''संगठन में शक्ति होती है, इसकी ताकत के आगे अच्छे-अच्छों को झुकना पड़ता है''। रविवार को चित्रकूट मानिकपुर के रानीपुर गांव की महिलाओं ने यह बात एक बार फिर सच साबित कर दिखाई है। यहां वनाधिकार समिति की महिलाओं ने न सिर्फ, फोरेस्ट रेंज ऑफिस का घेराव किया बल्कि गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लिए गए ग्राम वनाधिकार समिति के अध्यक्ष भोला को भी रेंजर के चंगुल से आजाद करा लिया है।
वन विभाग (रेंजर) को महिला शक्ति के आगे न सिर्फ झुकना पड़ा। बल्कि कहना पड़ा कि आप लोग अपने वनाधिकार के सामूहिक दावे कर लीजिए ताकि कोई भी वन भूमि पर दखल को लेकर आपको तंग नहीं कर सके। दावे करने पर आपका कानूनी आधार अपने आप मजबूत हो जाता है।
ताजा मामला उप्र के जनपद चित्रकूट के मानिकपुर तहसील के रानीपुर गांव का है जहां एक बार फिर से वन विभाग द्वारा लॉकडाउन का फायदा उठाते हुए वनाश्रित (कोल आदिवासी) समुदाय को उनकी दखल की गई भूमि से बेदखल करने का गैर कानूनी कृत्य (कोशिश) करने का काम किया गया है।
हुआ यूं कि रानीपुर ग्राम वनाधिकार समिति के अध्यक्ष भोला रविवार दोपहर अपनी दखल की गई भूमि पर खेती कार्य कर रहे थे। तभी अचानक रेंजर मानिकपुर 3-4 फारेस्ट गार्ड सिपाहियों के साथ गाड़ी में आते हैं और बिना किसी नोटिस और वारंट के गैरकानूनी तरीके से भोला को पकड़कर ले जाते हैं। इस पर आसपास खेतो में फसल कटाई आदि का काम कर रहे आदिवासी ग्रामीण एकत्र हुए और संगठन यानि अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य व वनाधिकार कार्यकर्ता रानी को जानकारी दी और उनके नेतृत्व में चकरहूवा, विदुराह व बददरी आदि गांव के आदिवासी पुरुषों और महिलाओं ने करीब पांच किलोमीटर दूर स्थित रेंज चौकी का घेराव कर लिया और लॉक डाउन में इस तरह गैरकानूनी तरीके से लोगो को उठाकर लाने का कारण पूछा। वन विभाग मुर्दाबाद, गुंडागर्दी नहीं चलेगी, वनाधिकार लेकर रहेंगे, आदि की जमकर नारेबाजी भी की।
महिलाओं ने रेंजर से दो टूक पूछा कि ग्राम वनाधिकार समिति के अध्यक्ष को वह, बिना किसी अपराध, बिना किसी नोटिस और वारंट के क्यों उठाकर लाए हैं। महिलाओं ने इस पूरी घटना की वीडियो भी बनाना शुरू कर दिया। तो रेंजर सपकपा गए। कोई कारण नहीं बता सके। महिलाओं ने पूछा कि क्या ग्राम वनाधिकार समिति अध्यक्ष भोला ने किसी के साथ छेड़खानी की है या झगड़ा किया है। अगर नहीं तो आप उन्हें क्यों-कर उठाकर लाए हैं। इस पर रेंजर से कोई जवाब देते नहीं बना लेकिन बैकफुट पर होने के बावजूद रेंजर द्वारा वीडियो बना रही महिला से उसका मोबाइल छीन लिया गया। इस पर महिला दूसरे फोन से वीडियो बनाने लगी। सारी घटना कैमरे में कैद होने और महिलाओं के एकता को देख रेंजर को झुकना पड़ा और शुरू में गुंडागर्दी पर उतारू रेंजर बातों को टालते हुए, महिलाओं को सलाह देते नजर आए कि वह सब वनाधिकार कानून के तहत अपने दावे दाखिल कर लें ताकि आईन्दा से कोई आपको तंग न कर सकें।
महिलाओं ने रेंजर को साफ साफ कहा कि एक ओर आप लोग शिक्षा और पलायन रोकने की बात करते हैं और दूसरी ओर, उन आदिवासियों को इस तरह गैरकानूनी तौर से दादागिरी और गुंडई के बल पर परेशान करते हैं। उनकी आजीविका के एकमात्र जरिये खेती को भी छीनने का काम किया जा रहा है। उनके वनाधिकार को मान्यता देने की बजाय उन्हें उनके कानूनी हक उनकी जमीन (वन भूमि ) से बेदखल करने की निरंतर कोशिशें की जा रही हैं जो अब और नहीं चलेगा। वह अपना वनाधिकार लेकर रहेंगी। उन्होंने कहा कानून में साफ है कि बिना नोटिस आप लोग आदिवासी इलाकों और खेतों में नहीं घुस सकते हैं।
