रोजगार के मोर्चे पर लड़ा जाएगा 2019 का चुनाव नौकरियां पैदा करने में मोदी निकले फिसड्डी

Written by | Published on: May 19, 2017

Image Courtesy: People's Democracy


सरकार की बागडोर संभालते ही मोदी ने हर साल एक करोड़ रोजगार पैदा करने का वादा किया था। लेकिन यह वादा अब उनके गले की हड्डी बनता जा रहा है। लेबर ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट ने इसकी तसदीक कर दी है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक इकोनॉमी में हर साल सात फीसदी की बढ़ोतरी के बावजूद पिछले साल रोजगार सृजन में महज 1.1 फीसदी का इजाफा हुआ।

अर्थव्यवस्था के गैर कृषि क्षेत्र की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में बेरोजगारी दर सर्वाधिक पांच फीसदी पर पहुंच गई। छिपी हुई बेरोजगारी भी शिखर पर थी। देश के 35 फीसदी कामगारों के पास पर्याप्त रोजगार नहीं था। हाल के तिमाही सर्वे में 10,000 इकाइयों की पड़ताल की गई थी। वार्षिक सर्वे के मुताबिक बेरोजगारों की संख्या 7.8 लाख तक हो गई थी।

2014 के चुनाव अभियान के दौरान रोजगार में इजाफे का वादा मोदी का बड़ा नारा था। यूपीए सरकार के आखिरी दिनों में अर्थव्यवस्था और रोजगार के मोर्चे पर धीमी रफ्तार की वजह से रोजगार बढ़ाने के वादे ने युवाओं को लुभाया था। इसी तरह 2017 के यूपी चुनाव में भी बीजेपी ने रोजगार के लंबे-चौड़े वादे कर युवा वोटरों को आकर्षित किया। लेबर ब्यूरो रिपोर्ट के मुताबिक यूपी में इस वक्त युवा बेरोजगारों की तादाद लगभग एक करोड़ है।

 इस बीच, आईटी सेक्टर के संकट की वजह से मध्यवर्ग के युवाओं को भी रोजगार नहीं मिल रहा है। इस सेक्टर में लगातार छंटनी की खबरों से मिडिल क्लास परेशान हैं। आईटी सेक्टर की 7 बड़ी कंपनियों ने कहा है के वे इस साल 56,000 इंजीनियरों की छंटनी करेंगी।

देश में जिस कदर बेरोजगारी का आलम है उससे साफ है कि 2019 का चुनाव निश्चित तौर पर रोजगार के मोर्चे पर लड़ा जाएगा। हालात नहीं सुधरे तो रोजगार से महरूम नौजवान आबादी मोदी सरकार को चुनाव मैदान में पटखनी देने में देर नहीं करेगी।


रोजगार के मोर्चे पर मोदी फिसड्डी साबित हुए हैं। तिमाही सर्वे के मुताबिक सरकार के आठ सेक्टरों- मैन्यूफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, व्यापार,ट्रांसपोर्ट, आवास, रेस्तरां, आईटीबीपीओ और हेल्थ में सिर्फ 2.3 लाख नौकरियां जोड़ी गई हैं। इनमें से आधी नौकरियां हेल्थ और एजुकेशन सेक्टर में पैदा हुई हैं, जहां कम तनख्वाह मिलती है। सबसे ज्यादा खराब हालात कंस्ट्रक्शन सेक्टर की रही जहां रोजगार की दर सात फीसदी घट गई। जबकि इसमें अन्य सेक्टरों की तुलना में रोजगार की संभावना ज्यादा रहती है।

 तिमाही सर्वे के मुताबिक सिर्फ 61 फीसदी लोगों के पास ही साल भर का रोजगार था। सिर्फ 34 फीसदी लोगों के पास छह से 11 महीने का रोजगार था। देश की कामगार आबादी के 16 करोड़ लोगों के पास पर्याप्त रोजगार नहीं है।
 
लोकसभा चुनाव का ड्राई रन शुरू हो चुका है। मोदी सरकार का आधा से ज्यादा कार्यकाल खत्म हो गया है। देश में जिस तरह बेरोजगारी का आलम है उससे साफ है कि 2019 का चुनाव निश्चित तौर पर रोजगार के मोर्चे पर लड़ा जाएगा। हालात नहीं सुधरे तो रोजगार से महरूम युवा आबादी मोदी सरकार को चुनाव मैदान में पटखनी देने में देर नहीं करेगी। युवा आबादी को नकली राष्ट्रवाद और धार्मिकता पर मोर्चे पर झोंके रखने के पैंतरे काम नहीं आएंगे। 
 
 
 
 

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