आठवें-नवें पायदान पर सिमटे रहने वाला आईबीएन7 अचानक नंबर एक हो गया है। न चौंकिये और न हँसिये। चैनल के बड़े-बड़े सूरमा इस वक़्त यही प्रचारित करने में जुटे हैं। हाँलाकि हर बार नंबर एक होने का दावा ठोंकते हुए, वह यह बताना ज़रूरी नहीं समझते कि वे 2 सितंबर की रात नौ बजे हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इंटरव्यू के प्रसारण की बात कर रहे हैं। यानी सिर्फ़ एक घंटे की।
जो भी हो, नंबरगेम में आगे बढ़ने के लिए तरहते आईबीएन7 के लिए यह अपनी पीठ ठोंकने का मौक़ा तो है ही। दो साल पहले जब डिप्टी मैनेजिंग एडिटर बनाकर सुमित अवस्थी को चैनल की कमान दी गई थी तो इसकी रेटिंग 7% के आस-पास हुआ करती थी। साथ में 'डंके की चोट पर' कहने की थोड़ी साख भी थी, लेकिन सुमित के ''कुशल'' नेतृत्व में यह चैनल अब 4.50-5.00 फीसदी के बीच घूमते हुए आठवें-नवें पायदान पर नज़र आता है। शायद यही वजह है कि चैनल मैनेजमेंट ने किशोर आजवानी और प्रबल प्रताप सिंह को लाकर हालात बदलने की उम्मीद लगाई है।
ऐसे में नंबर 1 का जुमले ने कैसी झुरझुरी पैदा की होगी, इसका अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है। लेकिन चैनल हेड से 'इनपुट हेड'' बना दिये गए सुमित अवस्थी भूल जाते हैं कि बाक़ी चैनलों को पीछे छोड़ नंबर1 होने को लेकर किये जा रहे उनके ट्वीट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं। इस इंटरव्यू के लिए चैनल ने जमकर माहौल बनाया था, लेकिन पता चला कि केवल 17.2 फ़ीसदी दर्शकों ने ही इसे देखने में रुचि दिखाई। बाक़ी 82.8 फ़ीसदी दूसरे न्यूज़ चैनलों की ख़बरें देखते रहे। यानी जब-जब आईबीएन7 ख़ुद को नंबर एक बतायेगा, मोदी जी की लोकप्रियता का ग्राफ़ भी गिरा नज़र आयेगा।
यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है इंटरव्यू लेने वाले नेटवर्क 18 के ग्रुप एडिटर राहुल जोशी ने मोदी के सामने ही उनकी तारीफ़ों के कसीदे पढ़ते हुए यहाँ तक कहा था कि चैनलों को टीआरपी की ज़रूरत होती है तो वे मोदी जी की रैली चले जाते हैं। बाद में चापलूसी का चरम उदाहरण दिये गये इस इंटरव्यू की समीक्षा आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
ऐसा नहीं कि ''फर्स्ट पास्ट द पोस्ट'' के लिहाज़ से इसमें तकनीकी रूप से कुछ ग़लत है। कोई भी चैनल जो नंबर एक होता है, उसे देखने वालों से ज़्यादा न देखने वालों की तादाद होती है। कोई भी 50 फ़ीसदी का आँकड़ा पार करके नंबर एक नहीं होता। यह पदवी 16-17 फ़ीसदी दर्शकों को खींचने से ही मिल जाती है। लेकिन यहाँ बात प्रधानमंत्री की उस लोकप्रियता की है जो आईबीएन7 के मुताब़िक दिन दूनी रात चौगुनी की दर से बढ़ रही है। भारत ही नहीं विश्व में मोदी जी का डंका बज रहा है। ऐसे में अगर मोदी जी के इंटरव्यू को 31 फ़ीसदी दर्शक भी नहीं मिले (बीजेपी को लोकसभा चुनाव में 31 फ़ीसदी वोट मिले थे) तो फिर माना यही जाएगा कि ग्राफ़ बढ़ा नहीं बल्कि गिरा है।
