उप्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र की शुरुआत आज सोमवार से हो गई। सत्र के पहले दिन संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 33769 करोड़ का अनुपूरक बजट पेश किया। इसके पूर्व, सदन में पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव के निधन पर सदस्यों द्वारा शोक व्यक्त किया गया। अनुपूरक बजट पेश करने के बाद सदन की कार्यवाही कल मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दी गई। इससे पहले विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने विधान भवन स्थित अपने कार्यालय में शामली के कैराना से निर्वाचित विधायक नाहिद हसन को शपथ दिलाई।
उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने 18वीं विधानसभा के शीतकालीन सत्र को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए एक दिन पहले सर्वदलीय बैठक में सभी दलीय नेताओं से सहयोग का अनुरोध किया था। बदले में सभी नेताओं ने विधानसभा अध्यक्ष को सहयोग का भरोसा दिया। लेकिन इस सबसे इतर देखें तो इरफान सोलंकी आदि मामलों को लेकर सत्र हंगामेदार हो सकता है। दरअसल, उप्र सरकार और उसके कामकाज को लेकर विपक्ष ही नहीं, BJP के कई अपनों में भी बैचेनी हैं। प्रदेश भाजपा के कई नेता व सांसद तक 'व्यवस्था' के खिलाफ अपनी नाराजगी को लेकर लगातार मुखर हो रहे हैं और पार्टी और सरकार को शर्मिदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। विपक्ष इन मुद्दों को लपक सकता है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कानपुर से भाजपा सांसद सत्यदेव पचौरी ने यूपी सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि सपा विधायक इरफान सोलंकी के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की जांच गुण और तथ्यों के आधार पर की जाए। पचौरी ने कहा कि सपा विधायक के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की जांच निष्पक्ष तरीके से होनी चाहिए। यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने प्रमुख सचिव (गृह) सहित कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से मिलने में सोलंकी की पत्नी और मां की मदद की, सांसद ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार है कि वह मामले की तह तक जाने के लिए अधिकारियों से मदद मांगे। विपक्ष के एक विधायक से जुड़े मामले में पचौरी के दखल से राज्य सरकार की काफी किरकिरी हुई है।
सपा विधायक, जिन्होंने 3 दिन पहले आत्मसमर्पण किया, पर आधार कार्ड बनाने सहित कई आपराधिक मामलों का सामना करना पड़ रहा है। एक अन्य उदाहरण में कुछ दिनों पहले पचौरी और दो अन्य भाजपा सांसदों, अकबरपुर से देवेंद्र सिंह भोले और मिसरिख से अशोक रावत ने विकास पर चर्चा करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना द्वारा कानपुर के अधिकारियों की बैठक बुलाने पर कड़ी आपत्ति जताई थी। तीनों सांसदों ने बैठक रद्द करने की मांग करते हुए कानपुर मंडल आयुक्त को पत्र भेजा और अध्यक्ष द्वारा इस तरह की बैठक आयोजित करने पर सवाल उठाए जाने के बाद बैठक से चले गए।
उन्होंने अध्यक्ष के कार्यक्षेत्र पर सवाल उठाया और संकेत दिया कि इस तरह की बैठक करना सांसदों के अधिकारों का उल्लंघन है। पत्र में कहा गया है कि विकास कार्यो की समीक्षा के लिए जिला विकास समन्वय एवं अनुश्रवण समिति की बैठक अशोक रावत की अध्यक्षता में हो रही है। पत्र की कॉपी मुख्यमंत्री को भेजी गई है। मामले में सांसदों के रुख से महाना भी अचंभित थे।
