तमिलनाडु के डिप्टी सीएम उदयनिधि स्टालिन ने इस प्रवेश परीक्षा की तुलना प्राचीन काल की संस्कृत भाषा से की। उन्होंने कहा कि जिस तरह एक समय संस्कृत का ज्ञान गरीब और पिछड़े वर्ग के लोगों को शिक्षा से दूर रखने का काम करता था, उसी तरह आज NEET परीक्षा ग्रामीण और वंचित तबके के मेधावी छात्रों के सपनों पर पानी फेर रही है।
साभार : सोशल मीडिया एक्स
तमिलनाडु में मेडिकल प्रवेश परीक्षा NEET को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। प्रदेश के डिप्टी सीएम उदयनिधि स्टालिन ने इस प्रवेश परीक्षा की तुलना प्राचीन काल की संस्कृत भाषा से की है। उन्होंने कहा कि जिस तरह एक समय संस्कृत का ज्ञान गरीब और पिछड़े वर्ग के लोगों को शिक्षा से दूर रखने का काम करता था, उसी तरह आज NEET परीक्षा ग्रामीण और वंचित तबके के मेधावी छात्रों के सपनों पर पानी फेर रही है।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, एक लिटरेचर फेस्टिवल में स्टालिन ने कहा, "सौ साल पहले डॉक्टर बनने के लिए संस्कृत जानना जरूरी था। यह नियम समाज के एक खास वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए बनाया गया था। आज NEET भी वही भूमिका निभा रहा है।"
इस दौरान उन्होंने तमिल भाषा और संस्कृति की रक्षा का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा कि द्रविड़ आंदोलन की नींव भाषाई अधिकारों पर टिकी है। "हमारे नेताओं ने हमेशा वैज्ञानिक सोच और प्रगतिशील विचारों को बढ़ावा दिया। पेरियार से लेकर अन्नादुरई तक सभी ने तमिल भाषा को ज्ञान और विकास का माध्यम बनाया।"
डिप्टी सीएम ने हिंदी भाषा के मुद्दे पर कहा कि जब-जब हिंदी को थोपने की कोशिश हुई, तमिल समाज ने इसका डटकर विरोध किया। उन्होंने कहा, "1930 और 60 के दशकों में हिंदी को लेकर जो आंदोलन हुए, वे हमारी भाषाई पहचान की रक्षा के लिए थे। आज भी हम अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं।"
उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर सभी पार्टियों को द्विभाषा नीति का समर्थन करना चाहिए। स्टालिन ने आगे कहा, "डीएमके ने हमेशा दो भाषाओं के फॉर्मूले की वकालत की है। यह फॉर्मूला ही तमिलनाडु की भाषाई और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा कर सकता है।"
ज्ञात हो कि तमिलनाडु में साल 2017 से पहले मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश राज्य बोर्ड की 12वीं कक्षा के अंकों के आधार पर होता था। राज्य सरकार का मानना था कि यह व्यवस्था ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए बेहतर थी। लेकिन 2017 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद NEET परीक्षा अनिवार्य कर दी गई।
तमिलनाडु सरकार का कहना है कि NEET परीक्षा के लिए छात्रों को महंगी कोचिंग पर निर्भर होना पड़ता है, जो गरीब और ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए मुश्किल है। राज्य विधानसभा ने NEET से छूट के लिए कानून भी पारित किया, लेकिन यह अभी तक लागू नहीं हो पाया है। डीएमके और एआईडीएमके जैसे राज्य के प्रमुख राजनीतिक दल इस प्रवेश परीक्षा का विरोध करते रहे हैं।
उधर टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के अनुसार, अभिनेता-राजनेता विजय की पार्टी तमिलगा वेत्री कझगम (TVK) ने राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें कहा गया कि NEET के लिए एक स्थायी समाधान तैयार करने के लिए शिक्षा को समवर्ती सूची से राज्य सूची में ले जाना चाहिए।
