भाजपा-आरएसएस के गठजोड़ से भारत में भेदभावपूर्ण कानूनों को बढ़ावा मिलता है : अमेरिकी आयोग का दावा

Written by sabrang india | Published on: November 21, 2025
धार्मिक स्वतंत्रता पर यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम (USCIRF) की हालिया ब्रीफ के अनुसार, भारत की राजनीतिक व्यवस्था धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भेदभाव को बढ़ावा देती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सत्तारूढ़ भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का गठजोड़ ऐसे ‘भेदभावपूर्ण’ कानूनों को प्रोत्साहन देता है।


साभार : द वायर (इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रबर्ती)

दक्षिण एशियाई देशों में धार्मिक स्वतंत्रता पर USCIRF की नवीनतम ब्रीफ के अनुसार, भारत की राजनीतिक व्यवस्था धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभाव को बढ़ावा देती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भाजपा और आरएसएस—जिसे उसने ‘हिंदू राष्ट्रवादी समूह’ कहा है—के बीच का गठजोड़ ऐसे कानूनों को प्रोत्साहित करता है जिन्हें ‘भेदभावपूर्ण’ माना जाता है।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी कांग्रेस द्वारा समर्थित इस द्विदलीय आयोग ने भारत से जुड़े मुद्दों पर एक अपडेट जारी करते हुए कहा कि राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर लागू कई कानून देशभर में धार्मिक स्वतंत्रता पर गंभीर प्रतिबंध लगाते हैं।

हालांकि, इस वर्ष मार्च में जब USCIRF ने अपनी 2025 की वार्षिक रिपोर्ट जारी की, तो भारत के विदेश मंत्रालय ने उसे खारिज करते हुए कहा कि यह अमेरिकी संस्था लगातार ‘पक्षपाती और राजनीति से प्रेरित आकलन’ प्रस्तुत करती है।

रिपोर्ट ने निष्कर्ष दिया कि “धर्म या आस्था की स्वतंत्रता (FoRB) के लिए कुछ संवैधानिक सुरक्षा मौजूद होने के बावजूद, भारत की राजनीतिक व्यवस्था धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभावपूर्ण माहौल तैयार करती है।”

रिपोर्ट में आगे कहा गया कि भाजपा और आरएसएस के ‘परस्पर संबंध’ के चलते नागरिकता, धर्मांतरण-विरोधी और गोहत्या से संबंधित कई कानून बनाए और लागू किए गए, जिन्हें आयोग ने भेदभावपूर्ण बताया है।

2014 से भाजपा ने ऐसी नीतियां लागू की हैं जिनका उद्देश्य संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के विपरीत भारत को एक स्पष्ट “हिंदू राष्ट्र” के रूप में स्थापित करना प्रतीत होता है।

USCIRF ने कहा कि इन कानूनों का क्रियान्वयन धार्मिक अल्पसंख्यकों को असंगत रूप से निशाना बनाता है और उनके धर्म या आस्था का स्वतंत्र रूप से पालन करने की क्षमता को प्रभावित करता है। यह स्थिति इंटरनेशनल कन्वेंशन ऑन सिविल एंड पोलिटिकल राइट्स (ICCPR) के अनुच्छेद 18 के विपरीत है, जिस पर भारत हस्ताक्षरकर्ता है।

आयोग ने रिपोर्ट में उल्लेख किया कि आरएसएस का मूल उद्देश्य एक ‘हिंदू राष्ट्र’ की स्थापना करना है। रिपोर्ट के अनुसार, संगठन ऐसी धारणा को बढ़ावा देता है कि भारत केवल हिंदुओं का राष्ट्र है, जिसमें मुसलमान, ईसाई, यहूदी, बौद्ध, पारसी और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक शामिल नहीं हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, आरएसएस स्वयं चुनाव नहीं लड़ता, लेकिन भाजपा के लिए अपने स्वयंसेवकों को सक्रिय रूप से उपलब्ध कराता है, जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं।

अपडेट में यह भी कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से पहले आरएसएस के युवा सदस्य थे। रिपोर्ट के अनुसार, 2002 के दंगों के दौरान उन पर निष्क्रिय रहने के आरोप लगाए गए थे, जिनमें हजारों लोग मारे गए।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि दंड संहिता की धारा 295A व्यवहार में एक प्रकार के ईशनिंदा कानून की तरह काम करती है। इसके अलावा, कई राज्यों में धर्मांतरण और गोहत्या-विरोधी कानून लागू हैं, जिनमें कठोर जुर्माने और लंबी कारावास की सजा का प्रावधान है।

रिपोर्ट के अनुसार, धर्मांतरण-विरोधी कानूनों के तहत सैकड़ों ईसाइयों और मुसलमानों को गिरफ्तार किया गया है। इसमें कहा गया है कि भारत में 70% कैदी मुकदमे से पहले ही जेल में बंद रहते हैं, और उनमें धार्मिक अल्पसंख्यकों का अनुपात असंगत रूप से अधिक है।

रिपोर्ट में उमर खालिद के मामले का उल्लेख किया गया है, जिन्हें 2020 से हिरासत में रखा गया है, जबकि उन्होंने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन का नेतृत्व किया था। यह मामला बताता है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के लोग बिना मुकदमे के वर्षों तक जेल में रह सकते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की संघीय व्यवस्था में कानून प्रवर्तन मुख्य रूप से राज्यों के अधीन है, जबकि CBI राज्य की अनुमति के बिना जांच नहीं कर सकती। इससे राज्यों द्वारा किए गए मानवाधिकार उल्लंघनों पर जवाबदेही सीमित हो जाती है, और कई बार कानून प्रवर्तन एजेंसियां ईसाई और मुस्लिम समुदायों को निशाना बनाने वाली भीड़ हिंसा से प्रभावी ढंग से नहीं निपट पातीं।

अपनी 2025 की वार्षिक रिपोर्ट में, USCIRF ने लगातार छठी बार यह सिफारिश की है कि अमेरिकी विदेश विभाग भारत को ‘विशेष चिंता वाले देश’ की सूची में शामिल करे। हालांकि, विदेश विभाग ने अभी तक इस सिफारिश पर कोई कार्रवाई नहीं की है।

ध्यान देने योग्य है कि पिछले सप्ताह एक अमेरिकी मीडिया संस्थान ने रिपोर्ट किया कि आरएसएस ने अमेरिका में प्रभावशाली राजनीतिक हलकों में लॉबिंग अभियान शुरू किया है। अमेरिकी सरकार के समक्ष दायर दस्तावेज़ों के अनुसार, स्क्वॉयर पैटन बोग्स (SPB) नामक फर्म को 2025 की पहली तीन तिमाहियों में अमेरिकी सीनेट और प्रतिनिधि सभा में आरएसएस के हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए 3,30,000 डॉलर का भुगतान किया गया।

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