माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के कर्ज के बोझ तले दबती महिलाएं: एजेंटों की धमकी, गाली-गलौज और शोषण  

Written by sabrang india | Published on: August 28, 2025
माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के कर्ज के जाल में भारत की करोड़ों महिलाएं फंसी हुई महसूस कर रही हैं। इसके पीछे ऊंचे ब्याज, जबरन वसूली और शोषण की कहानियां सामने आई हैं। एडवा के देशव्यापी सर्वे के बाद दिल्ली में 23 और 24 अगस्त को जनसुनवाई से उजागर हुई सच्चाई बताती है कि गरीब महिलाओं को कर्ज नहीं, बल्कि नीतिगत बदलाव की जरूरत है जिससे उन्हें रोजगार मिल सके और अपनी और अपने परिवार की बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सकें।



माइक्रोफाइनेंसिंग जिसे कभी हमारे समाज में सहारा समझा गया था। लेकिन आज लाखों महिलाओं के लिए यह मौत का जाल बन चुका है। देश भर में महिलाएं रोजाना कर्ज के बोझ और सूदखोरों के जुल्म और मानसिक शोषण का सामना कर रही हैं। ये उनकी दर्दनाक कहानियां हैं। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके की रहने वाली पूजा भी एक माइक्रोफेंसिंग कंपनियों के एजेंटों के शोषण से परेशान हैं। यहां तक कि उनको पुलिस बुलानी पड़ी लेकिन पुलिस ने भी उनकी कोई मदद नहीं की। उनके घर जा कर एजेंट रोज उनको धमकाते हैं। उन्हें परेशान करते हैं। उनका शोषण अभी भी जारी है।

'रस्सी देता हूं फांसी लगा लो, बीमा वाले से हम पैसा वसूल लेंगे'

पूजा ने न्यूजक्लिक से बातचीत में कहा कि कैसे उन्हें अपने घर में एक छोटी सी जरूरत यानी गाड़ी की रिपेयरिंग के लिए लोन लेना पड़ा। आज वो लोन के पूरे जंजाल में फंस चुकी हैं। वह कहती हैं, एजेंट किस्त लेने एक दिन मेरे घर आए थे। उसी समय हमारे पति आए उनसे बोले कौन है? हमने कहा किस्त वाले हैं। एक बोल रहा था कि एक किस्त कर दो पूजा फिर अपना रक्षा बंधन के बाद कर लेना। हमने कहा ठीक है। तो इन्होंने बोला कि एक किस्त कर दे। लेकिन उनमें से एक बोला नहीं एक नहीं पूरा आज ही पेमेंट करो। कहीं से भी करो। नहीं कर पा रही हो तो ऑफिस चलो। हमने कहा कि आज तो हम पूरा पेमेंट नहीं कर पाएंगे। ऑफिस जाना है तो हम चलेंगे साथ में। हम लोगों को साथ चले गए और वहां वे बहुत देर बैठाए रखे।... हमने कहा कि समय दो थोड़ा तो हम भर देंगे। एक महीने या 15 दिन का समय दो तो हम कर पाएंगे। उन्होंने कहा, ऑफिस में बैठ के आप पैसे की व्यवस्था करो। वे मेरे पति से बोले कहीं से भी ले आओ, पैसे ले आओ तो अपनी पत्नी को ले जाना। बहुत देर तक पैसा का इंतजाम नहीं हुआ तो 5 घंटे तक हम बैठे रहे। मैनेजर ये बोल रहा था कि पूजा हम रस्सी दे रहे हैं तो आप फांसी लगा लो। आपका बीमा है तो हम बीमा से पैसे वसूल कर लेंगे।

ज्यादातर महिलाओं ने बुनियादी जरूरतों के पूरा करने के लिए लोन लिए

पश्चिम बंगाल के पूर्वी वर्धमान शाही कल्पना राय बताती है कि कैसे उन्हें अपने परिवार को चलाने के लिए लोन लेना पड़ा। कल्पना सरकारों से लोन माफ की उम्मीद नहीं कर रही है। कल्पना चाहती है कि सरकार लोगों को रोजगार दे जिससे वह खुद से अपने परिवार का गुजारा कर सकें और सरकारों को जो मूलभूत सुविधाएं देनी है चाहे शिक्षा का सवाल हो, चाहे रोजगार का सवाल हो, चाहे इलाज का सवाल हो क्योंकि अधिकतर महिलाओं ने जो यह लोन लिए हैं वो लोन इन मूलभूत सुविधाओं की पूर्ति के लिए ही लिए हैं। किसी ने अपने बच्चे की शिक्षा के लिए लिया। किसी ने अपने परिवार में किसी बीमार का इलाज कराने के लिए लोन लिया है। अब यह बड़ा सवाल है कि जो हमारी सरकारों की विफलता के कारण ही आज महिलाएं लोन के इस जंजाल में फंस रही हैं।