महाना ने कहा कि वह इस बैठक की अध्यक्षता करने के अपने अधिकार क्षेत्र में हैं। अमर उजाला के अनुसार, उन्होंने कहा, "मैं कानपुर में महाराजपुर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता हूं और इस तरह की बैठकें करता रहा हूं और करता रहूंगा। मेरा उद्देश्य मात्र ये सुनिश्चित करना है कि विकास कार्यो में कोई बाधा न आए।" देवेंद्र सिंह भोले ने कहा, "महाना संवैधानिक पद पर हैं, उन्हें संवैधानिक मयार्दाओं का पालन करना चाहिए। उनके सलाहकार ने जिस तरह इस बैठक के लिए पत्र लिखा, वह गलत है।" पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि इस बैठक को कानपुर और अकबरपुर लोकसभा सीटों को लेकर रस्साकशी के रूप में देखा जा रहा है।
इससे पहले धौरहरा की सांसद रेखा वर्मा ने पत्र लिखकर एक महिला अधिकारी पर धान खरीद घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया था। ये पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और पहले से ही इसी तरह के आरोप लगाने वाले विपक्ष को गोला बारूद दिया। डुमरियागंज के पूर्व भाजपा विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह ने एक सार्वजनिक समारोह में पार्टी सांसद जगदम्बिका पाल के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया और पार्टी ने उनके व्यवहार को नजरअंदाज कर दिया।
पिछले महीने कैसरगंज से भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने वीडियो जारी कर दावा किया था कि निर्वाचित प्रतिनिधियों को नौकरशाहों के पैर छूने के लिए मजबूर किया गया। उन्होंने योगगुरु बाबा रामदेव को भी आड़े हाथ लिया और उनके खिलाफ जांच की मांग की, यह अच्छी तरह से जानते हुए कि बाबा के भाजपा आलाकमान के साथ मधुर संबंध हैं।
हैरानी की बात है कि पार्टी अनुशासन के उल्लंघन के करीब आधा दर्जन मामलों के बावजूद भाजपा नेतृत्व ने इस मामले में कोई पहल नहीं की है। पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, "सांसद जो जानते हैं कि उम्र या खराब प्रदर्शन के आधार पर उन्हें 2024 में टिकट से वंचित किया जा सकता है, वे बहाना बना रहे हैं। लोकसभा चुनाव के लिए उलटी गिनती शुरू हो गई है और इस तरह के कार्यो को नजरअंदाज किया जाना चाहिए।" हालांकि, एक सांसद ने कहा कि उन्हें केवल इसलिए बोलने के लिए मजबूर किया गया, क्योंकि पार्टी प्रमुख मुद्दों की अनदेखी कर रही थी। उन्होंने कहा, "आने वाले दिनों में और भी नेता बोलेंगे, क्योंकि चुनाव नजदीक हैं, हम लोगों के प्रति भी जवाबदेह हैं।"
योगी 2.0 सरकार शुरू से डैमेज कंट्रोल मोड़ में जुटी
हालांकि योगी सरकार 2.0 के रुख में खासा बदलाव है और वह शुरू से डैमेज कंट्रोल मोड़ में है। इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम और मंत्रियों को शांत करने और असंतोष को खत्म करने के लिए उत्तर प्रदेश में बंटवारा करके जिलेवार निरीक्षण करने, तबादलों में हिस्सेदारी बनाने और उप मुख्यमंत्रियों के साथ साप्ताहिक समन्वय बैठकें आयोजित करने का काम कर रहे हैं। द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा सूत्रों का कहना है कि ये सरकार द्वारा मंत्रियों के बीच कथित असंतोष को दूर करने का एक प्रयास है। राज्य में 18 मंडलों और 18 कैबिनेट मंत्रियों के साथ, आदित्यनाथ के कैबिनेट सहयोगियों में से प्रत्येक को एक-एक मंडल का प्रभार भी इसी कवायद के चलते दिया गया है।
यह कदम राज्य के जल शक्ति मंत्री दिनेश खटीक के विभाग में कथित भ्रष्टाचार को लेकर जुलाई में इस्तीफा देने के बाद उठाया गया था, हालांकि उन्होंने आदित्यनाथ के साथ बैठक के बाद पद पर बने रहने का फैसला किया। केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह को भेजे खटीक के त्याग पत्र ने उनके द्वारा लगाए गए आरोपों को लेकर विपक्ष को योगी सरकार पर हमला करने के लिए प्रेरित किया।
