"पुल बनाओ, दीवार मत चिनो'', किसानों की नुकीले कंटीले तारों और कीलों से बाड़बंदी पर भड़का विपक्ष

Written by Navnish Kumar | Published on: February 3, 2021
देश की ताकतवर मोदी सरकार इंटरनेट व पानी-बंदी के बाद जिस तरह नुकीले कंटीले तारों और कीलों की बाड़बंदी से किसानों की किलेबंदी में जुट गई है, उसके पीछे सरकार की मंशा क्या है, यह तो वह ही जानें लेकिन सार्वजनिक तौर से इससे जहां बनती बात और बिगड़ती दिख रही है वहीं, सरकार की ही मजाक बनती दिख रही है। वहीं विपक्ष भी भड़क उठा है। संसद में भी इसे लेकर जमकर हंगामा हुआ है।



कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी तथा पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्र्रा ने सरकार पर किसानों को कुचलने का आरोप लगाते हुए कहा है कि जिस तरह से पुलिस किसानों को रोकने के लिए काम कर रही है उसे देखते हुए लगता है कि मोदी सरकार ने अपने ही लोगों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है।

राहुल गांधी ने कहा, “मोदी सरकार का काम करने का तरीका है- उनको चुप कर दो, उनको किनारे कर दो, उनकों जमकर कुचल दो। उन्होंने आगे कहा, पुल बनाओ लेकिन दीवार मत चिनो।”



प्रियंका गांधी ने सवाल किया कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों के साथ युद्ध कर रहे हैं। उन्होंने सवाल करते हुए कहा “प्रधानमंत्री जी, अपने किसानों से ही युद्ध। कांग्रेस संचार विभाग के प्रमुख रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा, “माननीय मोदी जी, काश ये क़िलाबंदी दिल्ली बार्डर की बजाय चीन की सीमा पर करते। आप कैसे प्रधानमंत्री हैं। चीन का नाम लेने से डरते हैं, और.. अन्नदाता को बाड़, नुकीले तार और कीलों से रोकते हैं। किसान देश का पेट पालने के लिए फसलें रोपता है, और… झूठी किसान हितैषी सरकार उसे दिल्ली आने से रोकने के लिए कीलें रोप रही है। मोदी-शाह का न्यू इंडिया यही तो है।”

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रतिक्रिया देते हुए ट्वीट किया है, “सियासत तू है कमाल, उठाके रास्ते में दीवार, बिछाकर कंटीले तार, कहती है आ करें बात। #किसान #नहीं_चाहिए_भाजपा।”



सीपीआईएमएल महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने किसानों के लिए नुकीले तार और सरिया बिछाने और बैरिकेड्स वाली तस्वीरें शेयर करते हुए कहा है, “उभरता हुआ! टुकड़े-टुकड़े का खाका! दिल्ली के आसपास नई ‘लाइन ऑफ कंट्रोल’! ऐसा तब होता है जब कोई सरकार जनता पर युद्ध छेड़ने लगती है, जिसमें कई ऐसे मतदाता भी शामिल हैं जिन्होंने इन्हें वोट दिया था।”
 
राजनीतिक विश्लेषक लोकेश सलारपुरी इसे जमीन छीनने की कवायद का हिस्सा बताते हुए लिखते हैं कि कर्मचारी की सैलरी और भत्ते बढ़ते हैं, बढ़ती महंगाई के अनुपात में ..व्यापारी अपने माल के दाम बढ़ा सकता है, लेकिन किसान क्या करे? जिस फसल के दाम तय करने तक का अधिकार उसे नही है, उसे बढ़ाएगा कैसे?

किसान की बस कर्ज की लिमिट बढ़ती जानी है, बढ़ती ही जायेगी ..इनकम घटती जायेगी ...आवाज उठाएगा तो खालिस्तानी, देशद्रोही, वामपंथी, से लेकर मुफ्तखोर तक बताया जाएगा! उसे गुंडों, पुलिस से लठियाया जाएगा! अगर 70 करोड़ किसान हार गया तो फिर जीतेगा कौन? पूंजीपति? सच यही है! आज भारत में सब कुछ इन पूंजीपतियों को सरकार सौंप चुकी है! रेल से लेकर जहाज तक, सड़क से लेकर बिजली तक, स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा तक . ..सिर्फ जमीन बची थी और उसे भी पूंजीपतियों के हवाले करने की ललक कितनी ज़बरदस्त है ये दिल्ली के बॉर्डर पर गड़ी लोहे की बड़ी बड़ी कीलें बता रही हैं!

अब, भले इस सबको विपक्ष की राजनीति बताकर सिरे से खारिज कर दिया जाए लेकिन दीवारों या बाड़बंदी से मसले हल नहीं हुआ करते, ये भी समझने की जरूरत है।

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