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रानी ने बताया कि वनाधिकार को लेकर महिलाओं की कानूनी समझ और प्रतिबद्धता को देखकर रेंजर को न सिर्फ झुकना पड़ा बल्कि यहां तक कहना पड़ा कि आप लोग अपना दावा कर लीजिए। यही नहीं, रेंजर ने पूछा कि आप लोगो को यह सब जानकारी कौन दे रहा है तो महिलाओं ने यूनियन का नाम लेते हुए कहा कि वह सब संगठन से जुड़ी हैं और वह अपने हक हकूक, अपने वनाधिकार को अब किसी भी दशा में छोड़ने को तैयार नहीं हैं।
मानिकपुर क्षेत्र में कई दशक से वनाश्रित समुदाय के साथ वनाधिकारों के सवाल पर काम कर रही अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन जागरूकता पैदा कर रही है। उसी जागरूकता व महिलाओं के संगठित तेवर और हौंसलें का ही नतीजा है कि रेंजर न सिर्फ बैकफुट पर आए बल्कि उन्हें (रेंजर को) महिलाओं के फोन वापस करने के साथ ही, भोला को भी छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।
अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय उप महासचिव रोमा बताती हैं कि वन विभाग पहले भी आदिवासियों की आजीविका पर हमले करता रहा है। बीते अप्रैल माह में भी आदिवासी समुदाय के लोगों की बोई फसल की कटाई पर वन विभाग द्वारा रोक लगा दी गई थी। जो बाद में यूनियन के डीएम व एसएसपी स्तर से हस्तक्षेप पर फसल काटी गई थी।
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, समाज कल्याण मंत्री, वनमंत्री, प्रमुख सचिव समाज कल्याण, एसडीएम मानिकपुर आदि को भी पत्र लिखा गया था जिसमें आदिवासी वनाश्रित समुदायों के वनाधिकार को मान्यता दिए जाने के साथ ही लॉकडाउन आदि की आड़ में लोगों को आजीविका छीनने (बेदखली) की कोशिशों पर भी रोक लगाने की मांग की गई थी।
पत्र में कहा गया था कि वनाधिकार कानून आदिवासियों और वनाश्रित समुदाय के लोगों के वन भूमि पर अधिकार को मान्यता देने वाला विशेष कानून है। कानून के तहत वनाश्रित समुदाय को उनकी पैतृक वन भूमि पर अधिकार को मान्यता प्रदान की गई है। कानून की प्रस्तावना में ही लिखा है कि वनाधिकार को यह मान्यता, संसद द्वारा यह स्वीकारते हुए दी गई है कि वनों में रहने वाले समुदाय के साथ ऐतिहासिक रूप से अन्याय हुए हैं। यह कानून देश के करोड़ों वनाश्रित समुदाय के लिए एक वरदान है जिसने उपनिवेशिक काल से वनों में रहते आ रहे समुदायों को वनविभाग की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए कानूनी कवच प्रदान किया है।
चित्रकूट, वन क्षेत्र और आदिवासी बाहुल्य ज़िले हैं जहां के आदिवासी व अन्य गरीब समुदाय अपनी आजीविका के लिए पूरी तरह वनों पर ही निर्भर हैं। उनके लिए इस कानून की विशेष महत्ता है जिसके बारे में संवेदनशील होना बेहद ही जरूरी है। लेकिन इस सब से इतर वन विभाग अभी भी गुंडई पर उतारू है और लॉकडाउन का दुरुपयोग कर, लोगों के वनाधिकारों को रौंदने का काम कर रहा है।
कोरोना महामारी के चलते जहां, वनाश्रित समुदाय के लोगों को भुखमरी के कगार से बचाने में मदद की जानी चाहिए वहीं इस सब के उलट, वन विभाग उनकी भूमि को हथियाकर उन्हें भुखमरी के कगार पर पहुंचाने का काम रहा है।
वन विभाग द्वारा लाकडाउन के तमाम नियमों का उल्लघंन कर कई गांवों में आज भी यदा कदा जबरन लोगों की भूमि पर कब्ज़ा, उनकी खेती की भूमि पर गड्ढे खोदना व उनकी खेती एवं रिहायश की भूमि से बेदखली की गैरकानूनी कार्यवाही किए जाने की खबरें आ रही हैं।