यही नहीं, पिछले दिनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के एक ट्वीट ने भी हलचल मचा दी थी। "संगठन सरकार से बड़ा है," उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर पोस्ट किया था। इन घटनाक्रमों ने भाजपा के भीतर एक संभावित सत्ता संघर्ष के बारे तक में अटकलें लगाई जाने लगी थीं जिससे सीएम योगी आदित्यनाथ और राज्य इकाई को क्षति नियंत्रण मोड में जाने को मजबूर किया। यही नहीं, मंत्रियों के कामकाज में भी बदलाव है। उन्हें क्षेत्र का दौरा करने के साथ सीएम से रिपोर्ट साझा करने को कहा गया है।
डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक कहते हैं कि योगी सरकार की अपराध व भ्रष्टाचार के प्रति 'जीरो टॉलरेंस' की नीति के चलते साप्ताहिक समन्वय बैठकों की नई पहल काफी कारगर है। जुलाई में, तबादला नीति के पालन में कथित अनियमितताओं पर पाठक द्वारा तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव (चिकित्सा और स्वास्थ्य) अमित मोहन प्रसाद को लिखे गए एक पत्र ने आदित्यनाथ प्रशासन के खिलाफ सवाल उठाए थे। द प्रिंट के सवाल कि क्या ये प्रशासनिक परिवर्तन शासन में डिप्टी सीएम के बढ़ते प्रभाव को दर्शाते हैं, पाठक ने कहा “ऐसा कुछ नहीं है। सरकार में हम सब मिलकर काम कर रहे हैं... हम जनता के हित के लिए काम कर रहे हैं। हम नियमित रूप से (समन्वय) बैठकें करते हैं और चर्चा करते हैं।” मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों के अनुसार, समन्वय बैठकें पार्टी के दायरे में होती हैं न कि सरकार के। साप्ताहिक समन्वय बैठकों की बाबत 25 अगस्त को नवनियुक्त भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने भी जोर देकर कहा था कि सरकार पार्टी के एजेंडे के अनुसार ही काम कर रही है।
यही नहीं, योगी 2.0 सरकार की सत्ता में वापसी के तुरंत बाद, सीएम ने अपने मंत्रियों के लिए क्या करें और क्या न करें की एक सूची भी जारी की थी। इनमें व्यक्तिगत कर्मचारियों की नियुक्ति के निर्देश, मंत्रियों के लिए एक दैनिक कार्यक्रम, मंत्रियों को अधिकारियों से ऐसा करने के लिए कहने के बजाय कैबिनेट की बैठकों में अपने संबंधित विभागों की प्रस्तुतियां देना और जिलों के आधिकारिक दौरे के दौरान होटलों के बजाय सरकारी अतिथि गृहों में रहना शामिल था।
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उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने 18वीं विधानसभा के शीतकालीन सत्र को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए एक दिन पहले सर्वदलीय बैठक में सभी दलीय नेताओं से सहयोग का अनुरोध किया था। बदले में सभी नेताओं ने विधानसभा अध्यक्ष को सहयोग का भरोसा दिया। लेकिन इस सबसे इतर देखें तो इरफान सोलंकी आदि मामलों को लेकर सत्र हंगामेदार हो सकता है। दरअसल, उप्र सरकार और उसके कामकाज को लेकर विपक्ष ही नहीं, BJP के कई अपनों में भी बैचेनी हैं। प्रदेश भाजपा के कई नेता व सांसद तक 'व्यवस्था' के खिलाफ अपनी नाराजगी को लेकर लगातार मुखर हो रहे हैं और पार्टी और सरकार को शर्मिदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। विपक्ष इन मुद्दों को लपक सकता है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कानपुर से भाजपा सांसद सत्यदेव पचौरी ने यूपी सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि सपा विधायक इरफान सोलंकी के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की जांच गुण और तथ्यों के आधार पर की जाए। पचौरी ने कहा कि सपा विधायक के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की जांच निष्पक्ष तरीके से होनी चाहिए। यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने प्रमुख सचिव (गृह) सहित कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से मिलने में सोलंकी की पत्नी और मां की मदद की, सांसद ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार है कि वह मामले की तह तक जाने के लिए अधिकारियों से मदद मांगे। विपक्ष के एक विधायक से जुड़े मामले में पचौरी के दखल से राज्य सरकार की काफी किरकिरी हुई है।
