मध्यप्रदेश में छात्रों के साथ खिलवाड़ का बड़ा मामला सामने आया है। पता चला है कि भोपाल के बरकतउल्ला विश्वविद्यालाय के परीक्षार्थियों की कॉपियां सागर में प्रोफेसर नहीं, बल्कि उनके नाम पर दूसरे छात्र जांच रहे थे।
(स्त्रोत : dainiksachexpress.com )
उच्च शिक्षा मंत्री ने इस मामले की पूरी जांच विश्वविद्यालय के लोकपाल को सौंपने का निर्देश दिया है।
पूरे मामले में विश्वविद्यालय के प्रबंधन की मिलीभगत और गड़बड़ी सामने आ रही है। प्रबंधन पूरे मामले की जांच लोकपाल के बजाय दूसरे प्रोफेसरों से ही करवाकर मामले को रफा-दफा करवाना चाहता था।
घोटाला इस तरह से होता था कि जांचने के लिए प्रोफेसरों के पास कॉपियां भेजी जाती थीं जिस पर उन्हें प्रति कॉपी 15 से 20 रुपए का भुगतान होता है। प्रोफेसर अपनी जगह अपने छात्रों को कॉपी जांचने को दे देते हैं और प्रति कॉपी 5 रुपए उन्हें दे देते हैं।
यह भी सामने आया है कि कॉपियां जांचने के काम में कमीशन विश्वविद्यालय में कई स्तरों पर बांटा जाता है और गोपनीय शाखा के डिप्टी रजिस्ट्रार यशवंत पटेल इसमें मुख्य भूमिका निभाते हैं। कोऑर्डिनेटर हर कॉपी पर 2 रुपए से 7 रुपए कमीशन लेता है और फिर उसमें से डिप्टी रजिस्ट्रार तथा अन्य लोगों को उनका हिस्सा उसमें से पहुंचाता है। ऐसे में कोऑर्डिनेटर को सिर्फ ज्यादा से ज्यादा कमीशन से मतलब होता है, फिर चाहे कॉपियां किसी से भी चेक कराई जाएं। सागर में कॉपियां जंचने के मामले में सागर के कोओर्डिनेटर संजीव दुबे की भूमिका भी शामिल लग रही है। इन दोनों को ही हटाने की मांग की जा रही है।
नईदुनिया में छपी खबर के मुताबिक, कॉपियों के मूल्यांकन में लाखों रुपए के कमीशन का खेल है। विश्वविद्यालय में एक साल में करीब 30 लाख कॉपियां जांची जाती हैं, जिन पर करीब 6 करोड़ रुपए सालाना खर्च होता है। इन 6 करोड़ रुपए में से करीब 2 से 3 करोड़ रुपए तक का विश्वविद्यालय में हर स्तर पर कमीशन बंटता है। गोपनीय शाखा के अधिकारिक रूप से प्रभारी रजिस्ट्रार ही होते हैं। गोपनीय शाखा के डिप्टी रजिस्ट्रार ही मूल्यांकन के लिए समन्वयकों का चयन किया जाता है। वर्तमान में यह जिम्मेदारी यशवंत पटेल के पास है, और उन पर ही पूरे घोटाले का मूल सूत्रधार होने का आरोप है।
पूरे मामले में विश्वविद्यालय प्रबंधन सागर के को-ऑर्डिनेटर संजीव दुबे और डिप्टी रजिस्ट्रार यशवंत पटेल को बचाने का प्रयास कर रहा है। मामले के लिए गठित जांच कमेटी में सागर संभाग के अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा विभाग प्रोफेसर रोहित कुमार हैं जो कि संजीव दुबे के करीबी हैं।
बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के प्रोफेसर केएन त्रिपाठी और अटल बिहारी बाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रोफेसर एसके पारे भी संजीव दुबे के करीबी हैं। जांच कमेटी की रिपोर्ट रजिस्ट्रार यूएन शुक्ला को सौंपी जाएगी, जिनकी भूमिका खुद ही इस मामले में शामिल होने का आरोप है।
