असम सरकार ने छह और बांग्लादेशियों को निर्वासित किया है। इस वर्ष तक 49 लोग निर्वासित किए जा चुके हैं। द सेंटिनल असम के अनुसार, उन्हें बराक घाटी से गिरफ्तार किया गया था और सभी उचित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करने के बाद बांग्लादेशी अधिकारियों को सौंप दिया गया। इन पुरुषों और महिलाओं ने गोलपारा और कोकराझार में डिटेंशन कैंपों में दो साल बिताए थे।
निर्वासन के सबसे हालिया बैच में 30 बांग्लादेशी शामिल थे जिन्हें जुलाई में करीमगंज में कालीबाड़ी घाट चौकी के माध्यम से वापस भेजा गया था। अधिकारियों के अनुसार, 2017 के बाद से 124 स्व-घोषित बांग्लादेशियों को निर्वासित किया गया है। जो लोग स्व-घोषणा नहीं करते हैं, उनका पता लगाया जाता है, हिरासत में लिया जाता है और फिर उन्हें कानून के अनुसार निर्वासित किया जाता है।
बॉर्डर पुलिस द्वारा लोगों को या तो फॉरेन ट्रिब्यूनल (एफटी) के लिए भेजा जाता है, उन्हें ’संदिग्ध विदेशी होने’ के लिए नोटिस दिया जाता है या मतदाता सूची में चुनाव आयोग द्वारा संदिग्ध दर्शाने डी-वोटर मार्क किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति एफटी से पहले अपनी नागरिकता का बचाव करने में असमर्थ है, तो उसे विदेशी घोषित कर दिया जाता है और एक डिटेंशन कैंप में भेज दिया जाता है।
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय द्वारा संसद के समक्ष हाल ही में प्रस्तुत किए बयान के अनुसार, “असम सरकार ने सूचित किया है कि असम में फॉरेन ट्रिब्यूनल में संदिग्ध मतदाताओं के 83,008 लंबित मामले हैं और वर्ष 2015 से 30.06.2020 तक असम में 'विदेशी' घोषित किए गए लोगों की संख्या 86,756 है।”
सबरंग इंडिया की बहन संगठन सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (CJP) समेत कई मानवाधिकार समूहों ने पूरी 'डिटेक्ट-डिटैन-डेपोर्ट' प्रक्रिया के बारे में कई चिंताएं जताई हैं कि कैसे हाशिए पर रहने वाले कमजोर पृष्ठभूमि के लोगों के पास अपनी नागरिकता की रक्षा करने के लिए शायद ही कभी दस्तावेज होते हैं। इसके अलावा जब राज्य में बाढ़ और अन्य आपदाएं आती हैं तो बाढ़ग्रस्त इलाकों के लोग पयान के लिए मजबूर होते हैं जिससे वह अपने दस्तावेजों को खो देते हैं।
निर्वासन के सबसे हालिया बैच में 30 बांग्लादेशी शामिल थे जिन्हें जुलाई में करीमगंज में कालीबाड़ी घाट चौकी के माध्यम से वापस भेजा गया था। अधिकारियों के अनुसार, 2017 के बाद से 124 स्व-घोषित बांग्लादेशियों को निर्वासित किया गया है। जो लोग स्व-घोषणा नहीं करते हैं, उनका पता लगाया जाता है, हिरासत में लिया जाता है और फिर उन्हें कानून के अनुसार निर्वासित किया जाता है।
बॉर्डर पुलिस द्वारा लोगों को या तो फॉरेन ट्रिब्यूनल (एफटी) के लिए भेजा जाता है, उन्हें ’संदिग्ध विदेशी होने’ के लिए नोटिस दिया जाता है या मतदाता सूची में चुनाव आयोग द्वारा संदिग्ध दर्शाने डी-वोटर मार्क किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति एफटी से पहले अपनी नागरिकता का बचाव करने में असमर्थ है, तो उसे विदेशी घोषित कर दिया जाता है और एक डिटेंशन कैंप में भेज दिया जाता है।
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय द्वारा संसद के समक्ष हाल ही में प्रस्तुत किए बयान के अनुसार, “असम सरकार ने सूचित किया है कि असम में फॉरेन ट्रिब्यूनल में संदिग्ध मतदाताओं के 83,008 लंबित मामले हैं और वर्ष 2015 से 30.06.2020 तक असम में 'विदेशी' घोषित किए गए लोगों की संख्या 86,756 है।”
सबरंग इंडिया की बहन संगठन सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (CJP) समेत कई मानवाधिकार समूहों ने पूरी 'डिटेक्ट-डिटैन-डेपोर्ट' प्रक्रिया के बारे में कई चिंताएं जताई हैं कि कैसे हाशिए पर रहने वाले कमजोर पृष्ठभूमि के लोगों के पास अपनी नागरिकता की रक्षा करने के लिए शायद ही कभी दस्तावेज होते हैं। इसके अलावा जब राज्य में बाढ़ और अन्य आपदाएं आती हैं तो बाढ़ग्रस्त इलाकों के लोग पयान के लिए मजबूर होते हैं जिससे वह अपने दस्तावेजों को खो देते हैं।