जीएसटी से गारमेंट निर्यात यूनिटें मुसीबत में, मजदूरों पर गिरेगी गाज

Written by सबरंगइंडिया | Published on: June 27, 2017

Image Courtesy: Textile Infomedia 

जीएसटी की मार सबसे सघन रोजगार क्षेत्रों में से एक टेक्सटाइल सेक्टर पर पड़ने जा रही है। जीएसटी लागू होने के बाद गारमेंट निर्यात में 15 से 20 फीसदी की कमी आने की आशंका है। गारमेंट निर्यातकों का कहना है कि जीएसटी से उनकी लागत में बढ़ोतरी होगी, जिसका असर निर्यात पर पड़ सकता है।

गारमेंट निर्यात बड़ी तादाद में रोजगार देने वाला क्षेत्र है। जाहिर है इसमें गिरावट का असर रोजगार पर पड़ेगा। दरअसल जीएसटी में मैन मेड फैब्रिक पर 12 फीसदी का टैक्स लगाया गया है, जबकि जॉब वर्क पर 18 फीसदी। गारमेंट निर्यातक यूनिटें कई छोटे कामों के लिए जॉब वर्क पर निर्भर करती हैं। जीएसटी लागू होने के बाद उनकी लागतें बढ़ जाएंगी। यह उनकी प्रतिस्पर्धा पर सीधे वार करेगी। एक्सपोर्ट यूनिटों का कहना है कि जीएसटी लागू होने के बाद बढ़ी लागतों की वजह से कम से कम तीन महीनों के लिए ऑर्डरों में 20 फीसदी तक गिरावट आ सकती है।

​​​​​​​नोटबंदी से सबसे ज्यादा असर लेदर, जेम्स-ज्वैलरी और टेक्सटाइल जैसे सेक्टरों पर पड़ा है। ये सारे सेक्टर श्रम सघन हैं यानी इनमें रोजगार देने की अपार संभावना होती है। बड़ी तादाद में श्रमिक इनमें काम करते हैं। नोटबंदी से कैश की किल्लत होने पर इन सेक्टरों में बड़े पैमानों पर श्रमिकों की छंटनी हुई थी। अब जीएसटी ने इन सेक्टरों खास कर टेक्सटाइल इंडस्ट्री का बोझ बढ़ा दिया है । सबसे ज्यादा दबाव में गारमेंट एक्सपोर्ट यूनिटें हैं। एक तो यूरोप और अमेरिका के बाजार में मांग में तेजी न आने से यूनिटों को ज्यादा निर्यात ऑर्डर नहीं मिल पा रहे हैं। दूसरी ओर जीएसटी की वजह से टैक्स का बढ़ा बोझ भी इनके लिए मुसीबतें खड़ी कर रहा है। ऑर्डर घटने का सबसे बुरा असर इस सेक्टर के मजदूरों पर पड़ता है। क्योंकि लागत में बढ़ोतरी होते देख यूनिटें मजदूरों को हटाना शुरू कर देती हैं। काम कम होने का असर सीधे इनके रोजगार पर पड़ता है। 1 जुलाई से जब जीएसटी लागू होगा तो टेक्सटाइल सेक्टर एक बार फिर रोजगार के संकट से जूझता दिख सकता है।

 

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