CBSE ने 10वीं की परीक्षा से हटाया ‘लोकतंत्र और विविधता’ का चेप्टर

Written by sabrang india | Published on: April 17, 2019
नई दिल्ली: सीबीएसई ने फैसला किया है कि कक्षा दसवीं की सोशल साइंस (सामाजिक विज्ञान) किताब के ‘लोकतंत्र और विविधता’ पर आधारित चैप्टर को सत्र 2019-20 के अंतिम परीक्षा में शामिल नहीं किया जाएगा।

हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक लोकतांत्रिक राजनीति किताब-1 के तीन अध्याय ‘लोकतंत्र और विविधता’, ‘लोकप्रिय संघर्ष और आंदोलन’ और ‘लोकतंत्र के लिए चुनौतियां’ का बोर्ड परीक्षा 2020 में मूल्यांकन नहीं किया जाएगा।

सीबीएसई द्वारा जारी एक सर्कुलर में कहा गया है कि स्कूल की आंतरिक परीक्षा में इन अध्यायों का मूल्यांकन किया जाएगा, लेकिन बोर्ड परीक्षा में इसका मूल्यांकन नहीं किया जाएगा।

यह निर्णय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा छात्रों के पाठ्यक्रम का ‘बोझ’ कम करने का हिस्सा माना जा रहा है।

सीबीएसई के अनुसार, लोकतंत्र के लिए चुनौतियां अध्याय में ‘चुनौतियों के बारे में विचार’, ‘राजनीतिक सुधार’ और ‘लोकतंत्र को फिर से परिभाषित करना’ शामिल है। जबकि ‘लोकप्रिय संघर्ष और आंदोलन’ अध्याय लोकतंत्र के विस्तार में लोगों के संघर्ष की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में है।

वहीं, ‘लोकतंत्र और विविधता’ चैप्टर में भारतीय परिस्थितियों के संदर्भ में सामाजिक भेदभाव और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के बीच संबंधों का विश्लेषण है।

एक सरकारी स्कूल के टीचर ने नाम न लिखने के शर्त पर कहा, ‘सीबीएसई ने इन तीन अध्यायों को छात्रों के लिए वैकल्पिक की श्रेणी में रखा था। चूंकि अब इस अध्यायों को स्कूल की आंतरिक परीक्षा में तो शामिल किया जाएगा लेकिन बोर्ड की परीक्षा में इससे सवाल नहीं पूछे जाएंगे, इसलिए अब छात्र इन अध्यायों को गंभीरता के साथ नहीं पढ़ेंगे।’

वहीं नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) के पूर्व चेयरमैन कृष्ण कुमार ने कहा, ‘एनसीईआरटी की किताबों को राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा, 2005 के बाद सावधानीपूर्वक तैयार किया गया था। इसको इस तरीके से तैयार किया गया था कि शिक्षक और छात्रों में लचीलापन बना रहे। इसका उद्देश्य ये था कि छात्र विषय में रुचि पैदा करें, न कि परीक्षा के लिए किताबें पढ़ें’

उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन अब सीबीएसई इन किताबों से उस लचीलेपन को वापस निकाल रही है जिसे छात्रों को विषय में रुचि पैदा करने के लिए लाया गया था। सही तरीके से तो एनसीईआरटी को पाठ्यक्रम पर निर्णय लेना चाहिए, न कि सीबीएसई को।’

 

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