तेरी-मेरी इस वादी को किसने नजर लगाई?

Written by हसन पाशा | Published on: March 3, 2020
कितनी हरी भरी थी वो 
मेरी वादी तेरी वादी 



मां के प्यार भरे आँचल सी
बच्ची की किलकारी जैसी 
सोलह सिंगारों वाली दुल्हन 
दादी की दुआओं जैसी 
उगते सूरज सी सुन्दर वो 
सांझ की फैली लाली जैसी 
पूरे चाँद की रातों में 
जूही समन की खुशबू जैसी 
सरसों के पीले खेतों सी 
कच्चे रस्तों के गीतों जैसी 

जीवन में कमियां तो थी 
हम लेकिन मस्त क़लन्दर से थे 
प्यार की पूड़ी प्रीत का हलुआ 
बाँट के आपस में खाते थे.
मंदिर तुम हम मस्जिद जाते 
वापस आकर घुल मिल जाते थे 
हम कितने भोले भाले थे 
हम कितने सीधे सादे थे 
दुनिया की चालाकी से 
हम कितने अनजाने थे 

कितनी ख़ुशी भरी थी वो 
मेरी धरती तेरी धरती 

किसको इसकी ख़ुशी न भायी ?
किसकी इसको नज़र लग गई ?
 

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