कोरोना महामारी की आड़ में मजदूर विरोधी कानूनों को थोप रहीं भाजपा शासित राज्यों की सरकारें

Written by Sanjay Singhvi | Published on: May 17, 2020
पिछले सप्ताह भर से केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा श्रमिकों के अधिकारों में कटौती करते हुए कई अधिसूचनाएं जारी की जा रही हैं। अबतक 10 राज्यों (उत्तराखंड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों द्वारा) ने फैक्ट्री एक्ट 1948 में संशोधन करते हुए विभिन्न अधिसूचनाएं जारी की हैं। इनमें से अधिकांश अधिसूचनाएं फैक्ट्री एक्ट की धारा 5 के तहत प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए जारी की गई हैं। स्पष्ट रुप  से ऐसा सोच के कारण हुआ है। धारा 5 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग केवल 'सार्वजनिक आपातकाल' की स्थिति में ही किया जा सकता है, जिसे इस अर्थ में परिभाषित किया गया है कि '...एक गंभीर आपातकाल की स्थिति जहां भारत या उसके किसी भी भौगोलिक हिस्से की सुरक्षा को, चाहे युद्ध या बाहरी आक्रमण के कारण या आंतरिक अशांति के कारण, खतरा है।' यह स्पष्ट है कि फैक्ट्री एक्ट (कारखाना अधिनियम) के प्रावधानों से छूट के लिए किए गए इस प्रावधान का प्रयोग केवल उस समय किया जा सकता है जब युद्ध या गृहयुद्ध या इसी की हो। 




महाराष्ट्र और गोवा जैसे कुछ राज्यों ने फैक्ट्री एक्ट की धारा 65 (2) के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग किया है। इस पर संतोष किया जा सकता है क्योंकि यह प्रावधान मौजूद है। यह धारा फैक्ट्री एक्ट के कुछ प्रावधानों में ढील देने की अनुमति देता है, जैसे कि 'काम के एक असाधारण दबाव से निपटने के लिए' काम के घंटे, साप्ताहिक अवकाश, आदि के संबंध में। लेकिन यहां भी, रियायत श्रमिकों की दी जानी है, कारखानों को नहीं। इसके अलावा, यह काम के एक असाधारण दबाव से निपटने के लिए करना होगा। किंतु सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में ऐसी बात नहीं है। 
 
राज्य      घंटे/दिन कुल घंटे/सप्ताह ओवरटाइम घंटे अन्य परिवर्तन
गुजरात 12 72 कोई सीमा नहीं  1.अधिकतम घंटे लगातार काम, फिर 30 मिनट के लिए विश्राम
2 महिला कर्मियों के लिए सुबह 7 बजे से 6 बजे के बीच अनुमति नहीं
3.मौजूदा मजदूरी के अनुपात में भुगतान किया जाना
हिमाचल प्रदेश 12 72 कोई सीमा नहीं 1. अधिकतम 6 घंटे लगातार काम और फिर 30 मिनट का विश्राम
2. 20 जुलाई तक वैध
पंजाब 12 60 75 1. कार्यदिवस का विस्तार 13 घंटे प्रतिदिन से अधिक नहीं होगा (आमतौर पर 10.05 घंटे)
2.अतिरिक्त घंटे का वेतन ओवरटाइम के समान, आम वेतन का दोगुना होगा
राजस्थान 12 72 कोई सीमा नहीं 1. प्रतिदिन अतिरिक्त 4 घंटे काम करने के लिए ओवरटाइम के समान भुगतान किया जाएगा, अधिकतम 24 घंटे/सप्ताह की सीमा, 3 महीने के लि वैध
मध्यप्रदेश 12 72 कोई सीमा नहीं फैक्ट्री एक्ट 1948 की धारा 59 के अनुसार ओवरटाइम का भुगतान, 3 महीने के लिए वैध
हरियाणा 12 72 कोई सीमा नहीं फैक्ट्री एक्ट 1948 की धारा 59 के अनुसार ओवरटाइम का भुगतान, 30 जून 2020 तक वैध
उत्तराखंड 11 18   1.एक दिन में मजदूरों के अलग-अलग समूहों के साथ 11-11 घंटे की पाली
2. दो पालियों के बीच एक घंटे का अवकाश
3. नियम के अनुसार 3 घंटे के ओवरटाइम का भुगतान
4.यह केवल उन फैक्ट्रियों में लागू होगा जहां कोरोना के मद्देनजर प्रशासन ने अनुमति दी है.
5. तीन महीने के लिए वैध
महाराष्ट्र 12 60 115 1.एक दिन में मजदूरों के अलग-अलग समूहों के साथ 11-11 घंटे की पाली
2. अतिरिक्त घंटे के लिए ओवरटाइम के लिए आमतौर पर भुगतान किए जाने वाले दर से दोगुना

