लेह एपेक्स बॉडी के सह-अध्यक्ष ने प्रशासन की आलोचना करते हुए कहा कि वह लद्दाख के लोगों पर “बाहरी ताकतों” के हाथों में खेलने का आरोप लगाकर उन्हें बदनाम कर रहा है।

फोटो साभार : पीटीआई
सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए लद्दाख के नागरिक समाज ने 24 सितंबर को लेह में हुई हिंसा की जांच के लिए गठित न्यायिक पैनल में एक स्थानीय प्रतिनिधि को शामिल करने की मांग की है। इस हिंसा में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में चार प्रदर्शनकारी मारे गए थे।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने शुक्रवार, 17 अक्टूबर को एक आदेश जारी कर हिंसा की जांच के लिए सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बी. एस. चौहान के नेतृत्व में तीन सदस्यीय न्यायिक पैनल की घोषणा की, जबकि अन्य दो सदस्य के रूप में सेवानिवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश मोहन सिंह परिहार और भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी तुषार आनंद को नामित किया गया है।
विवादास्पद सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बी. एस. चौहान ने 2021 में योगी आदित्यनाथ सरकार के तहत कानपुर के गैंगस्टर विकास दुबे एनकाउंटर मामले की न्यायिक जांच के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस को क्लीन चिट दी थी।
इस जांच समिति की घोषणा का स्वागत करते हुए, लेह एपेक्स बॉडी (LAB) के सह-अध्यक्ष चेरिंग दोरजे लकरूक ने शनिवार को जांच पैनल में लद्दाखी प्रतिनिधि को शामिल न किए जाने पर सवाल उठाया। उन्होंने यह भी आपत्ति जताई कि गृह मंत्रालय (MHA) के आदेश में हिंसा से जुड़ी लेह पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी (FIR) का उल्लेख किया गया है।
चेरिंग दोरजे लकरूक ने कहा, “आदेश में एफआईआर 144 का उल्लेख इस बात का संकेत देता है कि जांच का केंद्र हमारे ही लड़के होंगे। पैनल में तीन सदस्यों में से एक भी लद्दाखी नहीं है — यह बहुत अजीब बात है। हमारे लोगों को इस जांच पर भरोसा नहीं होगा। हम एक पारदर्शी जांच चाहते हैं।” उन्होंने गृह मंत्रालय के आदेश में संशोधन की मांग की।
गृह मंत्रालय के बयान में कहा गया था कि लेह पुलिस ने हिंसा से जुड़े मामले में भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) की विभिन्न धाराओं — 189, 191(2), 191(3), 190, 115(2), 118(1), 118(2), 326, 324, 326(c), 326(f), 326(g), 309, 109, 117(2), 125, 121(1), 61(2) — के तहत एफआईआर संख्या 144/2025 दर्ज की है।
इस एफआईआर के सिलसिले में लद्दाख पुलिस ने चार दर्जन से अधिक नागरिक प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया था, जिनमें से अधिकांश को अदालत से जमानत मिल चुकी है।
लद्दाख बौद्ध संघ के अध्यक्ष लकरूक ने शनिवार को लेह में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, “अगर सरकार चाहती है कि हम न्यायिक जांच पर भरोसा करें, तो पैनल में लद्दाख का एक प्रतिनिधि शामिल होना आवश्यक है।”
मौजूदा संकट पर विचार करते हुए विभिन्न धार्मिक संस्थाओं के प्रमुखों के साथ मौजूद लकरूक ने कहा कि स्थानीय प्रशासन यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि लद्दाख में सामान्य स्थिति लौट आई है, जबकि सार्वजनिक समारोहों और मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध अब भी जारी हैं।
एलएबी के सह-अध्यक्ष को शनिवार को नज़रबंद कर दिया गया ताकि उन्हें शांति मार्च में भाग लेने से रोका जा सके। यह मार्च नागरिक समाज के नेताओं द्वारा 24 सितंबर की हिंसा और 2019 में जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग किए जाने के बाद वहां के लोगों को संवैधानिक सुरक्षा उपायों और लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित किए जाने के विरोध में आयोजित किया गया था।