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन द्वारा मुख्यमंत्री आदि को लिखे पत्र में भी साफ तौर से ध्यान आकर्षित किया गया था कि लॉकडाउन के तमाम नियमों का उल्लंघन कर कई गांव जैसे ऊंचाडीह, गोपीपुर, रानीपुर, नागर, किहूनिया में आज भी वन विभाग द्वारा हमला बोला जा रहा है। उन्हें खेती नहीं करने दिया जा रहा और अगर लोग विरोध करते हैं तो उन्हें मुकदमों में फंसाने व जेल भेजने की धमकी दी जा रही है। ऊंचाडीह में लोगों की ही खेती की भूमि पर वन विभाग द्वारा कब्जा कर गढढे खोदकर पौधे लगाये जा रहे हैं। गोपीपुर ग्राम पंचायत की जमीन पर गडढे खुदवा दिए हैं तो रानीपुर ग्राम किहूनिया नगर में लोगों को उन्हीं के घर से हटा रहे हैं। उनको उन्हीं की जमीन पर खेती नहीं करने दे रहे हैं। महिलाओं को बोलने पर उनकी चोटी काटने की धमकी दे रहे हैं।
वन विभाग की ताजा कार्रवाई वनाश्रित समुदायों को संविधान में प्रदान अनु0 21 का सीधा सीधा उल्लंघन है जो कि लोगों को जीने का अधिकार प्रदान करता है। साथ ही वनाधिकार कानून 2006 का भी उल्लंघन है। यहीं नहीं माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा 28 फरवरी 2019 के वाईल्ड लाइफ फर्स्ट व यूनियन आफ इंडिया 35782/2019 में कोर्ट द्वारा किसी भी तरह की बेदखली पर रोक लगाई गई हैं। जिसका भी यह उल्लंघन है।
ऐसे में सवाल यह हैं कि वनाश्रित समुदाय के पक्ष में कानून होने के बावजूद भी आखिर वनविभाग किस कानून के तहत यह बेदखली की कार्यवाही कर रहा है?। यूनियन इस की तत्काल जांच किए जाने और इस गैरकानूनी कृत्य पर रोक लगाई जाने की मांग करती हैं। साथ ही लाकडाउन के चलते ग्रामीणों को उनकी खेती की भूमि पर खेती करने में मदद की जाए ताकि वे भूखमरी का शिकार न हो पाए। वहीं, वन विभाग के अफसर एवं कर्मचारी जो कानून का उल्लंघन कर रहे हैं उन पर सख्त कार्यवाही की जाए। ताकि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके।
वन विभाग (रेंजर) को महिला शक्ति के आगे न सिर्फ झुकना पड़ा। बल्कि कहना पड़ा कि आप लोग अपने वनाधिकार के सामूहिक दावे कर लीजिए ताकि कोई भी वन भूमि पर दखल को लेकर आपको तंग नहीं कर सके। दावे करने पर आपका कानूनी आधार अपने आप मजबूत हो जाता है।
ताजा मामला उप्र के जनपद चित्रकूट के मानिकपुर तहसील के रानीपुर गांव का है जहां एक बार फिर से वन विभाग द्वारा लॉकडाउन का फायदा उठाते हुए वनाश्रित (कोल आदिवासी) समुदाय को उनकी दखल की गई भूमि से बेदखल करने का गैर कानूनी कृत्य (कोशिश) करने का काम किया गया है।
हुआ यूं कि रानीपुर ग्राम वनाधिकार समिति के अध्यक्ष भोला रविवार दोपहर अपनी दखल की गई भूमि पर खेती कार्य कर रहे थे। तभी अचानक रेंजर मानिकपुर 3-4 फारेस्ट गार्ड सिपाहियों के साथ गाड़ी में आते हैं और बिना किसी नोटिस और वारंट के गैरकानूनी तरीके से भोला को पकड़कर ले जाते हैं। इस पर आसपास खेतो में फसल कटाई आदि का काम कर रहे आदिवासी ग्रामीण एकत्र हुए और संगठन यानि अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य व वनाधिकार कार्यकर्ता रानी को जानकारी दी और उनके नेतृत्व में चकरहूवा, विदुराह व बददरी आदि गांव के आदिवासी पुरुषों और महिलाओं ने करीब पांच किलोमीटर दूर स्थित रेंज चौकी का घेराव कर लिया और लॉक डाउन में इस तरह गैरकानूनी तरीके से लोगो को उठाकर लाने का कारण पूछा। वन विभाग मुर्दाबाद, गुंडागर्दी नहीं चलेगी, वनाधिकार लेकर रहेंगे, आदि की जमकर नारेबाजी भी की।