3. कोई भी कार्यदिवस अवकाश सहित 13 घंटे से अधिक नहीं
4. लगातार सात दिनों तक ओवरटाइम नहीं
5. 30 जून तक वैध


उपरोक्त तालिका में दिए गए कई कथन स्वयं अधिसूचनााओं में उल्लिखित नहीं हैं, बल्कि कानून से निकाले गए हैं। उदाहरण के लिए पंजाब में केवल धारा 54 (दैनिक ड्यूटी की सीमा 12 घंटे तक बढ़ाना) और धारा 56 (दैनिक प्रसार 13 घंटे तक बढ़ाना) के प्रावधानों से छूट दी है। इससे हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि ओवरटाइम 60 घंटे की साप्ताहिक सीमा को अपरिवर्तित रखा गया है। जैसा कि कोई देख सकता है कि अधिसूचनाएं मनमानी और भिन्न-भिन्न हैं। केवल पंजाब की अधिसूचना धारा 65 (2) द्वारा निर्धारित  दायरे के भीतर है। महाराष्ट्र की अधिसूचना भी मोटे तौर पर इन सीमाओं का पालन करती है, लेकिन राज्य द्वारा 2016 में कारखानों अधिनियम में किए गए संशोधन पर आधारित है, जिसे विभिन्न मजदूर यूनियनों ने चुनौती दे रखी है। 


इसके अलावा, उत्तर प्रदेश सरकार ने एक अध्यादेश लाकर सभी नियोक्ताओं को सभी श्रम कानूनों से तीन साल के लिए छूट प्रदान कर दी है। कुछ कानून जो बनाये रखे गए हैं,  वे इस प्रकार हैं- मजदूरी भुगतान अधिनियम की धारा 5 (मजदूरी का किस समय भुगतान किया जाना है), श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम, बंधुआ श्रम अधिनियम, भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम (क्योंकि सरकार इस अधिनियम के तहत सभी बिल्डरों से भारी उपकरर वसूल करती  है) तथा महिलाओं और बच्चों से संबधित कानून।


सबसे पहली बात तो यह कि इस तरह की अधिसूचना स्पष्ट रूप से असंवैधानिक है। संविधान में कुछ विषय केंद्र सरकार के अधीन हैं, कुछ राज्य सरकार के और कुछ विषयों केंद्र और दोनों की सीमावर्ती सूची में रखा गया है। संविधान कहता है कि 'श्रमिक कल्याण' समवर्ती सूची का एक विषय है। यानि कि यदि केंद्र और राज्य दोनों एक ही विषय पर कानून बनाते हैं तो केंद्रीय कानून तब तक लागू होगा जब तक कि राज्य के कानून को राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिल जाती है। इसके बाद ही उस राज्य में केंद्रीय कानून की जगह राज्य कानून लागू होगा। अध्यादेश में यह नहीं दिखाया गया है कि राष्ट्रपति की मंजूरी प्राप्त हो गई है। 


