इजराइली स्पाईवेयर से जासूसी का आरोप और विषहीन, दंतहीन, सरल खबरें, राजा का बाजा बजाने वाले अखबारों ने यह नहीं पूछा कि सरकार ने स्पाईवेयर खरीदें हैं कि नहीं, बाकी की चाल समझिए।
इंडियन एक्सप्रेस में कल छपी खबर के अनुसार फेसबुक के स्वामित्व वाले संदेश भेजने के प्लेटफॉर्म व्हाट्सऐप्प ने कहा है कि भारत में पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर इजराइली स्पाईवेयर (जासूसी करने वाले सॉफ्टवेयर) पेगासस के जरिए नजर रखी जा रही थी। यह नजर कौन किसलिए रखेगा इसे समझना मुश्किल नहीं है और अगर ऐसा हुआ है (नहीं होने का कोई कारण नहीं है और होने के कई कारण हैं) तो यह हमारी सुरक्षा का ख्याल रखने वालों (यानी सरकार) की चूक है। दरअसल मनमानी की पोल खुलना है पर सरकार का स्टैंड अजीब है। और मीडिया का रुख ऐसा जैसा उसे खबर ही समझ में नहीं आई।
वाट्सएप ने यह भी कहा है और संबंधित लोगों से इसकी पुष्टि हुई है कि उसने खुद संबंधित लोगों को जासूसी की सूचना दी है। भीमा कोरेगांव केस में अरोपियों के वकील निहाल सिंह राठौड़, एक्टिविस्ट बेला भाटिया, आनंद तेलतुंबड़े व पत्रकार सिद्धांत सिबल ने ऐसे संदेश मिलने का दावा किया है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने वाट्सएप से जवाब मांगा है कि नागरिकों के निजता की सुरक्षा के लिए क्या उपाए किए। आज अखबारों ने यह भी बताया कि व्हाट्सऐप्प ने क्या किया इसके बावजूद सरकार ने जवाब मांगा है तो खबर है ही।
मुझे लगता है कि सेंध अगर एक अलग सॉफ्टवेयर से लगाई गई है तो इससे बचने के उपाय करना सिर्फ व्हाट्सऐप्प की जिम्मेदारी नहीं है और हो भी तो यह पता लगाना भारत सरकार का काम है कि इस सॉफ्टवेयर को किसने खरीदा और कैसे खरीदा। वह इसे खरीदने और इसका उपयोग करने की हकदार है कि नहीं। जासूसी करने का ऐसा अनधिकृत सॉफ्टवेयर भारत में बिक रहा हो तो पकड़ना मुश्किल नहीं है और जब विदेश में किए जाने वाले भुगतान पर सरकार की नजर रहती है तो विदेश से खरीदना भी आसान नहीं है।
हां, अगर विदेश में बैठा कोई व्यक्ति विदेश से ही यह सब कर रहा हो तो भारत सरकार के लिए यह काम आसान नहीं है पर तब निशाने पर पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता क्यों होते? और जो लोग निशाने पर हैं उसी से पता चल सकता है कि उनकी जासूसी कौन किसलिए कराएगा। अगर सरकार यह काम नहीं करवा रही थी तो दोषियों का पता लगाना मुश्किल नहीं है और सरकार ही करवा रही थी तो दोषी का पता कभी नहीं चलेगा। मुझे दूसरी संभावना ज्यादा लगती है और यह यूं ही नहीं है। कल इस खुलासे के बाद कांग्रेस ने इसके लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार बताया है और सुप्रीम कोर्ट से संज्ञान लेने की मांग की है।
राहुल गांधी ने कहा कि सरकार ने वाट्सएप से वैसे ही सवाल पूछा जैसे मोदी डैसो से सवाल पूछें कि किसे फायदा हुआ? दूसरी ओर, केंद्रीय सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा है कि विपक्ष यूपीए सरकार में प्रणब मुखर्जी और सेना प्रमुख वीके सिंह की जासूसी की घटना न भूले। गृह मंत्रालय ने इसे देश को बदनाम करने की साजिश बताया है। यहां गौरतलब है कि यूपीए के जमाने में अगर प्रणब मुखर्जी और वीके सिंह की जासूसी हुई तो क्या इसका खुलासा हुआ? और अगर यूपीए ने जासूसी करवाए थे तो क्या भाजपा भी करवाएगी और उसे भी यूं ही छोड़ दिया जाए जैसे उसने कांग्रेस को (आरोप लगाकर) छोड़ दिया।
