वरिष्ठ महिला पत्रकार और समाजसेवी गौरी लंकेश की हत्या के बाद जिस प्रकार अपना विरोध जताया वो देशभक्तों को पच नहीं रहा है। गौरी की हत्या के बाद पूरे देश में बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत अन्य वर्ग के लोगों ने अपना विरोध जताया था और प्रदर्शन किया था। इसी क्रम में एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने भी गौरी लंकेश की हत्या पर सोशल मीडिया में दिए जा रहे गालियों को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी थी। अब सोशल मीडिया में रवीश कुमार के खिलाफ उनके द्वारा दिए गए बयान को लेकर अफवाह फैलाई जा रही है। उन्होंने कहा कि मैंने प्रधानमंत्री को कभी गुंडा नहीं कहा लेकिन सोशल मीडिया में ये अफवाहें फैलाई जा रही है। रवीश कुमार ने कहा मैंने आनलाइन जगत के एक हिस्से को गुंडा और हत्यारा ज़रूर कहा है। इसी अफवाहों को स्पष्ट करते हुए वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने लिखा जो नीचे है-
मैंने प्रधानमंत्री के बारे में ऐसा नहीं कहा।
अफ़वाहों का तंत्र इतना व्यापक हो चुका है कि खंडन का भी मतलब नहीं रह गया है। पैटर्न यह है कि आपकी जो बात सत्ता को चुभ रही हो, उसी के समानांतर एक नई बात की छवि तैयार की जाए जिससे चुभ कर लोग आपसे नाराज़ हों। ज़ाहिर है ऐसा बोला नहीं है वरना वीडियो होता। भाई लोग मेरे नाम से चला रहे होते कि मैंने प्रधानमंत्री को गुंडा बोला है। मैंने ऐसा बोला ही नहीं है। पर उससे किसी को क्या। व्हाट्स अप यूनिवर्सिटी के कबाड़ में ठेले जाओ। सो भाई लोग ठेल रहे हैं।
पैटर्न इसलिए है ताकि पाठक ‘ कुतिया कुत्ते की मौत मर गई’ वाक्य और उसे कहने वाले समाज पर अपनी जायज़ प्रतिक्रिया भूल मुझे लेकर व्यस्त हो जाए। याद है एक बार प्रधानमंत्री ने कहा था कि मीडिया हेडलाइन बनाता है कि बी एम डब्ल्यू कार ने दलित को कुचला। कार को क्या पता कि दलित को कुचला। लोगों को लगा कि सही बात है मगर ये इमेज की मिक्सिंग थी। मैंने इस बारे में कस्बा ( naisadak.org) पर लिखा था। पढ़िएगा। दो अलग अलग घटनाओं की रिपोर्टिंग को मिलाकर एक नया तथ्य गढ़ा गया जो झूठ था।
बी एम डब्ल्यू कार की दुर्घटना की रिपोर्टिंग में कभी दलित लिखा ही नहीं गया। ज़रूर जहाँ दलित को घोड़े पर नहीं चढ़ने दिया गया वहाँ दलित नहीं लिखेंगे तो क्या करेंगे। जाति के कारण वो शिकार हुआ तो जाति लिखेंगे या सिर्फ नाम। इसलिए कि दुनिया को पता न चले ?