इसके अलावा ब इस अध्यादेश को पढ़ते हैं तो स्पष्ट हो जाता है कि यह दो पव्वा गटकने के बाद बनाया गया है। यह कहने का क्या मतलब है कि सभी श्रम कानूनों को तीन साल के लिए निलंबित कर दिया गया है? ऐसा है तो राज्य के ईएसआई अस्पतालों का क्या होगा? क्या वे बंद कर दिए जाएंगे? ईएसआई अस्पतालों में डॉक्टर, नर्स और अन्य श्रमिकों के वेतन का भुगतान कौन करेगा? मैनेजमेंट को तीन साल तक कोई अंशदान नहीं देना होगा। क्या पीने के पानी उपलब्ध करने और मूत्रालयों की व्यवस्था करने के लिए कोई कानून होगा? उस फैक्ट्री एक्ट को तो निलंबित कर दिया गया है जो  इन सबका प्रावधान करता है। मेरे पीएफ (भविष्य निधि) का क्या होगा जो पहले से ही जमा है? उस पर किस दर से ब्याज दिया जाएगा? यह केवल अधिनियम के तहत तय किया जा सकता है। यदि अधिनियम को निलंबित किया जाता है तो ऐसी दरें कैसे तय की जा सकती हैं? क्या कर्मचारियों को हड़ताल पर जाने के लिए 14 दिन की नोटिस देने की जरुरत नहीं हगी? देर से आने वालों का क्या होगा? समय और दंड ये सभी स्थायी आदेश अधिनियम के तहत तय किए गए हैं जिसे भी निलंबित किया गया है। लेबर कोर्ट और औद्योगिक न्यायालयों के न्यायधीशों और कर्मचारियों का क्या होगा? क्या उन्हें तीन साल तक छुट्टी पर भेज दिया जाएगा? अगर वे पुराने मामलों की सुनवाई जारी रखते हैं, तो उन मामलों में दिए गए फैसलों का क्या होगा? क्योंकि औद्योगिक न्यायाधिकरणों के फैसलों को केवल औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत ही लागू किया जा सकता है, जो कि निलंबित हैं! यह स्पष्ट है कि इन सब चीजों के बारे में किसी ने भी नहीं सोचा है। 

मध्यप्रदेश सरकार इससे थोड़ा अलग दृष्टिकोण लेकर आई है, लेकिन यह भी लगभग उतना ही मूर्खता पूर्ण है। मध्यप्रदेश सरकार ने कथित रुप से औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 36 बी के तहत अधिसूचना जारी की है, जिसमें राज्य के ऐसे उद्योंगों  को औद्योगिक विवाद अधिनियम के प्रावधानों से छूट दी गई है, सिवाय अध्याय पांच ए के प्रवाधानों तथा धारा 25 एन, 25ओ, 25 पी, 25 क्यू और 25आर को छोड़कर। अधिसूचना के अनुसरा, इस तरह की छूट के लिए शर्त यह है कि ऐसे उद्योगों द्वारा उनके द्वारा नियोजित श्रमिकों के औद्योगिक विवादों की जांच और निपटारे के लिए पर्याप्त प्रावधान किया गया है। सबसे  पहले तो धारा 36 बी केवल उन प्रतिष्ठानों या उपक्रमों को छूट प्रदान करने की शक्ति देती है जो उस सरकार द्वारा संचालित हैं। दूसरा, ऐसी छूट केवल तब ही दी जानी चाहिए जब सरकार संतुष्ट हो कि इस तरह के प्रतिष्ठान में औद्योगिक विवादों की जांच और निपटान के लिए पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं। इस शर्त पर ऐसी पहले नहीं नहीं दी जा सकती है कि ऐसी तंत्र के को बाद में तैयार किया जाएगा। तीसरा, इस अधिसूचना का फिर से कोई तुक नहीं है। धारा 25पी केवल उन प्रतिष्ठानों पर लागू होता है जो 1976 के पहले बंद हो गए हैं। इसे जारी रखा गया है। दूसरी ओर , किसी हड़ताल या तालांबदी को गैरकानूनी घोषित करने का प्रवाधान नहीं रह जाएगा।  गैरकानूनी हड़ताल और तालाबंदी के लिए आर्थिक सहायता पर रोक लगाने वाले प्रावधान को भी निलंबित कर दिया गया है इसका मतलब है कि कोई भी जब भी चाहे, वह हड़ताल पर जा सकता है या तालाबंदी कर सकता है। कोई समझौता वार्ता नहीं होगी और किसी भी श्रम न्यायालय या औद्योगिक ट्राइबुनल में किसी भी मामले का कोई रिफरेंस नहीं होगा। यदि मैनेजमेंट पर्याप्त मशीनरी स्थापित नहीं करता है तो क्या किया जाएगा, इसके लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। यह केवल अराजकता, खुली सड़क लड़ाई और हत्याओं की ओर ले जाएगा। किसी प्रकार का समझौता होने पर उसे लागू करने वाली पूरी मशीनरी मौजूद नहीं होगी। 

यहां भी श्रम अधिकारियों, श्रम आयुक्तों, श्रम न्यायालयों और औद्योगिक न्यायाधिकरणों का क्या होगा? चूंकि जिन कानूनों ने उन्हें निर्मित किया है वे ही निलंबित हैं, तो क्या वे कार्य करना जारी रख सकते हैं? क्या सेवा शर्तों में किसी भी परिवर्तन को लागू करने के लिए कोई नोटिस नहीं दिया जाएगा? मौजूदा फैसलों और समझौतों का क्या होगा? धारा 18के तहत ये बाध्यकारी हैं लेकिन धारा के प्रावधान अब लागू नहीं होंगे। 

