मोदी सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ 26 नवंबर को व्यापक हड़ताल

Written by sabrang india | Published on: November 22, 2020
बिहार के असंगठित व ग्रामीण मजदूर यूनियन, राष्ट्रीय मध्यान्ह भोजन रसोइया मोर्चा, नागरिक अधिकार रक्षा मोर्चा, असंठित व भवन निर्माण मजदूर यूनियन और बिहार के बीड़ी मजदूर यूनियन ने 26 नवंबर को केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ आम हड़ताल का आह्वाहन किया है। इन संगठनों ने इसको लेकर एक संयुक्त बयान साझा किया है। 



बयान में कहा गया है कि 'आज हमारे देश के करोड़ों लोग कोरोना महामारी की चपेट में हैं और इनमें से प्रतिदिन अनेक लोगों को मृत्यु हो रही है। इस कोरोना काल में आज देश की एक-तिहाई मेहनतकश जनता का जीवन-यापन अस्तव्यस्त हो गया है। अचानक लॉकडाउन की घोषणा से अनेक कल-कारखाने और उद्योग धंधे बंद हो गए हैं। इससे मेहनतकश जनता के पास अभी भी काम नहीं है, रोजगार नहीं है। परिवार के भरण-पोषण, बच्चों की पढ़ाई-लिखाईके साथ साथ उनके भविष्य भी अनिश्चितता के भंवर जाल में फंसा हुआ है। '

'केंद्र और राज्य सरकारों ने अचानक लॉकडाउन की घोषणा कर करोड़ों मेहनतकश जनता को बचाने तथा गांव-घर वापस जाने की कोई व्यस्था तक नहीं की। उन्हें भूख-प्यास से जूझते हुए सैकड़ों मील पैदल चलने पर मजबूर किया। इस दौरान मोदी सरकार पुरानी कांग्रेस सरकार की तर्ज पर और अधिक निर्मम व घोर फासीवादी तरीके से कॉरपोरेट पूंजीपतियों को भारी लूट मचाने के लिए और अधिक मौका दे रही है। सरकार ने मजदूर-किसान के साथ-साथ अन्य मेहनतकश जनता के ऊपर घोर फासिस्ट तरीके से दमन तेज कर दिया है।' 

'दूसरी ओर कोरोना महामारी की आड़ में केंद्र ने रेल, बैंक, बीमा, उर्जा क्षेत्र, तेल गैस कंपनियों, इस्पात, टेलीकॉम, कोयला समेत अनेक सरकारी क्षेत्र को निजी हाथों में बेचेने का अभियान शुरू कर दिया है। इस बीच 6  हवाई अड्डा अदानी समूह को बेचा जा चुका है, 109 रूट की 151 जोड़ी ट्रेन निजी हाथों में देने का फैसला लिया जा चुका है।' 

बयान के मुताबिक, "देश के बड़े बड़े उद्योगपति व धनकूबरों ने विभिन्न बैंकों से लिये गये 10 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक राषि गटक ली है और इसकी भरपाई के लिए इस ऋण का बोझ आम जनता के उपर डालने के लिए सरकार द्वारा लाया गया फिनानसियाल सेक्टर डेवलपमेंट एण्ड रेगुलेशन बिल या एफएसडीआर - 2019 बिल। इस बिल के माध्यम से सरकारी क्षेत्र के बैंकों को उन बैंक लूटेरों पूंजीपतियों के हाथों में सौंपने का मौका मिल जायेगा। ऋण अदायगी का बोझ बैंक डूबने पर आम खाताधारियों के पैसों से भरपाई कर लिया जायेगा। छोटे जमानतदारों के परिश्रम से जमा किए धन की कोई सुरक्षा ही नहीं रह जायेगी। एक से अधिक बैंक का मर्जर, अनेक शाखाओं का क्लोजर, डाउनसाइजिंग इन सब माध्यमों से हजारों बैंक कर्मी नौकरी खो देंगे।"

बयान के मुताबिक, "भाजपा सरकार द्वारा मालिकों व पूंजीपतिवर्ग के स्वार्थ रक्षा के लिए 44 श्रम कानूनों को परिवर्तन कर 4 श्रम कोड में बदल दिया गया है। अबतक उद्योगों में श्रम कानून में 100 या इससे अधिक घंटे काम करने वाले श्रमिक करने वाले संस्थान में ले-ऑफ, छंटनी, क्लोजर आदि के लिए सरकार की अनुमति लेना पड़ता था। परंतु अब से तीस सौ या इसके अधिका काम करने वाले श्रमिक मामले में यह लागू होगा। आधुनिक प्रौद्योगिकी युग में तीन सौ या इससे अधिक श्रमिक वाले संस्थान बहुत कम ही हैं। इसके फलस्वरूप 70 प्रतिशत कारखाना व 74 प्रतिशत श्रमिक इस कानून के दायरे से बाहर हो जा रहे हैं और मालिकों को इससे जब-तब छंटनी करने की अवाध छू मिल जा रही है।"

'इस बीच केंद्र सरकार की ओर से तीन कृषि बिल लाए गए हैं। जिसके फलस्वरूप बड़े-बड़े मालिकों को धान, गम, दाल, तेलबीज, आलू, प्याज जैसे आवश्यक कृषि उत्पादन के अवाध तरीके से भंडारण करने की छूट मिल गई है। जिसके चलते आम जनता भयंकर मंहगाई से त्रस्त है और किसानों को कॉरपोरेट घरानों के चंगुल में ठेल दिया जा रहा है। नये कृषि कानून लागू हो जाने के कारण कॉरपोरेट घरानों व बहुराष्ट्रीय कंपनियों को इच्छानुसार उनके द्वारा निर्धारित दामों में अपनी उत्पादित फसल बेचने पर मजबूर होना पड़ेगा। कृषि उपकरण, बीज, खाद, कीटनाशक के अतिरिक्त कृषि विशेषज्ञ परामर्श लेकर सिंचाई विद्युत आदि सब कुछ कॉरपोरेट कंपनियों के शर्तोंनुसार  आत्मसमर्पण करना  होगा। इसके लिए पूरे देश में किसान आंदोलनरत हैं।'

'इधर नई शिक्षा नीति के तहत एक और प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा क्षेत्र तक निजी क्षेत्र के मालिकों के मुनाफा लूटने के लिए खोल दिया गया है। दूसरी ओर आरएसएस के अंधराष्ट्रवाद का एजेंडा लागू करने के लिए धर्मनिरपेक्ष व विज्ञानसम्मत शिक्षा के ऊपर हमला तेज कर दिया गया है। फीस वृद्दि को लेकर भी उच्च शिक्षण संस्थान के छात्र-छात्राओं के द्वारा लगातार आंदोलन चलाया जा रहा है।'

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