दिल्ली में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाते वक़्त राम लीला मैदान में शपथ ग्रहण समारोह के दौरान अरविन्द केजरीवाल ने महात्मा गांधी का वो प्रिय भजन गाया था जिसमें अल्लाह और ईश्वर दोनों का नाम आता है। उनकी पार्टी को भारी मतों से जिताने में दिल्ली के मुसलमान आगे-आगे थे। बीजेपी से उनको अपने लिए किसी अच्छाई की उम्मीद नहीं थी, काँग्रेस से वो निराश हो चुके थे। आंदोलन से निकली हुई “आम आदमी पार्टी “ में उन्हें अपने लिए उम्मीद का एक नया उजाला नज़र आया था।
वक़्त के साथ केजरीवाल ने अल्लाह से दूरी बना ली और ईश्वर को वो भगवा रंग में देखने लगे। कहा गया कि बीजेपी के हिन्दुत्व को काउन्टर करने की उनके पास यही एक रणनीति है। केजरीवाल और उनसे सहमति रखने वाले उनकी पार्टी के लोग भूल गए कि पहली बार जब उनकी बहुमत की सरकार बनी थी, और उन्हें दूसरी बार से भी ज़्यादा सीटें मिली थीं, उस वक़्त उन्होंने अपने आप को पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष ज़ाहिर किया था। थोक भाव से उन्हें वोट देते वक़्त मुसलमानों ने ये तक नहीं देखा था कि केजरीवाल को जिस आंदोलन से जोड़ा जाता है उसमें शामिल कई लोगों का एक अकेला उद्देश्य था काँग्रेस को हटा कर बीजेपी को स्थापित करना। और ऐसा भी नहीं कि केजरीवाल ये जानते नहीं थे।
आज उन्हें लग रहा है कि विकास का सिक्का जितना चलना था चल चुका है। उन्हें अगर आगे बढ़ना है तो हिन्दुत्व की धारा में शामिल होने के सिवाय उनके सामने कोई विकल्प नहीं है। ये सच है कि उन्होंने दिल्ली में ऐसे अनेक सकारात्मक बदलाव किए जो अभूतपूर्व थे। स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में नाटकीय सुधार हुए, जल वितरण और बिजली के दर कमज़ोर वर्गों के हितों को ध्यान में रख कर तय हुए। सरकारी विभागों में काम करवाना आसान हुआ। असल में इन सुधारों की योजना तभी बन गयी थीं जब “आम आदमी पार्टी ’’ दिल्ली के आम आदमियों के लिए सोचते वक़्त संप्रदाय नहीं देखती थी।
पार्टी ने भगवा सोच अपनाना तब शुरू किया जब वो दिल्ली के चुनाव में तीसरी बार मैदान में उतरी। चुनाव का दिन आते-आते केजरीवाल हनुमान भक्त के रूप में प्रकट हुए। बीजेपी ‘जय श्री राम’ का नारा लगा रही थी और ‘आप’ वाले ‘जय हनुमान’ का उद्घोष कर रहे थे और दिल्ली का अल्पसंख्यक सोच रहा था कि इन दो भक्त मंडलियों की रस्साकशी में मैं कहां हूँ?
‘आम आदमी पार्टी’ के बदलते रूप को उसने ये सोच कर सह लिया कि भगवा का दौर है, सभी बड़ी पार्टियों के नेता अपने-अपने तरीक़े से अपना-अपना भगवा लहरा रहे हैं तो ये मजबूरी केजरिवाल की भी हो सकती है।
हद तब हुई जब केजरिवाल मुसलमानों के लिए कुछ करना तो दूर, दिखावे के तौर पर भी सहानुभूति के दो शब्द बोलने से कतरा गए जब उन्हीं की दिल्ली में उन पर कहर बरपा किया गया। ‘आप’ की बहुमत सरकार का ये दूसरा दौर था जब दिल्ली में सांप्रदायिक दंगा हुआ। बल्कि सच ये है कि करवाया गया। ज़्यादातर मुसलमान ही मरे, उन्हीं के घर जले, मस्जिदें फूंकी गयीं, पुलिस ने मुस्लिम युवकों को डंडे से पीट-पीट कर उनसे ‘जय श्री राम’ बुलवाया, दिल्ली सरकार के अस्पतालों के डाक्टरों ने मुस्लिम पीड़ितों के साथ जो बर्बरता दिखाई उन सारी बातों के साक्ष्य और प्रमाण मौजूद हैं, मगर केजरीवाल खामोश रहे। अगर सोशल ऐक्टिविस्ट और सजग बुद्धिजीवी उनके पीछे न पड़ जाते तो वो दंगे में लुटे-पिटे लोगों को रिफ़्यूजी कैम्प भी मुहैया कराने के सवाल पर खामोश ही रहते।