यहां उल्लेखनीय है कि द टेलीग्राफ ने इसे 2013 में सामने आई घटना को याद दिलाने वाला बताया है। उस समय पता चला था कि 2009 में एक महिला की जासूसी करवाई गई थी। उस समय नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और अमित शाह गृहमंत्री। अभी जो सब हुआ वह किससे ज्यादा मिलता है, आप तय कीजिए। टेलीग्राफ ने यह भी लिखा है कि केंद्र सरकार ने इस मामले से प्रशासनिक और राजनीतिक रूप से निपटने की कोशिश की पर किसी ने भी मुख्य मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया – और वह यह कि इजराइली फर्म ने दावा किया है कि वह अपना स्पाईवेयर पेगासस सिर्फ सरकारी एजेंसियों को बेचता है।
इंडियन एक्सप्रेस ने आज लिखा है कि 23 अक्तूबर के सौरव दास के आरटीआई एपलीकेशन के तहत गृहमंत्रालय से पूछा गया था कि सरकार ने पेगासस स्पाईवेयर खरीदा है या नहीं अथवा खरीद के लिए ऑर्डर दिया है कि नहीं। इसके जवाब में साइबर और सूचना सुरक्षा मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि अधोहस्ताक्षरी (सीपीआईओ – सेंट्रल पबलिक इंफॉर्मेशन ऑफिसर) के पास ऐसी कोई सूचना नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है कि इस सवाल का जवाब सीधे ना में आने का जो मतलब होता वह सूचना नहीं है का मतलब नहीं है। हालांकि, जागरण ने इसे अलग ढंग से प्रस्तुत किया है। आगे देखिए।
आज इस संबंध में खबर हिन्दी के कई अखभारों में पहले पन्ने पर खबर है लेकिन एक्सप्रेस में जो जानकारी छप गई उससे ज्यादा कोई सूचना किसी में नहीं है। अभी मुद्दा यह नहीं है कि व्हाट्सऐप्प दावा करता था कि उसके संदेश एनक्रिप्टेड होते हैं और उसे बीच में सुना / देखा नहीं जा सकता है। व्हाट्सऐप्प ने जो कहा है वह यह कि ऐसा एक स्पाईवेयर के जरिए किया गया है और स्पाईवेयर सरकारी एजेंसियों को ही बेचा गया है। यह काम आपके फोन से ही करता है यानी सूचना के एनक्रिप्ट होने से पहले या फिर आपके लिए आपके फोन में आने और एनक्रिप्ट नहीं रहने पर वह सूचना लीक होती है। वैसे भी व्हाट्सऐप्प तो अपने उपयोगकर्ता का ध्यान रख ही रहा है। फिर भी, दैनिक भास्कर ने आज यह सवाल उठाया है।
वैसे, अखबार ने यह भी बताया है कि, यूजर्स के फोन में वाट्सएप कॉलिंग से स्पाईवेयर डाला गया। यूजर्स फोन न भी उठाए, तब भी यह इंस्टाल हो जाता है। कॉलिंग डिटेल भी हट जाती है। इस तरह यूजर्स को पता भी नहीं चलता कि उसकी जासूसी हो रही है। वाट्सएप ने इस खामी को अब दूर कर लिया है। नवभारत टाइम्स में भी यह खबर पहले पन्ने पर है और रविशंकर प्रसाद या सरकार की चिन्ता के साथ राहुल गांधी का आरोप छाप दिया गया है पर कंपनी बोली, सरकारी एजेंसियां को ही देते हैं सर्विस - प्रमुखता से बताने के बावजूद यह नहीं बताया है कि ऐसे में सरकार की चिन्ता का कोई मतलब नहीं है।
हिन्दुस्तान का तो शीर्षक ही है, भारतीयों की जासूसी पर केंद्र ने व्हाट्सऐप्प से जवाब मांगा। और पूरी कहानी वही है जो एक्सप्रेस में छप चुकी है और सरकार के लिए यह खबर पूरी तरह विषहीन, दंतहीन, सरल है। मुद्दा यह है कि व्हाट्सऐप्प ने संबंधित लोगों को सूचना पहले ही दे दी थी पर वे पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता होने के बावजूद अपने बचाव में कुछ कर नहीं पाए। यह स्थिति अच्छी नहीं है और इसपर काम होना चाहिए पर सिर्फ मामला टालने की कोशिश हो रही है।