लकरूक ने शनिवार को लेह में लागू सुरक्षा व्यवस्था का हवाला देते हुए कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी गई थी और मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाया गया था ताकि नागरिक समाज के नेताओं को सुबह 10 से दोपहर 12 बजे तक प्रस्तावित मार्च में शामिल होने से रोका जा सके।
उन्होंने कहा, “यह (प्रतिबंध) प्रशासन द्वारा इस बात की स्वीकारोक्ति है कि स्थिति सामान्य नहीं है। अगर प्रशासन उन्हीं लोगों से डरता है जिनकी सेवा करने के लिए उसे नियुक्त किया गया है, तो हालात ठीक नहीं कहे जा सकते।”
लद्दाख में चल रहे आंदोलन के भविष्य के बारे में पूछे जाने पर लकरूक ने कहा कि प्रशासन को इस “भ्रम” से बाहर आना चाहिए कि वह दबाव की रणनीति अपनाकर “जन आंदोलन” को खत्म कर सकता है।
उन्होंने कहा, “न तो लद्दाख के लोग और न ही सर्वोच्च संस्था के नेता झुकने वाले हैं। हम सरकार से डर के साए में नहीं, बल्कि खुले माहौल में संवाद करेंगे। अगर सरकार को लगता है कि वह दबाव बनाकर हमें मनवा लेगी, तो यह गलत है — हम केवल उन्हीं बातों पर सहमत होंगे जो जनता के हित में हों।”
सूत्रों के अनुसार, गृह मंत्रालय दिवाली के बाद लद्दाख के नागरिक समाज के साथ उच्चाधिकार प्राप्त समिति की वार्ता को फिर से शुरू करने की घोषणा कर सकता है।
दोनों पक्षों के बीच 2023 से बातचीत जारी है। 6 अक्टूबर को एक और दौर की वार्ता प्रस्तावित थी, लेकिन पिछले महीने हुई हिंसक झड़पों में चार प्रदर्शनकारियों की मौत और दर्जनों के घायल होने के बाद नागरिक समाज के नेताओं ने इसका बहिष्कार कर दिया।
एलएबी के सह-अध्यक्ष ने प्रशासन पर यह आरोप भी लगाया कि वह लद्दाख के लोगों को “बाहरी ताकतों के हाथों में खेलने वाला” बताकर उन्हें बदनाम करने की कोशिश कर रहा है।
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फोटो साभार : पीटीआई
सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए लद्दाख के नागरिक समाज ने 24 सितंबर को लेह में हुई हिंसा की जांच के लिए गठित न्यायिक पैनल में एक स्थानीय प्रतिनिधि को शामिल करने की मांग की है। इस हिंसा में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में चार प्रदर्शनकारी मारे गए थे।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने शुक्रवार, 17 अक्टूबर को एक आदेश जारी कर हिंसा की जांच के लिए सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बी. एस. चौहान के नेतृत्व में तीन सदस्यीय न्यायिक पैनल की घोषणा की, जबकि अन्य दो सदस्य के रूप में सेवानिवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश मोहन सिंह परिहार और भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी तुषार आनंद को नामित किया गया है।
विवादास्पद सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बी. एस. चौहान ने 2021 में योगी आदित्यनाथ सरकार के तहत कानपुर के गैंगस्टर विकास दुबे एनकाउंटर मामले की न्यायिक जांच के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस को क्लीन चिट दी थी।
इस जांच समिति की घोषणा का स्वागत करते हुए, लेह एपेक्स बॉडी (LAB) के सह-अध्यक्ष चेरिंग दोरजे लकरूक ने शनिवार को जांच पैनल में लद्दाखी प्रतिनिधि को शामिल न किए जाने पर सवाल उठाया। उन्होंने यह भी आपत्ति जताई कि गृह मंत्रालय (MHA) के आदेश में हिंसा से जुड़ी लेह पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी (FIR) का उल्लेख किया गया है।
