला कर दिया। भीड़ उन्हें पीटते हुए एक किलोमीटर दूर जैरागी चौक तक ले आई। "जय श्री राम, जय बजरंगबली" का  नारा लगाती भीड़ ने न सिर्फ उन्हें भी बोलने के लिए मजबूर किया बल्कि धीरे बोलने पर और बेरहमी से मारने लगे।  

तीन घंटे की मारपीट के बाद भीड़ ने उन्हें देर रात डुमरी पुलिस चौकी में छोड़ दिया जहाँ से उन्हें तकरीबन चार घंटे बाद अस्पताल ले जाया गया। 

पीड़ितों ने पुलिस अफसर अमित कुमार पर अपराधियों के साथ मिले होने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अमित कुमार स्टेशन के बाहर हमें पिटते हुए देख रहे थे पर उन्होंने कोई भी कार्रवाई नहीं की। प्रकाश अस्पताल पहुँचने से पहले दर्द से तड़प रहा था। हालांकि अमित कुमार ने अस्पताल पहुँचने पर प्रकाश को मृत घोषित न करने के लिए डॉक्टर पर दबाव भी डाला था जिसके लिए डॉक्टर ने मना कर दिया था। 

पीड़ितों की रक्षा करने में असफल होने के बाद भी पुलिस ने पीड़ितों सहित 20-25 अन्य लोगो पर ही गौ हत्या का चार्ज लगाकर केस दर्ज कर दिया। 15 अप्रैल तक सात में से दो ही अपराधी हिरासत में लिए गए हैं।  

आदिवासियों के अनुसार गाँव के अन्य समुदाय (साहू भी) अकसर उन्हें मृत सांड को ले जाने को दिया करते हैं। ये परंपरा सदियों से चली आ रही है और कभी भी कोई विवाद नहीं हुआ था। हालांकि पिछले पाँच सालों में स्थिति में बहुत बदलाव आया है। गौ रक्षा के नाम पर  हत्या का यह ऐसा ग्यारहवां मामला सामने आया है। पहले भी नौ मुस्लिमों और दो आदिवासियों को भीड़ द्वारा प्रताड़ित किया जा चुका है जबकि आठ लोगों को हिन्दू कट्टरपंथियों द्वारा बेरहमी से मारा भी गया है। 

इतना ही नहीं दिसंबर 2015 में 50 वर्ष के मोहम्मद अखलाक़ नाम की भीड़ ने मार मारकर हत्या कर दी थी। गौ रक्षकों ने बीफ़ को लेकर अखलाक़ की न सिर्फ हत्या कर दी बल्कि उनके 22 वर्ष के बेटे को भी बुरी तरह ज़ख़्मी कर दिया था। इसी तरह मार्च 2016 में गौ रक्षकों ने पशु व्यापारी मजलूम अंसारी और एक छात्र इम्तिआज़ अली को लतेहार जिले से अगवा कर लिया था। उस वक्त वो पड़ोसी जिले में पशु उत्सव में हिस्सा लेने जा रहे थे। बाद में उन्हें प्रताड़ित करने के बाद पेड़ से लटका दिया गया। फिर दिसंबर 2018 को झारखण्ड न्यायालय ने 8 दोषियों को उम्र कैद की सज़ा सुनाई थी। 

फिलहाल महासभा ने राज्य सरकार से पीड़ितों के प्रति झूठे केस को रद्द करने की माँग की है और एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराधियों को हिरासत में लेने की माँग की है। साथ ही झारखंड गोजातीय पशु वध निषेध अधिनियम, 2005 का हवाला देते हुए कहा कि यह मानव के अपने भोजन को स्वयं चुनने के अधिकार को खत्म करना है। इसके साथ मृतक के परिवार को 15 लाख और अन्य पीड़ितों को 10 लाख देने की अपील की है। 

हालांकि पुलिस और प्रशासन की तरफ से मिले बेबुनियाद बयान के बाद कई सवाल सामने खड़े हो जाते हैं। साथ ही उनके कर्तव्य एवं उच्च जाति के हिन्दुओं के प्रति उनके नरम रुख पर भी एक बड़ा सवाल है। गौ रक्षा के नाम पर केंद्र और राज्य सरकार की हिंदुत्व विचारधारा का सत्य किसी से भी अब छिपा नहीं है। अफ़सोस की बात है कि इन हालत में निर्दोष और असहाय ही हिन्दू कट्टरपंथियों का शिकार हो रहे हैं। इन सबके बाद भी सरकार न सिर्फ चुप्पी साधे हुए है बल्कि ऐसी वारदात को समर्थन भी देती है। ऐसा एक वाकया 2018 में सामने आया था जब सिविल एविएशन के केंद्रीय मंत्री, जयंत सिन्हा, और बीजेपी के सांसद निशिकांत दुबे रामगढ़ और गोड्डा के मॉब लिंचिंग के दोषियों के नाम पर तारीफों के पुल बानते हुए नज़र आये थे। 

अब देखना यह है की वर्तमान में चल रहे लोकसभा चुनाव में इन मुद्दों को उठाया जाएगा या हिंदुत्व के नाम पर यूंही बलि चढ़ती रहेगी।

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