पार्टी ने अपने प्रस्ताव में कहा कि राज्यों को पूरी आजादी दी जानी चाहिए। इस तरह NEET को तमिलनाडु से हटाया जा सकता है। यह प्रस्ताव उनके पहले भाषण के दौरान मेडिकल प्रवेश परीक्षा की आवश्यकता के खिलाफ बोलने के एक हफ्ते से भी कम समय बाद आया है।
साभार : सोशल मीडिया एक्स
तमिलनाडु में मेडिकल प्रवेश परीक्षा NEET को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। प्रदेश के डिप्टी सीएम उदयनिधि स्टालिन ने इस प्रवेश परीक्षा की तुलना प्राचीन काल की संस्कृत भाषा से की है। उन्होंने कहा कि जिस तरह एक समय संस्कृत का ज्ञान गरीब और पिछड़े वर्ग के लोगों को शिक्षा से दूर रखने का काम करता था, उसी तरह आज NEET परीक्षा ग्रामीण और वंचित तबके के मेधावी छात्रों के सपनों पर पानी फेर रही है।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, एक लिटरेचर फेस्टिवल में स्टालिन ने कहा, "सौ साल पहले डॉक्टर बनने के लिए संस्कृत जानना जरूरी था। यह नियम समाज के एक खास वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए बनाया गया था। आज NEET भी वही भूमिका निभा रहा है।"
इस दौरान उन्होंने तमिल भाषा और संस्कृति की रक्षा का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा कि द्रविड़ आंदोलन की नींव भाषाई अधिकारों पर टिकी है। "हमारे नेताओं ने हमेशा वैज्ञानिक सोच और प्रगतिशील विचारों को बढ़ावा दिया। पेरियार से लेकर अन्नादुरई तक सभी ने तमिल भाषा को ज्ञान और विकास का माध्यम बनाया।"
डिप्टी सीएम ने हिंदी भाषा के मुद्दे पर कहा कि जब-जब हिंदी को थोपने की कोशिश हुई, तमिल समाज ने इसका डटकर विरोध किया। उन्होंने कहा, "1930 और 60 के दशकों में हिंदी को लेकर जो आंदोलन हुए, वे हमारी भाषाई पहचान की रक्षा के लिए थे। आज भी हम अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं।"
उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर सभी पार्टियों को द्विभाषा नीति का समर्थन करना चाहिए। स्टालिन ने आगे कहा, "डीएमके ने हमेशा दो भाषाओं के फॉर्मूले की वकालत की है। यह फॉर्मूला ही तमिलनाडु की भाषाई और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा कर सकता है।"
ज्ञात हो कि तमिलनाडु में साल 2017 से पहले मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश राज्य बोर्ड की 12वीं कक्षा के अंकों के आधार पर होता था। राज्य सरकार का मानना था कि यह व्यवस्था ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए बेहतर थी। लेकिन 2017 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद NEET परीक्षा अनिवार्य कर दी गई।
तमिलनाडु सरकार का कहना है कि NEET परीक्षा के लिए छात्रों को महंगी कोचिंग पर निर्भर होना पड़ता है, जो गरीब और ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए मुश्किल है। राज्य विधानसभा ने NEET से छूट के लिए कानून भी पारित किया, लेकिन यह अभी तक लागू नहीं हो पाया है। डीएमके और एआईडीएमके जैसे राज्य के प्रमुख राजनीतिक दल इस प्रवेश परीक्षा का विरोध करते रहे हैं।
उधर टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के अनुसार, अभिनेता-राजनेता विजय की पार्टी तमिलगा वेत्री कझगम (TVK) ने राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें कहा गया कि NEET के लिए एक स्थायी समाधान तैयार करने के लिए शिक्षा को समवर्ती सूची से राज्य सूची में ले जाना चाहिए।
पार्टी ने अपने प्रस्ताव में कहा कि राज्यों को पूरी आजादी दी जानी चाहिए। इस तरह NEET को तमिलनाडु से हटाया जा सकता है। यह प्रस्ताव उनके पहले भाषण के दौरान मेडिकल प्रवेश परीक्षा की आवश्यकता के खिलाफ बोलने के एक हफ्ते से भी कम समय बाद आया है।