अपनी पीठ ठोंकने के चक्कर में अंबानी जी का चैनल ऐसा करे, बात समझ में नहीं आ रही है। मोदी जी बुरा मान गये तो..! सुना है, वे संपादकों की नौकरी ले लेते हैं।
जो भी हो, नंबरगेम में आगे बढ़ने के लिए तरहते आईबीएन7 के लिए यह अपनी पीठ ठोंकने का मौक़ा तो है ही। दो साल पहले जब डिप्टी मैनेजिंग एडिटर बनाकर सुमित अवस्थी को चैनल की कमान दी गई थी तो इसकी रेटिंग 7% के आस-पास हुआ करती थी। साथ में 'डंके की चोट पर' कहने की थोड़ी साख भी थी, लेकिन सुमित के ''कुशल'' नेतृत्व में यह चैनल अब 4.50-5.00 फीसदी के बीच घूमते हुए आठवें-नवें पायदान पर नज़र आता है। शायद यही वजह है कि चैनल मैनेजमेंट ने किशोर आजवानी और प्रबल प्रताप सिंह को लाकर हालात बदलने की उम्मीद लगाई है।
ऐसे में नंबर 1 का जुमले ने कैसी झुरझुरी पैदा की होगी, इसका अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है। लेकिन चैनल हेड से 'इनपुट हेड'' बना दिये गए सुमित अवस्थी भूल जाते हैं कि बाक़ी चैनलों को पीछे छोड़ नंबर1 होने को लेकर किये जा रहे उनके ट्वीट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं। इस इंटरव्यू के लिए चैनल ने जमकर माहौल बनाया था, लेकिन पता चला कि केवल 17.2 फ़ीसदी दर्शकों ने ही इसे देखने में रुचि दिखाई। बाक़ी 82.8 फ़ीसदी दूसरे न्यूज़ चैनलों की ख़बरें देखते रहे। यानी जब-जब आईबीएन7 ख़ुद को नंबर एक बतायेगा, मोदी जी की लोकप्रियता का ग्राफ़ भी गिरा नज़र आयेगा।
यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है इंटरव्यू लेने वाले नेटवर्क 18 के ग्रुप एडिटर राहुल जोशी ने मोदी के सामने ही उनकी तारीफ़ों के कसीदे पढ़ते हुए यहाँ तक कहा था कि चैनलों को टीआरपी की ज़रूरत होती है तो वे मोदी जी की रैली चले जाते हैं। बाद में चापलूसी का चरम उदाहरण दिये गये इस इंटरव्यू की समीक्षा आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
ऐसा नहीं कि ''फर्स्ट पास्ट द पोस्ट'' के लिहाज़ से इसमें तकनीकी रूप से कुछ ग़लत है। कोई भी चैनल जो नंबर एक होता है, उसे देखने वालों से ज़्यादा न देखने वालों की तादाद होती है। कोई भी 50 फ़ीसदी का आँकड़ा पार करके नंबर एक नहीं होता। यह पदवी 16-17 फ़ीसदी दर्शकों को खींचने से ही मिल जाती है। लेकिन यहाँ बात प्रधानमंत्री की उस लोकप्रियता की है जो आईबीएन7 के मुताब़िक दिन दूनी रात चौगुनी की दर से बढ़ रही है। भारत ही नहीं विश्व में मोदी जी का डंका बज रहा है। ऐसे में अगर मोदी जी के इंटरव्यू को 31 फ़ीसदी दर्शक भी नहीं मिले (बीजेपी को लोकसभा चुनाव में 31 फ़ीसदी वोट मिले थे) तो फिर माना यही जाएगा कि ग्राफ़ बढ़ा नहीं बल्कि गिरा है।
अपनी पीठ ठोंकने के चक्कर में अंबानी जी का चैनल ऐसा करे, बात समझ में नहीं आ रही है। मोदी जी बुरा मान गये तो..! सुना है, वे संपादकों की नौकरी ले लेते हैं।