16 वर्षीय दलित युवक की हत्या के बाद खौफ में परिवार, मंदिर में प्रवेश को लेकर हुआ था विवाद

Written by sabrang india | Published on: June 13, 2020
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले की हसनपुर तहसील स्थित डोमखेड़ा के रहने वाले ओमप्रकाश का परिवार इन दिनों ख़ौफ़ में है। कुछ दिन पहले उनके नाबालिग़ बेटे की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में पुलिस ने चार लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया था और तीन लोग गिरफ़्तार कर लिए थे।



बीबीसी से बातचीत में मृतक के पिता ओमप्रकाश ने कहा, "साहब हम बहुत ख़ौफ़ में हैं। वो लोग कह रहे हैं कि अभी बेटे को मारा है, अगला नंबर तुम्हारा है। अब यहां हमें डर लगता है। यही हाल रहा तो हम गांव छोड़कर कहीं और जा बसेगें।" ओमप्रकाश के सोलह वर्षीय बेटे विकास की बीते छह जून की मध्य रात्रि घर पर ही गोली मार कर हत्या कर दी गई थी।

ओमप्रकाश और उनके परिजनों का कहना है कि विकास की मौत की वजह कुछ दिन पहले मंदिर में प्रवेश को लेकर हुआ विवाद है, जबकि अभियुक्त पक्ष के लोग इस बात से साफ़ इनकार कर रहे हैं और पुलिस-प्रशासन भी यह मानने को तैयार नहीं है।

इस घटना के क़रीब छह दिन बाद भी ओमप्रकाश का परिवार ख़ौफ़ज़दा है। हालांकि प्रशासन की ओर से उन्हें पूरी सुरक्षा मुहैया कराई गई है। गुरुवार को ओमप्रकाश के घर पर कई पुलिसकर्मी सुरक्षा के लिए तैनात दिखे। घर में रिश्तेदारों से ज़्यादा पुलिसकर्मियों और प्रशासनिक अफ़सरों की आवाजाही लगी रहती है। चौहान यानी ठाकुर बाहुल्य इस गांव में ओमप्रकाश का घर गांव के बीच में है।

दो कमरों वाले घर के आंगन में विकास की मां राजवती अपने बेटे को याद करके रोने लगती हैं जबकि पास बैठी महिलाएं उन्हें सांत्वना देती हैं। उनके पास ही विकास की बड़ी बहन कुंती रोते हुए कहती हैं, "मेरे भाई की जिस दिन हत्या हुई, उस दिन शाम को ही मेरी उससे बात हुई थी। वह बोल रहा था कि तू आ जा, मेरा लाला से झगड़ा हो गया है।"

ओमप्रकाश बार-बार यही दोहराते हैं कि उनके बेटे की हत्या उन लोगों के जाटव होने की वजह से हुई है। वो कहते हैं, "लोग कह रहे हैं कि मेरे बटे की हत्या पैसों के विवाद को लेकर हुई है, लेकिन सच यह है कि विकास गांव के शिव मंदिर में पूजा करने गया था। दबंगों ने उसे मंदिर में प्रवेश करने से रोका। विवाद बढ़ा और बाद में विकास की हत्या कर दी गई। जिन लोगों ने उसे मारा है उन्होंने 31 मई को ही विकास को मारने की धमकी दी थी।"

विकास की हत्या छह जून की रात को हुई। उस रात को याद करके ओमप्रकाश कहते हैं, "विकास चारपाई पर सो रहा था। रात में गोली की तेज़ आवाज़ से मेरी आंख खुली। मैंने देखा तो होराम, लाला, रोशन और राजवीर वहां खड़े थे। उन लोगों ने विकास को गोली मार दी थी और मेरे वहां पहुंचने पर कहने लगे कि अगला नंबर तुम्हारा है।"

ओमप्रकाश के चचेरे भाई मोतीराम भी घटना के चश्मदीद हैं। मोतीराम कहते हैं कि गोली की आवाज़ सुनकर जब हम जागे और वहां पहुंचे तो वो लोग हमें धमकाते हुए चले गए कि चुप हो जाओ, नहीं तो तुम्हें भी मार डालेंगे।

