छत्तीसगढ़: HIV बच्चियों की पैरवी कर रहीं वकील प्रियंका शुक्ला पुलिसिया दमन के बाद अस्पताल में भर्ती

Written by sabrang india | Published on: August 19, 2020
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में अमेरी स्थित एड्स पीड़ित बच्चियों से सोमवार को आश्रम 'अपना घर' खाली करवा दिया गया। इस दौरान बच्चियों को जबरन बल प्रयोग करते बाहर निकाला गया और पुलिस की गाड़ी में भरकर अलग स्थान पर पहुंचा दिया गया। इसी दौरान इन एचआईवी संक्रमितों की हाईकोर्ट में लड़ाई लड़ रही प्रियंका शुक्ला के साथ भी मारपीट की गई। इस घटना का सीसीटीवी फुटेज भी सामने आया है। वहीं पुलिस उलटे आरोप लगा रही है कि महिला वकील ने उनके साथ मारपीट की कोशिश की। 



खबरों के मुताबिक पुलिस की टीम सोमवार की दोपहर करीब ग्यारह बजे बिलासपुर महिला बाल विकास विभाग के साथ पुलिस की टीम पहुंची। वहां के लोगों और स्टाफ का कहना है कि वे सीधे आश्रम के भीतर घुसे और फरमान दिया कि आदेश के अनुसार सभी बच्चों को कलेक्टर के आदेश पर बाहर निकालकर ले जाना है। इसके बाद स्टाफ ने ऑर्डर दिखाने को कहा।  

'अपना घर' की अधीक्षिका दीपिका सिंह के मुताबिक एक कागज उन्हें लहराकर दिखाया गया पर उन्हें आदेश की कॉपी नहीं दी गई। सभी बच्चों से कहा गया कि बाहर निकलें। बच्चे निकलने के लिए तैयार नहीं हुए तो बल प्रयोग शुरू हो गया। टीवी पत्रकार अनुराग द्वारी ने इस घटना का वीडियो अपने ट्वीट में पोस्ट किया है। 


     
वहीं बिलासपुर के पुलिस अधीक्षक प्रशांत अग्रवाल ने कहा कि आश्रम के लोगों ने न सिर्फ सरकारी काम में बाधा पहुंचाने की कोशिश की बल्कि खुद महिला वकील प्रियंका शुक्ला ने पुलिस वालों के साथ मारपीट की कोशिश की। इसकी वजह से उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है।

अपना घर में 14 बच्चियां रहती हैं जो एड्स पीड़ित हैं। इन बच्चियों को अलग-अलग जिलों से बाल संरक्षण समितियों ने भी यहां भेजा है। बच्चियों का कहना है कि कहीं उनकी देखभाल ठीक से नहीं होती थी तो कहीं भेदभाव होता था। सालों से इन बच्चियों के लिए यही घर अपना है। खाना-पीना, रहना-खेलना, पढ़ना सब यहीं होता है। संस्था के संचालकों का कहना है कि दिक्कत तब से शुरू हुई जब अनुदान के लिए महिला बाल विकास विभाग में उन्होंने आवेदन लगाया, जहां उनसे अनुदान के एवज में 30 प्रतिशत रिश्वत मांगी गई।

संस्था के संचालक संजीव ठक्कर ने कहा कि हमने सरकार से अनुदान मांगा जिसके ऐवज में रिश्वत मांगी गई. हमसे कहा गया कि 30 परसेंट रिश्वत देना होगी. हमने शिकायत की ... गुहार लगाई कि एड्स पीड़ित बच्चों के लिए राज्य की एकमात्र संस्था है जिसे मदद के बजाए आप बंद कर देना चाहते हैं। यह मामला हाईकोर्ट तक गया, जहां कोर्ट ने कलेक्टर को मामला सुलझाने के लिए कहा।

संस्था की पैरवी करने वाली वकील प्रियंका शुक्ला ने कहा कि अचानक जुलाई में नोटिस आया है. हर जिले से लोग आने लगे... कोविड के वक्त में आना क्या सही है। बच्चों ने कहा नहीं जाना चाहते, पुराने अनुभव बुरे हैं। हमने इस बारे में कलेक्टर से मुलाकात का समय मांगा, लेकिन नहीं मिला। क्या आदेश है वो बताया नहीं जाता है। सरकारी अधिकारियों से हमने भी जवाब मांगने की कोशिश की लेकिन कैमरे पर जवाब नहीं मिला। कहा गया कि संस्था में किसी नियम का पालन नहीं हो रहा है। अगर बच्चियों को कुछ हुआ तो कौन जिम्मेदार होगा. इस पर भी संस्था के अपने सवाल हैं।
     
प्रियंका शुक्ला ने बताया कि उनसे कहा गया कि संस्था में ओवन नहीं है, फ्रिज नहीं है। जबकि यहां बच्चों की लाइब्रेरी है, 14 शौचालय हैं... लेकिन अधिकारी कहते हैं व्यक्तिगत नहीं है। संस्था का दावा है कि फिलहाल 14 बच्चों को रखने में करीब 75 हजार रुपये खर्च आता है, जिसे कुछ समाजसेवी मिलकर उठाते हैं।

वहीं इस घटना की चौतरफा निंदा हो रही है। सोशल मीडिया पर मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने अनुज श्रीवास्तव की पोस्ट को साझा करते हुए बताया है कि इस घटना के बाद प्रियंका की तबियत ठीक नहीं है। हाथ शायद फ्रैक्चर है। 



ट्विटर यूजर सुजाता मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को टैग करते हुए पूछती हैं, प्रियंका लगातार एड्स पीड़ित बच्चियों के संरक्षण गृह के लिए संघर्ष के रही हैं। उनकी गिरफ्तारी शर्मनाक है। समाज के हित का काम करने की सज़ा क्यों मिलनी चाहिए?



वहीं मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने 14 एचआईवी संक्रमित नाबालिग बच्चियों को जिला प्रशासन द्वारा बेघर किए जाने, निर्ममता पूर्वक पीटने तथा प्रशासन के बेदखली के आदेश के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रही अधिवक्ता प्रियंका शुक्ला को गिरफ्तार किए जाने और घटना के दौरान उनकी नारी-गरिमा पर हमला किये जाने की कड़ी निंदा की है। माकपा ने मांग की है कि बिलासपुर में घटी इस घटना का हाई कोर्ट स्वतः संज्ञान लें।

प्रियंका शुक्ला ने मंगलवार को एक ट्वीट किया उसमें लिखा, पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद, कांग्रेस सरकार मुर्दाबाद। दाहिना हाथ ठीक नही है, लिखने मे दिक्कत है। बायें हाथ से इतना लिख पाई हूँ बहुत मुश्किल से। बच्चो ने कही से छिपकर कॉल किया, सुन ले बस। बाकी आप सबके साथ का बहुत शुक्रिया। भावुक हूँ, दुखी भी हूं।

 

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