इसिलए ऐसे बयान दिए जाते हैं ताकि यह कहने की गुज़ाइश बची रहे कि आप बात को समझ नहीं रहे । ‘मगर मेरा मतलब वो नहीं था’ की आड़ में इमेज के सहारे तर्क गढ़ने की कोशिश की गई। ये एक मनोवैज्ञानिक रणनीति के तहत होता है।
यही कोशिश मेरे नाम से प्रधानमंत्री को गुंडा कहना जोड़कर की जा रही है। पहले किसी ने यू ट्यूब पर मेरे ही भाषण का कैप्शन लगाया और अब व्हाट्स अप पर इसे चलाया जा रहा है। मैंने आनलाइन जगत के एक हिस्से को गुंडा और हत्यारा ज़रूर कहा है। प्रधानमंत्री के लिए कभी ऐसे शब्द का इस्तमाल नहीं किया है। जो भी मुझे बदनाम के करने के लिए ऐसा कर रहा है वह लोगों को प्रधानमंत्री को देखने का एक नज़रिया दे रहा है। उनका अपमान कर रहा है। मैंने इस तरह के काम करने वालों को गुंडा कहा है, अभी भी कह रहा हूँ न कि प्रधानमंत्री को।
प्लीज़ भाई लोग, नेताओं के इतने भी काम मत आओ। समझो तुमसे झूठ फैलवा कर तुम्हारा यूज़ कर रहे हैं। तुम उनके लिए ‘यूज़ एंड थ्रो’ क़लम से ज़्यादा कुछ भी नहीं । जब इस्तमाल के बाद फेंक दिए जाओगे तो वही मिलोगे जहाँ तुम्हारा फैलाया हुआ कचरा जमा होता है। लगता है आई टी सेल से हमला हुआ है।
साभार: मीडिया विजिल
मैंने प्रधानमंत्री के बारे में ऐसा नहीं कहा।
अफ़वाहों का तंत्र इतना व्यापक हो चुका है कि खंडन का भी मतलब नहीं रह गया है। पैटर्न यह है कि आपकी जो बात सत्ता को चुभ रही हो, उसी के समानांतर एक नई बात की छवि तैयार की जाए जिससे चुभ कर लोग आपसे नाराज़ हों। ज़ाहिर है ऐसा बोला नहीं है वरना वीडियो होता। भाई लोग मेरे नाम से चला रहे होते कि मैंने प्रधानमंत्री को गुंडा बोला है। मैंने ऐसा बोला ही नहीं है। पर उससे किसी को क्या। व्हाट्स अप यूनिवर्सिटी के कबाड़ में ठेले जाओ। सो भाई लोग ठेल रहे हैं।
पैटर्न इसलिए है ताकि पाठक ‘ कुतिया कुत्ते की मौत मर गई’ वाक्य और उसे कहने वाले समाज पर अपनी जायज़ प्रतिक्रिया भूल मुझे लेकर व्यस्त हो जाए। याद है एक बार प्रधानमंत्री ने कहा था कि मीडिया हेडलाइन बनाता है कि बी एम डब्ल्यू कार ने दलित को कुचला। कार को क्या पता कि दलित को कुचला। लोगों को लगा कि सही बात है मगर ये इमेज की मिक्सिंग थी। मैंने इस बारे में कस्बा ( naisadak.org) पर लिखा था। पढ़िएगा। दो अलग अलग घटनाओं की रिपोर्टिंग को मिलाकर एक नया तथ्य गढ़ा गया जो झूठ था।
बी एम डब्ल्यू कार की दुर्घटना की रिपोर्टिंग में कभी दलित लिखा ही नहीं गया। ज़रूर जहाँ दलित को घोड़े पर नहीं चढ़ने दिया गया वहाँ दलित नहीं लिखेंगे तो क्या करेंगे। जाति के कारण वो शिकार हुआ तो जाति लिखेंगे या सिर्फ नाम। इसलिए कि दुनिया को पता न चले ?
इसिलए ऐसे बयान दिए जाते हैं ताकि यह कहने की गुज़ाइश बची रहे कि आप बात को समझ नहीं रहे । ‘मगर मेरा मतलब वो नहीं था’ की आड़ में इमेज के सहारे तर्क गढ़ने की कोशिश की गई। ये एक मनोवैज्ञानिक रणनीति के तहत होता है।
यही कोशिश मेरे नाम से प्रधानमंत्री को गुंडा कहना जोड़कर की जा रही है। पहले किसी ने यू ट्यूब पर मेरे ही भाषण का कैप्शन लगाया और अब व्हाट्स अप पर इसे चलाया जा रहा है। मैंने आनलाइन जगत के एक हिस्से को गुंडा और हत्यारा ज़रूर कहा है। प्रधानमंत्री के लिए कभी ऐसे शब्द का इस्तमाल नहीं किया है। जो भी मुझे बदनाम के करने के लिए ऐसा कर रहा है वह लोगों को प्रधानमंत्री को देखने का एक नज़रिया दे रहा है। उनका अपमान कर रहा है। मैंने इस तरह के काम करने वालों को गुंडा कहा है, अभी भी कह रहा हूँ न कि प्रधानमंत्री को।
प्लीज़ भाई लोग, नेताओं के इतने भी काम मत आओ। समझो तुमसे झूठ फैलवा कर तुम्हारा यूज़ कर रहे हैं। तुम उनके लिए ‘यूज़ एंड थ्रो’ क़लम से ज़्यादा कुछ भी नहीं । जब इस्तमाल के बाद फेंक दिए जाओगे तो वही मिलोगे जहाँ तुम्हारा फैलाया हुआ कचरा जमा होता है। लगता है आई टी सेल से हमला हुआ है।
साभार: मीडिया विजिल