दैनिक जागरण ने इस खबर को छापा तो टॉप बॉक्स में है पर शीर्षक से ही पता चलता है कि इस खबर में कुछ नहीं है। भारतीय पत्रकारों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की हुई जासूसी - यह एक्सप्रेस की कल की खबर ही है। खबर में अंदर सरकारी बयान ज्यादा सूचना कम है। जागरण और दूसरे अखबारों ने भी बताया है कि, व्हाट्सऐप्प ने इजरायली कंपनी पर मुकदमा किया है। ऐसे में व्हाट्सऐप्प को ही कटघड़े में खड़ा करने का कोई मतलब नहीं है।
दैनिक जागरण में एक और खबर है, सरकार का स्पाईवेयर पेगासस खरीदने से इन्कार। इसमें कहा गया है सरकार ने इस बात से इन्कार किया है कि उसने इजरायली स्पाईवेयर पेगासस खरीदा है। सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए सवालों के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि ऐसी कोई सूचना उसके पास नहीं है। गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक 23 अक्टूबर 2019 को ही सौरव दास नाम के एक व्यक्ति ने आरटीआई के जरिए केंद्र सरकार से पेगासस स्पाईवेयर खरीदने संबंधी जानकारी मांगी थी। यह सॉफ्टवेयर फोन पर मैसेज पढ़ने, पासवर्ड एकत्र करने और फोन की लोकशन जानने में माहिर माना जाता है। गृह मंत्रालय ने गुरुवार को भेजे अपने जवाब में ऐसी कोई भी सूचना उपलब्ध होने से इन्कार किया है। मंत्रालय के सीपीआईओ के हस्ताक्षर से भेजे गए अपने जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा है कि प्रार्थी संतुष्ट न होने की स्थिति में एक महीने के भीतर एपीलैट अथॉरिटी में अपील दाखिल कर सकता है।
इस बारे में आप इंडियन एक्सप्रेस की खबर ऊपर पढ़ चुके हैं और जागरण की इस खबर को पढ़कर इसके बारे में आप अपनी अलग राय बना सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)
इंडियन एक्सप्रेस में कल छपी खबर के अनुसार फेसबुक के स्वामित्व वाले संदेश भेजने के प्लेटफॉर्म व्हाट्सऐप्प ने कहा है कि भारत में पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर इजराइली स्पाईवेयर (जासूसी करने वाले सॉफ्टवेयर) पेगासस के जरिए नजर रखी जा रही थी। यह नजर कौन किसलिए रखेगा इसे समझना मुश्किल नहीं है और अगर ऐसा हुआ है (नहीं होने का कोई कारण नहीं है और होने के कई कारण हैं) तो यह हमारी सुरक्षा का ख्याल रखने वालों (यानी सरकार) की चूक है। दरअसल मनमानी की पोल खुलना है पर सरकार का स्टैंड अजीब है। और मीडिया का रुख ऐसा जैसा उसे खबर ही समझ में नहीं आई।
वाट्सएप ने यह भी कहा है और संबंधित लोगों से इसकी पुष्टि हुई है कि उसने खुद संबंधित लोगों को जासूसी की सूचना दी है। भीमा कोरेगांव केस में अरोपियों के वकील निहाल सिंह राठौड़, एक्टिविस्ट बेला भाटिया, आनंद तेलतुंबड़े व पत्रकार सिद्धांत सिबल ने ऐसे संदेश मिलने का दावा किया है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने वाट्सएप से जवाब मांगा है कि नागरिकों के निजता की सुरक्षा के लिए क्या उपाए किए। आज अखबारों ने यह भी बताया कि व्हाट्सऐप्प ने क्या किया इसके बावजूद सरकार ने जवाब मांगा है तो खबर है ही।
मुझे लगता है कि सेंध अगर एक अलग सॉफ्टवेयर से लगाई गई है तो इससे बचने के उपाय करना सिर्फ व्हाट्सऐप्प की जिम्मेदारी नहीं है और हो भी तो यह पता लगाना भारत सरकार का काम है कि इस सॉफ्टवेयर को किसने खरीदा और कैसे खरीदा। वह इसे खरीदने और इसका उपयोग करने की हकदार है कि नहीं। जासूसी करने का ऐसा अनधिकृत सॉफ्टवेयर भारत में बिक रहा हो तो पकड़ना मुश्किल नहीं है और जब विदेश में किए जाने वाले भुगतान पर सरकार की नजर रहती है तो विदेश से खरीदना भी आसान नहीं है।
