कैबिनेट सचिवालय ने इंटरनेट पर समाचार और मनोरंजन प्रसारित करने वाली सेवाओं पर निगरानी के लिए केंद्र सरकार सरकार के नियमों में बदलाव किए हैं और इसे राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने अनुमति भी दे दी है। समाचार वेबसाइटें और मनोरंजन के कार्यक्रम प्रसारित करने वाली नेटफ्लिक्स जैसी सेवाओं के लिए अब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय दिशा निर्देश जारी करेगा जिसे वेबसाइटों को मानना ही पड़ेगा।
केंद्र सरार ने इस नियमों में बदलाव के साथ ही दो बड़े क्षेत्रों पर नियंत्रण की शुरूआत कर दी है। देश में इंटरनेट पर समाचार या करंट अफेयर्स और मनोरंजन दोनों पर केंद्रित वेबसाइटें और ऐप तुलनात्मक रूप से नए ही हैं। इन्हें देश में शुरू हुए अभी एक दशक भी नहीं हुआ है।
देश में सिनेमा घरों में दिखाई जाने वाली फिल्मों के लिए सेंसर बोर्ड, टेलीविजन के लिए ट्राई और सूचना और प्रसारण मंत्रालय और अखबारों के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया जैसी नियामक संस्थाएं हैं, लेकिन अभी तक सीधे तौर पर इंटरनेट पर आधारित इन क्षेत्रों के लिए कोई नियामक नहीं था।
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय इंटरनेट से जुड़े विषयों को देखता है लेकिन अभी तक मंत्रालय के पास वेबसाइटों पर डाली जाने वाली सामग्री के मानक निर्धारित करनी की कोई विशेष शक्तियां नहीं थीं। अगर सूचना और प्रसारण मंत्रालय अब ऐसे मानक बनाने की शुरुआत करता है तो इसका इन क्षेत्रों पर दूरगामी असर देखने को मिल सकते हैं।
इन क्षेत्रों को समझने वाले कई जानकार मानते हैं कि इंटरनेट पर आधारित यह दोनों ही क्षेत्र सरकार की आंखों में खटकते हैं। बीते कुछ सालों में न्यूज और करंट अफेयर्स की वेबसाइटों पर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तुलना में सरकार की कमियों पर ज्यादा चर्चा देखी गई है। अधिकतर वेबसाइटें मुखर रूप से केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की कमियां उजागर करती हैं।
देश में सिनेमा घरों में दिखाई जाने वाली फिल्मों के लिए सेंसर बोर्ड, टेलीविजन के लिए ट्राई और सूचना और प्रसारण मंत्रालय और अखबारों के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया जैसी नियामक संस्थाएं हैं। दूसरी तरफ नेटफ्लिक्स, अमेजॉन प्राइम, हॉटस्टार, जीफाईव, एमएक्सप्लेयर जैसी सेवाएं बीते कुछ सालों से ऐसे कार्यक्रम प्रसारित कर रही हैं जिनके विषय और उन विषयों को परोसने का तरीका पारंपरिक मीडिया के मुकाबले ज्यादा बोल्ड होता है लेकिन कई लोग इन सेवाओं पर अश्लीलता परोसने का आरोप लगाते हैं।
'हिंदुत्व' की राजनीति से जुड़े लोग इन सेवाओं पर 'हिंदुत्व'-विरोधी होने का भी आरोप लगाते आए हैं। केंद्र सरकार ने भी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वो डिजिटल मीडिया को नियंत्रित करना चाह रही है। इन सब कारणों से डिजिटल मीडिया पर सरकारी सेंसरशिप के बढ़ने की आशंकाओं ने भी जन्म लिया है।
केंद्र सरार ने इस नियमों में बदलाव के साथ ही दो बड़े क्षेत्रों पर नियंत्रण की शुरूआत कर दी है। देश में इंटरनेट पर समाचार या करंट अफेयर्स और मनोरंजन दोनों पर केंद्रित वेबसाइटें और ऐप तुलनात्मक रूप से नए ही हैं। इन्हें देश में शुरू हुए अभी एक दशक भी नहीं हुआ है।
देश में सिनेमा घरों में दिखाई जाने वाली फिल्मों के लिए सेंसर बोर्ड, टेलीविजन के लिए ट्राई और सूचना और प्रसारण मंत्रालय और अखबारों के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया जैसी नियामक संस्थाएं हैं, लेकिन अभी तक सीधे तौर पर इंटरनेट पर आधारित इन क्षेत्रों के लिए कोई नियामक नहीं था।
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय इंटरनेट से जुड़े विषयों को देखता है लेकिन अभी तक मंत्रालय के पास वेबसाइटों पर डाली जाने वाली सामग्री के मानक निर्धारित करनी की कोई विशेष शक्तियां नहीं थीं। अगर सूचना और प्रसारण मंत्रालय अब ऐसे मानक बनाने की शुरुआत करता है तो इसका इन क्षेत्रों पर दूरगामी असर देखने को मिल सकते हैं।
इन क्षेत्रों को समझने वाले कई जानकार मानते हैं कि इंटरनेट पर आधारित यह दोनों ही क्षेत्र सरकार की आंखों में खटकते हैं। बीते कुछ सालों में न्यूज और करंट अफेयर्स की वेबसाइटों पर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तुलना में सरकार की कमियों पर ज्यादा चर्चा देखी गई है। अधिकतर वेबसाइटें मुखर रूप से केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की कमियां उजागर करती हैं।
देश में सिनेमा घरों में दिखाई जाने वाली फिल्मों के लिए सेंसर बोर्ड, टेलीविजन के लिए ट्राई और सूचना और प्रसारण मंत्रालय और अखबारों के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया जैसी नियामक संस्थाएं हैं। दूसरी तरफ नेटफ्लिक्स, अमेजॉन प्राइम, हॉटस्टार, जीफाईव, एमएक्सप्लेयर जैसी सेवाएं बीते कुछ सालों से ऐसे कार्यक्रम प्रसारित कर रही हैं जिनके विषय और उन विषयों को परोसने का तरीका पारंपरिक मीडिया के मुकाबले ज्यादा बोल्ड होता है लेकिन कई लोग इन सेवाओं पर अश्लीलता परोसने का आरोप लगाते हैं।
'हिंदुत्व' की राजनीति से जुड़े लोग इन सेवाओं पर 'हिंदुत्व'-विरोधी होने का भी आरोप लगाते आए हैं। केंद्र सरकार ने भी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वो डिजिटल मीडिया को नियंत्रित करना चाह रही है। इन सब कारणों से डिजिटल मीडिया पर सरकारी सेंसरशिप के बढ़ने की आशंकाओं ने भी जन्म लिया है।