कबीरचौरा मठ का मुद्दा तब चर्चा में आया जब 'सबरंग इंडिया' ने रिपोर्ट किया था कि मठ की जमीनों को अवैध रूप से बेचा जा रहा है। इस रिपोर्ट के बाद मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा। विवाद में मठ के महंत विवेक दास और उनके कथित उत्तराधिकारी प्रमोद दास पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। आरोपों में जमीनों की अवैध बिक्री, जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल और चुनावों में फर्जीवाड़ा शामिल है।
वाराणसी के प्रतिष्ठित धार्मिक स्थल "श्री सदगुरु कबीर मंदिर, कबीरचौरा मठ" का प्रबंधन विवाद इन दिनों कानूनी और सामाजिक चर्चा का केंद्र बना हुआ है। विवाद की जड़ मठ की संपत्तियों की कथित अवैध बिक्री और प्रबंधन समिति के चुनावों में अनियमितताओं से जुड़ी है। इलाहाबाद कोर्ट ने "कबीरचौरा मठ" के मामले में त्वरित हस्तक्षेप करते हुए संस्था की परिसंपत्तियों की बिक्री पर रोक लगा दी और यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी किया है।
कबीरचौरा मठ का मुद्दा तब चर्चा में आया जब 'सबरंग इंडिया' ने रिपोर्ट किया था कि मठ की जमीनों को अवैध रूप से बेचा जा रहा है। इस रिपोर्ट के बाद मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा। विवाद में मठ के महंत विवेक दास और उनके कथित उत्तराधिकारी प्रमोद दास पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। आरोपों में जमीनों की अवैध बिक्री, जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल और चुनावों में फर्जीवाड़ा शामिल है।
श्री सदगुरु कबीर मठ का पंजीकरण 13 फरवरी 1975 को सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत हुआ था। 1987 में इसका नाम बदलकर "श्री सदगुरु कबीर मंदिर, कबीरचौरा मठ" रखा गया। मठ के प्रबंधन के लिए तीन इकाइयों का गठन किया गया: साधारण सभा, प्रबंधन समिति, और सहायक निरीक्षण मंडल। वर्ष 1999 में विवेक दास को मठ का अध्यक्ष चुना गया। हालांकि, समय के साथ विवेक दास के कार्यकाल पर सवाल उठने लगे। उन पर आरोप लगे कि उन्होंने मठ की संपत्तियों को बेचना शुरू किया और चुनावों में धांधली की। 2011-12 में सहायक पंजीयक ने उनके खिलाफ आदेश पारित किए थे।
सहायक पंजीयक, फर्म, सोसाइटीज और चिट्स, वाराणसी ने 24 जून 2024 को विवेक दास को मठ की सोसाइटी का अध्यक्ष मानते हुए नवीकरण प्रमाण-पत्र जारी कर दिया। इस फैसले को चुनौती देने के लिए आचार्य महंत विचार दास और तीन अन्य सदस्यों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह चुनाव पूरी तरह से अवैध था और इसकी प्रक्रिया नियमों के खिलाफ हुई।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि विवेक दास ने फर्जी हस्ताक्षर करवाकर समिति की बैठकों और चुनावों को वैध ठहराने की कोशिश की। इसके परिणामस्वरूप, सहायक पंजीयक ने उन्हें अध्यक्ष मानते हुए प्रमाण-पत्र जारी कर दिया।
याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि विवेक दास ने मठ की जमीनों को अवैध रूप से बेचा। फर्जी दस्तावेजों और जाली हस्ताक्षरों का इस्तेमाल किया गया। मठ के वित्तीय लेन-देन में भारी अनियमितताएं और गबन हुआ। इस विवाद में वाराणसी के सिविल कोर्ट ने पहले 11 मई 2023 को यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। लेकिन सहायक पंजीयक ने इस आदेश को नजरअंदाज करते हुए विवेक दास के पक्ष में नवीकरण प्रमाण-पत्र जारी कर दिया।
इसके बाद आचार्य महंत विचार दास, जो मठ की प्रबंधन समिति के कथित अध्यक्ष हैं, ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उनके साथ देव शरण दास (सचिव) और गोपाल दास (समिति सदस्य) भी याचिकाकर्ता के रूप में शामिल हुए। हाईकोर्ट की माननीय न्यायमूर्ति अजित कुमार की खंडपीठ ने 3 दिसंबर 2024 को आदेश देते हुए यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया।
हाईकोर्ट का ताज़ा आदेश
हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगली सुनवाई तक मठ की संपत्तियों के प्रबंधन और अधिकार में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। किसी भी तीसरे पक्ष के अधिकार सृजित करने पर भी रोक लगा दी गई है। राज्य सरकार और अन्य प्रतिवादियों को मामले में काउंटर-शपथपत्र (जवाबी हलफनामा) दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है। याचिकाकर्ता को, यदि आवश्यक हो, जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय मिलेगा।
मामले की अगली सुनवाई 28 जनवरी, 2025 को निर्धारित की गई है। हाईकोर्ट के इस आदेश से मठ और उसकी संपत्तियों के प्रबंधन में स्थिरता बनी रहेगी। यह फैसला मठ और उसके अनुयायियों के लिए राहत की खबर है, क्योंकि यह संपत्ति विवादों से जुड़े मामलों में किसी भी प्रकार के बाहरी हस्तक्षेप को रोकता है।
श्री सदगुरु कबीर मठ बनारस जिले का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और मठ की संपत्ति को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल कबीर मठ की संपत्तियों को सुरक्षित रखने में सहायक है, बल्कि न्यायालय में चल रहे संपत्ति विवादों में एक नजीर भी पेश करता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मठ की संपत्तियों और प्रबंधन में स्थिरता सुनिश्चित की है।
महंतों ने डाला डाका
उत्तर प्रदेश का बनारस, जिसे आस्था और अध्यात्म की नगरी कहा जाता है, सदियों से अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर के लिए विश्वविख्यात है। इस पवित्र नगरी की गलियों और घाटों में वह आध्यात्मिक शक्ति समाहित है जिसने हजारों संतों और साधकों को मार्गदर्शन दिया है। इन्हीं संतों में एक महान संत और कवि कबीर दास थे, जिन्होंने अपने जीवनकाल में समाज को एकता, सद्भाव, और धार्मिक सुधार का संदेश दिया।
बनारस में कबीर से जुड़ी जो धरोहरें और मठ उनके अनुयायियों और श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बने थे, उनकी रखवाली करने वालों ने उसे दनादन बेचना शुरू कर दिया है। आरोप है कि मठाधीशों ने कबीर मठ की करोड़ों की परिसंपत्तियों को कौड़ियों दाम बेच दिया है। कबीरचौरा मठ, जो कभी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारी गतिविधियों का मुख्य केंद्र था, आज घपलों-घोटालों की जद में है।
कबीर मठ के नाम से जुड़ी संपत्तियां केवल भौतिक संपत्ति नहीं हैं, बल्कि वे एक सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर हैं, जो लाखों लोगों की आस्था से जुड़ी हैं। इन संपत्तियों पर किए जा रहे कब्जों से न केवल मठ के धार्मिक महत्व को खतरा है, बल्कि समाज में भ्रष्टाचार और गैरकानूनी गतिविधियों का भी विस्तार हो रहा है। प्रॉपर्टी डीलरों और महंतों के बीच की यह सांठ-गांठ कानूनी और सामाजिक व्यवस्था को सीधे तौर पर चुनौती देती नजर आ रही है।
विरासत की हिफाजत नहीं
कबीरचौरा (बनारस) में स्थित कबीर मठ, जिसे संत कबीर की अनमोल विरासत के रूप में देखा जाता है, आज दो महंतों के बीच संपत्तियों के विवाद का केंद्र बन चुका है। एक तरफ कबीरचौरा स्थित कबीर मठ मूलगाधी के पीठाधीश्वर विवेक दास हैं, और दूसरी तरफ मगहर के मठाधीश विचार दास। दोनों महंतों के बीच कबीर मठ की संपत्तियों को लेकर गंभीर विवाद चल रहा है, जिसमें प्रॉपर्टी डीलरों के साथ मिलीभगत की बातें सामने आ रही हैं।
शिवपुर के कादीपुर इलाके में कबीरचौरा मठ के महंत विवेक दास के उत्तराधिकारी प्रमोद दास द्वारा कीमती जमीन को कौड़ियों के दाम पर बेचे जाने का मामला अभी थमा भी नहीं था, कि एक और कीमती संपत्ति बेचे जाने का मामला सामने आ गया। कबीर मठ की यह संपत्ति सदर तहसील के कसवार राजा परगना के बखरिया गांव में है। इस संपत्ति की कीमत करोड़ों में है, लेकिन महंत विचार दास ने इसे सिर्फ एक करोड़ रुपये में बेचने का सौदा कर दिया है।
दूसरी तरफ, कबीर चौरा के महंत विवेक दास भी जमीनों की खरीद-फरोख्त में पीछे नहीं रहे। उन्होंने भी कबीर मठ की कई संपत्तियों को सस्ते दामों पर बेच डाला। संत विवेक दास जब बीमार रहने लगे तो उन्होंने अपने एक शिष्य प्रमोद दास को अपना उत्तराधिकारी बनाया। कुछ महीने पहले संत प्रमोद दास ने भी कबीर मठ की जमीनों का अवैध तरीके सौदा करना शुरू कर दिया। इस विवाद ने तब और तूल पकड़ा जब महंत विवेक दास जेल में बंद थे, तभी उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने मठ की संपत्तियों को बेचना शुरू कर दिया।
महंत विवेक दास जेल से छूटकर आए तो उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस बुलाई और कहा कि जमीनों का सट्टा निरस्त किया जाएगा। साथ ही प्रमोद दास की पावर आफ अटार्नी रद की जाएगी। इस बाबत उन्होंने क्या कदम उठाया, उन्होंने अभी तक मीडिया को कोई जानकारी नहीं दी। फिलवाह वह पत्रकारों के सवालों से बचते नजर आ रहे हैं।
आरोप है कि शिवपुर के मौजा कादीपुर स्थित बेशकीमती जमीन को संत विवेक दास के उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने महज कुछ लाख रुपये में एक प्रॉपर्टी डीलर के नाम रजिस्टर्ड सट्टा कर दिया है। यह रजिस्टर्ड सट्टा पाटलीपुत्र रियल एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक विवेक कुमार कुशवाहा के नाम किया गया, जो मूल रूप से गाजीपुर के निवासी हैं और बनारस में रहते हैं। यह सौदा महज औपचारिकताओं के तहत किया गया, लेकिन इससे साफ होता है कि कबीर मठ की संपत्तियों को अवैध रूप से बेचने का खेल लंबे समय से जारी है।
शिवपुर परगना के कादीपुर मौजा में स्थित श्री सद्गुरु कबीर मंदिर की जमीन, जिसकी कीमत करोड़ों में आंकी गई है, को मात्र कुछ लाख रुपये में बेचा गया। यह सौदा बिना किसी न्यायालय की अनुमति के किया गया, जो न केवल कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन है, बल्कि कबीर की विरासत के साथ खिलवाड़ है।