सपा विधायक, जिन्होंने 3 दिन पहले आत्मसमर्पण किया, पर आधार कार्ड बनाने सहित कई आपराधिक मामलों का सामना करना पड़ रहा है। एक अन्य उदाहरण में कुछ दिनों पहले पचौरी और दो अन्य भाजपा सांसदों, अकबरपुर से देवेंद्र सिंह भोले और मिसरिख से अशोक रावत ने विकास पर चर्चा करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना द्वारा कानपुर के अधिकारियों की बैठक बुलाने पर कड़ी आपत्ति जताई थी। तीनों सांसदों ने बैठक रद्द करने की मांग करते हुए कानपुर मंडल आयुक्त को पत्र भेजा और अध्यक्ष द्वारा इस तरह की बैठक आयोजित करने पर सवाल उठाए जाने के बाद बैठक से चले गए।
उन्होंने अध्यक्ष के कार्यक्षेत्र पर सवाल उठाया और संकेत दिया कि इस तरह की बैठक करना सांसदों के अधिकारों का उल्लंघन है। पत्र में कहा गया है कि विकास कार्यो की समीक्षा के लिए जिला विकास समन्वय एवं अनुश्रवण समिति की बैठक अशोक रावत की अध्यक्षता में हो रही है। पत्र की कॉपी मुख्यमंत्री को भेजी गई है। मामले में सांसदों के रुख से महाना भी अचंभित थे।
महाना ने कहा कि वह इस बैठक की अध्यक्षता करने के अपने अधिकार क्षेत्र में हैं। अमर उजाला के अनुसार, उन्होंने कहा, "मैं कानपुर में महाराजपुर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता हूं और इस तरह की बैठकें करता रहा हूं और करता रहूंगा। मेरा उद्देश्य मात्र ये सुनिश्चित करना है कि विकास कार्यो में कोई बाधा न आए।" देवेंद्र सिंह भोले ने कहा, "महाना संवैधानिक पद पर हैं, उन्हें संवैधानिक मयार्दाओं का पालन करना चाहिए। उनके सलाहकार ने जिस तरह इस बैठक के लिए पत्र लिखा, वह गलत है।" पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि इस बैठक को कानपुर और अकबरपुर लोकसभा सीटों को लेकर रस्साकशी के रूप में देखा जा रहा है।
इससे पहले धौरहरा की सांसद रेखा वर्मा ने पत्र लिखकर एक महिला अधिकारी पर धान खरीद घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया था। ये पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और पहले से ही इसी तरह के आरोप लगाने वाले विपक्ष को गोला बारूद दिया। डुमरियागंज के पूर्व भाजपा विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह ने एक सार्वजनिक समारोह में पार्टी सांसद जगदम्बिका पाल के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया और पार्टी ने उनके व्यवहार को नजरअंदाज कर दिया।
पिछले महीने कैसरगंज से भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने वीडियो जारी कर दावा किया था कि निर्वाचित प्रतिनिधियों को नौकरशाहों के पैर छूने के लिए मजबूर किया गया। उन्होंने योगगुरु बाबा रामदेव को भी आड़े हाथ लिया और उनके खिलाफ जांच की मांग की, यह अच्छी तरह से जानते हुए कि बाबा के भाजपा आलाकमान के साथ मधुर संबंध हैं।
हैरानी की बात है कि पार्टी अनुशासन के उल्लंघन के करीब आधा दर्जन मामलों के बावजूद भाजपा नेतृत्व ने इस मामले में कोई पहल नहीं की है। पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, "सांसद जो जानते हैं कि उम्र या खराब प्रदर्शन के आधार पर उन्हें 2024 में टिकट से वंचित किया जा सकता है, वे बहाना बना रहे हैं। लोकसभा चुनाव के लिए उलटी गिनती शुरू हो गई है और इस तरह के कार्यो को नजरअंदाज किया जाना चाहिए।" हालांकि, एक सांसद ने कहा कि उन्हें केवल इसलिए बोलने के लिए मजबूर किया गया, क्योंकि पार्टी प्रमुख मुद्दों की अनदेखी कर रही थी। उन्होंने कहा, "आने वाले दिनों में और भी नेता बोलेंगे, क्योंकि चुनाव नजदीक हैं, हम लोगों के प्रति भी जवाबदेह हैं।"
