बिहार में जातिगत सर्वे से झांकती आर्थिक बदहाली: एक तिहाई से ज्यादा परिवार 200 रुपये रोज या कम में गुजारा कर रहे

Written by Navnish Kumar | Published on: November 8, 2023
बिहार में रहने वाले एक तिहाई से अधिक परिवार 6,000 रुपये (200 रुपये प्रतिदिन) या उससे कम की मासिक आय में गुजारा कर रहे हैं। विधानसभा में पेश जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट से ये जानकारी मिली है। रिपोर्ट के अनुसार, कथित ‘ऊंची’ जातियों में भी गरीबी है, हालांकि पिछड़े वर्गों, दलितों- आदिवासियों में यह प्रतिशत काफी अधिक है। संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी द्वारा पेश रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में लगभग 2.97 करोड़ परिवार रहते हैं, जिनमें से 94 लाख से अधिक (34.13 प्रतिशत) गरीब हैं। 50 लाख से अधिक बिहारवासी आजीविका या बेहतर शिक्षा के अवसरों की तलाश में राज्य से बाहर रह रहे हैं। सरकारी सर्वे में जाति आधारित सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक डाटा मुहैया कराया गया है जो राज्य की आर्थिक बदहाली का हाल बयां कर रहा है।



रिपोर्ट बताती है कि सामान्य श्रेणी में भूमिहार जाति सबसे अधिक गरीब

जातिगत आर्थिक सर्वे रिपोर्ट बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन, मंगलवार को पेश की गई। इससे पहले दो अक्टूबर को जातीय गणना की रिपोर्ट जारी की गई थी। मंगलवार को पेश आंकड़े दिखाते हैं कि बिहार में सामान्य श्रेणी के 25.09 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के 33.16 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के 33.58 प्रतिशत, अनुसूचित जाति (एससी) के 42.93 प्रतिशत तथा अनुसूचित जनजाति (एसटी) के 42.7 प्रतिशत परिवार गरीब हैं। 

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, राज्य में कुल 2.76 करोड़ परिवारों की गणना हुई, जिनमें 94.42 लाख यानि 34.13 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिनकी आमदनी प्रतिमाह छह हजार रुपये या इससे से कम है। राज्य सरकार ने इन्हें गरीबों की श्रेणी में डाला है। वहीं, 29.61 प्रतिशत परिवार की आय छह से दस हजार रुपये के बीच है, जबकि दस से बीस हजार तथा बीस से 50 हजार तक की आय क्रमश: 18.06 तथा 9.83 प्रतिशत परिवारों की है। महज 3.9 प्रतिशत परिवार ही ऐसे हैं, जिनकी मासिक आमदनी 50 हजार रुपये से ज्यादा है। 4.47 फीसद परिवार ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी आय की जानकारी सार्वजनिक नहीं की है।

एक चौथाई से कम आबादी पांचवीं तक शिक्षित

आंकड़ों के अनुसार, बिहार की 22.67 फीसद आबादी ने कक्षा एक से पांच तक की शिक्षा हासिल की है। वहीं, कक्षा छह से आठवीं तक की शिक्षा मात्र 14.33 प्रतिशत आबादी के पास है। इसी तरह वर्ग नौ से 10 तक 14.71 फीसद आबादी, जबकि कक्षा 11 से 12 तक की शिक्षा 9.19 फीसदी लोगों ने ही प्राप्त किया है। राज्य में 32.1 प्रतिशत लोगों ने स्कूल का मुंह ही नहीं देखा है। स्नातक तक की शिक्षा राज्य की महज 7 प्रतिशत आबादी को ही नसीब हो सकी है।

आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार राज्य में कुल साक्षरता दर  79.7 प्रतिशत है। पुरुषों की तुलना मेंं महिलाओं में साक्षरता दर अधिक है। वहीं, बिहार में प्रति 1000 पुरुष पर 953 महिलाएं हैं। प्रदेश की 13.07 करोड़ की कुल जनसंख्या में केवल 1.15 प्रतिशत आबादी ही कंप्यूटर या लैपटॉप का इस्तेमाल इंटरनेट के साथ कर रही है। संख्या के हिसाब से यह आंकड़ा महज 15,08,085 है, अर्थात करीब 98.63 फीसद लोग डिजिटल दुनिया से परिचित ही नहीं हैं। वहीं, बिहार में 36.76 फीसद अर्थात 1,01,72,126 परिवारों के पास ही दो या उससे अधिक कमरों का अपना पक्का मकान है। जबकि, खपरैल या टीन की छत वाले गृहस्वामी 26.54 तथा झोपड़ी वाले 14.09 प्रतिशत हैं, वहीं 0.24 फीसद परिवार आवास विहीन हैं।