महिलाओं ने रेंजर से दो टूक पूछा कि ग्राम वनाधिकार समिति के अध्यक्ष को वह, बिना किसी अपराध, बिना किसी नोटिस और वारंट के क्यों उठाकर लाए हैं। महिलाओं ने इस पूरी घटना की वीडियो भी बनाना शुरू कर दिया। तो रेंजर सपकपा गए। कोई कारण नहीं बता सके। महिलाओं ने पूछा कि क्या ग्राम वनाधिकार समिति अध्यक्ष भोला ने किसी के साथ छेड़खानी की है या झगड़ा किया है। अगर नहीं तो आप उन्हें क्यों-कर उठाकर लाए हैं। इस पर रेंजर से कोई जवाब देते नहीं बना लेकिन बैकफुट पर होने के बावजूद रेंजर द्वारा वीडियो बना रही महिला से उसका मोबाइल छीन लिया गया। इस पर महिला दूसरे फोन से वीडियो बनाने लगी। सारी घटना कैमरे में कैद होने और महिलाओं के एकता को देख रेंजर को झुकना पड़ा और शुरू में गुंडागर्दी पर उतारू रेंजर बातों को टालते हुए, महिलाओं को सलाह देते नजर आए कि वह सब वनाधिकार कानून के तहत अपने दावे दाखिल कर लें ताकि आईन्दा से कोई आपको तंग न कर सकें।
महिलाओं ने रेंजर को साफ साफ कहा कि एक ओर आप लोग शिक्षा और पलायन रोकने की बात करते हैं और दूसरी ओर, उन आदिवासियों को इस तरह गैरकानूनी तौर से दादागिरी और गुंडई के बल पर परेशान करते हैं। उनकी आजीविका के एकमात्र जरिये खेती को भी छीनने का काम किया जा रहा है। उनके वनाधिकार को मान्यता देने की बजाय उन्हें उनके कानूनी हक उनकी जमीन (वन भूमि ) से बेदखल करने की निरंतर कोशिशें की जा रही हैं जो अब और नहीं चलेगा। वह अपना वनाधिकार लेकर रहेंगी। उन्होंने कहा कानून में साफ है कि बिना नोटिस आप लोग आदिवासी इलाकों और खेतों में नहीं घुस सकते हैं।
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रानी ने बताया कि वनाधिकार को लेकर महिलाओं की कानूनी समझ और प्रतिबद्धता को देखकर रेंजर को न सिर्फ झुकना पड़ा बल्कि यहां तक कहना पड़ा कि आप लोग अपना दावा कर लीजिए। यही नहीं, रेंजर ने पूछा कि आप लोगो को यह सब जानकारी कौन दे रहा है तो महिलाओं ने यूनियन का नाम लेते हुए कहा कि वह सब संगठन से जुड़ी हैं और वह अपने हक हकूक, अपने वनाधिकार को अब किसी भी दशा में छोड़ने को तैयार नहीं हैं।
मानिकपुर क्षेत्र में कई दशक से वनाश्रित समुदाय के साथ वनाधिकारों के सवाल पर काम कर रही अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन जागरूकता पैदा कर रही है। उसी जागरूकता व महिलाओं के संगठित तेवर और हौंसलें का ही नतीजा है कि रेंजर न सिर्फ बैकफुट पर आए बल्कि उन्हें (रेंजर को) महिलाओं के फोन वापस करने के साथ ही, भोला को भी छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।
अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय उप महासचिव रोमा बताती हैं कि वन विभाग पहले भी आदिवासियों की आजीविका पर हमले करता रहा है। बीते अप्रैल माह में भी आदिवासी समुदाय के लोगों की बोई फसल की कटाई पर वन विभाग द्वारा रोक लगा दी गई थी। जो बाद में यूनियन के डीएम व एसएसपी स्तर से हस्तक्षेप पर फसल काटी गई थी।
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, समाज कल्याण मंत्री, वनमंत्री, प्रमुख सचिव समाज कल्याण, एसडीएम मानिकपुर आदि को भी पत्र लिखा गया था जिसमें आदिवासी वनाश्रित समुदायों के वनाधिकार को मान्यता दिए जाने के साथ ही लॉकडाउन आदि की आड़ में लोगों को आजीविका छीनने (बेदखली) की कोशिशों पर भी रोक लगाने की मांग की गई थी।