खामोश ही थे वो उस वक़्त भी जब मुसलमानों की नागरिकता छीनने की साज़िश के विरोध में मुस्लिम औरतें सड़कों पर उतरीं तो उनके विरुद्ध भयानक घृणा चक्र चला। एक बार भी केजरीवाल इतनी हिम्मत नहीं कर पाये कि उनके सामने जा कर उनको आश्वस्त करने के लिए दो शब्द बोलते।
आम मुसलमानों को तो छोड़िए, उनकी अपनी पार्टी के मुस्लिम नेता और कार्यकर्ता सतही आरोपों में पकड़ कर जेल में डाल दिये गये, केजरीवाल के मुंह से चूँ भी नहीं निकली।
केजरीवाल के इस मौन काल में दिल्ली के मुसलमानों के लिए आँसू पोंछने वाली एक बात ये थी कि ‘आम आदमी पार्टी’ के नेताओं ने वो नहीं किया था जो बीजेपी वाले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करते आए हैं। किसी ‘आप’ नेता ने मुसलमानों के वर्तमान और विगत के बारे में झूठ गढ़ कर उनके खिलाफ़बहुसंख्यकों के बीच घृणा-अभियान नहीं चलाया था। उनमें से किसी ने दंगा नहीं भड़कया था। किसी ने उन्हें हमलावरों की संतान नहीं कहा था। कब्रिस्तान और शमशान की तुलना नहीं की थी।
मगर अब वो भी बीते वक़्त की बात हो रही है। मंगोलपुरी में दो गुटों में महज़ कारोबारी प्रतियोगिता की वजह से झगड़ा हुआ। इत्तफाक ही था कि एक गुट एक मुस्लिम परिवार का था और दूसरा हिन्दू परिवार का। कहीं कुछ भी सांप्रदायिक नहीं। बात छुरे-डंडे तक पहुँच गयी। मौजूदा माहौल के मुताबिक किसी ने “जय श्री राम’’ का नारा लगा दिया। उसके बाद ही हिन्दू परिवार का युवक मारा गया।
सांप्रदायिक तत्त्वों ने जो किया और कहा वो तो अलग था, उनसे उम्मीद भी यही थी, चौंकाने वाली बात वो थी जो ‘आम आदमी पार्टी’ के प्रवक्ता राघव चड्ढा ने कही: क्या हिंदुओं के देश में श्री राम का नाम लेना भी अपराध बन जायेगा? जहांगीर पुरी में जब चुन-चुन कर मुसलमानों का घर बुलडोज़ किया जा रहा था तब बीजेपी के नेता उन्हें ‘आप’ द्वारा बसाये गए देश विरोधी घुसपैठिया, बांग्ला देशी और रोहिंगिया बता रहे थे। और इस पर ‘आप’ की प्रतिक्रिया कुछ कम आघात पहुंचाने वाली नहीं थी। प्रवक्ता आतिशी मार्लेना ने ये तो नहीं कहा कि ये मुसलमान देश विरोधी तत्व या घुसपैठिये नहीं हैं, अलबत्ता ये ज़रूर स्पष्ट किया कि इन लोगों को उनकी पार्टी ने नहीं बसाया।
आरएसएस और ‘आम आदमी पार्टी’ के बीच की लकीर साफ-साफ धुँधलाती नज़र आ रही है। केजरीवाल हर तरह से ये साबित कर देने के लिए हताश हैं कि उनकी पार्टी बीजेपी से कम हिंदुओं की दोस्त नहीं है। अपने एक बौद्ध एमएलए राजेन्द्र पाल गौतम को उन्होंने इसलिए बाहर का रास्ता दिखा दिया कि उन्होंने एक बौद्ध धर्म प्रचार सभा में दलितों से बौद्ध धर्म अपनाने के लिए कह दिया था। दिल्ली के बुजुर्गों की तरह अब उन्होंने गुजराती बुजुर्गों से भी चुनाव में सफ़ल होने के बाद अयोध्या की मुफ़्त तीर्थ यात्रा कराने का वादा कर लिया है। सोमनाथ मंदिर समेत गुजरात के अनेक मंदिरों के दर्शन, अनुष्ठान सहित वो एक समर्पित भक्त के रूप में कर चुके हैं।
वो ये भूल चुके हैं कि गुजरात में मुसलमान भी रहते हैं, ठीक जिस तरह उनकी नज़र में दिल्ली के मुसलमान गौण हो गए हैं। उन्हें शायद लगता है कि काँग्रेस से निराश और बीजेपी से भयभीत मुसलमान अगर उनके पास नहीं आएंगे तो फिर कहां जाएंगे। इस सारे मामले में केजरीवाल एक बड़ी अहम सच्चाई भूल रहे हैं। वो ये कि असली भगवा की मौजूदगी में नकली भगवा कितने हिंदुओं को आकर्षित कर पाएगा !