डोमखेड़ा गांव की आबादी क़रीब आठ सौ है जिसमें 30-35 परिवार दलितों के हैं और गांव में चौहानों की आबादी सबसे ज़्यादा है। जिस मंदिर में प्रवेश को लेकर विवाद की बात सामने आ रही है, वह ओमप्रकाश के घर से महज़ कुछ ही दूरी पर है जबकि अभियुक्तों का घर वहां से कुछ ज़्यादा दूरी पर है।

ओमप्रकाश ने 31 मई को हुए कथित विवाद के बाद पुलिस में शिकायत की थी कि उन लोगों को मंदिर में प्रवेश से रोका जा रहा है, लेकिन पुलिस ने उस शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया। इस अनदेखी पर हसनपुर थाने के एक दारोग़ा को लाइन हाज़िर कर दिया गया है।

हालांकि अमरोहा के पुलिस अधीक्षक डॉक्टर विपिन ताड़ा, विकास की हत्या की वजह पैसों के लेन-देन को बताते हैं।

बीबीसी से बातचीत में एसपी विपिन ताड़ा कहते हैं, "जाँच में सामने आया है कि ओमप्रकाश के लड़के ने पिछले साल आम का एक बाग़ मृतक के भाई से ठेके पर लिया था। उसमें कई लड़कों ने साथ में काम किया था, जिनमें अभियुक्त भी शामिल था। उसके पाँच हज़ार रुपये अभी बक़ाया थे। उसी को लेकर विवाद चल रहा था। जिस अभियुक्त पर आरोप लगा रहे हैं, वह एक जून को ही गांव छोड़ चुका था। चार लोगों के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज हुई है। तीन की गिरफ़्तारी हो चुकी है। अपनी जान को ख़तरा बताने जैसी कोई शिकायत ओमप्रकाश ने नहीं की है।"

वहीं विकास की हत्या के बाद अभियुक्तों के घर पर सन्नाटा पसरा है। घर के तमाम पुरुषों के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज होने से महिलाएं भी ख़ौफ़ में हैं। बीबीसी ने परिवार के लोगों से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई। बताया जा रहा है कि डर के मारे घर के पुरुष सदस्य कहीं दूसरी जगहों पर चले गए हैं।

गांव में अभी भी तनाव बना हुआ है और कई जगह पुलिस के जवान तैनात किए गए हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि मंदिर काफ़ी पुराना है और आज तक कभी किसी को वहां जाने से नहीं रोका गया है। यहां तक कि ओमप्रकाश और दूसरे दलित परिवारों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि मंदिर में सभी लोग अब तक बेख़ौफ़ जाते रहे हैं।

आख़िर 31 मई को ऐसा क्या हुआ कि विकास और उनके साथियों को मंदिर जाने से रोका गया, इस सवाल का जवाब गांव का कोई भी व्यक्ति नहीं देना चाहता है।

गांव के लोग बताते हैं कि दोनों पक्षों में इससे पहले भी कोई विवाद नहीं था बल्कि साथ में काम भी करते थे। जिन लोगों पर हत्या का आरोप लगा है, पुलिस के अभिलेखों में उन पर अब तक किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल होने के प्रमाण नहीं हैं।

गांव के कुछ लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "इन लोगों का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन गांव में छोटे-मोटे अपराधों में इनका नाम अक्सर आता रहा है।"

वहीं विकास की हत्या को राजनीतिक रंग देने की कोशिशें भी जारी हैं। एक ओर जहां सोशल मीडिया पर कुछ लोग मंदिर प्रवेश से इसे जोड़ते हुए इसकी निंदा कर रहे हैं, वहीं बहुजन समाज पार्टी और भीम आर्मी इसे दलित उत्पीड़न बता रहे हैं।

भीम आर्मी से जुड़े प्रशांत आंबेडकर कहते हैं, "दलित अत्याचार सहन नहीं किया जाएगा। जु़ुल्म बंद नहीं हुआ और पीड़ितों को इंसाफ़ नहीं मिला तो दलित समाज सड़क पर उतरकर आंदोलन करने को बाध्य होगा। दलितों की लगातार हत्या और उनके उत्पीड़न की ख़बरें आ रही हैं।"

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