2021 में सत्ता में आए तो बीजेपी फिर से NRC तैयार करेगी: हिमंत बिस्वा सरमा

Written by sabrang india | Published on: November 6, 2020
असम के वित्त, स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने घोषणा की कि 2021 में असम में भाजपा की सरकार आने पर राज्य में एक बार फिर से एनआरसी तैयार की जाएगी। सरमा असम सरकार के सबसे ताकतवर नेता माने जाते हैं। यह उल्लेखनीय है कि नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर यानि एनआरसी सबसे पहले 1951 में तैयार की गई थी और फिर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में इसे अपडेट किया गया था। अंतिम एनआरसी को 31 अगस्त 2019 को प्रकाशित किया गया था लेकिन असम सरकार ने तब इसको स्वीकार नहीं किया। 



सरमा उत्तरी गुवाहाटी में एक सरकारी बैठक के दौरान मीडियाकर्मियों से बात कर रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया कि 'एनआरसी के तत्कालीन राज्य समन्वयक प्रतीक हजेला ने एक दोषपूर्ण एनआरसी को तैयार किया, जो असम सरकार को स्वीकार्य नहीं है। इसलिए हम बांग्लादेश के साथ सीमावर्ती जिलों में शामिल 20% नामों और अन्य जिलों में 10% के नमूने के पुन: सत्यापन की मांग कर रहे हैं। जैसा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, भाजपा सरकार 2021 में सत्ता में आने पर एक नया एनआरसी तैयार करेगी।'

मंत्री ने आगे अपने आरोपों को सांप्रदायिक रंग देते हुए कहा, 'प्रतीक हजेला के दोषपूर्ण कृत्यों के कारण एनआरसी की तैयारी के दौरान मुगलों की हार नहीं की जा सकी। उन्होंने एनआरसी कार्यों में ऐसे लोगों को शामिल किया, जो स्वयं संदिग्ध नागरिक हैं। इसलिए 2021 में सत्ता में आने के बाद वह (भाजपा सरकार) एक बार फिर से नयी एनआरसी तैयार करेंगे।'

मंत्री ने आरोप लगाया कि 'चोरों ने वहां पुलिस के रूप में काम किया है,' उन्होंने जोर देकर कहा कि मुस्लिम समुदाय से जुड़े सरकारी कर्मचारी मुस्लिम बहुल धुबरी और बारपेटा जिलों में अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रहे थे।'

अंतिम एनआरसी के प्रकाशन से पहले असम की सरकार ने एक याचिका दायर की जिसमें सीमावर्ती जिलों में 20% और अंतिम ड्राफ्ट एनआरसी में शामिल नामों के 10% अन्य जिलों को फिर से सत्यापित करने की मांग की गई, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। इस प्रकार भाजपा के नेता और मंत्री, जो पहले एनआरसी के अंतिम मसौदे के प्रकाशन के बाद एनआरसी के बारे में उत्साहित थे, अब अंतिम एनआरसी को खराब कह रहे हैं, चूंकि उनकी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए 'घुसपैठियों' की संख्या पर्याप्त नहीं है।

31 जुलाई, 2018 को जब एनआरसी का अंतिम मसौदा प्रकाशित किया गया था, तो इसमें से लगभग 40 लाख लोगों को हटा दिया गया था। 2 अगस्त, 2018 को तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने संसद के पटल पर कहा था कि भाजपा सरकार ने 40 लाख अवैध बांग्लादेशियों की पहचान एनआरसी के माध्यम से की थी।

अंतिम मसौदा एनआरसी के प्रकाशन के बाद दावे और आपत्तियां प्रस्तुत करने के प्रावधान थे। जबकि शामिल किए जाने वाले दावे उन लोगों के द्वारा दाखिल किए जा सकते हैं जिन्हें सूची से बाहर कर दिया गया था। वो कोई भी किसी के भी खिलाफ आपत्ति दर्ज करा सकते हैं जिनको उचित दस्तावेजों के बावजूद बाहर कर दिया गया था। 

पुनर्विचार और आपत्तियों के अंत के बाद अंतिम एनआरसी 31 अगस्त, 2019 को प्रकाशित किया गया था, जिसमें 19 लाख से अधिक लोगों को बाहर रखा गया था और 3.11 करोड़ लोगों के नाम शामिल किए गए थे।

उल्लेखनीय है कि एनआरसी के अधिकारी पिछले एक साल और दो महीने से अस्वीकृति के कारण इसे जारी करने में विफल रहे हैं, कई लोगों का मानना ​​है कि पक्षपात और सांप्रदायिक एजेंडे के कारण बड़ी संख्या में लोगों को अंतिम एनआरसी से बाहर रखा जा सकता है।

अंतिम एनआरसी के प्रकाशन के एक सप्ताह बाद ही एनआरसी प्राधिकरण द्वारा बहिष्करण के कारणों को जारी करने की प्रक्रिया शुरू की जानी थी।

अब भाजपा के नेता और मंत्री यह आरोप लगा रहे हैं कि अंतिम एनआरसी में शामिल नाम केवल उनके लिए स्वीकार्य नहीं हैं क्योंकि सूची से बाहर किए गए लोगों की संख्या उनकी अपेक्षा से कम है।

बाकी ख़बरें