चेरिंग दोरजे लकरूक ने कहा, “आदेश में एफआईआर 144 का उल्लेख इस बात का संकेत देता है कि जांच का केंद्र हमारे ही लड़के होंगे। पैनल में तीन सदस्यों में से एक भी लद्दाखी नहीं है — यह बहुत अजीब बात है। हमारे लोगों को इस जांच पर भरोसा नहीं होगा। हम एक पारदर्शी जांच चाहते हैं।” उन्होंने गृह मंत्रालय के आदेश में संशोधन की मांग की।
गृह मंत्रालय के बयान में कहा गया था कि लेह पुलिस ने हिंसा से जुड़े मामले में भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) की विभिन्न धाराओं — 189, 191(2), 191(3), 190, 115(2), 118(1), 118(2), 326, 324, 326(c), 326(f), 326(g), 309, 109, 117(2), 125, 121(1), 61(2) — के तहत एफआईआर संख्या 144/2025 दर्ज की है।
इस एफआईआर के सिलसिले में लद्दाख पुलिस ने चार दर्जन से अधिक नागरिक प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया था, जिनमें से अधिकांश को अदालत से जमानत मिल चुकी है।
लद्दाख बौद्ध संघ के अध्यक्ष लकरूक ने शनिवार को लेह में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, “अगर सरकार चाहती है कि हम न्यायिक जांच पर भरोसा करें, तो पैनल में लद्दाख का एक प्रतिनिधि शामिल होना आवश्यक है।”
मौजूदा संकट पर विचार करते हुए विभिन्न धार्मिक संस्थाओं के प्रमुखों के साथ मौजूद लकरूक ने कहा कि स्थानीय प्रशासन यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि लद्दाख में सामान्य स्थिति लौट आई है, जबकि सार्वजनिक समारोहों और मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध अब भी जारी हैं।
एलएबी के सह-अध्यक्ष को शनिवार को नज़रबंद कर दिया गया ताकि उन्हें शांति मार्च में भाग लेने से रोका जा सके। यह मार्च नागरिक समाज के नेताओं द्वारा 24 सितंबर की हिंसा और 2019 में जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग किए जाने के बाद वहां के लोगों को संवैधानिक सुरक्षा उपायों और लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित किए जाने के विरोध में आयोजित किया गया था।
लकरूक ने शनिवार को लेह में लागू सुरक्षा व्यवस्था का हवाला देते हुए कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी गई थी और मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाया गया था ताकि नागरिक समाज के नेताओं को सुबह 10 से दोपहर 12 बजे तक प्रस्तावित मार्च में शामिल होने से रोका जा सके।
उन्होंने कहा, “यह (प्रतिबंध) प्रशासन द्वारा इस बात की स्वीकारोक्ति है कि स्थिति सामान्य नहीं है। अगर प्रशासन उन्हीं लोगों से डरता है जिनकी सेवा करने के लिए उसे नियुक्त किया गया है, तो हालात ठीक नहीं कहे जा सकते।”
लद्दाख में चल रहे आंदोलन के भविष्य के बारे में पूछे जाने पर लकरूक ने कहा कि प्रशासन को इस “भ्रम” से बाहर आना चाहिए कि वह दबाव की रणनीति अपनाकर “जन आंदोलन” को खत्म कर सकता है।
उन्होंने कहा, “न तो लद्दाख के लोग और न ही सर्वोच्च संस्था के नेता झुकने वाले हैं। हम सरकार से डर के साए में नहीं, बल्कि खुले माहौल में संवाद करेंगे। अगर सरकार को लगता है कि वह दबाव बनाकर हमें मनवा लेगी, तो यह गलत है — हम केवल उन्हीं बातों पर सहमत होंगे जो जनता के हित में हों।”
सूत्रों के अनुसार, गृह मंत्रालय दिवाली के बाद लद्दाख के नागरिक समाज के साथ उच्चाधिकार प्राप्त समिति की वार्ता को फिर से शुरू करने की घोषणा कर सकता है।
दोनों पक्षों के बीच 2023 से बातचीत जारी है। 6 अक्टूबर को एक और दौर की वार्ता प्रस्तावित थी, लेकिन पिछले महीने हुई हिंसक झड़पों में चार प्रदर्शनकारियों की मौत और दर्जनों के घायल होने के बाद नागरिक समाज के नेताओं ने इसका बहिष्कार कर दिया।
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