कबीर चौरामठ के पीठाधीश्वर विवेक दास कुछ महीने पहले जब एक महिला के साथ यौन उत्पीड़न और अभद्र व्यवहार के मामले में जेल में बंद थे, तब उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने मठ की जमीनों को रजिस्टर्ड सट्टे के जरिये बेचने का खेल खेला। इस घटना से यह साफ होता है कि कबीर मठ की संपत्तियों को हड़पने की कोशिशें किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं, बल्कि पूरे एक संगठित तंत्र द्वारा की जा रही हैं।
महंतों पर आरोप-दर-आरोप
इस बीच, कबीर मठ से जुड़े संत प्रह्लाद दास ने भी महंत विवेक दास पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि विवेक दास ने मठ की 50 अरब रुपये की संपत्तियों को अवैध रूप से अपने ट्रस्ट के नाम दर्ज करा लिया और अब वे विदेश भागने की फिराक में हैं। कबीर मठ की संपत्तियों को अवैध रूप से बेचने के खिलाफ कबीर मठ के बाबा प्रह्लाद दास ने अदालत का दरवाजा खटखटाया।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नितेश कुमार ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए महंत विवेक दास और उनके सहयोगियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। इसके बाद चेतगंज थाने में विवेक दास और नौ अन्य लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी और अन्य गंभीर आरोपों में मुकदमा दर्ज किया गया। यह मुकदमा सिर्फ महंत विवेक दास के खिलाफ नहीं है, बल्कि इसमें नगर निगम के कर्मचारी, ट्रस्ट के अन्य सदस्य और कई बड़े नाम शामिल हैं, जिन्होंने कबीर मठ की संपत्तियों को हड़पने में मदद की।
श्री सद्गुरु कबीर मंदिर कबीरचौरा मठ के महंत विवेक दास के जेल जाने के बाद उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास द्वारा संपत्ति बेचने का मामला चर्चा में आ गया है। महंत विवेक दास जब जेल में थे, उसी दौरान प्रमोद दास ने मठ की करीब 20 बिस्वा जमीन का सट्टा कर दिया। यह जमीन वाराणसी के शिवपुर इलाके में स्थित है और संस्था की कुल 157 बिस्वा जमीन में से 20 बिस्वा जमीन को किराये पर देने का सौदा महेंद्र कुमार मिश्र नामक व्यक्ति के साथ किया गया, जो बरहीकला नेवादा का निवासी है। यह सौदा 24 जून 2024 को दर्ज किया गया, जिसमें महेंद्र कुमार मिश्र गवाह भी बने।
प्रह्लाद दास का आरोप है कि महंत विवेक दास ने बिना जिला जज की अनुमति के मठ की संपत्तियों को बेचा और उनका निजी ट्रस्ट 'सिद्धपीठ कबीरचौरा मठ मूलगादी' बनाया। इस ट्रस्ट के नाम पर कबीर मठ की संपत्तियों को बेचने की साजिश रची गई, जिसमें नगर निगम के कर्मचारियों का भी सहयोग मिला।
महंत विवेक दास ने 2010 में अपने निजी ट्रस्ट की स्थापना की और इस फर्जीवाड़े में उन्होंने नगर निगम के कई अधिकारियों की मदद से मठ की संपत्ति को अपने ट्रस्ट के नाम करवा लिया। जब उन पर कार्रवाई की गई, तो उन्होंने ट्रस्ट से इस्तीफा दे दिया और प्रमोद दास को मठ का नया महंत नियुक्त किया। वर्तमान में प्रमोद दास मठ की देखभाल कर रहे हैं और संपत्तियों के सौदों में लगे हुए हैं। महंत विवेक दास ने न्यायालय में बयान दिया कि उन्हें यह जानकारी नहीं थी कि सोसाइटी की संपत्ति बेचने से पहले अनुमति लेनी होती है। उन्होंने कहा कि यदि उन्हें यह पता होता, तो वे अनुमति अवश्य लेते।
कबीर मठ की संपत्तियों के बेचे जाने का मामला उजागर हुआ तो चंदौली के सांसद वीरेंद्र सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर अपनी चिंता जाहिर की। उन्होंने कबीर मठ की संपत्तियों को कौड़ियों के दाम पर बेचे जाने की उच्च स्तरीय जांच की मांग उठाई है। इसके साथ ही, उन्होंने सीबीआई से उन प्रॉपर्टी डीलरों की भूमिका की जांच कराने की अपील की है, जो कबीर की विरासत को हड़पने की कोशिश में लगे हैं। वीरेंद्र सिंह का कहना है कि यह अत्यंत शर्मनाक है कि प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में संत कबीर की संपत्तियों पर डाका डाला जा रहा है, और प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। उन्होंने यह भी कहा है कि यह मुद्दा संसद में उठाया जाएगा और कबीर की विरासत की रक्षा के लिए हर संभव लड़ाई लड़ी जाएगी।
बनारस के लहरतारा स्थित मठ के पीठाधीश्वर महंत गोविंद दास ने सबरंग इंडिया के बातचीत में कहा कि विवेक दास ने मीडिया को बुलाकर प्रोपगंडा किया, लेकिन उत्तराधिकार के मामले में अभी तक कोई कागजी कार्रवाई नहीं हुई। कबीरचौरा मठ कबीर की ऐतिहासिक धरोहर है। सरकार को चाहिए कि वह घपलों और घोटालों की जांच कराए और रिसीवर नियुक्त करे। घपला घोटाला पाया जाता है तो इसे अधिग्रहीत कर ले। कबीर कुटिया का इस्तेमाल पैसे लेकर शादी के लिए ठेका सपा के एक पूर्व पार्षद को दे रखा है। मठ के साधुओं को मारपीट कर फर्जी मुकदमों में फंसाकर भगाया जा रहा है। सरकार निष्पक्ष जांच कराए।
वह कहते हैं, "विवेक दास लगातार मीडिया में भ्रम फैला रहे हैं उन्होंने कई देशों में कबीर के विराचारधारा को फैलाने के लिए मठ और मंदिर बनवाएं। यह सब सरासर झूठ है और यह सच है तो उन्हें विदेशों में खोले गए मठ मंदिरों की तस्वीरें और अभिलेखीय साक्ष्य मीडिया के सामने रखना चाहिए। कितनी हैरत की बात है कि विवेक दास की जमानत कराने तक के लिए मठ के पास पैसे नहीं थे और उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास को जमीन बेचनी पड़ गई। क्या देश दुनिया में इस मठ का कोई समर्थक नहीं है जो उनकी जमानत भर के लिए पैसा दे सके।"
"अगर यह सच है तो उन्हें महंतगीरी खुद ही छोड़ देनी चाहिए क्योंकि वो कबीर के अनुयायियों में अलोकप्रिय हो चुके हैं। सच यह है कि कोई कबीरपंथी विवेक दास को न सम्मान देता है और न ही उन्हें महंत मानता व पूजता है। कितनी अचरज की बात है कि विवेकदास छह महीने तक जेल में रहे और जेल में बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती हुए। जेल से छूटने के बाद कभी किसी अस्पताल में भर्ती नहीं हुए। इससे प्रतीत होता है कि उनकी बीमारी सिर्फ नाटक थी।"
महंतों की इस अंदरूनी लड़ाई का सीधा फायदा भूमाफियाओं को हो रहा है, जो इन संपत्तियों को कब्जाने के लिए हमेशा से तैयार बैठे हैं। वे जानते हैं कि अगर यह विवाद जारी रहता है, तो भविष्य में वे इन संपत्तियों को इस तरह से बेच सकते हैं कि सरकार भी हस्तक्षेप कर इन्हें वापस नहीं ले सकेगी। यह स्थिति कबीर मठ की संपत्तियों को अवैध तरीके से हड़पने की साजिश को और आसान बना देती है।
कबीर के मूल्यों का उल्लंघन
सांसद वीरेंद्र सिंह कहते हैं, "कबीर दास जैसे महान संत, जो अपने समय में समाज में फैले धार्मिक पाखंड और भेदभाव के खिलाफ खड़े हुए थे, उनकी संपत्तियों पर हो रहे ये अवैध कब्जे न केवल उनके अनुयायियों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए शर्मनाक हैं। कबीर दास की भूमि, जो कभी सामाजिक न्याय और समानता की आवाज उठाने का स्थान थी, अब उन लोगों के हाथों में जा रही है, जिनका मकसद केवल आर्थिक लाभ उठाना है। यह स्थिति कबीर की शिक्षाओं और उनके सिद्धांतों के खिलाफ है।"
"कबीर दास की शिक्षाओं का केंद्र, कबीरचौरा, जो कभी उनकी विचारधारा और सामाजिक सुधार का प्रतीक था, आज उन मूल्यों के विपरीत गतिविधियों का केंद्र बनता जा रहा है। यह मठ अब बाहरी लोगों से भरता जा रहा है, जिनका कबीर की विचारधारा और उनके संदेश से कोई लेना-देना नहीं है। जिन लोगों का उद्देश्य कबीर की विरासत को संरक्षित करना होना चाहिए था, वे अब इन संपत्तियों का व्यावसायिक उपयोग कर रहे हैं, जिससे उनकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्ता खत्म होती जा रही है। कबीर दास, जो अपने समय में धार्मिक पाखंड और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ खड़े हुए थे, आज उन्हीं की भूमि पर उन मूल्यों का उल्लंघन हो रहा है जिनके लिए वे खड़े थे। यह देखकर दुःख होता है कि भूमाफिया और महंतों का यह गठजोड़ न केवल कबीर मठ की संपत्तियों का अवैध तरीके से दोहन कर रहा है, बल्कि उनके विचारों और संदेशों को भी अपवित्र कर रहा है।"
सांसद वीरेंद्र सिंह कहते हैं, "कबीरचौरा मठ स्वतंत्रता आंदोलन के समय क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था। अंग्रेज गवर्नरों ने नाराज होकर तीन तीन बार मठ को तोड़कर अस्पताल में मिला देने का आदेश दिया। मठ में मौजूद कबीर के जीवन दर्शन पर आधारित मूर्तियां और तैल चित्र भी आकर्षण का केंद्र हैं। कबीर दास ने समाज में फैले पाखन्ड, कुरीतियों और अन्धविश्वासों का विरोध कर सद्भाव का संदेश दिया था। कबीर की शिक्षाएं सामाजिक समानता और धार्मिक सद्भाव की पक्षधर थीं। लेकिन आज उन्हीं की संपत्तियों पर कब्जे की यह लड़ाई इस बात का प्रमाण है कि कैसे उनकी विरासत को नजरअंदाज किया जा रहा है। यह केवल संपत्ति विवाद नहीं है, बल्कि यह कबीर की विरासत पर हो रहे आघात का प्रतीक है।"
यौन उत्पीड़न का आरोप
श्री सद्गुरु कबीर मंदिर कबीरचौरा मठ मुलगादी के महंत विवेक दास को इसी साल मई 2024 में एक दलित महिला के साथ अश्लील हरकत करने के मामले में जेल गया था। पीड़ित दलित महिला ने महंत विवेक दास के खिलाफ साल 2022 में कई संगीन आरोप लगाए थे। महिला ने आरोप लगाते हुए कहा था कि कबीर मठ मूलगादी के महंत विवेक दास अपने साथियों के साथ मिलकर उन पर अश्लील टिप्पणियां की थी। इसके बाद एससी-एसटी कोर्ट ने वारंट जारी करते हुए महंत को तलब किया था। जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और जेल भेज दिया गया था।
मजेदार बात यह है कि श्री सद्गुरु कबीर मंदिर के महंत विवेक दास जिस समय जेल में थे, उसी दौरान उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने करीब 20 बिस्वा जमीन बेचने के लिए सट्टा कर दिया। खबर है कि प्रमोद दास ने शिवपुर में मौजूद संस्था की 157 बिस्वा जमीन को सिर्फ दस हजार रुपये महीने पर किराये पर महेंद्र कुमार मिश्र नामक व्यक्ति को दिया है, बरहीकला नेवादा के निवासी हैं। 24 जून 2024 को जिस 20 बीस बिस्वा जमीन का रजिस्टर्ड सट्टा कराया गया था उस में यह शख्स गवाह है।