बहुत ज्यादा मेंटल टॉर्चर होता है

अपनी मांग को लेकर पहुंची महिलाओं को लेकर कल्पना कहती हैं कि, ...एमएफआई वहां पर बंद कर देना चाहिए। जॉब कार्ड पर वेस्ट बंगाल जो जॉब मिलना चाहिए वह जॉब नहीं मिलता। इसलिए इसको वो लोन लेना पड़ रहा है और यह लोन लेने के बाद उसको बहुत सी परेशानी हो रही है। यही इन्होंने कहा इसलिए वह यहां पर आई है और ये एमएफआई का जो प्रॉब्लम वेस्ट बंगाल में ये देख रही है इनकी फैमिली जो भुगत रही है वो ये कहने के लिए यहां पर आई है। मेंटल ट्रॉचर पर उन्होंने कहा कि बहुत ज्यादा मेंटल टॉर्चर होता है।

बिहार की शीला देवी भी कर्ज के जाल में हैं और सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि मानसिक शोषण का भी शिकार हो रही हैं। वह कहती हैं कि एजेंट उनके घर आकर गाली गलौज करते हैं। इस तरीके से शीला देवी जैसी कई सारी महिलाएं हैं जिनका शोषण जारी है।



घर पर आकर गाली गलौज करने की घटना

शीला देवी आगे कहती हैं कि संगीता देवी को बचाने में मेरा कमर भी टूट गया था। तीन महीने बेड पर भी रहे थे। लोन देने वाले एजेंट के बदसलूकी के बारे में पूछे जाने पर वह कहती हैं कि हां, मारपीट भी करता है। गाली गलौज करता है। मेरी भाभी है। उससे भी विवाद हुआ। रेखा देवी, रंगीला देवी, किरण देवी घर छोड़ कर भागी हुई हैं। ये अभी तक आए नहीं। यह लोन लिए हुए हैं। इतना परेशान कर रहा था, टॉर्चर कर रहा था, घर में घूस कर इतना गाली गलौज कर रहा था कि वे लोग घर छोड़ कर भाग गईं। अभी तक वो वापस नहीं आईं हैं। मेरे पति भी छोटी वाली लड़की के शादी कर के गए। ढाई लाख रुपये कर्ज है। वह भी वापस नहीं आए। वह काम कर रहे हैं। वहां आ नहीं रहे हैं। घर से दूर ही मजदूरी करते हैं। वो आ नहीं पाए। देहात में कोई भी मजदूरी हम लोगों के लिए नहीं है।

मुझे ही नहीं मेरी बेटियों को भी एजेंट टार्गेट करते हैं

महाराष्ट्र की आयशा का दर्द बताता है कि कैसे कर्ज वसूली का दबाव महिलाओं की जिंदगी को तोड़ देता है। यह सिर्फ उनके लिए आर्थिक कमजोरी का कारण नहीं बन रहा है। बल्कि उनके मानसिक शोषण और शारीरिक शोषण का भी कारण बन रहा है। आयशा ने अपने घर चलाने के लिए लोन लिया था। बच्चों की पढ़ाई के लिए लोन लिया था और आज जब वह लोन चुकाने में किन्हीं कारणों से असमर्थ हैं या कुछ देरी होती है तो एजेंट आकर उनसे जिस तरीके से बात करते हैं वह बेहद चौंकाने वाला है। एजेंट उनसे बदतमीजी से बात करते हैं। उनसे कहते हैं कि, आप एक रात हमारे साथ बिताइए और यह सिर्फ उन्हीं तक सीमित नहीं है। यह उनकी नौजवान बेटियां हैं, उनको भी टारगेट किया जा रहा है। यह एक समाज के अंदर किस तरीके की एक नया वर्ग बन रहा है। जिस तरीके से पहले समाज में सूदखोरी चलती थी। इसी तरीके का एक नया वर्ग माइक्रो फाइनेंसिंग के नाम पर बन रहा है।