राज्य में जातिवार आधार पर गरीबी

देखा जाए तो सामान्य श्रेणी में भूमिहार जाति सबसे अधिक गरीब है। इस जाति के 27.58 प्रतिशत परिवार गरीब हैं। इसके बाद गरीबी में दूसरे नंबर पर ब्राह्मण (25.32 प्रतिशत) तथा तीसरे नंबर पर राजपूत (24.89 फीसद) समाज के परिवार हैं। सबसे अमीर कायस्थ हैं, जिनकी महज 13.83 फीसद आबादी ही गरीब है। मुसलमानों की सामान्य श्रेणी में सबसे ज्यादा शेख समाज के 25.84 प्रतिशत परिवार गरीब हैं। इनके बाद पठान (22.20 प्रतिशत) तथा सैयद (17.61 प्रतिशत) का नंबर आता है। सवर्णों की श्रेणी में हिंदू के चार तथा मुसलमानों की सात जातियां शामिल हैं। प्रदेश में सामान्य वर्ग के परिवारों की संख्या 42,28,282 है जिनमें से एक चौथाई यानी 10,85,913 (25.09 फीसद) परिवार गरीब हैं।

पिछड़ा वर्ग में सबसे ज्यादा गरीब यादव जाति का परिवार है, इनकी संख्या 13,83,962 यानि 35.87 फीसद है. इसके बाद कुशवाहा (कोइरी) परिवार है, जिनकी संख्या 4,06,207 (34.32 प्रतिशत) है। कुर्मी जाति के 29.90 फीसद परिवार गरीब हैं। आंकड़े बता रहे कि अनुसूचित जनजाति वर्ग में 42.93 प्रतिशत परिवार की मासिक आय 10 हजार रुपये तक है। वहीं, 25 फीसद लोगों की आय छह से 10 हजार रुपये के बीच है। 16 फीसद लोगों की आय 10 से 20 हजार रुपये है।

अनुसूचित जाति में 42 फीसदी लोग ऐसे हैं, जिनकी महीने की आय छह हजार तक है। 29 फीसदी की आय छह से 10 हजार तक है। 15 फीसदी की आय 10-20 हजार तक है। पांच फीसदी की आय 20 से 50 हजार तक है और एक फीसदी की आय 50 हजार रुपये से ज्यादा है। इसी तरह अनुसूचित जनजाति वर्ग में 42 फीसदी लोगों की महीने की आय 10 हजार रुपये तक है। 25 फीसदी की आय 6 से 10 हजार रुपये है। 16 फीसदी लोगों की आय 10 से 20 हजार रुपये है। 8 फीसदी की आय 20 से 50 हजार रुपये है। केवल 2.53 फीसदी लोगों की मासिक आय 50 हजार रुपये या अधिक है।

सरकारी नौकरी में जाति

नौकरी की बात करें तो सामान्य वर्ग के छह लाख 41 हजार 281 लोगों को नौकरी मिली है। इस श्रेणी के 3.19 फीसदी लोग नौकरी में हैं। भूमिहार जाति के पास सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी एक लाख 87 हजार 256 यानी 4.99 प्रतिशत है। ब्राह्मण जाति की सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी 3.60 प्रतिशत है। अगर संख्या में देखें तो यह आंकड़ा 1 लाख 72 हजार 259 होता है। इसी तरह राजपूत जाति के एक लाख 71 हजार 933 अर्थात 3.81 प्रतिशत लोग सरकारी नौकरी में हैं।

सबसे अमीर कायस्थ जाति की सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी 6.68 प्रतिशत है। वहीं, शेख जाति के 39 हजार 595 लोग (0.79 फीसद)  तथा पठान जाति के 10 हजार 517 लोग (1.07 फीसद) एवं सैयद जाति के सात हजार 231 लोग (2.42 फीसद) सरकारी नौकरी में हैं। पिछड़ा वर्ग की बात करें तो भाट/ भट की सरकारी नौकरी में सर्वाधिक हिस्सेदारी 4.21 प्रतिशत है। इसके बाद कुर्मी जाति के 3.11 फीसद तथा कुशवाहा जाति के 2.04 प्रतिशत लोग सरकारी सेवा में हैं। जबकि, महज 1.55 फीसद यादव जाति की हिस्सेदारी है। वहीं, अनुसूचित जाति (एससी) में सबसे अधिक 3.14 फीसद हिस्सेदारी धोबी जाति के लोगों की है। प्रदेश में सबसे अधिक 67.54 फीसद आबादी गृहणियों व विद्यार्थियों की है। इसके बाद मजदूर-मिस्त्री की संख्या 16.73 प्रतिशत है। किसान- काश्तकार 7.70 फीसद हैं, जबकि महज 1.57 प्रतिशत आबादी ही सरकारी नौकरी में है।

डीडब्लू की एक रिपोर्ट के अनुसार, अर्थशास्त्री एसके दास कहते हैं, ‘‘बिहार का आर्थिक-सामाजिक आंकड़ा यह बताने को काफी है कि राज्य अभी भी गरीब है। इससे यह भी साबित होता है कि गरीबी उन्मूलन की सरकार की योजनाएं धरातल से अभी भी दूर हैं। हालांकि, बढ़ती जनसंख्या एक बड़ा कारण है। इसके लिए एक व्यापक रणनीति के तहत योजना बनाने की जरूरत है।’

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