बनारस में संत कबीर दास की कई अन्य संपत्तियों को औने-पौने दाम पर बेचे जाने का खेल नया नहीं है। कबीर मठ से जुड़े 80 वर्षीय बाबा प्रह्लाद दास ने महंत विवेक दास के ऊपर मठ की 50 अरब की संपत्ति अवैध तरीके से अपने ट्रस्ट के नाम करने का आरोप लगाया था। जिला मजिस्ट्रेट को दिए गए प्रार्थना प्रत्र में जिक्र किया था कि विवेक दास अरबों की संपत्ति हड़पने के बाद विदेश भागने की फिराक में है। कबीर मठ के बाबा प्रह्लाद दास के प्रार्थना पत्र पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नितेश कुमार ने कड़ा रुख अपनाते हुए एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था। कोर्ट के आदेश पर कबीरचौरा मूलगादी मठ के महंत विवेक दास सहित नौ लोगों के खिलाफ चेतगंज थाने में धोखाधड़ी सहित अन्य आरोपों में मुकदमा दर्ज किया गया है।
इस मुकदमे में महंत विवेक दास के अलावा अन्य आरोपियों में कबीर मठ के रामदास व प्रमोद दास, कबीरचौरा के डॉ दीपक मलिक, चेतगंज के त्रिभुवन प्रसाद, सीतापुर (रामनगर) के आनंद दास और नगर निगम के चेतगंज वार्ड के कर अधीक्षक, सर्किल क्लर्क व इंस्पेक्टर के नाम शामिल हैं। बाबा प्रह्लाद दास के अनुसार, श्री सद्गुरु कबीर मंदिर सोसाइटी रजिस्टर्ड संस्था है। संस्था के 23वें आचार्य वर्ष 1993 में विवेक दास बनाए गए। उन्होंने वाराणसी के जिला जज की अनुमित के बगैर अलग-अलग स्थानों पर स्थित संस्था के कई मकान और जमीन बेच दी।
विवेक दास ने व्यक्तिगत ट्रस्ट सिद्धपीठ कबीरचौरा मठ मूलगादी बनाया। इसके बाद श्री सद्गुरु कबीर मंदिर सोसाइटी व मठ की संपत्ति पर अपने व्यक्तिगत ट्रस्ट के नाम दर्ज करा लिया। विवेक दास के इस फर्जीवाड़े में नगर निगम के कर्मियों के साथ ही अन्य लोग भी सहयोगी बने। कबीर मठ के प्रह्लाद दास ने दाखिल प्रार्थना पत्र में बताया था कि साल 1999 में विवेक दास को श्रीसद्गुरु कबीर मंदिर सोसायटी का चार्ज दिया गया। वह अध्यक्ष बने और इस दौरान ट्रस्ट के पास तीन लाख रुपये बैक बैलेंस दिए गए।
साल 2005 में महंत विवेक दास ने ट्रस्टी की हैसियत से अवैध तरीके से बिना जिला जज से परमिशन लिए सोसायटी एक्ट की धारा-पांच का उल्लंघन करते हुए कतुआपुरा, बौलियाबाग और लहरतारा के मकान समेत दूसरे राज्यों की जमीनों को बेच दिया। प्रह्लाद दास ने यह भी आरोप लगाया था कि महंत विवेक दास ने 14 अक्टूबर, 2010 में अपना एक व्यक्तिगत ट्रस्ट बनाया, जिसका नाम रखा-सिद्धपीठ कबीर चौरा मठ मूलगादी ट्रस्ट।
इसकी रजिस्ट्री कराकर सद्गुरु कबीर मंदिर सोसायटी ट्रस्ट और मठ की जमीनों को बेचते रहे। इसमें नगर निगम के कर्मचारी, क्लर्क, इंस्पेक्टर और टैक्स सुपरिटेंडेंट चेतगंज ने मिलकर मठ की संपत्ति का ट्रस्ट के नाम अंकित कर दिया गया। प्रह्लाद दास का कहना था कि, “विवेक दास की ओर से बनाई गई अवैध कमेटी द्वारा संस्था के 50 अरब की संपत्ति कैसे ट्रस्ट को बिना वैध अंतरण किए नगर निगम के असेसमेंट रजिस्टर में अंकित कर दिया गया? विवेक दास ने अपराध से बचने के लिए ट्रस्ट के अध्यक्ष पद और ट्रस्टी पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद प्रमोद दास को मंहत बना दिया। उन्होंने बताया, पूर्व महंत अब विदेश भागने की फिराक में है।”
बाद में महंत विवेक दास ने मजिस्ट्रेट को जवाब दिया कि, “मुझे यह जानकारी नहीं थी सोसायटी की संपत्ति बेचने से पहले अनुमति लेनी पड़ती है। नहीं तो मैं जिला जज से अनुमति ले लेता। वर्तमान में मेरे शिष्य और उत्तराधिकारी प्रमोद दास कबीर मठ की देखभाल कर रहे हैं।”
कबीर मठ की जमीनों को बेचने का खेल अभी थमता नजर नहीं आ रहा है। हालांकि प्रमोद दास ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि मठ की संपत्तियों का दुरुपयोग नहीं किया जा रहा है। वह कहते हैं कि मठ की सभी संपत्तियों का हिसाब रखा जाता है और जो भी जमीन विवाद में है, उसे अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। इस मुद्दे पर बातचीत करने के लिए प्रमोद दास ने इस प्रतिनिधि को बुलाया, लेकिन खुद गायब हो गए। कई बार उनसे संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनकी ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं आया।
कबीर मठ के महंत विवेक दास से मिलने के लिए यह प्रतिनिधि पहुंचा तो वह अपने एक शिष्य से पैर दबवा रहे थे। परिचय देने पर वो भड़क गए और गाली-गलौच पर उतर आए। यहां तक कह डाला कि मीडिया ने हमें शहर में नंग कर दिया है। हम किसी से बात नहीं करना चाहते। कबीर मठ में हम ऐसे किसी व्यक्ति को नहीं आने देंगे दो हमारे खिलाफ दुष्प्रचार करता है। दूसरी ओर, मगहर के मठाधीश विचार दास कहते हैं कि सारनाथ की जमीनों को बेचने के मामले में मेरी तरफ से गलती हुई है। हम इसे सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। जो कुछ हुआ अज्ञानता की वजह से हुआ।
विवेक दास पर धोखाधड़ी का केस
कुछ दिन पहले राजस्थान के जोधपुर में कबीर मठ के महंत विवेक दास के खिलाफ धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के आरोपों में एक नया मुकदमा दर्ज हुआ है। इस मामले में उनके साथ उज्जैन के कबीर मठ के महंत चेतन दास का भी नाम शामिल है। यह केस जोधपुर के फतेहसागर स्थित कबीर आश्रम के महंत राजेंद्र दास की शिकायत पर दर्ज किया गया है।
महंत राजेंद्र दास ने शिकायत में बताया कि उनके गुरु प्रह्लाद दास, जो फतेहसागर कबीर आश्रम के महंत थे, कोविड महामारी के दौरान ब्रह्मलीन हो गए थे। गुरु की इच्छा के अनुसार, जुलाई 2021 में राजेंद्र दास को आश्रम का नया महंत बनाया गया। इसके बाद से ही उज्जैन के चेतन दास की नीयत इस आश्रम की संपत्तियों पर खराब हो गई और वह इन्हें हड़पने की कोशिश में लग गए।
राजेंद्र दास का आरोप है कि चेतन दास ने काशी के महंत विवेक दास के साथ मिलकर एक फर्जी दस्तावेज तैयार कराया, जिसमें उनकी महंती को निरस्त करने का दावा किया गया। राजेंद्र दास ने यह भी कहा कि जब विवेक दास ने उन्हें महंत घोषित ही नहीं किया, तो उन्हें हटाने का कोई अधिकार भी नहीं है। उनका कहना था कि विवेक दास को इस प्रकार का पत्र जारी करने का अधिकार नहीं है। पुलिस ने इस शिकायत के आधार पर केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। पुलिस का कहना है कि जल्द ही उज्जैन से चेतन दास और वाराणसी से विवेक दास को पूछताछ के लिए बुलाया जाएगा।
उत्तराधिकार की लड़ाई
कबीरमठ मूलगादी के उत्तराधिकार को लेकर इसी साल दो पक्ष आमने-सामने आ गए थे। बाद में चेतगंज थाना पुलिस ने दोनों पक्ष के अभिलेखों के अवलोकन के बाद समझा-बुझाकर मामला शांत कराया था। एक पक्ष के महंत विचार दास कुछ लोगों के साथ कबीरचौरा स्थित मठ में पहुंचे। खुद को सद्गुरु कबीर मंदिर ट्रस्ट द्वारा उत्तराधिकारी बनाए जाने की बात कहने लगे। वे अपने पक्ष में अदालत का आदेश भी दिखा रहे थे। उनका कहना था कि वहीं रहकर मठ का संचालन करेंगे। यह देखकर आचार्य महंत विवेक दास के उत्तराधिकारी प्रमोद दास के समर्थक भी जमा हो गए। उन्होंने विचार दास का विरोध किया और उन पर मठ पर कब्जा करने की नीयत से आने का आरोप लगाते हुए पुलिस को सूचना दे दी।
मौके पर पहुंची पुलिस को विचार दास ने बताया कि आचार्य महंत अमृत साहब के देहांत के बाद ट्रस्ट के सदस्यों ने आचार्य गंगा शरण को अध्यक्ष उन्हें मंत्री, उत्तराधिकारी, अधिकारी तीन पद दिया। इस मामले में एक मुकदमा भी वाराणसी कचहरी के सिविल जज सीनियर डिविजन अदालत में चला, जिसमें अदालत ने यथा स्थिति बनाए रखते हुए विचार दास को कार्य करने का आदेश दिया। इसके अनुपालन के लिए पुलिस को भी निर्देशित किया। इसे मठ के लोग मान नहीं रहे हैं।
वहीं, दूसरे पक्ष के महंत प्रमोद दास खुद को कबीरचौरा मठ मूलगादी के उत्तराधिकारी बताते रहे। उनका कहना था कि उन्हें आचार्य महंत विवेक दास ने उत्तराधिकारी बनाया है। उन्होंने विचार दास पर मठ की संपत्ति बेचने का आरोप लगाते हुए कहा कि मठ की सारनाथ स्थित कीमती जमीन को बेचने का साजिश की गई थी।
इस मामले में आचार्य महंत विवेक दास ने विचार दास के खिलाफ मुकदमा लिखवाया है। विचार दास मगहर मठ की व्यवस्था संभालते हैं और फर्जी तरीके से अपने को उत्तराधिकारी बता रहे हैं। देश भर में कबीरचौरा मूलगादी मठ से जुड़ी सैकड़ों बीघा भूमि माफिया और साधुओं की मिलीभगत से विवादों में है। कबीरचौरा मूलगादी में जमीन, गद्दी और विरासत का विवाद साल 2010 में शुरू हुआ।
बेच नहीं सकते कबीर की जमीन
लहरतारा स्थित प्राचीन संत कबीर प्रकट्य स्थल के महंत गोविंद दास शास्त्री ने सबरंग इंडिया से कहा, "जो गलत है, वह गलत है। अगर हम कुछ बना नहीं सकते, तो उसे बिगाड़ने का हमें कोई अधिकार नहीं है। कबीर की परिसंपत्तियों को बेचने का किसी को भी अधिकार नहीं है। साल 2010 में भी महंत विवेक दास ने मठ की कुछ जमीनें बेच दी थीं। बाद में विचार दास भी जमीनों की खरीद-फरोख्त में जुट गए। जो लोग ऐसा कर रहे हैं, वे पूरी तरह से गलत हैं। यह सच है कि संत कबीर की संपत्तियों पर डाका डाला जा रहा है। जो गड़बड़ियां हो रही हैं, उनके बारे में कबीर के अनुवायियों को कुछ नहीं बताया जा रहा है। हमें एक-एक कदम सोच-समझकर उठाना होगा। हमारा प्रयास कबीर की विचारधारा को प्रचारित करना है, और किसी को भी भ्रमित नहीं है।"
"24 जून 2024 को शिवपुर में जिस जमीन का सट्टा कराया गया था, उसकी बाजार कीमत करीब 20 करोड़ रुपये बताई जा रही है। प्रमोद दास ने सफाई देते हुए कहा कि शिवपुर की जमीन पर अस्पताल बनाने की योजना थी, लेकिन बाद में दुबई के एक उद्यमी ने हाथ पीछे खींच लिए। संत विवेक दास ने प्रेस कांफ्रेंस कर मीडिया में झूठी खबरें फैलाई और दावा किया कि उन्होंने कोई जमीन नहीं बेची है। उनके शिष्य प्रमोद दास ने अवैध तरीके से शिवपुर में जो जमीन बेची है, उसका सट्टा निरस्त करने के लिए अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है। यह वही जमीन है जहां अस्पताल बनाया जाना था। सबसे बड़ी बात यह है कि कबीर मठ की कमेटी के सदस्यों की बैठक के बगैर अथवा किसी से इस्तीफा लिए बगैर न तो किसी को हटाया जा सकता है और न ही किसी पावर ऑफ अटॉर्नी छीनी जा सकती है?"