पीड़िता बताती हैं कि, अपने लोगों से कर्ज लिया? फिर वो भाई ने कोई गंदी बात की। फिर उससे मेरा थोड़ा अनबन हो गया। इसलिए मैंने भी अपने लोगों से मांगना छोड़ दिए। मैंने सोचा जो करूंगी सो मैं अपने बल पर करूंगी। इसलिए मैंने बोला कोई अपना नहीं रहता है। अब मां-बाप तो नहीं रहे हैं। जब मां-बाप थे तब ठीक था। हमारे मां-बाप थे तो उनके पास बहुत कुछ था। उनसे मुझे कोई परेशानी नहीं होती थी। मुझे मेरे मेरे मां-बाप का सपोर्ट था। वो ही नहीं रहे तो फिर क्या फायदा उसका? रिश्तेदार आप लोगों से हां अच्छे नहीं है रिश्तेदार कोई किसी का नहीं रहता है।

पुुडुचेरी से आईं एम बिन्नायम की कहानी बताती है कि यह संकट किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है। बिनायम हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषा नहीं बोल पाती हैं। अपनी मातृभाषा में बताती हैं। उनकी बातों से समझ में आता है कि संकट कितना गंभीर है। उनके साथ आई उनकी अन्य साथी उनकी बातों को हिंदी भाषा में बताती हैं। लेकिन ये संकट समझना कोई मुश्किल नहीं है। किस तरीके से संकट अब ये किसी एक घर या एक राज्य तक सीमित नहीं है। पूरे देश के अंदर उत्तर से लेकर दक्षिण तक पूरब से लेकर पश्चिम तक फैल चुका है।



'मेरे साथ क्या होने वाला है मुझे पता नहीं'

बिन्नायम कहती हैं, मैंने 4,80,000 का लोन लिया था। लेकिन ईएमआई के लिए मुझे आया था कि हर महीना 5000 रूपये देना है। लेकिन मुझे नोटिस आया कि मुझे देना है 10,800 रूपये। पहले तो वो मुझे बहुत बड़ा धोखा हुआ था। उसके बाद धीरे-धीरे करके मैं किसी तरह 30 हजार चुकाई थी ईएमआई पर। जिस दिन 30 हजार दो तीन दिन पहले चुकाई थी। उसके दो दिन बाद अचानक वे मेरे पास आए। कोर्ट से एक ऑर्डर आ रहा है। मुझे नहीं पता क्या है, क्या लिखा है। सब कुछ इंग्लिश में लिखा था। मुझे इंग्लिश नहीं पता। मुझे बस तमिल पता है। जब आसपास के कोर्ट में जा कर किसी जज से पूछा कि क्या हो रहा है? यह सब क्या है? तो बोले कि तुम्हारे घर सीज करने वाले हैं। ….तो वो बोले कि तुम आज कैसे भी हालत में अपने घर जाओ। पोंडीचेरी घर है मेरा। मैं कोर्ट गई थी पूछताछ करने के लिए चेन्नई। 3 घंटे के बाद मैं घर पहुंची। वहां पर देखा कि सब कोई मजिस्ट्रेट के साथ मेरे घर के सामने सील करवाने के लिए खड़े हुए हैं। मेरे पास एक बुजुर्ग सासू मां है और मेरी बेटी शादीशुदा है वो घर पर आई हुई है और इस हालत में मैं कहां पर जाऊं, मेरे पास न किसी से मांगने के लिए कुछ है और न कोई मुझे पैसा दे रहा है, कोई भरोसा नहीं है... कहीं से मैं पैसा ला कर अपना थोड़ा सा जो ये लोन है मैं कुछ चुका पाऊं। वो भी नहीं कर पाऊं, क्या करके मैं आऊंगा, अभी मैं यहां पर चेन्नई से दिल्ली आई हूं, सबके सामने ये बोलने के लिए लेकिन मैं यहां से जाने के बाद मेरे साथ क्या होने वाला है? अगला पड़ाव क्या होने वाला है? मेरे पास कुछ भी उस सवाल का जवाब नहीं है।



