मोदी के हथकंडों से सतर्क है विपक्ष सबक सिखाने के लिए साथ आने को तैयार

Written by | Published on: May 18, 2017

विपक्ष के बड़े नेता मोदी सरकार के ‘डर्टी गेम’ से सतर्क हो चुके हैं और उनके बीच एकता की कोशिश दिखने लगी है। राष्ट्रपति चुनाव में साझा उम्मीदवार खड़ा करने के बहाने बड़े राजनीतिक दलों के एक मंच पर आने की रिहर्सल शुरू हो चुकी है।


मोदी सरकार 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष को तोड़ने की कोशिश के अभियान में भले ही सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट जैसी एजेंसियों का सहारा ले रही हो। लेकिन सरकार का यह हमला विपक्षी एकता के लिए संजीवनी साबित हो सकता है।

विपक्ष के बड़े नेता मोदी सरकार के इस ‘डर्टी गेम’ से सतर्क हो चुके हैं और उनके बीच एकता की कोशिश दिखने लगी है। राष्ट्रपति चुनाव में साझा उम्मीदवार खड़ा करने के बहाने बड़े राजनीतिक दलों के एक मंच पर आने की रिहर्सल शुरू हो चुकी है। दो दिन पहले तृणमूल चीफ ममता बनर्जी इस मुद्दे पर सोनिया गांधी से मिल चुकी हैं। उन्होंने 27 तारीख को लालू की ओर से पटना में आयोजित महाजुटान रैली में शामिल होने की हामी भर ली है। ममता दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से भी लगातार बात कर रही हैं।

खुद लालू यादव विपक्षी एकता को धार देने की कोशिश में हैं। लालू ने अपनी कथित बेनामी संपत्तियों के खिलाफ इनकम टैक्स छापों के बाद कहा कि वह मोदी से डरने वाले नहीं हैं और आखिरी दम पर आरएसएस और बीजेपी से लड़ेंगे। वह जल्द ही तमिलनाडु का दौरा करेंगे ताकि दक्षिण की बीजेपी विरोधी सेक्यूलर ताकतों को एक किया जा सके। विपक्षी एकता की कोई कोशिश समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी को एक मंच पर लाए बगैर पूरी नहीं हो सकती। लालू यादव के मुलायम परिवार से घरेलू रिश्ते हैं। वह समाजवादी पार्टी के दोनों धड़ों (मुलायम और अखिलेश) और बीएसपी को एक मंच पर ला सकते हैं। मायावती को बिहार से राज्यसभा में भेजने का ऐलान कर लालू उन्हें भी समाजवादी पार्टी के साथ आने के लिए मना सकते हैं।

ममता, मायावती और लालू यादव 2019 के चुनाव से पहले विपक्षी एकता की जमीन तैयार कर सकते हैं। लालू में करिश्मा बाकी है। वह जनाधार वाले नेता हैं। इन तीनों के सोनिया से अच्छे रिश्ते हैं। उनके बीच का समीकरण विपक्षी एकता को मजबूत कर सकता है। अपने खराब दौर में भी उनकी पार्टी 20 फीसदी तक वोट ला चुकी है। पश्चिम बंगाल में ममता का करिश्मा कम नहीं हुआ है। बीजेपी अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को कमजोर नहीं सकी है। यूपी में मायावती की सीटें इस बार काफी कम हुई हैं। लेकिन उनमें भी दोबारा खुद को मजबूत बनाने की क्षमता है। मोदी सरकार की मशीनरी ममता, मायावती और लालू को जितना ज्यादा घेरने की कोशिश करेगी, उनकी अपील उतनी ही बढ़ती जाएगी। सरकार के हमलों को वे अपने राजनीतिक फायदे में बदल सकते हैं। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह देश को विपक्ष विहीन बनाने का जो सपना देख रहे हैं उसे विपक्षी एकता की इन कोशिशों से करारा झटका लग सकता है। 

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