केरल हाईकोर्ट ने सोमवार 16 नवंबर को सुनवाई करते हुए मलयाला मनोरमा दैनिक के प्रधान संपादक, प्रबंध संपादक और प्रकाशक के खिलाफ दायर की गई एक मानहानि की शिकायत को खारिज कर दिया। जस्टिस पी. सोमराजन ने कहा कि प्रेस को आवश्यक टिप्पणियों और विचारों के साथ समाचारों को प्रकाशित करने का अधिकार है। इस तरह के अधिकार को तब तक खत्म नहीं किया जा सकता जब तक कि दुर्भावना बहुत अधिक हो और सार्वजनिक हित की बात हो।
कोर्ट ने कहा कि समाचार की अवमानना प्रकृति, अगर वह सच्चाई के प्रतिरूपण से जुड़ी है, जिसे सार्वजनिक सद्भावना के लिए प्रकाशन की आवश्यकता है, तो यह मानहानि का अपराध नहीं होगा।
दरअसल शिकायतकर्ता ने आर चंद्रशेखरन और तीन अन्य के खिलाफ एक विजिलेंस रिपोर्ट को लेकर छपी खबर को लेकर शिकायत दायर की थी। संपादकों और प्रकाशकों ने मजिस्ट्रेट द्वारा शिकायत का संज्ञान लिए जाने के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
कोर्ट ने शिकायतकर्ता को संदर्भित करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता को समाचार में आरोपी व्यक्ति के रूप में संदर्भित किया गया था, जिसमें रिपोर्ट का वास्तविक संस्करण शामिल था। जज ने यह भी कहा कि उनके खिलाफ अपराध दर्ज किया गया था और बाद में एक संदर्भ रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी।
कोर्ट ने कहा, 'आईपीसी की धारा 499 में पहला प्रावधान के तहत लोकतांत्रिक प्रणाली में व्यापक प्रचार और आवश्यक टिप्पणियों और विचारों के साथ समाचार प्रकाशित करने का अधिकार दिया गया है, हालांकि, विचारों को, यद्यपि वो कभी-कभी अवमाननपूर्ण होते हैं, तब तक समाप्त नहीं किया जा सकता, जब तक जब तक कि दुर्भावना बहुत अधिक हो और सार्वजनिक हित की बात नहीं हो।'
कोर्ट ने आगे कहा कि 'समाचार की अवमानना प्रकृति, अगर वह सत्य के प्रतिरूपण से जुड़ी है, जिसे सार्वजनिक सद्भावना के लिए प्रकाशन की आवश्यकता है, अपराध को आकर्षित नहीं करेगी और पहले अपवाद के साथ धारा 499 आईपीसी को आकर्षित करने की आवश्यकता के संबंध में कोई गलतफहमी नहीं होगी। इसलिए प्रकाशित समाचार धारा 499 आईपीसी के तहत परिभाषित मानहानि के अपराध को आकर्षित नहीं करेगा।'
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में निजी शिकायत, चौथी स्तंभ में निहित उद्देश्यों को हराने के लिए है। आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगाते हुए जज ने आगे कहा: "सभी समाचार सामग्रियों को प्रकाशित करना चौथे स्तंभ का कर्तव्य है, विशेष रूप से सार्वजनिक महत्व के विषयों को और यह उनका कर्तव्य है कि वे समाचार सामग्री को, उसके पक्ष और विपक्ष पर टिप्पणी करते हुए प्रकाशित करें ताकि समाज को सतर्क रहने के लिए प्रबुद्ध किया जा सके।
कोर्ट ने कहा कि समाचार की अवमानना प्रकृति, अगर वह सच्चाई के प्रतिरूपण से जुड़ी है, जिसे सार्वजनिक सद्भावना के लिए प्रकाशन की आवश्यकता है, तो यह मानहानि का अपराध नहीं होगा।
दरअसल शिकायतकर्ता ने आर चंद्रशेखरन और तीन अन्य के खिलाफ एक विजिलेंस रिपोर्ट को लेकर छपी खबर को लेकर शिकायत दायर की थी। संपादकों और प्रकाशकों ने मजिस्ट्रेट द्वारा शिकायत का संज्ञान लिए जाने के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
कोर्ट ने शिकायतकर्ता को संदर्भित करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता को समाचार में आरोपी व्यक्ति के रूप में संदर्भित किया गया था, जिसमें रिपोर्ट का वास्तविक संस्करण शामिल था। जज ने यह भी कहा कि उनके खिलाफ अपराध दर्ज किया गया था और बाद में एक संदर्भ रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी।
कोर्ट ने कहा, 'आईपीसी की धारा 499 में पहला प्रावधान के तहत लोकतांत्रिक प्रणाली में व्यापक प्रचार और आवश्यक टिप्पणियों और विचारों के साथ समाचार प्रकाशित करने का अधिकार दिया गया है, हालांकि, विचारों को, यद्यपि वो कभी-कभी अवमाननपूर्ण होते हैं, तब तक समाप्त नहीं किया जा सकता, जब तक जब तक कि दुर्भावना बहुत अधिक हो और सार्वजनिक हित की बात नहीं हो।'
कोर्ट ने आगे कहा कि 'समाचार की अवमानना प्रकृति, अगर वह सत्य के प्रतिरूपण से जुड़ी है, जिसे सार्वजनिक सद्भावना के लिए प्रकाशन की आवश्यकता है, अपराध को आकर्षित नहीं करेगी और पहले अपवाद के साथ धारा 499 आईपीसी को आकर्षित करने की आवश्यकता के संबंध में कोई गलतफहमी नहीं होगी। इसलिए प्रकाशित समाचार धारा 499 आईपीसी के तहत परिभाषित मानहानि के अपराध को आकर्षित नहीं करेगा।'
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में निजी शिकायत, चौथी स्तंभ में निहित उद्देश्यों को हराने के लिए है। आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगाते हुए जज ने आगे कहा: "सभी समाचार सामग्रियों को प्रकाशित करना चौथे स्तंभ का कर्तव्य है, विशेष रूप से सार्वजनिक महत्व के विषयों को और यह उनका कर्तव्य है कि वे समाचार सामग्री को, उसके पक्ष और विपक्ष पर टिप्पणी करते हुए प्रकाशित करें ताकि समाज को सतर्क रहने के लिए प्रबुद्ध किया जा सके।