"चिटफंड रजिस्ट्रार कार्यालय ने जो दस्तावेज जारी किया है, उसमें प्रमोद दास का नाम है। अब विवेक दास के पास कोई अधिकार नहीं है। उन्हें मीडिया में बने रहने का तरीका पता है, और सफाई देने में भी वे माहिर हैं। विवेक दास एक बड़े खिलाड़ी हैं। वे 25 साल से अस्पताल बनाने की बात कर रहे थे, लेकिन उस जगह को बेच दिया और एक ईंट भी नहीं रखी। सारनाथ में कबीर विद्यापीठ स्थापित करने के लिए विकास प्राधिकरण के तत्कालीन उपाध्यक्ष राहुल पांडेय ने उनसे बात की थी। इस प्रोजेक्ट में कबीर को बुद्ध से जोड़ने का एक अच्छा कॉन्सेप्ट दिया गया था, लेकिन विवेक दास ने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उसी जमीन को मगहर के पीठाधीश्वर विचार दास ने कई लोगों के नाम सट्टा कर दिया। इसी मामले में हमें फर्जी तरीके से फंसाया गया और जेल भेजा गया।"
सरकारी धन लौटाने का आरोप
महंत गोविंद दास शास्त्री यह भी कहते हैं, "कबीरचौरा मठ में कबीर म्यूजियम के लिए शासन ने 25 करोड़ रुपये की मंजूरी दी थी, लेकिन विवेक दास ने यह कहकर देने से मना कर दिया कि कबीर मठ सरकारी हो जाएगा। बनारस के कमिश्नर कौशलराज शर्मा ने कई बार इस मामले में विवेक दास से बात की थी। उस प्रोजेक्ट को मैं लहरतारा लाने की कोशिश कर रहा हूं। राज्य सरकार ने लहरतारा कबीर प्रकट्य स्थल के लिए आठ करोड़ रुपये का बजट दिया है। इसके साथ ही, तीन करोड़ रुपये की लागत से एक इंटरप्रिटेशन सेंटर भी बनवाया जा रहा है। हमें कबीर के प्राकट्य स्थल को बचाने की चिंता है और विवेक दास सरीखे लोगों को कबीर की संपत्तियों को बिल्डरों और प्रापर्टी डीलरों के हाथ औने-पैने दाम पर बेचने की चिंता है।"
"कबीरचौरा मठ में चले जाइए, यह पता चल जाएगा कि विवेक दास क्या करते हैं और अब तक उन्होंने किया क्या है? हालात ये हैं कि कबीर चौरा कबीर मठ में एक भी सार्वजनिक शौचालय नहीं है। यहां मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। भक्तों के लिए न बैठने की व्यवस्था है, न ठहरने की। आश्रम में बंदूकधारी गार्ड तैनात किए गए हैं। कबीर मठ के बगल में बिहार में सजायाफ्ता अपराधी को कबीर विद्यालय कबीर चौरा पर कब्जा करा दिया गया है। गुजरात में कबीर के कुछ अनुयायियों ने कबीर मठ के विकास के लिए लाखों रुपये टाइल्स लगवाने के लिए दान दिया था। बहुत दिन गुजर गए और जब काम नहीं हुआ तब दानदाताओं ने अपना पैसा मांगना शुरू किया, तब टाइल्स लगाने का काम शुरू हो पाया।"
"महंत विवेक दास और उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने मिलकर मठ की अरबों की संपत्ति बेची है। बिजली का लंबा बकाया होने के कारण कनेक्शन काटा जा चुका है। इसके बावजूद अवैध रूप से न सिर्फ बिजली जलाई जा रही है, बल्कि एसी और हीटर भी चलाए जा रहे हैं। कबीर कुटिया का इस्तेमाल वैवाहिक स्थल के रूप से किया जा रहा है जो कबीर की आस्था और उनकी अस्मिता पर चोट पहुंचाता है।"
महंत गोविंद दास शास्त्री कहते हैं, "विवेक दास ने जितनी भी जमीनें बेच है वह उत्तर प्रदेश सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा-05 ए का उल्लंघन करके बेचा है। इस बैमाने को रद् कराएं और संस्था की संस्था के नाम कराएं। फिलहाल इलाहाबाह हाईकोर्ट ने यथास्थिति कायम रखते हुए इस संपत्ति के हस्तांतरण पर रोक लगा दी है। इस बीच उन्होंने फिर उत्तर प्रदेश सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा-05 ए का उल्लंघन करते हुए प्रापर्टी डीलर विवेक कुशवाहा के साथ फिर विक्रय का अनुबंध किया है, जबकि नियमानुसार इस तरह का अनुबंध भी बिना जिला जज की अनुमति से नहीं कर सकते हैं। सभी बैनामों के शून्य कराएंगे। रजिस्ट्रार को एफआईआर करना पड़ेगा। "
सरकार बचाए कबीर की संपत्ति
बनारस के समाजवादी चिंतक एवं संत कबीर में गहरी आस्था रखने वाले विजय नारायण इस बात से दुखी है कि कबीर दास की संपत्तियों को बेचने की होड़ लगी है। इसे डकैती कहा जाए तो गलत नहीं होगा। विवेक दास हो या फिर विचार दास, सभी ने कबीर मठ की संपत्तियों को भूमाफिया के हाथों कौड़ियों के दाम बेचा है और अभी यह सिलसिला थमा नहीं है। कबीर मठ किसी की बपौती नहीं है। यह कबीर के अनुयायियों के आस्था का मंदिर है। कबीरचौरा मठ का ऐतिहासिक महत्व बेहद गहरा है। यह मठ केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि कबीर के जीवन दर्शन और उनकी शिक्षाओं का प्रतीक भी है।"
"कबीर मठ में मौजूद कबीर से जुड़ी मूर्तियां, तैल चित्र, और अन्य धरोहरें धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का केंद्र बनी हुई हैं। इनकी ऐतिहासिक महत्ता यह दर्शाती है कि मठ ने कैसे समाज में व्याप्त पाखंड, अंधविश्वास, और कुरीतियों का विरोध किया। कबीर के संदेश ने समाज को एकता, प्रेम, और समानता का रास्ता दिखाया, और इसी वजह से मठ की यह विरासत अनमोल मानी जाती है।"
विजय नारायण यह भी कहते हैं, "कबीर के विचारों और उनके द्वारा छोड़ी गई संपत्तियों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। लेकिन, हाल के वर्षों में इन पवित्र स्थलों और संपत्तियों पर जिस तरह से कब्जे किए जा रहे हैं, वह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से गंभीर है, बल्कि सामाजिक और कानूनी दृष्टि से भी अत्यधिक चिंताजनक है। कबीर की विरासत को संरक्षित करने के बजाय, उनके नाम से जुड़ी संपत्तियों पर नाजायज़ कब्ज़ा करने की कोशिशें लगातार तेज हो रही हैं। कबीर मठ के सार्वजनिक संपत्ति के दुरुपयोग पर रोक लगाते हुए तत्काल राज्यहित में रिसीवर नियुक्त कर समूचे मामले की जांच कराई जाए। साथ ही जमीनों की अवैध बिक्री को तत्काल निरस्त कराया जाए।"
"कबीरचौरा मठ पर विदेश के किसी मठ मंदिर का फोटो किसी को नहीं, दिखाया। कबीर मठ की जमीन बनारस की जनता की है, जनता पैसा देती आ रही है और वहीं जमीनों की रक्षा करता आ रही है। कबीर मठ की जमीन किसी की निजी प्रापर्टी नहीं है कि कोई जब चाहे उसे बेच दे। विवेक दास अगर सच्चाई की राह पर चल रहे हैं तो उन्हें सच उजागर करना चाहिए और मठ के आय-व्यय की कम से कम दो दशक की बैलेंस शीट जनता के समक्ष रखना चाहिए। सरकार को अगर कबीर मठ में घपला घोटाला मिलता है तो उसे इसे अधिग्रहीत कर लेना चाहिए। कबीर के प्रति काशी के लोगों गहरी श्रद्धा है। कबीर की आस्था के साथ किसी तरह का खिलवाड़ काशी की जनता बर्दास्त नहीं करेगी।"
(कबीर दास की परिसंपत्तियों के फर्जीवाड़े के संबंध ने सबरंग इंडिया ने महंत विवेक दास और उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास से उनका पक्ष जानने की कई बार कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। अगर कोई जवाब आता है स्टोरी अपडेट की जाएगी।)
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
वाराणसी के प्रतिष्ठित धार्मिक स्थल "श्री सदगुरु कबीर मंदिर, कबीरचौरा मठ" का प्रबंधन विवाद इन दिनों कानूनी और सामाजिक चर्चा का केंद्र बना हुआ है। विवाद की जड़ मठ की संपत्तियों की कथित अवैध बिक्री और प्रबंधन समिति के चुनावों में अनियमितताओं से जुड़ी है। इलाहाबाद कोर्ट ने "कबीरचौरा मठ" के मामले में त्वरित हस्तक्षेप करते हुए संस्था की परिसंपत्तियों की बिक्री पर रोक लगा दी और यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी किया है।
कबीरचौरा मठ का मुद्दा तब चर्चा में आया जब 'सबरंग इंडिया' ने रिपोर्ट किया था कि मठ की जमीनों को अवैध रूप से बेचा जा रहा है। इस रिपोर्ट के बाद मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा। विवाद में मठ के महंत विवेक दास और उनके कथित उत्तराधिकारी प्रमोद दास पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। आरोपों में जमीनों की अवैध बिक्री, जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल और चुनावों में फर्जीवाड़ा शामिल है।
श्री सदगुरु कबीर मठ का पंजीकरण 13 फरवरी 1975 को सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत हुआ था। 1987 में इसका नाम बदलकर "श्री सदगुरु कबीर मंदिर, कबीरचौरा मठ" रखा गया। मठ के प्रबंधन के लिए तीन इकाइयों का गठन किया गया: साधारण सभा, प्रबंधन समिति, और सहायक निरीक्षण मंडल। वर्ष 1999 में विवेक दास को मठ का अध्यक्ष चुना गया। हालांकि, समय के साथ विवेक दास के कार्यकाल पर सवाल उठने लगे। उन पर आरोप लगे कि उन्होंने मठ की संपत्तियों को बेचना शुरू किया और चुनावों में धांधली की। 2011-12 में सहायक पंजीयक ने उनके खिलाफ आदेश पारित किए थे।
सहायक पंजीयक, फर्म, सोसाइटीज और चिट्स, वाराणसी ने 24 जून 2024 को विवेक दास को मठ की सोसाइटी का अध्यक्ष मानते हुए नवीकरण प्रमाण-पत्र जारी कर दिया। इस फैसले को चुनौती देने के लिए आचार्य महंत विचार दास और तीन अन्य सदस्यों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह चुनाव पूरी तरह से अवैध था और इसकी प्रक्रिया नियमों के खिलाफ हुई।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि विवेक दास ने फर्जी हस्ताक्षर करवाकर समिति की बैठकों और चुनावों को वैध ठहराने की कोशिश की। इसके परिणामस्वरूप, सहायक पंजीयक ने उन्हें अध्यक्ष मानते हुए प्रमाण-पत्र जारी कर दिया।
याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि विवेक दास ने मठ की जमीनों को अवैध रूप से बेचा। फर्जी दस्तावेजों और जाली हस्ताक्षरों का इस्तेमाल किया गया। मठ के वित्तीय लेन-देन में भारी अनियमितताएं और गबन हुआ। इस विवाद में वाराणसी के सिविल कोर्ट ने पहले 11 मई 2023 को यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। लेकिन सहायक पंजीयक ने इस आदेश को नजरअंदाज करते हुए विवेक दास के पक्ष में नवीकरण प्रमाण-पत्र जारी कर दिया।
इसके बाद आचार्य महंत विचार दास, जो मठ की प्रबंधन समिति के कथित अध्यक्ष हैं, ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उनके साथ देव शरण दास (सचिव) और गोपाल दास (समिति सदस्य) भी याचिकाकर्ता के रूप में शामिल हुए। हाईकोर्ट की माननीय न्यायमूर्ति अजित कुमार की खंडपीठ ने 3 दिसंबर 2024 को आदेश देते हुए यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया।
हाईकोर्ट का ताज़ा आदेश
हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगली सुनवाई तक मठ की संपत्तियों के प्रबंधन और अधिकार में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। किसी भी तीसरे पक्ष के अधिकार सृजित करने पर भी रोक लगा दी गई है। राज्य सरकार और अन्य प्रतिवादियों को मामले में काउंटर-शपथपत्र (जवाबी हलफनामा) दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है। याचिकाकर्ता को, यदि आवश्यक हो, जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय मिलेगा।
मामले की अगली सुनवाई 28 जनवरी, 2025 को निर्धारित की गई है। हाईकोर्ट के इस आदेश से मठ और उसकी संपत्तियों के प्रबंधन में स्थिरता बनी रहेगी। यह फैसला मठ और उसके अनुयायियों के लिए राहत की खबर है, क्योंकि यह संपत्ति विवादों से जुड़े मामलों में किसी भी प्रकार के बाहरी हस्तक्षेप को रोकता है।
श्री सदगुरु कबीर मठ बनारस जिले का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और मठ की संपत्ति को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल कबीर मठ की संपत्तियों को सुरक्षित रखने में सहायक है, बल्कि न्यायालय में चल रहे संपत्ति विवादों में एक नजीर भी पेश करता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मठ की संपत्तियों और प्रबंधन में स्थिरता सुनिश्चित की है।
महंतों ने डाला डाका
उत्तर प्रदेश का बनारस, जिसे आस्था और अध्यात्म की नगरी कहा जाता है, सदियों से अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर के लिए विश्वविख्यात है। इस पवित्र नगरी की गलियों और घाटों में वह आध्यात्मिक शक्ति समाहित है जिसने हजारों संतों और साधकों को मार्गदर्शन दिया है। इन्हीं संतों में एक महान संत और कवि कबीर दास थे, जिन्होंने अपने जीवनकाल में समाज को एकता, सद्भाव, और धार्मिक सुधार का संदेश दिया।
बनारस में कबीर से जुड़ी जो धरोहरें और मठ उनके अनुयायियों और श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बने थे, उनकी रखवाली करने वालों ने उसे दनादन बेचना शुरू कर दिया है। आरोप है कि मठाधीशों ने कबीर मठ की करोड़ों की परिसंपत्तियों को कौड़ियों दाम बेच दिया है। कबीरचौरा मठ, जो कभी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारी गतिविधियों का मुख्य केंद्र था, आज घपलों-घोटालों की जद में है।
कबीर मठ के नाम से जुड़ी संपत्तियां केवल भौतिक संपत्ति नहीं हैं, बल्कि वे एक सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर हैं, जो लाखों लोगों की आस्था से जुड़ी हैं। इन संपत्तियों पर किए जा रहे कब्जों से न केवल मठ के धार्मिक महत्व को खतरा है, बल्कि समाज में भ्रष्टाचार और गैरकानूनी गतिविधियों का भी विस्तार हो रहा है। प्रॉपर्टी डीलरों और महंतों के बीच की यह सांठ-गांठ कानूनी और सामाजिक व्यवस्था को सीधे तौर पर चुनौती देती नजर आ रही है।
विरासत की हिफाजत नहीं
कबीरचौरा (बनारस) में स्थित कबीर मठ, जिसे संत कबीर की अनमोल विरासत के रूप में देखा जाता है, आज दो महंतों के बीच संपत्तियों के विवाद का केंद्र बन चुका है। एक तरफ कबीरचौरा स्थित कबीर मठ मूलगाधी के पीठाधीश्वर विवेक दास हैं, और दूसरी तरफ मगहर के मठाधीश विचार दास। दोनों महंतों के बीच कबीर मठ की संपत्तियों को लेकर गंभीर विवाद चल रहा है, जिसमें प्रॉपर्टी डीलरों के साथ मिलीभगत की बातें सामने आ रही हैं।
शिवपुर के कादीपुर इलाके में कबीरचौरा मठ के महंत विवेक दास के उत्तराधिकारी प्रमोद दास द्वारा कीमती जमीन को कौड़ियों के दाम पर बेचे जाने का मामला अभी थमा भी नहीं था, कि एक और कीमती संपत्ति बेचे जाने का मामला सामने आ गया। कबीर मठ की यह संपत्ति सदर तहसील के कसवार राजा परगना के बखरिया गांव में है। इस संपत्ति की कीमत करोड़ों में है, लेकिन महंत विचार दास ने इसे सिर्फ एक करोड़ रुपये में बेचने का सौदा कर दिया है।
दूसरी तरफ, कबीर चौरा के महंत विवेक दास भी जमीनों की खरीद-फरोख्त में पीछे नहीं रहे। उन्होंने भी कबीर मठ की कई संपत्तियों को सस्ते दामों पर बेच डाला। संत विवेक दास जब बीमार रहने लगे तो उन्होंने अपने एक शिष्य प्रमोद दास को अपना उत्तराधिकारी बनाया। कुछ महीने पहले संत प्रमोद दास ने भी कबीर मठ की जमीनों का अवैध तरीके सौदा करना शुरू कर दिया। इस विवाद ने तब और तूल पकड़ा जब महंत विवेक दास जेल में बंद थे, तभी उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने मठ की संपत्तियों को बेचना शुरू कर दिया।
महंत विवेक दास जेल से छूटकर आए तो उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस बुलाई और कहा कि जमीनों का सट्टा निरस्त किया जाएगा। साथ ही प्रमोद दास की पावर आफ अटार्नी रद की जाएगी। इस बाबत उन्होंने क्या कदम उठाया, उन्होंने अभी तक मीडिया को कोई जानकारी नहीं दी। फिलवाह वह पत्रकारों के सवालों से बचते नजर आ रहे हैं।
आरोप है कि शिवपुर के मौजा कादीपुर स्थित बेशकीमती जमीन को संत विवेक दास के उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने महज कुछ लाख रुपये में एक प्रॉपर्टी डीलर के नाम रजिस्टर्ड सट्टा कर दिया है। यह रजिस्टर्ड सट्टा पाटलीपुत्र रियल एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक विवेक कुमार कुशवाहा के नाम किया गया, जो मूल रूप से गाजीपुर के निवासी हैं और बनारस में रहते हैं। यह सौदा महज औपचारिकताओं के तहत किया गया, लेकिन इससे साफ होता है कि कबीर मठ की संपत्तियों को अवैध रूप से बेचने का खेल लंबे समय से जारी है।
शिवपुर परगना के कादीपुर मौजा में स्थित श्री सद्गुरु कबीर मंदिर की जमीन, जिसकी कीमत करोड़ों में आंकी गई है, को मात्र कुछ लाख रुपये में बेचा गया। यह सौदा बिना किसी न्यायालय की अनुमति के किया गया, जो न केवल कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन है, बल्कि कबीर की विरासत के साथ खिलवाड़ है।
कबीर चौरामठ के पीठाधीश्वर विवेक दास कुछ महीने पहले जब एक महिला के साथ यौन उत्पीड़न और अभद्र व्यवहार के मामले में जेल में बंद थे, तब उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने मठ की जमीनों को रजिस्टर्ड सट्टे के जरिये बेचने का खेल खेला। इस घटना से यह साफ होता है कि कबीर मठ की संपत्तियों को हड़पने की कोशिशें किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं, बल्कि पूरे एक संगठित तंत्र द्वारा की जा रही हैं।
महंतों पर आरोप-दर-आरोप
इस बीच, कबीर मठ से जुड़े संत प्रह्लाद दास ने भी महंत विवेक दास पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि विवेक दास ने मठ की 50 अरब रुपये की संपत्तियों को अवैध रूप से अपने ट्रस्ट के नाम दर्ज करा लिया और अब वे विदेश भागने की फिराक में हैं। कबीर मठ की संपत्तियों को अवैध रूप से बेचने के खिलाफ कबीर मठ के बाबा प्रह्लाद दास ने अदालत का दरवाजा खटखटाया।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नितेश कुमार ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए महंत विवेक दास और उनके सहयोगियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। इसके बाद चेतगंज थाने में विवेक दास और नौ अन्य लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी और अन्य गंभीर आरोपों में मुकदमा दर्ज किया गया। यह मुकदमा सिर्फ महंत विवेक दास के खिलाफ नहीं है, बल्कि इसमें नगर निगम के कर्मचारी, ट्रस्ट के अन्य सदस्य और कई बड़े नाम शामिल हैं, जिन्होंने कबीर मठ की संपत्तियों को हड़पने में मदद की।
श्री सद्गुरु कबीर मंदिर कबीरचौरा मठ के महंत विवेक दास के जेल जाने के बाद उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास द्वारा संपत्ति बेचने का मामला चर्चा में आ गया है। महंत विवेक दास जब जेल में थे, उसी दौरान प्रमोद दास ने मठ की करीब 20 बिस्वा जमीन का सट्टा कर दिया। यह जमीन वाराणसी के शिवपुर इलाके में स्थित है और संस्था की कुल 157 बिस्वा जमीन में से 20 बिस्वा जमीन को किराये पर देने का सौदा महेंद्र कुमार मिश्र नामक व्यक्ति के साथ किया गया, जो बरहीकला नेवादा का निवासी है। यह सौदा 24 जून 2024 को दर्ज किया गया, जिसमें महेंद्र कुमार मिश्र गवाह भी बने।
प्रह्लाद दास का आरोप है कि महंत विवेक दास ने बिना जिला जज की अनुमति के मठ की संपत्तियों को बेचा और उनका निजी ट्रस्ट 'सिद्धपीठ कबीरचौरा मठ मूलगादी' बनाया। इस ट्रस्ट के नाम पर कबीर मठ की संपत्तियों को बेचने की साजिश रची गई, जिसमें नगर निगम के कर्मचारियों का भी सहयोग मिला।
महंत विवेक दास ने 2010 में अपने निजी ट्रस्ट की स्थापना की और इस फर्जीवाड़े में उन्होंने नगर निगम के कई अधिकारियों की मदद से मठ की संपत्ति को अपने ट्रस्ट के नाम करवा लिया। जब उन पर कार्रवाई की गई, तो उन्होंने ट्रस्ट से इस्तीफा दे दिया और प्रमोद दास को मठ का नया महंत नियुक्त किया। वर्तमान में प्रमोद दास मठ की देखभाल कर रहे हैं और संपत्तियों के सौदों में लगे हुए हैं। महंत विवेक दास ने न्यायालय में बयान दिया कि उन्हें यह जानकारी नहीं थी कि सोसाइटी की संपत्ति बेचने से पहले अनुमति लेनी होती है। उन्होंने कहा कि यदि उन्हें यह पता होता, तो वे अनुमति अवश्य लेते।
कबीर मठ की संपत्तियों के बेचे जाने का मामला उजागर हुआ तो चंदौली के सांसद वीरेंद्र सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर अपनी चिंता जाहिर की। उन्होंने कबीर मठ की संपत्तियों को कौड़ियों के दाम पर बेचे जाने की उच्च स्तरीय जांच की मांग उठाई है। इसके साथ ही, उन्होंने सीबीआई से उन प्रॉपर्टी डीलरों की भूमिका की जांच कराने की अपील की है, जो कबीर की विरासत को हड़पने की कोशिश में लगे हैं। वीरेंद्र सिंह का कहना है कि यह अत्यंत शर्मनाक है कि प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में संत कबीर की संपत्तियों पर डाका डाला जा रहा है, और प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। उन्होंने यह भी कहा है कि यह मुद्दा संसद में उठाया जाएगा और कबीर की विरासत की रक्षा के लिए हर संभव लड़ाई लड़ी जाएगी।
बनारस के लहरतारा स्थित मठ के पीठाधीश्वर महंत गोविंद दास ने सबरंग इंडिया के बातचीत में कहा कि विवेक दास ने मीडिया को बुलाकर प्रोपगंडा किया, लेकिन उत्तराधिकार के मामले में अभी तक कोई कागजी कार्रवाई नहीं हुई। कबीरचौरा मठ कबीर की ऐतिहासिक धरोहर है। सरकार को चाहिए कि वह घपलों और घोटालों की जांच कराए और रिसीवर नियुक्त करे। घपला घोटाला पाया जाता है तो इसे अधिग्रहीत कर ले। कबीर कुटिया का इस्तेमाल पैसे लेकर शादी के लिए ठेका सपा के एक पूर्व पार्षद को दे रखा है। मठ के साधुओं को मारपीट कर फर्जी मुकदमों में फंसाकर भगाया जा रहा है। सरकार निष्पक्ष जांच कराए।
वह कहते हैं, "विवेक दास लगातार मीडिया में भ्रम फैला रहे हैं उन्होंने कई देशों में कबीर के विराचारधारा को फैलाने के लिए मठ और मंदिर बनवाएं। यह सब सरासर झूठ है और यह सच है तो उन्हें विदेशों में खोले गए मठ मंदिरों की तस्वीरें और अभिलेखीय साक्ष्य मीडिया के सामने रखना चाहिए। कितनी हैरत की बात है कि विवेक दास की जमानत कराने तक के लिए मठ के पास पैसे नहीं थे और उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास को जमीन बेचनी पड़ गई। क्या देश दुनिया में इस मठ का कोई समर्थक नहीं है जो उनकी जमानत भर के लिए पैसा दे सके।"
"अगर यह सच है तो उन्हें महंतगीरी खुद ही छोड़ देनी चाहिए क्योंकि वो कबीर के अनुयायियों में अलोकप्रिय हो चुके हैं। सच यह है कि कोई कबीरपंथी विवेक दास को न सम्मान देता है और न ही उन्हें महंत मानता व पूजता है। कितनी अचरज की बात है कि विवेकदास छह महीने तक जेल में रहे और जेल में बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती हुए। जेल से छूटने के बाद कभी किसी अस्पताल में भर्ती नहीं हुए। इससे प्रतीत होता है कि उनकी बीमारी सिर्फ नाटक थी।"
महंतों की इस अंदरूनी लड़ाई का सीधा फायदा भूमाफियाओं को हो रहा है, जो इन संपत्तियों को कब्जाने के लिए हमेशा से तैयार बैठे हैं। वे जानते हैं कि अगर यह विवाद जारी रहता है, तो भविष्य में वे इन संपत्तियों को इस तरह से बेच सकते हैं कि सरकार भी हस्तक्षेप कर इन्हें वापस नहीं ले सकेगी। यह स्थिति कबीर मठ की संपत्तियों को अवैध तरीके से हड़पने की साजिश को और आसान बना देती है।
कबीर के मूल्यों का उल्लंघन
सांसद वीरेंद्र सिंह कहते हैं, "कबीर दास जैसे महान संत, जो अपने समय में समाज में फैले धार्मिक पाखंड और भेदभाव के खिलाफ खड़े हुए थे, उनकी संपत्तियों पर हो रहे ये अवैध कब्जे न केवल उनके अनुयायियों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए शर्मनाक हैं। कबीर दास की भूमि, जो कभी सामाजिक न्याय और समानता की आवाज उठाने का स्थान थी, अब उन लोगों के हाथों में जा रही है, जिनका मकसद केवल आर्थिक लाभ उठाना है। यह स्थिति कबीर की शिक्षाओं और उनके सिद्धांतों के खिलाफ है।"
"कबीर दास की शिक्षाओं का केंद्र, कबीरचौरा, जो कभी उनकी विचारधारा और सामाजिक सुधार का प्रतीक था, आज उन मूल्यों के विपरीत गतिविधियों का केंद्र बनता जा रहा है। यह मठ अब बाहरी लोगों से भरता जा रहा है, जिनका कबीर की विचारधारा और उनके संदेश से कोई लेना-देना नहीं है। जिन लोगों का उद्देश्य कबीर की विरासत को संरक्षित करना होना चाहिए था, वे अब इन संपत्तियों का व्यावसायिक उपयोग कर रहे हैं, जिससे उनकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्ता खत्म होती जा रही है। कबीर दास, जो अपने समय में धार्मिक पाखंड और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ खड़े हुए थे, आज उन्हीं की भूमि पर उन मूल्यों का उल्लंघन हो रहा है जिनके लिए वे खड़े थे। यह देखकर दुःख होता है कि भूमाफिया और महंतों का यह गठजोड़ न केवल कबीर मठ की संपत्तियों का अवैध तरीके से दोहन कर रहा है, बल्कि उनके विचारों और संदेशों को भी अपवित्र कर रहा है।"
सांसद वीरेंद्र सिंह कहते हैं, "कबीरचौरा मठ स्वतंत्रता आंदोलन के समय क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था। अंग्रेज गवर्नरों ने नाराज होकर तीन तीन बार मठ को तोड़कर अस्पताल में मिला देने का आदेश दिया। मठ में मौजूद कबीर के जीवन दर्शन पर आधारित मूर्तियां और तैल चित्र भी आकर्षण का केंद्र हैं। कबीर दास ने समाज में फैले पाखन्ड, कुरीतियों और अन्धविश्वासों का विरोध कर सद्भाव का संदेश दिया था। कबीर की शिक्षाएं सामाजिक समानता और धार्मिक सद्भाव की पक्षधर थीं। लेकिन आज उन्हीं की संपत्तियों पर कब्जे की यह लड़ाई इस बात का प्रमाण है कि कैसे उनकी विरासत को नजरअंदाज किया जा रहा है। यह केवल संपत्ति विवाद नहीं है, बल्कि यह कबीर की विरासत पर हो रहे आघात का प्रतीक है।"
यौन उत्पीड़न का आरोप
श्री सद्गुरु कबीर मंदिर कबीरचौरा मठ मुलगादी के महंत विवेक दास को इसी साल मई 2024 में एक दलित महिला के साथ अश्लील हरकत करने के मामले में जेल गया था। पीड़ित दलित महिला ने महंत विवेक दास के खिलाफ साल 2022 में कई संगीन आरोप लगाए थे। महिला ने आरोप लगाते हुए कहा था कि कबीर मठ मूलगादी के महंत विवेक दास अपने साथियों के साथ मिलकर उन पर अश्लील टिप्पणियां की थी। इसके बाद एससी-एसटी कोर्ट ने वारंट जारी करते हुए महंत को तलब किया था। जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और जेल भेज दिया गया था।
मजेदार बात यह है कि श्री सद्गुरु कबीर मंदिर के महंत विवेक दास जिस समय जेल में थे, उसी दौरान उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने करीब 20 बिस्वा जमीन बेचने के लिए सट्टा कर दिया। खबर है कि प्रमोद दास ने शिवपुर में मौजूद संस्था की 157 बिस्वा जमीन को सिर्फ दस हजार रुपये महीने पर किराये पर महेंद्र कुमार मिश्र नामक व्यक्ति को दिया है, बरहीकला नेवादा के निवासी हैं। 24 जून 2024 को जिस 20 बीस बिस्वा जमीन का रजिस्टर्ड सट्टा कराया गया था उस में यह शख्स गवाह है।
बनारस में संत कबीर दास की कई अन्य संपत्तियों को औने-पौने दाम पर बेचे जाने का खेल नया नहीं है। कबीर मठ से जुड़े 80 वर्षीय बाबा प्रह्लाद दास ने महंत विवेक दास के ऊपर मठ की 50 अरब की संपत्ति अवैध तरीके से अपने ट्रस्ट के नाम करने का आरोप लगाया था। जिला मजिस्ट्रेट को दिए गए प्रार्थना प्रत्र में जिक्र किया था कि विवेक दास अरबों की संपत्ति हड़पने के बाद विदेश भागने की फिराक में है। कबीर मठ के बाबा प्रह्लाद दास के प्रार्थना पत्र पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नितेश कुमार ने कड़ा रुख अपनाते हुए एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था। कोर्ट के आदेश पर कबीरचौरा मूलगादी मठ के महंत विवेक दास सहित नौ लोगों के खिलाफ चेतगंज थाने में धोखाधड़ी सहित अन्य आरोपों में मुकदमा दर्ज किया गया है।
