कृषि बिल के विरुद्ध किसानों के प्रदर्शन को लेकर मीडिया की भूमिका पर पहले से कई तरह की बातें की जा रही हैं, अब एडिटर्स गिल्ड ने भी इसे लेकर एक कड़ी एडवाइजरी जारी कर बिना किसी नैतिकता और प्रमाण के किसानों को 'खालिस्तानी' और 'देशद्रोही' जैसे अलंकारों से नवाजने वाले मीडिया के धड़ों को नसीहत दी है।
एडिटर्स गिल्ड ने आज शुक्रवार को एक एडवाइजरी जारी कर साफ शब्दों में कहा है कि किसान आंदोलन के कवरेज में मीडिया को नैतिकता और जिम्मेदार पत्रकारिता के मानदंडों का ध्यान रखना होगा। किसान आंदोलन के दौरान मीडिया के एक धड़े द्वारा किसानों को कथित तौर पर खालिस्तान समर्थक और देशद्रोही साबित करने की कोशिश को लेकर एडिटर्स गिल्ड की यह एडवाइजरी महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा, महासचिव संजय कपूर और ट्रेजरर अनन्त नाथ के संयुक्त हस्ताक्षर से जारी की गई एडवायजरी में साफ तौर पर कहा गया है कि मीडिया के कुछ धड़ों द्वारा बिना किसी प्रमाण के किसानों के लिए 'खालिस्तानी' और देशद्रोही जैसे शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है, जो जिम्मेदार और नैतिक पत्रकारिता के सर्वथा प्रतिकूल है।
एडवाइजरी में यह भी कहा गया है कि इससे मीडिया की विश्वसनीयता पर भी खतरा उत्पन्न हो रहा है। एडिटर्स गिल्ड ने कहा है कि किसानों की वेशभूषा के आधार पर लकीर के फकीर नहीं बनें। रिपोर्टिंग में पक्षपाती न हों, बैलेंस रखें और उद्देश्यपरक पत्रकारिता करें। अपनी तरफ से कोई अलग नैरेटिव बनाने की कोशिश न करें।
उल्लेखनीय है कि किसान आंदोलन के दौरान मीडिया के एक धड़े द्वारा किसानों को ही दोषी ठहराने, उन्हें खालिस्तान समर्थक और देशद्रोही बताने की कोशिश की जा रही थी। इसे लेकर आंदोलनकारी किसान मीडिया के प्रति आक्रोशित हो रहे हैं और कई समाचार चैनलों का बायकाट कर दिया है।
एडिटर्स गिल्ड ने आज शुक्रवार को एक एडवाइजरी जारी कर साफ शब्दों में कहा है कि किसान आंदोलन के कवरेज में मीडिया को नैतिकता और जिम्मेदार पत्रकारिता के मानदंडों का ध्यान रखना होगा। किसान आंदोलन के दौरान मीडिया के एक धड़े द्वारा किसानों को कथित तौर पर खालिस्तान समर्थक और देशद्रोही साबित करने की कोशिश को लेकर एडिटर्स गिल्ड की यह एडवाइजरी महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा, महासचिव संजय कपूर और ट्रेजरर अनन्त नाथ के संयुक्त हस्ताक्षर से जारी की गई एडवायजरी में साफ तौर पर कहा गया है कि मीडिया के कुछ धड़ों द्वारा बिना किसी प्रमाण के किसानों के लिए 'खालिस्तानी' और देशद्रोही जैसे शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है, जो जिम्मेदार और नैतिक पत्रकारिता के सर्वथा प्रतिकूल है।
एडवाइजरी में यह भी कहा गया है कि इससे मीडिया की विश्वसनीयता पर भी खतरा उत्पन्न हो रहा है। एडिटर्स गिल्ड ने कहा है कि किसानों की वेशभूषा के आधार पर लकीर के फकीर नहीं बनें। रिपोर्टिंग में पक्षपाती न हों, बैलेंस रखें और उद्देश्यपरक पत्रकारिता करें। अपनी तरफ से कोई अलग नैरेटिव बनाने की कोशिश न करें।
उल्लेखनीय है कि किसान आंदोलन के दौरान मीडिया के एक धड़े द्वारा किसानों को ही दोषी ठहराने, उन्हें खालिस्तान समर्थक और देशद्रोही बताने की कोशिश की जा रही थी। इसे लेकर आंदोलनकारी किसान मीडिया के प्रति आक्रोशित हो रहे हैं और कई समाचार चैनलों का बायकाट कर दिया है।