फिलहाल उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया ने विश्वविद्यालय प्रबंधन से भी जवाब मांगा है कि जब विश्वविद्यालय में लोकपाल है तो वह जांच अन्य प्रोफेसरों से क्यों करवा रहा है।
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उच्च शिक्षा मंत्री ने इस मामले की पूरी जांच विश्वविद्यालय के लोकपाल को सौंपने का निर्देश दिया है।
पूरे मामले में विश्वविद्यालय के प्रबंधन की मिलीभगत और गड़बड़ी सामने आ रही है। प्रबंधन पूरे मामले की जांच लोकपाल के बजाय दूसरे प्रोफेसरों से ही करवाकर मामले को रफा-दफा करवाना चाहता था।
घोटाला इस तरह से होता था कि जांचने के लिए प्रोफेसरों के पास कॉपियां भेजी जाती थीं जिस पर उन्हें प्रति कॉपी 15 से 20 रुपए का भुगतान होता है। प्रोफेसर अपनी जगह अपने छात्रों को कॉपी जांचने को दे देते हैं और प्रति कॉपी 5 रुपए उन्हें दे देते हैं।
यह भी सामने आया है कि कॉपियां जांचने के काम में कमीशन विश्वविद्यालय में कई स्तरों पर बांटा जाता है और गोपनीय शाखा के डिप्टी रजिस्ट्रार यशवंत पटेल इसमें मुख्य भूमिका निभाते हैं। कोऑर्डिनेटर हर कॉपी पर 2 रुपए से 7 रुपए कमीशन लेता है और फिर उसमें से डिप्टी रजिस्ट्रार तथा अन्य लोगों को उनका हिस्सा उसमें से पहुंचाता है। ऐसे में कोऑर्डिनेटर को सिर्फ ज्यादा से ज्यादा कमीशन से मतलब होता है, फिर चाहे कॉपियां किसी से भी चेक कराई जाएं। सागर में कॉपियां जंचने के मामले में सागर के कोओर्डिनेटर संजीव दुबे की भूमिका भी शामिल लग रही है। इन दोनों को ही हटाने की मांग की जा रही है।
नईदुनिया में छपी खबर के मुताबिक, कॉपियों के मूल्यांकन में लाखों रुपए के कमीशन का खेल है। विश्वविद्यालय में एक साल में करीब 30 लाख कॉपियां जांची जाती हैं, जिन पर करीब 6 करोड़ रुपए सालाना खर्च होता है। इन 6 करोड़ रुपए में से करीब 2 से 3 करोड़ रुपए तक का विश्वविद्यालय में हर स्तर पर कमीशन बंटता है। गोपनीय शाखा के अधिकारिक रूप से प्रभारी रजिस्ट्रार ही होते हैं। गोपनीय शाखा के डिप्टी रजिस्ट्रार ही मूल्यांकन के लिए समन्वयकों का चयन किया जाता है। वर्तमान में यह जिम्मेदारी यशवंत पटेल के पास है, और उन पर ही पूरे घोटाले का मूल सूत्रधार होने का आरोप है।
पूरे मामले में विश्वविद्यालय प्रबंधन सागर के को-ऑर्डिनेटर संजीव दुबे और डिप्टी रजिस्ट्रार यशवंत पटेल को बचाने का प्रयास कर रहा है। मामले के लिए गठित जांच कमेटी में सागर संभाग के अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा विभाग प्रोफेसर रोहित कुमार हैं जो कि संजीव दुबे के करीबी हैं।
बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के प्रोफेसर केएन त्रिपाठी और अटल बिहारी बाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रोफेसर एसके पारे भी संजीव दुबे के करीबी हैं। जांच कमेटी की रिपोर्ट रजिस्ट्रार यूएन शुक्ला को सौंपी जाएगी, जिनकी भूमिका खुद ही इस मामले में शामिल होने का आरोप है।
फिलहाल उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया ने विश्वविद्यालय प्रबंधन से भी जवाब मांगा है कि जब विश्वविद्यालय में लोकपाल है तो वह जांच अन्य प्रोफेसरों से क्यों करवा रहा है।