बैन लगाना ही है तो चीन के दूसरे सबसे बैंक 'बैंक ऑफ चाइना' पर लगाइए। कुछ फालतू एप्प पर बैन लगाने से क्या हासिल होगा? बैंक ऑफ चाइना को लाइसेंस नेहरू जी या मनमोहन सिंह ने नही दिया है यह 2018 में मोदी जी ने ही दिया है वह भी तब, जब 2018 में एससीओ समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से इसका वादा कर के आए थे।
बैंक ऑफ चाइना ने जुलाई 2016 में सिक्योरिटी क्लीयरेंस के लिए आवेदन किया था। इस बैंक पर आतंकवादी संगठनों की फंडिंग के आरोप थे लेकिन उसके बावजूद भी इसे भारत में व्यापार करने का लाइसेंस दे दिया गया।
यही नही 2019 अगस्त में इसे भारतीय रिजर्व बैंक कानून, 1934 की दूसरी अनुसूची में शामिल कर लिया गया और देश में नियमित बैंक सेवायें देने की अनुमति दे दी गयी। इससे पहले मोदी राज में ही जनवरी 2018 से इंडस्ट्रियल एंड कॉमर्शियल बैंक ऑफ चाइना को भी भारत में बिजनेस करने की अनुमति दे दी गई थी।
हमारे देश के बहुत से अर्थशास्त्री इन बैंको को लाइसेंस देने के खिलाफ थे, आरबीआई के पूर्व डेप्युटी गवर्नर पी. के. चक्रवर्ती ने उस वक्त कहा भी था कि चीन अपनी आक्रामक कारोबारी नीति के लिए जाना जाता है। चीन के पास जो भी रिसोर्स हैं, उसको वह बड़े अग्रेसिव तरीके से इस्तेमाल करता है। रिसोर्स, टेक्नॉलजी और अग्रेसिव रणनीति के मामले में हमारे सरकारी बैंक अभी पीछे हैं। अगर उनका मार्केट शेयर गिरा तो यह देश की इकॉनमी के लिए ठीक नहीं होगा।
मार्केट एक्सपर्ट और पूर्व बैंकर एस. के. लोढ़ा ने अमेरिका का उदाहरण देकर के समझाया था कि इस बैंक को लाइसेंस देना कितना गलत निर्णय है नवभारत टाईम्स में उन्होंने कहा 'अमेरिका ने पहले चीनी कंपनियों और बैंकों को अमेरिका में खुलकर काम करने दिया। इसका परिणाम यह रहा कि अमेरिका में चीन के कारोबारी और प्रॉडक्ट छा गए। इससे अमेरिका की इकॉनमी गड़बड़ा गई। चीन के कारोबारियों के साथ एक खास बात यह है कि वे विदेश में कारोबार करते हैं, पैसा कमाते हैं और इनवेस्टमेंट अपने देश में ज्यादा करते हैं।'
वैसे आपको बता दूं कि बैंक ऑफ चाइना साधारण बैंक नही है। बैंक ऑफ चाइना यानी SBP चीन सरकर द्वारा चलाई जा रही इनवेस्टमेंट कंपनी चाइना सेंट्रल हुईजिन के अधीन काम करता है। यह बैंक 50 देशों में फैला हुआ है, जिनमें से 19 चीन के ‘वन बेल्ट, वन रोड’ योजना के तहत आते हैं ओबीओआर यानी वन बेल्ट वन रोड परियोजना विश्व व्यापार को अपने कब्जे में कर लेने की चीन द्वारा चलाईं जा रही सबसे महत्वाकांक्षी योजना है।
यह योजना चीन की विस्तारवादी नीति का ही प्रतिरूप है इसलिए इस बैंक का लाइसेंस कैंसल करना ही वह कार्य होगा जिससे चीन वास्तविक रूप में प्रभावित होगा क्योंकि उसका व्यापार सीधा प्रभावित होगा यह टिकटोक बैन करने से, या चीनी झालरों के बहिष्कार से कुछ हासिल नही होगा।
बैंक ऑफ चाइना ने जुलाई 2016 में सिक्योरिटी क्लीयरेंस के लिए आवेदन किया था। इस बैंक पर आतंकवादी संगठनों की फंडिंग के आरोप थे लेकिन उसके बावजूद भी इसे भारत में व्यापार करने का लाइसेंस दे दिया गया।
यही नही 2019 अगस्त में इसे भारतीय रिजर्व बैंक कानून, 1934 की दूसरी अनुसूची में शामिल कर लिया गया और देश में नियमित बैंक सेवायें देने की अनुमति दे दी गयी। इससे पहले मोदी राज में ही जनवरी 2018 से इंडस्ट्रियल एंड कॉमर्शियल बैंक ऑफ चाइना को भी भारत में बिजनेस करने की अनुमति दे दी गई थी।
हमारे देश के बहुत से अर्थशास्त्री इन बैंको को लाइसेंस देने के खिलाफ थे, आरबीआई के पूर्व डेप्युटी गवर्नर पी. के. चक्रवर्ती ने उस वक्त कहा भी था कि चीन अपनी आक्रामक कारोबारी नीति के लिए जाना जाता है। चीन के पास जो भी रिसोर्स हैं, उसको वह बड़े अग्रेसिव तरीके से इस्तेमाल करता है। रिसोर्स, टेक्नॉलजी और अग्रेसिव रणनीति के मामले में हमारे सरकारी बैंक अभी पीछे हैं। अगर उनका मार्केट शेयर गिरा तो यह देश की इकॉनमी के लिए ठीक नहीं होगा।
मार्केट एक्सपर्ट और पूर्व बैंकर एस. के. लोढ़ा ने अमेरिका का उदाहरण देकर के समझाया था कि इस बैंक को लाइसेंस देना कितना गलत निर्णय है नवभारत टाईम्स में उन्होंने कहा 'अमेरिका ने पहले चीनी कंपनियों और बैंकों को अमेरिका में खुलकर काम करने दिया। इसका परिणाम यह रहा कि अमेरिका में चीन के कारोबारी और प्रॉडक्ट छा गए। इससे अमेरिका की इकॉनमी गड़बड़ा गई। चीन के कारोबारियों के साथ एक खास बात यह है कि वे विदेश में कारोबार करते हैं, पैसा कमाते हैं और इनवेस्टमेंट अपने देश में ज्यादा करते हैं।'
वैसे आपको बता दूं कि बैंक ऑफ चाइना साधारण बैंक नही है। बैंक ऑफ चाइना यानी SBP चीन सरकर द्वारा चलाई जा रही इनवेस्टमेंट कंपनी चाइना सेंट्रल हुईजिन के अधीन काम करता है। यह बैंक 50 देशों में फैला हुआ है, जिनमें से 19 चीन के ‘वन बेल्ट, वन रोड’ योजना के तहत आते हैं ओबीओआर यानी वन बेल्ट वन रोड परियोजना विश्व व्यापार को अपने कब्जे में कर लेने की चीन द्वारा चलाईं जा रही सबसे महत्वाकांक्षी योजना है।
यह योजना चीन की विस्तारवादी नीति का ही प्रतिरूप है इसलिए इस बैंक का लाइसेंस कैंसल करना ही वह कार्य होगा जिससे चीन वास्तविक रूप में प्रभावित होगा क्योंकि उसका व्यापार सीधा प्रभावित होगा यह टिकटोक बैन करने से, या चीनी झालरों के बहिष्कार से कुछ हासिल नही होगा।