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वक़्त के साथ केजरीवाल ने अल्लाह से दूरी बना ली और ईश्वर को वो भगवा रंग में देखने लगे। कहा गया कि बीजेपी के हिन्दुत्व को काउन्टर करने की उनके पास यही एक रणनीति है। केजरीवाल और उनसे सहमति रखने वाले उनकी पार्टी के लोग भूल गए कि पहली बार जब उनकी बहुमत की सरकार बनी थी, और उन्हें दूसरी बार से भी ज़्यादा सीटें मिली थीं, उस वक़्त उन्होंने अपने आप को पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष ज़ाहिर किया था। थोक भाव से उन्हें वोट देते वक़्त मुसलमानों ने ये तक नहीं देखा था कि केजरीवाल को जिस आंदोलन से जोड़ा जाता है उसमें शामिल कई लोगों का एक अकेला उद्देश्य था काँग्रेस को हटा कर बीजेपी को स्थापित करना। और ऐसा भी नहीं कि केजरीवाल ये जानते नहीं थे।
आज उन्हें लग रहा है कि विकास का सिक्का जितना चलना था चल चुका है। उन्हें अगर आगे बढ़ना है तो हिन्दुत्व की धारा में शामिल होने के सिवाय उनके सामने कोई विकल्प नहीं है। ये सच है कि उन्होंने दिल्ली में ऐसे अनेक सकारात्मक बदलाव किए जो अभूतपूर्व थे। स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में नाटकीय सुधार हुए, जल वितरण और बिजली के दर कमज़ोर वर्गों के हितों को ध्यान में रख कर तय हुए। सरकारी विभागों में काम करवाना आसान हुआ। असल में इन सुधारों की योजना तभी बन गयी थीं जब “आम आदमी पार्टी ’’ दिल्ली के आम आदमियों के लिए सोचते वक़्त संप्रदाय नहीं देखती थी।
पार्टी ने भगवा सोच अपनाना तब शुरू किया जब वो दिल्ली के चुनाव में तीसरी बार मैदान में उतरी। चुनाव का दिन आते-आते केजरीवाल हनुमान भक्त के रूप में प्रकट हुए। बीजेपी ‘जय श्री राम’ का नारा लगा रही थी और ‘आप’ वाले ‘जय हनुमान’ का उद्घोष कर रहे थे और दिल्ली का अल्पसंख्यक सोच रहा था कि इन दो भक्त मंडलियों की रस्साकशी में मैं कहां हूँ?
‘आम आदमी पार्टी’ के बदलते रूप को उसने ये सोच कर सह लिया कि भगवा का दौर है, सभी बड़ी पार्टियों के नेता अपने-अपने तरीक़े से अपना-अपना भगवा लहरा रहे हैं तो ये मजबूरी केजरिवाल की भी हो सकती है।
हद तब हुई जब केजरिवाल मुसलमानों के लिए कुछ करना तो दूर, दिखावे के तौर पर भी सहानुभूति के दो शब्द बोलने से कतरा गए जब उन्हीं की दिल्ली में उन पर कहर बरपा किया गया। ‘आप’ की बहुमत सरकार का ये दूसरा दौर था जब दिल्ली में सांप्रदायिक दंगा हुआ। बल्कि सच ये है कि करवाया गया। ज़्यादातर मुसलमान ही मरे, उन्हीं के घर जले, मस्जिदें फूंकी गयीं, पुलिस ने मुस्लिम युवकों को डंडे से पीट-पीट कर उनसे ‘जय श्री राम’ बुलवाया, दिल्ली सरकार के अस्पतालों के डाक्टरों ने मुस्लिम पीड़ितों के साथ जो बर्बरता दिखाई उन सारी बातों के साक्ष्य और प्रमाण मौजूद हैं, मगर केजरीवाल खामोश रहे। अगर सोशल ऐक्टिविस्ट और सजग बुद्धिजीवी उनके पीछे न पड़ जाते तो वो दंगे में लुटे-पिटे लोगों को रिफ़्यूजी कैम्प भी मुहैया कराने के सवाल पर खामोश ही रहते।
खामोश ही थे वो उस वक़्त भी जब मुसलमानों की नागरिकता छीनने की साज़िश के विरोध में मुस्लिम औरतें सड़कों पर उतरीं तो उनके विरुद्ध भयानक घृणा चक्र चला। एक बार भी केजरीवाल इतनी हिम्मत नहीं कर पाये कि उनके सामने जा कर उनको आश्वस्त करने के लिए दो शब्द बोलते।