योगी 2.0 सरकार शुरू से डैमेज कंट्रोल मोड़ में जुटी
हालांकि योगी सरकार 2.0 के रुख में खासा बदलाव है और वह शुरू से डैमेज कंट्रोल मोड़ में है। इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम और मंत्रियों को शांत करने और असंतोष को खत्म करने के लिए उत्तर प्रदेश में बंटवारा करके जिलेवार निरीक्षण करने, तबादलों में हिस्सेदारी बनाने और उप मुख्यमंत्रियों के साथ साप्ताहिक समन्वय बैठकें आयोजित करने का काम कर रहे हैं। द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा सूत्रों का कहना है कि ये सरकार द्वारा मंत्रियों के बीच कथित असंतोष को दूर करने का एक प्रयास है। राज्य में 18 मंडलों और 18 कैबिनेट मंत्रियों के साथ, आदित्यनाथ के कैबिनेट सहयोगियों में से प्रत्येक को एक-एक मंडल का प्रभार भी इसी कवायद के चलते दिया गया है।
यह कदम राज्य के जल शक्ति मंत्री दिनेश खटीक के विभाग में कथित भ्रष्टाचार को लेकर जुलाई में इस्तीफा देने के बाद उठाया गया था, हालांकि उन्होंने आदित्यनाथ के साथ बैठक के बाद पद पर बने रहने का फैसला किया। केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह को भेजे खटीक के त्याग पत्र ने उनके द्वारा लगाए गए आरोपों को लेकर विपक्ष को योगी सरकार पर हमला करने के लिए प्रेरित किया।
यही नहीं, पिछले दिनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के एक ट्वीट ने भी हलचल मचा दी थी। "संगठन सरकार से बड़ा है," उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर पोस्ट किया था। इन घटनाक्रमों ने भाजपा के भीतर एक संभावित सत्ता संघर्ष के बारे तक में अटकलें लगाई जाने लगी थीं जिससे सीएम योगी आदित्यनाथ और राज्य इकाई को क्षति नियंत्रण मोड में जाने को मजबूर किया। यही नहीं, मंत्रियों के कामकाज में भी बदलाव है। उन्हें क्षेत्र का दौरा करने के साथ सीएम से रिपोर्ट साझा करने को कहा गया है।
डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक कहते हैं कि योगी सरकार की अपराध व भ्रष्टाचार के प्रति 'जीरो टॉलरेंस' की नीति के चलते साप्ताहिक समन्वय बैठकों की नई पहल काफी कारगर है। जुलाई में, तबादला नीति के पालन में कथित अनियमितताओं पर पाठक द्वारा तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव (चिकित्सा और स्वास्थ्य) अमित मोहन प्रसाद को लिखे गए एक पत्र ने आदित्यनाथ प्रशासन के खिलाफ सवाल उठाए थे। द प्रिंट के सवाल कि क्या ये प्रशासनिक परिवर्तन शासन में डिप्टी सीएम के बढ़ते प्रभाव को दर्शाते हैं, पाठक ने कहा “ऐसा कुछ नहीं है। सरकार में हम सब मिलकर काम कर रहे हैं... हम जनता के हित के लिए काम कर रहे हैं। हम नियमित रूप से (समन्वय) बैठकें करते हैं और चर्चा करते हैं।” मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों के अनुसार, समन्वय बैठकें पार्टी के दायरे में होती हैं न कि सरकार के। साप्ताहिक समन्वय बैठकों की बाबत 25 अगस्त को नवनियुक्त भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने भी जोर देकर कहा था कि सरकार पार्टी के एजेंडे के अनुसार ही काम कर रही है।
यही नहीं, योगी 2.0 सरकार की सत्ता में वापसी के तुरंत बाद, सीएम ने अपने मंत्रियों के लिए क्या करें और क्या न करें की एक सूची भी जारी की थी। इनमें व्यक्तिगत कर्मचारियों की नियुक्ति के निर्देश, मंत्रियों के लिए एक दैनिक कार्यक्रम, मंत्रियों को अधिकारियों से ऐसा करने के लिए कहने के बजाय कैबिनेट की बैठकों में अपने संबंधित विभागों की प्रस्तुतियां देना और जिलों के आधिकारिक दौरे के दौरान होटलों के बजाय सरकारी अतिथि गृहों में रहना शामिल था।
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