छत्तीसगढ़ में ग्रामीण अंचलों में शिक्षा व्यवस्था एकदम बदहाल है। सरकार न तो स्कूलों के लिए ढंग की इमारतों का इंतजाम करती है और न ही शिक्षकों का।
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यह बदहाली आमतौर पर निर्धन इलाकों में है जहां निजी स्कूल भी नहीं होते और इस कारण बच्चों के पढ़ने का कोई और विकल्प भी नहीं बचता है।
ऐसा ही एक उदाहरण बिलासपुर जिले के भिलाई में नहाड़ी ग्राम पंचायत के गांव मुलेर का है। नया शिक्षा सत्र शुरू हो चुका है, लेकिन अभी तक यही तय नहीं है कि ये स्कूल लगना किस इमारत में है।
वास्तव में प्राथमिक शाला के लिए कोई भवन है ही नहीं। मात्र एक शेड है जहां बीते दिनों में झाड़-झंखाड़ उग आए हैं।
दैनिक भास्कर के मुताबिक बिना इमारत के इस स्कूल में केवल एक शिक्षक है जो पहली से लेकर पांचवीं तक के बच्चों को पढ़ाता है। पिछले साल इस स्कूल में 26 बच्चे थे और ग्रामीणों का कहना है कि करीब 20 और बच्चे स्कूलों में दाखिले के लिए तैयार है, लेकिन स्कूल का ही ठिकाना नहीं है।
स्कूल में नाम के लिए तो मिडडे मील योजना भी चलती है, लेकिन बिना इमारत के कहां भोजन बने, ये समस्या बनी रहती है। फिलहाल रसोइया अपने घर ही भोजन बनाता है और जाहिर है, ये सब काम वो अपनी मनमर्जी से करता है। इस कारण बच्चों को कभी भोजन मिलता भी है और कभी नहीं मिलता।
बदहाली का आलम ये है कि मुलेर में स्कूल भवन बनाने को कोई भी निर्माण एजेंसी तैयार नहीं है। डीईओ डी सोमैया कहते हैं कि इन बच्चों को पोटा केबिन या आश्रम में शिफ्ट किया जाएगा। हालांकि, यही बयान इनका पिछले साल भी था, जिस पर कभी अमल नहीं किया गया।