उत्तर प्रदेश चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण पर टिकी बीजेपी की राजनीति

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: December 30, 2021
वर्तमान में देश महामारी और राष्ट्रीय चुनावी राजनीति के दौर से एक साथ गुजर रहा है. साल 2022 में देश के 5 राज्यों में चुनाव होना प्रस्तावित है जिसमें एक बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश भी शामिल है. उत्तर प्रदेश में लगातार कई सालों से बद से बदतर होते हालात, महामारी में राज्य की बेबसी, कमर तोड़ती बेरोजगारी, गंगा में बहती लाशें, महिलाओं के लिए असुरक्षित गली-मोहल्ला, और बढ़ते अपराध से सत्ताधारी योगी सरकार और उनकी राजनीतिक दल बीजेपी पर से जनता अपना भरोसा खो चुकी है. नतीजतन उत्तर प्रदेश राज्य के चुनाव भी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा जा रहा है. 



हालाँकि बीजेपी धार्मिक और साम्प्रदायिक मुद्दों के सहारे राजनीतिक ध्रुवीकरण का लाभ लेकर वोट पाती रही है लेकिन इस बार अलग-अलग स्थानों पर मौका, जगह और माहौल देख कर मुद्दों को तय किया जा रहा है. यह विपक्षी पार्टियों के मजबूत होने का संकेत है या बीजेपी के कमजोर होने का भय, ये तो साफ़ नजर आ रहा है. इस साल चुनावी मुद्दों में कहीं गाय को शामिल किया गया है तो कहीं मथुरा के मंदिर को, कहीं लव जिहाद तो कहीं निषाद समाज को आगे कर जाति हितैषी दिखाने की कोशिश हो रही है. बीजेपी की चिंता यह भी है कि तमाम उकसावों के बाद भी उत्तर प्रदेश के मुसलमान बहकावे में क्यूँ नहीं आ रहे हैं? बाबरी मस्जिद की चोट खाने के बाद मुस्लिम समुदाय जोश से नहीं होश से निर्णय लेने लगे हैं जो बीजेपी के लिए चिंता का सबसे बड़ा कारण बन गया है. 

साल 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए मोदी और शाह की जोड़ी ने उत्तर प्रदेश चुनाव की कमान अपने हाथों में ले ली है. वे अपने सभी चुनावी हथकंडे इस प्रदेश में अपनाने में लगी है. एक तरफ विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के निकटतम सहयोगियों के घरों में चुनाव से ठीक पहले रेड हो रही है ताकि आर्थिक रूप से अन्य राजनीतिक दलों को अपंग बनाया जा सके. तो दूसरी तरफ मोदी शाह की रैलियों में भीड़ इकठ्ठा करने के लिए जिलों के कलक्टर को लगाया जा चुका है. जनता को लुभाने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है. घर-घर मुफ्त राशन मोदी और योगी के फोटो के साथ बांटा जा रहा है. परन्तु ये सारे मुद्दे बीजेपी के लिए बाद में आते हैं या यूँ कहें कि बीजेपी का सबसे बड़ा चुनावी हथियार हमेशा से धार्मिक मुद्दा ही रहा है. अयोध्या में राम मंदिर का सहारा लेकर मोदी सरकार केन्द्रीय सत्ता में पहुँच गयी है. अब भगवान् शिव का सहारा लेकर विधान सभा चुनाव की तैयारी हो रही है इसलिए ही काशी कोरिडोर में मीडिया के माध्यम से शिव दर्शन को अंजाम दिया गया.  

उत्तर प्रदेश में धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश लगातार जारी है. उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बयान को इस सन्दर्भ में समझा जा सकता है. उन्होंने कहा कि, “प्रदेश की बीजेपी सरकार ने लुंगी वालों और जालीदार टोपी पहनने वालों द्वारा किए जाने वाले अपराधों, जिनमें जमीन कब्ज़ा और फिरौती के लिए अपहरण शामिल हैं, से प्रदेश की जनता को मुक्ति दिलाई है”. उन्होंने एक ट्वीट में यह भी कहा है कि अयोध्या और काशी में भव्य मंदिर का निर्माण कार्य जारी है और अब मथुरा की बारी है. कई साम्प्रदायिक संगठनों ने यह धमकी भी दी थी कि वे 6 दिसंबर को मथुरा में ईदगाह पर हिन्दू कर्मकांड करेंगे. मुसलमान समुदाय इनके भड़कावे से परे रह कर इनके मंसूबों पर पानी फेर रहे हैं. 

इतिहास बताता है कि मंदिर-मस्जिद मुद्दों को सबसे पहले चुनावी लाभ के लिए आरएसएस-बीजेपी ने 1984 में उठाया था. इससे पहले अलग-अलग धर्म के राजाओं ने सत्ता पाने और दूसरों की सता को ख़त्म करने के लिए धर्म और धार्मिक स्थलों का सहारा लिया था. अंग्रेज भी भारतीय लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़का कर, फूट डालो और राज करो की नीति से भारत पर शासन करने में कामयाब रहे. लेकिन धर्मनिरपेक्ष आजाद भारत में यह बागडोर आरएसएस बीजेपी ने संभाल रखी है. यह मुद्दा जनता की भावनाओं से जुडा हुआ है जो चुनावी राजनीति में इनके लिए वोट बटोरने का जरिया रहा है. 

धार्मिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश बीजेपी वोट के आखरी दिनों तक करती रहती है. उनकी यह चेष्टा सर्वविदित है कि किसी भी प्रकार से देश में हिन्दू मुस्लिम आन्दोलन खड़ा किया जाए ताकि हिन्दू भावना के साथ खेला जा सके. उत्तर प्रदेश से सटे गुरुग्राम में पार्कों और अन्य खुले स्थलों पर जुमे की नमाज पर पाबन्दी लगायी गयी जो निश्चित रूप से UP चुनाव को ध्यान में रख कर किया गया है. इधर चुनावी सरगर्मी शुरू हुई और उधर नमाज पर रोक लगायी गयी. जुमे की नमाज का मुस्लिम समुदाय में एक खास और अहम स्थान होता है. बीजेपी को यह उम्मीद रही होगी कि मुस्लिम समुदाय में रोष उत्पन्न होगा और वे सड़कों पर निकलेंगे. मुसलमानों के रोष का फायदा हिन्दू भावना को भड़का कर लेने की कोशिश रही होगी. लेकिन ऐसा हो न सका. हरियाणा में क्रिसमस के समय किया गया तोड़फोड़ भी इसी कड़ी का हिस्सा जान पड़ता है. वे किसी भी तरह से उत्तर प्रदेश चुनाव को धार्मिक मुदद्दों पर ले जाना चाहते हैं. 

देश के लगभग सभी वर्ग के लोग आज मोदी-योगी सरकार से त्रस्त हो चुके हैं और अब वे धार्मिक मामलों में न पड़ कर इंसान के आधारभूत सवालों पर बात करना चाहते हैं. जिस पर बात करने से बीजेपी सरकार हमेशा से बचती आई है जिसे जनता समझ रही है. इस प्रदेश में आगे चुनाव क्या रुख लेगा यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन उत्तर पदेश में वर्तमान बीजेपी सरकार के मनोनुकूल धार्मिक ध्रुवीकरण का न होना इनके लिए चिंता का विषय है और जनता और देश के लिए निश्चित तौर पर सुकून और राहत की बात है. 

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