इसके अलावा, ऐसे उद्योगों जो (औद्योगिक विवाद अधिनियम के बजाय) मध्यप्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम (एमपीआईआर एक्ट) के तहत थे, उन्हें एमपीआईआर अधिनियम से हटा दिया गया है। इसका मतलब यह है कि अब सभी उद्योग संशोधित आईडी अधिनियम के तहत आ गए हैं जैसा कि ऊपर बताया गया है। मध्यप्रदेश सरकार इससे भी आगे तक गई है और फैक्ट्री एक्ट की धारा 5 के तहत कार्रवाई करने का दिखावा करते हुए (जैसा कि हमने ऊपर बताया कि धारा 5 केवल युद्ध, गृहयुद्ध या इस तरह परिस्थितियों के लिए है)उसने सभी फैक्ट्रियों को फैक्ट्री एक्ट की सभी धाराओं से छूट दे दी है, सिवाय धारा 6 से 8 तक (जो फैक्ट्रियों को पंजीकृत करने, इंस्पेक्टरों को नियुक्त करने से संबंधित है), धारा 21 से 41 एच (जो सुरक्षा के बारे में है) और काम के समय से संबदित कुछ अन्य प्रावधान।  यह भी बिना कोई दिमाग लगाए किया गया है। इसका मतलब है कि किसी पेयजल या मूत्रालय की आवश्यकता नहीं है। 

इस लेख को लिखने के दौरन हमारे संज्ञान में एक नई अधिसूचना लाई गई कि गुजरात की अधिसूचना के समान ही उत्तर प्रदेश ने भी फैक्ट्रीज एक्ट के लिए एक अधिसूचना जारी की है। उत्तर प्रदेश का मुख्य अध्यादेश को अभी भी राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार है। ट्रेड यूनियन सेंटर ऑफ इंडिया सहित कई यूनियनों द्वारा इन अधिसूचनाओं को अदालतों में चुनौती दी जाएगी। किंतु आजकल अदालतें जिस तरह से प्रतिक्रिया कर रही हैं, उससे अदालतों से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं बची है। हालांकि मुख्य प्रश्न यह है कि यह पूरे बोझ को मजदूर वर्ग की पीठ पर लादने का एक स्पष्ट प्रयास है। यह जांचने का प्रयास है कि भारत का मजदूर वर्ग कितना मजबूतत है। यह हम पर है कि हम उन्हें अपनी ताकत दिखाएं। हमें इस अवसर का उपयोग भारत के मजदूर वर्ग को एकजुट करने तथा इस खतरे से हर संभव तरीके से लड़ने के लिए एक साथ आने के लिए करना होगा।


कोरोना महामारी के वर्तमान संकट से पहले ही अर्थव्यवस्था में मंदी देखी जा रही थी। तब भी इसके बोझ को मजदूर वर्ग पर डालने की कोशिश थी। यह श्रम कानूनों में संशोधन करके और जीएसटी आदि जैसे उपायों के माध्यम से किया जना था, फिर कोरोना महामारी आई। स्पष्ट है कि सरकार ने बिना किसी सुसंगत योजना के कार्रवाही की। अब कीचड़ पूरी तरह मथ गया है। उद्योग महीनों से बंद पड़े हैं। इस देश के करोड़ों मजदूर और उनके परिवार भूखे मर रहे हैं। लाखों ोलग अपने घरों तक पहुंचने के लिए सैकड़ों और हजारों मील की दूरी तय कर चुके हैं, जबकि वहां भी तबाही और बदहाली का इंतजार कर रही है। मजदूरों की सुरक्षा को कोई ख्याल किए बिना कारखानों को फिर से शुरू किया जा रहा है। देखो, विशाखापट्टनम, नवेली और छत्तीसगढ़ में क्या हुआ है? पूंजीवाद ने दिखाया है कि यह न केवल मजदूरों को बल्कि समस्त मानता को नष्ट कर देगा। आज सभी श्रमिकों के लिए समय है कि वे न केवल श्रमिकों के जीवन की रक्षा के लिए बल्कि मानवता को बचाने के लिए एक साथ आएं। 

(लेखक ट्रेड यूनियन सेंटर ऑफ इंडिया के महासचिव हैं। )

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