हां, अगर विदेश में बैठा कोई व्यक्ति विदेश से ही यह सब कर रहा हो तो भारत सरकार के लिए यह काम आसान नहीं है पर तब निशाने पर पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता क्यों होते? और जो लोग निशाने पर हैं उसी से पता चल सकता है कि उनकी जासूसी कौन किसलिए कराएगा। अगर सरकार यह काम नहीं करवा रही थी तो दोषियों का पता लगाना मुश्किल नहीं है और सरकार ही करवा रही थी तो दोषी का पता कभी नहीं चलेगा। मुझे दूसरी संभावना ज्यादा लगती है और यह यूं ही नहीं है। कल इस खुलासे के बाद कांग्रेस ने इसके लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार बताया है और सुप्रीम कोर्ट से संज्ञान लेने की मांग की है।
राहुल गांधी ने कहा कि सरकार ने वाट्सएप से वैसे ही सवाल पूछा जैसे मोदी डैसो से सवाल पूछें कि किसे फायदा हुआ? दूसरी ओर, केंद्रीय सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा है कि विपक्ष यूपीए सरकार में प्रणब मुखर्जी और सेना प्रमुख वीके सिंह की जासूसी की घटना न भूले। गृह मंत्रालय ने इसे देश को बदनाम करने की साजिश बताया है। यहां गौरतलब है कि यूपीए के जमाने में अगर प्रणब मुखर्जी और वीके सिंह की जासूसी हुई तो क्या इसका खुलासा हुआ? और अगर यूपीए ने जासूसी करवाए थे तो क्या भाजपा भी करवाएगी और उसे भी यूं ही छोड़ दिया जाए जैसे उसने कांग्रेस को (आरोप लगाकर) छोड़ दिया।
यहां उल्लेखनीय है कि द टेलीग्राफ ने इसे 2013 में सामने आई घटना को याद दिलाने वाला बताया है। उस समय पता चला था कि 2009 में एक महिला की जासूसी करवाई गई थी। उस समय नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और अमित शाह गृहमंत्री। अभी जो सब हुआ वह किससे ज्यादा मिलता है, आप तय कीजिए। टेलीग्राफ ने यह भी लिखा है कि केंद्र सरकार ने इस मामले से प्रशासनिक और राजनीतिक रूप से निपटने की कोशिश की पर किसी ने भी मुख्य मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया – और वह यह कि इजराइली फर्म ने दावा किया है कि वह अपना स्पाईवेयर पेगासस सिर्फ सरकारी एजेंसियों को बेचता है।
इंडियन एक्सप्रेस ने आज लिखा है कि 23 अक्तूबर के सौरव दास के आरटीआई एपलीकेशन के तहत गृहमंत्रालय से पूछा गया था कि सरकार ने पेगासस स्पाईवेयर खरीदा है या नहीं अथवा खरीद के लिए ऑर्डर दिया है कि नहीं। इसके जवाब में साइबर और सूचना सुरक्षा मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि अधोहस्ताक्षरी (सीपीआईओ – सेंट्रल पबलिक इंफॉर्मेशन ऑफिसर) के पास ऐसी कोई सूचना नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है कि इस सवाल का जवाब सीधे ना में आने का जो मतलब होता वह सूचना नहीं है का मतलब नहीं है। हालांकि, जागरण ने इसे अलग ढंग से प्रस्तुत किया है। आगे देखिए।