पत्र में कहा गया था कि वनाधिकार कानून आदिवासियों और वनाश्रित समुदाय के लोगों के वन भूमि पर अधिकार को मान्यता देने वाला विशेष कानून है। कानून के तहत वनाश्रित समुदाय को उनकी पैतृक वन भूमि पर अधिकार को मान्यता प्रदान की गई है। कानून की प्रस्तावना में ही लिखा है कि वनाधिकार को यह मान्यता, संसद द्वारा यह स्वीकारते हुए दी गई है कि वनों में रहने वाले समुदाय के साथ ऐतिहासिक रूप से अन्याय हुए हैं। यह कानून देश के करोड़ों वनाश्रित समुदाय के लिए एक वरदान है जिसने उपनिवेशिक काल से वनों में रहते आ रहे समुदायों को वनविभाग की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए कानूनी कवच प्रदान किया है।
चित्रकूट, वन क्षेत्र और आदिवासी बाहुल्य ज़िले हैं जहां के आदिवासी व अन्य गरीब समुदाय अपनी आजीविका के लिए पूरी तरह वनों पर ही निर्भर हैं। उनके लिए इस कानून की विशेष महत्ता है जिसके बारे में संवेदनशील होना बेहद ही जरूरी है। लेकिन इस सब से इतर वन विभाग अभी भी गुंडई पर उतारू है और लॉकडाउन का दुरुपयोग कर, लोगों के वनाधिकारों को रौंदने का काम कर रहा है।
कोरोना महामारी के चलते जहां, वनाश्रित समुदाय के लोगों को भुखमरी के कगार से बचाने में मदद की जानी चाहिए वहीं इस सब के उलट, वन विभाग उनकी भूमि को हथियाकर उन्हें भुखमरी के कगार पर पहुंचाने का काम रहा है।
वन विभाग द्वारा लाकडाउन के तमाम नियमों का उल्लघंन कर कई गांवों में आज भी यदा कदा जबरन लोगों की भूमि पर कब्ज़ा, उनकी खेती की भूमि पर गड्ढे खोदना व उनकी खेती एवं रिहायश की भूमि से बेदखली की गैरकानूनी कार्यवाही किए जाने की खबरें आ रही हैं।
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन द्वारा मुख्यमंत्री आदि को लिखे पत्र में भी साफ तौर से ध्यान आकर्षित किया गया था कि लॉकडाउन के तमाम नियमों का उल्लंघन कर कई गांव जैसे ऊंचाडीह, गोपीपुर, रानीपुर, नागर, किहूनिया में आज भी वन विभाग द्वारा हमला बोला जा रहा है। उन्हें खेती नहीं करने दिया जा रहा और अगर लोग विरोध करते हैं तो उन्हें मुकदमों में फंसाने व जेल भेजने की धमकी दी जा रही है। ऊंचाडीह में लोगों की ही खेती की भूमि पर वन विभाग द्वारा कब्जा कर गढढे खोदकर पौधे लगाये जा रहे हैं। गोपीपुर ग्राम पंचायत की जमीन पर गडढे खुदवा दिए हैं तो रानीपुर ग्राम किहूनिया नगर में लोगों को उन्हीं के घर से हटा रहे हैं। उनको उन्हीं की जमीन पर खेती नहीं करने दे रहे हैं। महिलाओं को बोलने पर उनकी चोटी काटने की धमकी दे रहे हैं।
वन विभाग की ताजा कार्रवाई वनाश्रित समुदायों को संविधान में प्रदान अनु0 21 का सीधा सीधा उल्लंघन है जो कि लोगों को जीने का अधिकार प्रदान करता है। साथ ही वनाधिकार कानून 2006 का भी उल्लंघन है। यहीं नहीं माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा 28 फरवरी 2019 के वाईल्ड लाइफ फर्स्ट व यूनियन आफ इंडिया 35782/2019 में कोर्ट द्वारा किसी भी तरह की बेदखली पर रोक लगाई गई हैं। जिसका भी यह उल्लंघन है।
ऐसे में सवाल यह हैं कि वनाश्रित समुदाय के पक्ष में कानून होने के बावजूद भी आखिर वनविभाग किस कानून के तहत यह बेदखली की कार्यवाही कर रहा है?। यूनियन इस की तत्काल जांच किए जाने और इस गैरकानूनी कृत्य पर रोक लगाई जाने की मांग करती हैं। साथ ही लाकडाउन के चलते ग्रामीणों को उनकी खेती की भूमि पर खेती करने में मदद की जाए ताकि वे भूखमरी का शिकार न हो पाए। वहीं, वन विभाग के अफसर एवं कर्मचारी जो कानून का उल्लंघन कर रहे हैं उन पर सख्त कार्यवाही की जाए। ताकि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके।