स्वायत्तता के लिए लद्दाख की लड़ाई: सोनम वांगचुक के नेतृत्व में दिल्ली के लिए पैदल मार्च

Written by sabrang india | Published on: September 19, 2024
राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची सुरक्षा की मांग करते हुए लद्दाखवासी बढ़ती राजनीतिक और पर्यावरणीय चुनौतियों के बीच अपनी सांस्कृतिक विरासत और नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के लिए रैली निकाल रहे हैं।



सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्व से समृद्ध लद्दाख अब दोराहे पर है। पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने नई दिल्ली तक पैदल मार्च का नेतृत्व किया, जिसमें उन्होंने भारत सरकार से संविधान की छठी अनुसूची के तहत लद्दाख को अधिक स्वायत्तता देने का आह्वान किया। स्थानीय नेताओं और विभिन्न समुदायों द्वारा समर्थित इस मार्च का उद्देश्य लद्दाख के नाजुक पर्यावरण और अनूठी सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करना और वास्तविक राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है। अनुच्छेद 370 के रद्द होने के बाद अधूरे वादों पर बढ़ती निराशा के साथ, लद्दाखवासी अपनी जमीन और भविष्य को सुरक्षित करने के लिए बेहतर सुरक्षा की मांग कर रहे हैं।

पृष्ठभूमि
9 सितंबर, 2024 को, जाने-माने पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लद्दाख को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की अपील की। यह प्रावधान स्थानीय नेताओं को कानून बनाने की शक्ति प्रदान करेगा, जिसका उद्देश्य बढ़ते बाहरी दबावों और पर्यावरणीय चुनौतियों के बीच लद्दाख की अनूठी भूमि और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करना है। वांगचुक का ये अनुरोध लद्दाख में व्यापक आंदोलन को दर्शाता है जो अधिक स्वायत्तता और इसकी विशिष्ट विरासत के संरक्षण की वकालत करता है।

ऐतिहासिक और राजनीतिक संदर्भ
अनुच्छेद 370 रद्द करना: अगस्त 2019 में भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को रद्द कर दिया, जिसके जरिए लद्दाख सहित जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया था। इस फैसले के बाद, लद्दाख को एक केंद्र शासित प्रदेश में विभाजित कर दिया गया, जिसमें विधानसभा नहीं है। यह घोषणा लेह में उत्साह का कारण बनी, लेकिन जल्दी ही यह स्पष्ट हो गया कि लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया गया, जिससे निराशा बढ़ी और लेह एपेक्स बॉडी (LAB) का गठन हुआ।

सिफ़ारिशें और सरकारी समितियां: सितंबर 2019 में, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की सिफारिश की। यह सिफारिश स्थानीय आदिवासी संस्कृति और भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक थी।

जारी विरोधों की प्रतिक्रिया: जनवरी 2023 में गृह मंत्रालय ने लद्दाख में प्रमुख मुद्दों को निपटाने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया। हालांकि, रफ्तार धीमी रही है और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अप्रैल 2024 में संकेत दिया कि लद्दाख के छठी अनुसूची का दर्जा या राज्य का दर्जा प्राप्त करने की संभावनाएं कम हैं।

पद यात्रा की पहल
यात्रा का शुभारंभ: पदयात्रा 1 सितंबर, 2024 को लेह से शुरू हुई, जिसमें वांगचुक और लगभग 75 स्वयंसेवक नई दिल्ली की यात्रा पर निकले। यह मार्च न केवल एक भौतिक यात्रा है, बल्कि प्रतिरोध और वकालत का एक प्रतीकात्मक कार्य भी है। इसमें शामिल लोगों का उद्देश्य केंद्र सरकार से लद्दाख के नेतृत्व के साथ चर्चा फिर से शुरू करने और उनकी लंबे समय से चली आ रही मांगों को पूरा करने का आग्रह करना है। वांगचुक और उनकी टीम हर दिन लगभग 25 किलोमीटर की दूरी तय कर रहे हैं, जो ऊंचाई वाले क्षेत्रों की चुनौतीपूर्ण भूभाग और मौसम को सहन कर आगे बढ़ रहे हैं। यह मार्च 2 अक्टूबर, गांधी जयंती तक जारी रहेगा, और वे राष्ट्रीय राजधानी पहुंचकर अपनी मांगों को सीधे सरकार के सामने रखेंगे।