इस मुकदमे में महंत विवेक दास के अलावा अन्य आरोपियों में कबीर मठ के रामदास व प्रमोद दास, कबीरचौरा के डॉ दीपक मलिक, चेतगंज के त्रिभुवन प्रसाद, सीतापुर (रामनगर) के आनंद दास और नगर निगम के चेतगंज वार्ड के कर अधीक्षक, सर्किल क्लर्क व इंस्पेक्टर के नाम शामिल हैं। बाबा प्रह्लाद दास के अनुसार, श्री सद्गुरु कबीर मंदिर सोसाइटी रजिस्टर्ड संस्था है। संस्था के 23वें आचार्य वर्ष 1993 में विवेक दास बनाए गए। उन्होंने वाराणसी के जिला जज की अनुमित के बगैर अलग-अलग स्थानों पर स्थित संस्था के कई मकान और जमीन बेच दी।
विवेक दास ने व्यक्तिगत ट्रस्ट सिद्धपीठ कबीरचौरा मठ मूलगादी बनाया। इसके बाद श्री सद्गुरु कबीर मंदिर सोसाइटी व मठ की संपत्ति पर अपने व्यक्तिगत ट्रस्ट के नाम दर्ज करा लिया। विवेक दास के इस फर्जीवाड़े में नगर निगम के कर्मियों के साथ ही अन्य लोग भी सहयोगी बने। कबीर मठ के प्रह्लाद दास ने दाखिल प्रार्थना पत्र में बताया था कि साल 1999 में विवेक दास को श्रीसद्गुरु कबीर मंदिर सोसायटी का चार्ज दिया गया। वह अध्यक्ष बने और इस दौरान ट्रस्ट के पास तीन लाख रुपये बैक बैलेंस दिए गए।
साल 2005 में महंत विवेक दास ने ट्रस्टी की हैसियत से अवैध तरीके से बिना जिला जज से परमिशन लिए सोसायटी एक्ट की धारा-पांच का उल्लंघन करते हुए कतुआपुरा, बौलियाबाग और लहरतारा के मकान समेत दूसरे राज्यों की जमीनों को बेच दिया। प्रह्लाद दास ने यह भी आरोप लगाया था कि महंत विवेक दास ने 14 अक्टूबर, 2010 में अपना एक व्यक्तिगत ट्रस्ट बनाया, जिसका नाम रखा-सिद्धपीठ कबीर चौरा मठ मूलगादी ट्रस्ट।
इसकी रजिस्ट्री कराकर सद्गुरु कबीर मंदिर सोसायटी ट्रस्ट और मठ की जमीनों को बेचते रहे। इसमें नगर निगम के कर्मचारी, क्लर्क, इंस्पेक्टर और टैक्स सुपरिटेंडेंट चेतगंज ने मिलकर मठ की संपत्ति का ट्रस्ट के नाम अंकित कर दिया गया। प्रह्लाद दास का कहना था कि, “विवेक दास की ओर से बनाई गई अवैध कमेटी द्वारा संस्था के 50 अरब की संपत्ति कैसे ट्रस्ट को बिना वैध अंतरण किए नगर निगम के असेसमेंट रजिस्टर में अंकित कर दिया गया? विवेक दास ने अपराध से बचने के लिए ट्रस्ट के अध्यक्ष पद और ट्रस्टी पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद प्रमोद दास को मंहत बना दिया। उन्होंने बताया, पूर्व महंत अब विदेश भागने की फिराक में है।”
बाद में महंत विवेक दास ने मजिस्ट्रेट को जवाब दिया कि, “मुझे यह जानकारी नहीं थी सोसायटी की संपत्ति बेचने से पहले अनुमति लेनी पड़ती है। नहीं तो मैं जिला जज से अनुमति ले लेता। वर्तमान में मेरे शिष्य और उत्तराधिकारी प्रमोद दास कबीर मठ की देखभाल कर रहे हैं।”
कबीर मठ की जमीनों को बेचने का खेल अभी थमता नजर नहीं आ रहा है। हालांकि प्रमोद दास ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि मठ की संपत्तियों का दुरुपयोग नहीं किया जा रहा है। वह कहते हैं कि मठ की सभी संपत्तियों का हिसाब रखा जाता है और जो भी जमीन विवाद में है, उसे अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। इस मुद्दे पर बातचीत करने के लिए प्रमोद दास ने इस प्रतिनिधि को बुलाया, लेकिन खुद गायब हो गए। कई बार उनसे संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनकी ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं आया।
कबीर मठ के महंत विवेक दास से मिलने के लिए यह प्रतिनिधि पहुंचा तो वह अपने एक शिष्य से पैर दबवा रहे थे। परिचय देने पर वो भड़क गए और गाली-गलौच पर उतर आए। यहां तक कह डाला कि मीडिया ने हमें शहर में नंग कर दिया है। हम किसी से बात नहीं करना चाहते। कबीर मठ में हम ऐसे किसी व्यक्ति को नहीं आने देंगे दो हमारे खिलाफ दुष्प्रचार करता है। दूसरी ओर, मगहर के मठाधीश विचार दास कहते हैं कि सारनाथ की जमीनों को बेचने के मामले में मेरी तरफ से गलती हुई है। हम इसे सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। जो कुछ हुआ अज्ञानता की वजह से हुआ।
विवेक दास पर धोखाधड़ी का केस
कुछ दिन पहले राजस्थान के जोधपुर में कबीर मठ के महंत विवेक दास के खिलाफ धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के आरोपों में एक नया मुकदमा दर्ज हुआ है। इस मामले में उनके साथ उज्जैन के कबीर मठ के महंत चेतन दास का भी नाम शामिल है। यह केस जोधपुर के फतेहसागर स्थित कबीर आश्रम के महंत राजेंद्र दास की शिकायत पर दर्ज किया गया है।
महंत राजेंद्र दास ने शिकायत में बताया कि उनके गुरु प्रह्लाद दास, जो फतेहसागर कबीर आश्रम के महंत थे, कोविड महामारी के दौरान ब्रह्मलीन हो गए थे। गुरु की इच्छा के अनुसार, जुलाई 2021 में राजेंद्र दास को आश्रम का नया महंत बनाया गया। इसके बाद से ही उज्जैन के चेतन दास की नीयत इस आश्रम की संपत्तियों पर खराब हो गई और वह इन्हें हड़पने की कोशिश में लग गए।
राजेंद्र दास का आरोप है कि चेतन दास ने काशी के महंत विवेक दास के साथ मिलकर एक फर्जी दस्तावेज तैयार कराया, जिसमें उनकी महंती को निरस्त करने का दावा किया गया। राजेंद्र दास ने यह भी कहा कि जब विवेक दास ने उन्हें महंत घोषित ही नहीं किया, तो उन्हें हटाने का कोई अधिकार भी नहीं है। उनका कहना था कि विवेक दास को इस प्रकार का पत्र जारी करने का अधिकार नहीं है। पुलिस ने इस शिकायत के आधार पर केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। पुलिस का कहना है कि जल्द ही उज्जैन से चेतन दास और वाराणसी से विवेक दास को पूछताछ के लिए बुलाया जाएगा।
उत्तराधिकार की लड़ाई
कबीरमठ मूलगादी के उत्तराधिकार को लेकर इसी साल दो पक्ष आमने-सामने आ गए थे। बाद में चेतगंज थाना पुलिस ने दोनों पक्ष के अभिलेखों के अवलोकन के बाद समझा-बुझाकर मामला शांत कराया था। एक पक्ष के महंत विचार दास कुछ लोगों के साथ कबीरचौरा स्थित मठ में पहुंचे। खुद को सद्गुरु कबीर मंदिर ट्रस्ट द्वारा उत्तराधिकारी बनाए जाने की बात कहने लगे। वे अपने पक्ष में अदालत का आदेश भी दिखा रहे थे। उनका कहना था कि वहीं रहकर मठ का संचालन करेंगे। यह देखकर आचार्य महंत विवेक दास के उत्तराधिकारी प्रमोद दास के समर्थक भी जमा हो गए। उन्होंने विचार दास का विरोध किया और उन पर मठ पर कब्जा करने की नीयत से आने का आरोप लगाते हुए पुलिस को सूचना दे दी।
मौके पर पहुंची पुलिस को विचार दास ने बताया कि आचार्य महंत अमृत साहब के देहांत के बाद ट्रस्ट के सदस्यों ने आचार्य गंगा शरण को अध्यक्ष उन्हें मंत्री, उत्तराधिकारी, अधिकारी तीन पद दिया। इस मामले में एक मुकदमा भी वाराणसी कचहरी के सिविल जज सीनियर डिविजन अदालत में चला, जिसमें अदालत ने यथा स्थिति बनाए रखते हुए विचार दास को कार्य करने का आदेश दिया। इसके अनुपालन के लिए पुलिस को भी निर्देशित किया। इसे मठ के लोग मान नहीं रहे हैं।
वहीं, दूसरे पक्ष के महंत प्रमोद दास खुद को कबीरचौरा मठ मूलगादी के उत्तराधिकारी बताते रहे। उनका कहना था कि उन्हें आचार्य महंत विवेक दास ने उत्तराधिकारी बनाया है। उन्होंने विचार दास पर मठ की संपत्ति बेचने का आरोप लगाते हुए कहा कि मठ की सारनाथ स्थित कीमती जमीन को बेचने का साजिश की गई थी।
इस मामले में आचार्य महंत विवेक दास ने विचार दास के खिलाफ मुकदमा लिखवाया है। विचार दास मगहर मठ की व्यवस्था संभालते हैं और फर्जी तरीके से अपने को उत्तराधिकारी बता रहे हैं। देश भर में कबीरचौरा मूलगादी मठ से जुड़ी सैकड़ों बीघा भूमि माफिया और साधुओं की मिलीभगत से विवादों में है। कबीरचौरा मूलगादी में जमीन, गद्दी और विरासत का विवाद साल 2010 में शुरू हुआ।
बेच नहीं सकते कबीर की जमीन
लहरतारा स्थित प्राचीन संत कबीर प्रकट्य स्थल के महंत गोविंद दास शास्त्री ने सबरंग इंडिया से कहा, "जो गलत है, वह गलत है। अगर हम कुछ बना नहीं सकते, तो उसे बिगाड़ने का हमें कोई अधिकार नहीं है। कबीर की परिसंपत्तियों को बेचने का किसी को भी अधिकार नहीं है। साल 2010 में भी महंत विवेक दास ने मठ की कुछ जमीनें बेच दी थीं। बाद में विचार दास भी जमीनों की खरीद-फरोख्त में जुट गए। जो लोग ऐसा कर रहे हैं, वे पूरी तरह से गलत हैं। यह सच है कि संत कबीर की संपत्तियों पर डाका डाला जा रहा है। जो गड़बड़ियां हो रही हैं, उनके बारे में कबीर के अनुवायियों को कुछ नहीं बताया जा रहा है। हमें एक-एक कदम सोच-समझकर उठाना होगा। हमारा प्रयास कबीर की विचारधारा को प्रचारित करना है, और किसी को भी भ्रमित नहीं है।"
"24 जून 2024 को शिवपुर में जिस जमीन का सट्टा कराया गया था, उसकी बाजार कीमत करीब 20 करोड़ रुपये बताई जा रही है। प्रमोद दास ने सफाई देते हुए कहा कि शिवपुर की जमीन पर अस्पताल बनाने की योजना थी, लेकिन बाद में दुबई के एक उद्यमी ने हाथ पीछे खींच लिए। संत विवेक दास ने प्रेस कांफ्रेंस कर मीडिया में झूठी खबरें फैलाई और दावा किया कि उन्होंने कोई जमीन नहीं बेची है। उनके शिष्य प्रमोद दास ने अवैध तरीके से शिवपुर में जो जमीन बेची है, उसका सट्टा निरस्त करने के लिए अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है। यह वही जमीन है जहां अस्पताल बनाया जाना था। सबसे बड़ी बात यह है कि कबीर मठ की कमेटी के सदस्यों की बैठक के बगैर अथवा किसी से इस्तीफा लिए बगैर न तो किसी को हटाया जा सकता है और न ही किसी पावर ऑफ अटॉर्नी छीनी जा सकती है?"