आज इस संबंध में खबर हिन्दी के कई अखभारों में पहले पन्ने पर खबर है लेकिन एक्सप्रेस में जो जानकारी छप गई उससे ज्यादा कोई सूचना किसी में नहीं है। अभी मुद्दा यह नहीं है कि व्हाट्सऐप्प दावा करता था कि उसके संदेश एनक्रिप्टेड होते हैं और उसे बीच में सुना / देखा नहीं जा सकता है। व्हाट्सऐप्प ने जो कहा है वह यह कि ऐसा एक स्पाईवेयर के जरिए किया गया है और स्पाईवेयर सरकारी एजेंसियों को ही बेचा गया है। यह काम आपके फोन से ही करता है यानी सूचना के एनक्रिप्ट होने से पहले या फिर आपके लिए आपके फोन में आने और एनक्रिप्ट नहीं रहने पर वह सूचना लीक होती है। वैसे भी व्हाट्सऐप्प तो अपने उपयोगकर्ता का ध्यान रख ही रहा है। फिर भी, दैनिक भास्कर ने आज यह सवाल उठाया है।
वैसे, अखबार ने यह भी बताया है कि, यूजर्स के फोन में वाट्सएप कॉलिंग से स्पाईवेयर डाला गया। यूजर्स फोन न भी उठाए, तब भी यह इंस्टाल हो जाता है। कॉलिंग डिटेल भी हट जाती है। इस तरह यूजर्स को पता भी नहीं चलता कि उसकी जासूसी हो रही है। वाट्सएप ने इस खामी को अब दूर कर लिया है। नवभारत टाइम्स में भी यह खबर पहले पन्ने पर है और रविशंकर प्रसाद या सरकार की चिन्ता के साथ राहुल गांधी का आरोप छाप दिया गया है पर कंपनी बोली, सरकारी एजेंसियां को ही देते हैं सर्विस - प्रमुखता से बताने के बावजूद यह नहीं बताया है कि ऐसे में सरकार की चिन्ता का कोई मतलब नहीं है।
हिन्दुस्तान का तो शीर्षक ही है, भारतीयों की जासूसी पर केंद्र ने व्हाट्सऐप्प से जवाब मांगा। और पूरी कहानी वही है जो एक्सप्रेस में छप चुकी है और सरकार के लिए यह खबर पूरी तरह विषहीन, दंतहीन, सरल है। मुद्दा यह है कि व्हाट्सऐप्प ने संबंधित लोगों को सूचना पहले ही दे दी थी पर वे पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता होने के बावजूद अपने बचाव में कुछ कर नहीं पाए। यह स्थिति अच्छी नहीं है और इसपर काम होना चाहिए पर सिर्फ मामला टालने की कोशिश हो रही है।
दैनिक जागरण ने इस खबर को छापा तो टॉप बॉक्स में है पर शीर्षक से ही पता चलता है कि इस खबर में कुछ नहीं है। भारतीय पत्रकारों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की हुई जासूसी - यह एक्सप्रेस की कल की खबर ही है। खबर में अंदर सरकारी बयान ज्यादा सूचना कम है। जागरण और दूसरे अखबारों ने भी बताया है कि, व्हाट्सऐप्प ने इजरायली कंपनी पर मुकदमा किया है। ऐसे में व्हाट्सऐप्प को ही कटघड़े में खड़ा करने का कोई मतलब नहीं है।
दैनिक जागरण में एक और खबर है, सरकार का स्पाईवेयर पेगासस खरीदने से इन्कार। इसमें कहा गया है सरकार ने इस बात से इन्कार किया है कि उसने इजरायली स्पाईवेयर पेगासस खरीदा है। सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए सवालों के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि ऐसी कोई सूचना उसके पास नहीं है। गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक 23 अक्टूबर 2019 को ही सौरव दास नाम के एक व्यक्ति ने आरटीआई के जरिए केंद्र सरकार से पेगासस स्पाईवेयर खरीदने संबंधी जानकारी मांगी थी। यह सॉफ्टवेयर फोन पर मैसेज पढ़ने, पासवर्ड एकत्र करने और फोन की लोकशन जानने में माहिर माना जाता है। गृह मंत्रालय ने गुरुवार को भेजे अपने जवाब में ऐसी कोई भी सूचना उपलब्ध होने से इन्कार किया है। मंत्रालय के सीपीआईओ के हस्ताक्षर से भेजे गए अपने जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा है कि प्रार्थी संतुष्ट न होने की स्थिति में एक महीने के भीतर एपीलैट अथॉरिटी में अपील दाखिल कर सकता है।
इस बारे में आप इंडियन एक्सप्रेस की खबर ऊपर पढ़ चुके हैं और जागरण की इस खबर को पढ़कर इसके बारे में आप अपनी अलग राय बना सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)