आम मुसलमानों को तो छोड़िए, उनकी अपनी पार्टी के मुस्लिम नेता और कार्यकर्ता सतही आरोपों में पकड़ कर जेल में डाल दिये गये, केजरीवाल के मुंह से चूँ भी नहीं निकली।
केजरीवाल के इस मौन काल में दिल्ली के मुसलमानों के लिए आँसू पोंछने वाली एक बात ये थी कि ‘आम आदमी पार्टी’ के नेताओं ने वो नहीं किया था जो बीजेपी वाले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करते आए हैं। किसी ‘आप’ नेता ने मुसलमानों के वर्तमान और विगत के बारे में झूठ गढ़ कर उनके खिलाफ़बहुसंख्यकों के बीच घृणा-अभियान नहीं चलाया था। उनमें से किसी ने दंगा नहीं भड़कया था। किसी ने उन्हें हमलावरों की संतान नहीं कहा था। कब्रिस्तान और शमशान की तुलना नहीं की थी।
मगर अब वो भी बीते वक़्त की बात हो रही है। मंगोलपुरी में दो गुटों में महज़ कारोबारी प्रतियोगिता की वजह से झगड़ा हुआ। इत्तफाक ही था कि एक गुट एक मुस्लिम परिवार का था और दूसरा हिन्दू परिवार का। कहीं कुछ भी सांप्रदायिक नहीं। बात छुरे-डंडे तक पहुँच गयी। मौजूदा माहौल के मुताबिक किसी ने “जय श्री राम’’ का नारा लगा दिया। उसके बाद ही हिन्दू परिवार का युवक मारा गया।
सांप्रदायिक तत्त्वों ने जो किया और कहा वो तो अलग था, उनसे उम्मीद भी यही थी, चौंकाने वाली बात वो थी जो ‘आम आदमी पार्टी’ के प्रवक्ता राघव चड्ढा ने कही: क्या हिंदुओं के देश में श्री राम का नाम लेना भी अपराध बन जायेगा? जहांगीर पुरी में जब चुन-चुन कर मुसलमानों का घर बुलडोज़ किया जा रहा था तब बीजेपी के नेता उन्हें ‘आप’ द्वारा बसाये गए देश विरोधी घुसपैठिया, बांग्ला देशी और रोहिंगिया बता रहे थे। और इस पर ‘आप’ की प्रतिक्रिया कुछ कम आघात पहुंचाने वाली नहीं थी। प्रवक्ता आतिशी मार्लेना ने ये तो नहीं कहा कि ये मुसलमान देश विरोधी तत्व या घुसपैठिये नहीं हैं, अलबत्ता ये ज़रूर स्पष्ट किया कि इन लोगों को उनकी पार्टी ने नहीं बसाया।
आरएसएस और ‘आम आदमी पार्टी’ के बीच की लकीर साफ-साफ धुँधलाती नज़र आ रही है। केजरीवाल हर तरह से ये साबित कर देने के लिए हताश हैं कि उनकी पार्टी बीजेपी से कम हिंदुओं की दोस्त नहीं है। अपने एक बौद्ध एमएलए राजेन्द्र पाल गौतम को उन्होंने इसलिए बाहर का रास्ता दिखा दिया कि उन्होंने एक बौद्ध धर्म प्रचार सभा में दलितों से बौद्ध धर्म अपनाने के लिए कह दिया था। दिल्ली के बुजुर्गों की तरह अब उन्होंने गुजराती बुजुर्गों से भी चुनाव में सफ़ल होने के बाद अयोध्या की मुफ़्त तीर्थ यात्रा कराने का वादा कर लिया है। सोमनाथ मंदिर समेत गुजरात के अनेक मंदिरों के दर्शन, अनुष्ठान सहित वो एक समर्पित भक्त के रूप में कर चुके हैं।
वो ये भूल चुके हैं कि गुजरात में मुसलमान भी रहते हैं, ठीक जिस तरह उनकी नज़र में दिल्ली के मुसलमान गौण हो गए हैं। उन्हें शायद लगता है कि काँग्रेस से निराश और बीजेपी से भयभीत मुसलमान अगर उनके पास नहीं आएंगे तो फिर कहां जाएंगे। इस सारे मामले में केजरीवाल एक बड़ी अहम सच्चाई भूल रहे हैं। वो ये कि असली भगवा की मौजूदगी में नकली भगवा कितने हिंदुओं को आकर्षित कर पाएगा !
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