पिछली मांगें और सरकार की प्रतिक्रिया: वांगचुक ने इस बात पर जोर दिया कि जुलाई में कारगिल विजय दिवस के लिए द्रास की अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री को मांगों का एक विस्तृत ज्ञापन सौंपने के बावजूद उन्हें अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। इस ज्ञापन में छठी अनुसूची के तहत शामिल किए जाने की मांग भी शामिल थी, जिसके बारे में वांगचुक का कहना है कि यह लद्दाख के पारिस्थितिक और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। (विस्तृत रिपोर्ट यहाँ पढ़ी जा सकती है।)

यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि हाल ही में सरकार ने लद्दाख में पांच नए ज़िले—ज़ांस्कर, द्रास, शाम, नुबरा, और चांगथांग—बनाने की घोषणा की। वांगचुक और उनके समर्थकों ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि क्या इन ज़िलों को वास्तविक निर्णय लेने की शक्तियाँ दी जाएँगी या वे केवल प्रशासनिक इकाइयों के रूप में काम करेंगे। इन ज़िलों के निर्माण को लेकर चल रहे विरोधों की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन असली परीक्षा यह होगी कि क्या वे छठी अनुसूची के तहत स्वायत्तता की मांगों के साथ तालमेल बिठा पाते हैं।

मार्च के उद्देश्य और मांगें
चार सूत्रीय एजेंडा: इस पदयात्रा का आयोजन लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) द्वारा किया जा रहा है, जिसमें निम्नलिखित मांगें शामिल हैं:
  1. लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा: लद्दाख को अधिक स्वशासन की अनुमति देने के लिए राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग।
  2. छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा: आदिवासी और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा के लिए लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया जाए।
  3. लोक सेवा आयोग: लद्दाख में भर्ती और प्रशासन की देखरेख के लिए एक लोक सेवा आयोग की स्थापना की जाए।
  4. अलग लोकसभा सीटें: बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए लेह और कारगिल के लिए अलग संसदीय क्षेत्रों का निर्माण किया जाए।

इस पदयात्रा को सेवानिवृत्त सैनिकों, महिलाओं और बुजुर्गों सहित समाज के विभिन्न वर्गों से समर्थन मिला है। जम्मू और कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्य पाल मलिक ने अक्टूबर 2024 में मार्च में शामिल होने की अपनी मंशा की घोषणा की है। यह बढ़ता समर्थन लद्दाखियों के बीच व्यापक असंतोष और अधिक स्वायत्तता की इच्छा को उजागर करता है।

इसके अलावा, लद्दाख अपने नाजुक पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण महत्वपूर्ण पारिस्थितिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। वांगचुक ने बार-बार इस क्षेत्र की कमज़ोरी पर ज़ोर दिया है, जो औद्योगिक गतिविधियों के कारण और भी बढ़ गई है। उनका कहना है कि छठी अनुसूची का प्रावधान क्षेत्र को शोषणकारी प्रथाओं से बचाने और इसकी पर्यावरणीय तथा सांस्कृतिक अखंडता को बनाए रखने के लिए ज़रूरी है।

लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने को इसके आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान की रक्षा का एक उपाय माना जा रहा है। इस क्षेत्र में कई आदिवासी समूह हैं, जिनमें बाल्टी, बेडा, बोट, ब्रोकपा, ड्रोकपा, चांगपा, गर्रा, मोन और पुरीग्पा शामिल हैं। इन समुदायों को बाहरी प्रभावों से ख़तरा है, जो उनके पारंपरिक जीवन जीने के तरीके को ख़तरे में डाल सकते हैं।

भविष्य की संभावना
इस बड़े मार्च का परिणाम अनिश्चित है, लेकिन यह अपने अधिकारों और स्वायत्तता को सुरक्षित रखने के लद्दाखियों के दृढ़ संकल्प का एक शक्तिशाली प्रदर्शन है। जैसे-जैसे पदयात्रा दिल्ली की ओर बढ़ रही है, इसमें शामिल लोग अपनी चिंताओं को राष्ट्रीय मंच पर लाने और केंद्र सरकार से अपनी मांगों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने का प्रयास कर रहे हैं।

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