"चिटफंड रजिस्ट्रार कार्यालय ने जो दस्तावेज जारी किया है, उसमें प्रमोद दास का नाम है। अब विवेक दास के पास कोई अधिकार नहीं है। उन्हें मीडिया में बने रहने का तरीका पता है, और सफाई देने में भी वे माहिर हैं। विवेक दास एक बड़े खिलाड़ी हैं। वे 25 साल से अस्पताल बनाने की बात कर रहे थे, लेकिन उस जगह को बेच दिया और एक ईंट भी नहीं रखी। सारनाथ में कबीर विद्यापीठ स्थापित करने के लिए विकास प्राधिकरण के तत्कालीन उपाध्यक्ष राहुल पांडेय ने उनसे बात की थी। इस प्रोजेक्ट में कबीर को बुद्ध से जोड़ने का एक अच्छा कॉन्सेप्ट दिया गया था, लेकिन विवेक दास ने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उसी जमीन को मगहर के पीठाधीश्वर विचार दास ने कई लोगों के नाम सट्टा कर दिया। इसी मामले में हमें फर्जी तरीके से फंसाया गया और जेल भेजा गया।"
सरकारी धन लौटाने का आरोप
महंत गोविंद दास शास्त्री यह भी कहते हैं, "कबीरचौरा मठ में कबीर म्यूजियम के लिए शासन ने 25 करोड़ रुपये की मंजूरी दी थी, लेकिन विवेक दास ने यह कहकर देने से मना कर दिया कि कबीर मठ सरकारी हो जाएगा। बनारस के कमिश्नर कौशलराज शर्मा ने कई बार इस मामले में विवेक दास से बात की थी। उस प्रोजेक्ट को मैं लहरतारा लाने की कोशिश कर रहा हूं। राज्य सरकार ने लहरतारा कबीर प्रकट्य स्थल के लिए आठ करोड़ रुपये का बजट दिया है। इसके साथ ही, तीन करोड़ रुपये की लागत से एक इंटरप्रिटेशन सेंटर भी बनवाया जा रहा है। हमें कबीर के प्राकट्य स्थल को बचाने की चिंता है और विवेक दास सरीखे लोगों को कबीर की संपत्तियों को बिल्डरों और प्रापर्टी डीलरों के हाथ औने-पैने दाम पर बेचने की चिंता है।"
"कबीरचौरा मठ में चले जाइए, यह पता चल जाएगा कि विवेक दास क्या करते हैं और अब तक उन्होंने किया क्या है? हालात ये हैं कि कबीर चौरा कबीर मठ में एक भी सार्वजनिक शौचालय नहीं है। यहां मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। भक्तों के लिए न बैठने की व्यवस्था है, न ठहरने की। आश्रम में बंदूकधारी गार्ड तैनात किए गए हैं। कबीर मठ के बगल में बिहार में सजायाफ्ता अपराधी को कबीर विद्यालय कबीर चौरा पर कब्जा करा दिया गया है। गुजरात में कबीर के कुछ अनुयायियों ने कबीर मठ के विकास के लिए लाखों रुपये टाइल्स लगवाने के लिए दान दिया था। बहुत दिन गुजर गए और जब काम नहीं हुआ तब दानदाताओं ने अपना पैसा मांगना शुरू किया, तब टाइल्स लगाने का काम शुरू हो पाया।"
"महंत विवेक दास और उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने मिलकर मठ की अरबों की संपत्ति बेची है। बिजली का लंबा बकाया होने के कारण कनेक्शन काटा जा चुका है। इसके बावजूद अवैध रूप से न सिर्फ बिजली जलाई जा रही है, बल्कि एसी और हीटर भी चलाए जा रहे हैं। कबीर कुटिया का इस्तेमाल वैवाहिक स्थल के रूप से किया जा रहा है जो कबीर की आस्था और उनकी अस्मिता पर चोट पहुंचाता है।"
महंत गोविंद दास शास्त्री कहते हैं, "विवेक दास ने जितनी भी जमीनें बेच है वह उत्तर प्रदेश सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा-05 ए का उल्लंघन करके बेचा है। इस बैमाने को रद् कराएं और संस्था की संस्था के नाम कराएं। फिलहाल इलाहाबाह हाईकोर्ट ने यथास्थिति कायम रखते हुए इस संपत्ति के हस्तांतरण पर रोक लगा दी है। इस बीच उन्होंने फिर उत्तर प्रदेश सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा-05 ए का उल्लंघन करते हुए प्रापर्टी डीलर विवेक कुशवाहा के साथ फिर विक्रय का अनुबंध किया है, जबकि नियमानुसार इस तरह का अनुबंध भी बिना जिला जज की अनुमति से नहीं कर सकते हैं। सभी बैनामों के शून्य कराएंगे। रजिस्ट्रार को एफआईआर करना पड़ेगा। "
सरकार बचाए कबीर की संपत्ति
बनारस के समाजवादी चिंतक एवं संत कबीर में गहरी आस्था रखने वाले विजय नारायण इस बात से दुखी है कि कबीर दास की संपत्तियों को बेचने की होड़ लगी है। इसे डकैती कहा जाए तो गलत नहीं होगा। विवेक दास हो या फिर विचार दास, सभी ने कबीर मठ की संपत्तियों को भूमाफिया के हाथों कौड़ियों के दाम बेचा है और अभी यह सिलसिला थमा नहीं है। कबीर मठ किसी की बपौती नहीं है। यह कबीर के अनुयायियों के आस्था का मंदिर है। कबीरचौरा मठ का ऐतिहासिक महत्व बेहद गहरा है। यह मठ केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि कबीर के जीवन दर्शन और उनकी शिक्षाओं का प्रतीक भी है।"
"कबीर मठ में मौजूद कबीर से जुड़ी मूर्तियां, तैल चित्र, और अन्य धरोहरें धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का केंद्र बनी हुई हैं। इनकी ऐतिहासिक महत्ता यह दर्शाती है कि मठ ने कैसे समाज में व्याप्त पाखंड, अंधविश्वास, और कुरीतियों का विरोध किया। कबीर के संदेश ने समाज को एकता, प्रेम, और समानता का रास्ता दिखाया, और इसी वजह से मठ की यह विरासत अनमोल मानी जाती है।"
विजय नारायण यह भी कहते हैं, "कबीर के विचारों और उनके द्वारा छोड़ी गई संपत्तियों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। लेकिन, हाल के वर्षों में इन पवित्र स्थलों और संपत्तियों पर जिस तरह से कब्जे किए जा रहे हैं, वह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से गंभीर है, बल्कि सामाजिक और कानूनी दृष्टि से भी अत्यधिक चिंताजनक है। कबीर की विरासत को संरक्षित करने के बजाय, उनके नाम से जुड़ी संपत्तियों पर नाजायज़ कब्ज़ा करने की कोशिशें लगातार तेज हो रही हैं। कबीर मठ के सार्वजनिक संपत्ति के दुरुपयोग पर रोक लगाते हुए तत्काल राज्यहित में रिसीवर नियुक्त कर समूचे मामले की जांच कराई जाए। साथ ही जमीनों की अवैध बिक्री को तत्काल निरस्त कराया जाए।"
"कबीरचौरा मठ पर विदेश के किसी मठ मंदिर का फोटो किसी को नहीं, दिखाया। कबीर मठ की जमीन बनारस की जनता की है, जनता पैसा देती आ रही है और वहीं जमीनों की रक्षा करता आ रही है। कबीर मठ की जमीन किसी की निजी प्रापर्टी नहीं है कि कोई जब चाहे उसे बेच दे। विवेक दास अगर सच्चाई की राह पर चल रहे हैं तो उन्हें सच उजागर करना चाहिए और मठ के आय-व्यय की कम से कम दो दशक की बैलेंस शीट जनता के समक्ष रखना चाहिए। सरकार को अगर कबीर मठ में घपला घोटाला मिलता है तो उसे इसे अधिग्रहीत कर लेना चाहिए। कबीर के प्रति काशी के लोगों गहरी श्रद्धा है। कबीर की आस्था के साथ किसी तरह का खिलवाड़ काशी की जनता बर्दास्त नहीं करेगी।"
(कबीर दास की परिसंपत्तियों के फर्जीवाड़े के संबंध ने सबरंग इंडिया ने महंत विवेक दास और उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास से उनका पक्ष जानने की कई बार कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। अगर कोई जवाब आता है स्टोरी अपडेट की जाएगी।)
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)