औरतें बड़े पैमाने पर कर्ज में डूब रहीं

सीपीआईएम से जुड़ी महिला अधिकार कार्यकर्ता मरियम धावले कहती हैं, नेशनल पब्लिक हियरिंग किया गया था क्योंकि हम एडवा की तरफ से देख रहे थे कि औरतें बहुत बड़े पैमाने पर कर्ज में डूब रही हैं और उस कर्ज के पूरा जो डेथ ट्रैप के अंदर वो जो फंस गई है उससे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है। उसका मुख्य कारण यह है कि रोजगार का कोई भी जरिया आज मौजूद नहीं है। कमाई का साधन कोई है नहीं और सिर्फ जिंदा रहने के लिए भी कभी-कभी वह लोन ले रही है, बच्चों की पढ़ाई के लिए, स्वास्थ्य के लिए। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि सरकार पूरा स्वास्थ्य व्यवस्था से, पढ़ाई लिखाई की व्यवस्था से, वो पीछे हट रही है, तो वो महंगा होते जा रहा है, तो अभी यह सरकार की जिम्मेदारी है। एमएफआई और एनबीएफसी को वो बैंकों की प्रायोरिटी लिस्ट में डाल दिए हैं।

ब्याज मूलधन से कई गुना ज्यादा

उन्होंने कहा कि ब्याज जो औरत भर रही है वो मूलधन से कई गुना ज्यादा बनते जा रहा है और फिर अगर वो दे नहीं पाती है तो परेशान किया रहा है और उनको ह्यूमिलिएट किया जा रहा है। उनके साथ बदतमीजी हो रही है। सेक्सुअल हैरेसमेंट तक किए जा रहे हैं जिसके चलते औरतें सुसाइड्स भी कर रही है। पूरे देश में इस पर किसी का भी ध्यान नहीं जा रहा है तो औरतों का यह दुख समाज के सामने लाना बहुत जरूरी है। यह पितृ सत्तात्मक आर्थिक व्यवस्था जिस तरह से औरतों का शोषण किए जा रही है उसको कहीं ना कहीं तोड़ना होगा। इसलिए यह नेशनल पब्लिक हियरिंग की गई थी। जिस ज्यूरी में जस्टिस मदन लोकुर, प्रभात पटनायक, थॉमस फ्रेंको, आईबॉक के फॉर्मर जनरल सेक्रेटरी, जर्नलिस्ट पैमिला फिलिपोस और सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट एडवोकेट कीर्ति सिंह थें उन्होंने कहा है कि एमएफआई की इस लूट के ऊपर रोकथाम लगानी चाहिए। आरबीआई को अपना कानून बदलना चाहिए और जो औरतों के साथ में जुल्म हो रहा है उसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए लीगल एज सेंटर्स है और उसको इस्तेमाल करते हुए आरबीआई की यह जिम्मेदारी है कि वो इस तरह का कानून बनाए जिससे औरत के साथ जो हैरेसमेंट हो रहा है वो रुक सके और इसको रोकने के लिए कानून के अंदर बदलाव लाने की जरूरत है।

'इंटरेस्ट कंट्रोल करना चाहिए'

इस दौरान जस्टिस लोकुर ने कहा कि इनको कंट्रोल करना चाहिए। जो इंटरेस्ट लगा रहे हैं ये कंट्रोल करना चाहिए। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया करेगा या भारत सरकार करेगी या स्टेट में जो सरकार है वो करेगी। ये तो अलग फैसला होगा जो पार्लियामेंट या हमारे जो लेजिस्लेचर्स हैं वो करेंगे।

वहीं प्रभात पटनायक ने कहा कि, वुमेन हेडेड हाउस होल्ड्स और सिंगल वुमेन हाउसहोल्ड्स उनको प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग में नेशनलाइज और पब्लिक सेक्टर और प्राइवेट सेक्टर रिकग्नाइज बैंक्स इससे 4% इंटरेस्ट रेट पर लोन मिलना चाहिए।



'औरतों के लाइफ को डीपली अफेक्ट करता है'

सुप्रीम कोर्ट की सीनियर अधिवक्ता कृति सिंह ने एडवा द्वारा कराए गए इस हियरिंग की तारीफ करते हुए कहा कि हम एडवा को बधाई देना चाहते हैं कि एडवा के लोगों ने इतनी दूर दूर जा कर सर्वे कंडक्ट कराए और इतना अच्छा सर्वे कंडक्ट किया और इतने रेलेवेंट टॉपिक पर कंडक्ट किया जो औरतों के लाइफ को बहुत ही डीपली अफेक्ट करता है। 1990 से जो लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन, ग्लोबलाइजेशन पॉलिसी आया इसके बाद बैंक की भी पॉलिसी बदल गई।

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